बेटा होकर तूने मां का भऱोसा तोड़ दिया – अर्चना खंडेलवाल

मम्मी, जरा इस चैक पर साइन कर दीजिए, मुझे पैसों की बहुत जरूरत है, गुड्डी की स्कूल की फीस भरनी है, नीरज ने जल्दबाजी में कहा तो सरला जी भी बोली।

हां, कर देती हूं, पहले मेरा चश्मा तो लेकर आ, पता तो लगे कि कितनी रकम निकाल रहा है, और वो अपना चश्मा ढूंढने लगी।

काफी देर बाद भी चश्मा नहीं मिला तो नीरज फिर से झल्लाया, मम्मी क्या आपको मेरे ऊपर विश्वास नहीं है क्या? मैं दस हजार निकाल रहा हूं, जो एक महीने बाद आपको वापस कर दूंगा,मैं कोई दस लाख नहीं निकाल रहा, इतने में ही बहू तनु भी बोलती है, क्या मम्मी जी, आपको अपने बेटे पर ही विश्वास नहीं है, अब सरला जी खुद शर्मिंदा हो गई, और उन्होंने बिना कुछ पढ़ें हस्ताक्षर कर दियें, बिना चश्मे के उन्हें कुछ साफ दिखाई नहीं दे रहा था, उन्होंने नीरज पर विश्वास करके हस्ताक्षर कर ही दिएं, नीरज अपने काम पर चला गया ।

सरला जी भी अपने काम में लग गई, जब वो अपने कमरे की सफाई कर रही थी तो  देखा कूड़ेदान पूरी तरह से बंद नहीं था, वो उसे बंद कर ही रही थी तो देखा उनका चश्मा उसके अन्दर गिरा हुआ था, ओहहह !! ये यहां कैसे आया, और ये तो खराब भी नहीं है, उन्होंने अपना चश्मा निकालकर साफ कर लिया था। बात आई और गई हो गई।

 

एक दिन सरला जी बोली, नीरज तेरे पापा की पुण्यतिथि आ रही है और मैं इक्कीस ब्राह्मणों को भोजन करवा के दान पुण्य करना चाहती हूं, चैक मैंने भर दिया है, तू दस हजार रूपये निकालकर ले आना, सरला जी ने चैक दे दिया । नीरज चुपचाप उसे लेकर चला गया।

 

रात में नीरज ने ऑफिस से आकर खाना खाया और कमरे में आराम करने चला गया, सरला जी कमरे में जाने लगी तो तनु ने दरवाजा बंद कर लिया था। सरला जी वापस अपने कमरे में चली गई। सुबह उठते ही उन्होंने नीरज को कहा कि वो दस हजार दे दे, ताकि वो भोजन के लिए राशन और दान दक्षिणा का इंतजाम कर सकें।

मम्मी, कल तो मुझे समय ही नहीं मिला, मैं लाना भुल गया, आज मैं जरूर लें आऊंगा, नीरज ने बहाना बनाया, और चला गया। दो -चार दिन टालता ही रहा।

उसका रवैया देखकर सरला जी खुद एक दिन सैर का बहाना करके रिक्शे से बैंक चली गई, उन्होंने जब दूसरा चैक जमा करवाया तो पता चला कि बैंक में उनके खाते में एक रूपया भी नहीं है, पर बैंक के खाते में तो दस लाख से अधिक थे, हर महीने ब्याज भी उसमें जुड़ता था, ये सब जानकर उनके होश उड़ गए,थोड़ी देर को उनका दिमाग सुन्न हो गया, फिर उन्होंने पानी पिया और हिम्मत जुटाई और पूछा कि सारा पैसा कब और किसने निकाला है? बैंक कर्मचारी जान पहचान का था तो उसने बताया कि इस तारीख को सारी रकम निकाली गई है, आपने उस पर हस्ताक्षर किये थे, तो हमने रूपये दे दिए, और आपके बेटे नीरज जी ने अपने खाते में ट्रांसफर करवा लिएं।




सरला जी जहर का घुंट पीकर रह गई, आखिर मैंने कब हस्ताक्षर कियें?  तभी उन्होंने दिमाग पर जोर डाला कि उन्हें बिना चश्मे के अंक साफ नजर नहीं आ रहे थे और उनका चश्मा भी नहीं मिल रहा था,नीरज और तनु ने धोखे से सारी रकम हथिया ली, इन्हीं पैसों के भरोसे तो वो स्वाभिमान से जी रही थी। उनकी आंखों के आगे अंधेरा छा गया, उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था, आखिर उसके अपने बेटे बहू इतना बड़ा धोखा कैसे दे सकते हैं? जिस खून पर भरोसा किया उसी ने भरोसा तोड़ दिया।

 

सरला जी का मन खिन्न हो रहा था, बड़ी मुश्किल से खुद को संभाल कर वो घर पहुंची, तनु बच्चों को खाना खिला रही थी, वो तनु से क्या कहती? जब अपने ही बेटे ने छल कर लिया। तभी वो देख रही थी कि पिछले चार-पांच दिनों से दोनों का व्यवहार बदल गया था, पहले तो उनके खाते में पैसे थे तो दोनों आगे पीछे होते रहते थे, पर पिछले दिनों से दोनों ने उनकी परवाह करना ही छोड़ दिया था। उन्होंने तनु को कहा कि उन्हें भी वो खाना परोसकर दे दें, पर लगा जैसे तनु ने सुनकर भी अनसुना कर दिया।

मम्मी जी, आपको दिख नहीं रहा कि मैं बच्चों को खाना खिला रही हूं,आप खुद रोटी बनाकर खा लीजिए, वैसे भी मैं बच्चों को पालूं या आपकी सेवा करती रहूं, मुझे भी दस काम है, आपका तो आराम ही खत्म नहीं होता है, बहू की जली कटी बातें सुनकर सरला जी की भूख ही मर गई, अब बहू कुछ भी बोल सकती थी क्योंकि गेंद बहू के पाले में थी, वैसे भी जिसके पास पैसा होता है तो उसका पैसा बोलता है।

सरला जी अपने कमरे में चली गई और बहुत रोई पर चुप कराने वाला, सहारा देने वाला कोई भी नहीं था, उन्हें अपने बीते हुए सुनहरे दिन याद आने लगे, नीरज के पापा देवेन्द्र जी  उनकी आंखों से एक भी आंसू बहने नहीं देते थे, देवेन्द्र जी सरला जी का बड़ा ख्याल रखते थे, वो अपनी पत्नी की सरलता और सौम्यता पर रीझे रहते थे। सरला जी भी स्वभाव से सरल और कुशल गृहिणी थी, घर परिवार को संभालकर रखती थी। नीरज के होने के बाद उनके जीवन में खुशियां आ गई थी, वो नीरज के बड़े लाड़ करती थी। एक बेटा होने के बाद दूसरे बच्चे की भी चाह थी पर ईश्वर ने उनकी गोद में एक ही संतान दी, इसे ही प्रभु इच्छा मानकर उन्होंने तसल्ली कर ली। वो नीरज पर ही अपना सारा ध्यान देने लगी। देवेन्द्र जी एक निजी कंपनी में मैनेजर थे।

 

घर में सब सुख सुविधाएं थी, नीरज को भी उन्होंने अच्छे स्कूल और कॉलेज में पढ़ाया था, और उसकी नौकरी उन्हीं के शहर में लग गई। सरला जी खुश थी कि बेटा हमेशा साथ में इसी घर में रहेगा, उसे बाहर नौकरी के सिलसिले में जाना नहीं पड़ेगा। अपने बुढ़ापे के प्रति वो चिंता मुक्त हो गई थी। नीरज अपने काम में मन लगा रहा था, दो -तीन साल नौकरी करते हुए हो गये थे, अब

सरला जी उसकी शादी के सपने देख रही थी, उन्हें कोई लड़की पसंद ही नहीं आ रही थी, उन्हें तो लग रहा था कि वो अपने बेटे के लिए हीरा ही चुनकर लायेगी, पर उनकी तलाश अधुरी ही रह गई, नीरज ने अपने कॉलेज में साथ पढ़ने वाली सहपाठी तनु को पसंद कर लिया, बेटे की खुशी के लिए सरला जी और देवेन्द्र जी दोनों ही तैयार हो गये। बड़ी धूमधाम से शादी हो गई पर तनु ऊंचे सपने देखने वाली अति महत्वाकांक्षी लड़की थी, उसे घर में हर चीज ऊंची और ब्रांडेड चाहिए थी, अपनी सहेलियों के बीच वो अपना रूतबा बनाये रखना चाहती थी,  उसकी इच्छाओं और सपनों का कोई पार नहीं था।

नीरज भी उसी को खुश करने में लगा रहता था ।

सरला जी और देवेन्द्र जी अपने बेटे में आये हुए बदलाव को देख रहे थे,पर वो कुछ नहीं कहते थे, उन्हें लगता था कि दोनों सुखी रहें, घर में क्लेश ना होयें। तनु और नीरज के दो बच्चे हो गये थे, दोनों को दादा-दादी बड़े लाड़ से पाल रहे थे, तनु की फरमाइशें अभी भी कम नहीं हुई थी, कभी मूवी तो कभी मॉल में शॉपिंग करना उसकी दिनचर्या में शामिल था, उसे सिर्फ अपने पर खर्च करना अच्छा लगता था, सास-ससुर के खर्च उसे अखरते थे।

उसका यही रवैया देखकर देवेन्द्र जी सतर्क हो गएं थे ।

जब उनको रिटायरमेंट का पैसा मिला तो उन्होंने ये पैसा

 सरला जी का खाता खुलवाकर उसमें जमा करवा दिया,




क्योंकि वो जिस कंपनी में काम करते थे वो निजी कंपनी थी तो उसमें पेंशन भी नहीं मिलने वाली थी, शायद अपने भविष्य का उन्होंने पहले ही सोच रखा था, और कुछ दिनों बाद ही अचानक हृदयाघात से उनकी मृत्यु हो गई, सरला जी ये सदमा सहन नहीं कर पाई, बड़ी मुश्किल से वो सामान्य हुई पर पति की यादें उनसे भुलाई नहीं जाती थी। नीरज की नौकरी सही चल रही थी, पर वो किसी ना किसी बहाने सरला जी से पैसे मांगता रहता था, सरला जी समझती थी वो अप्रत्यक्ष रूप से हर महीने दस हजार रूपये उनके खर्च के ले ही लेता था, कभी फीस के बहाने तो कभी राशन, दवाई के बहाने और दोबारा वापस नहीं करता था। इन सबके पीछे तनु का ही हाथ था, इसलिए वो भी बेटे की मजबूरी समझ कर चुप रहती थी, पर आज तो हद हो गई, नीरज ने सारा ही पैसा धोखे से हथिया लिया।

शाम को नीरज ऑफिस से आया, उसके खाना खाने के बाद सरला जी ने नीरज को कहा, नीरज मेरे खाते से दस लाख रूपए यूं चोरी से निकालने की क्या जरूरत थी? तू मुझसे मांग लेता, इस तरह मुझे धोखा देते हुए तुझे शर्म नहीं आई ? मेरे बाद तो वो पैसा तेरे ही पास रहता, मैं तो उसे साथ भी नहीं ले जाती, इस तरह अपनी ही मां के साथ छल करना अच्छी बात नहीं है!!

 

मम्मी, आप मुझे पर झूठा इल्जाम लगा रही है, मैं आपके बैंक से पैसा क्यों लूंगा? नीरज नजरें चुराते हुए बोला। तू सच्चा होता तो नज़रें नहीं चुराता ? और हां मैं खुद आज बैंक गई थी, मुझे वहां बैठे शर्मा जी ने सब बता दिया है, अब सच्चाई मुझसे छुपी नहीं है, सरला जी की बात खत्म होने से पहले ही तनु आ गई और चिल्लाकर बोली, आप मेरे पति को इस तरह डांट नहीं सकती है, आपने ही तो खुद उस दिन चेक पर हस्ताक्षर किये थे!! फिर इन पर इल्ज़ाम क्यों लगा रही हो।

तनु, मैं अपने बेटे से बात कर रही हूं, तुम ना ही बोलो तो अच्छा है, मुझे क्या पता था कि मेरा बेटा दस हजार की जगह उसमें दस लाख की रकम भरकर मुझसे पैसे छीन लेगा, मैंने तो दस हजार के लिए ही हस्ताक्षर किए थे।

तनु फिर से तुनकते हुए बोली, अब पैसे ले भी लिए तो क्या हो गया? एक खाते से दूसरे खाते में ही तो आये है, मेरे पति ने कहीं खर्च तो नहीं कर दियें, अब आपकी उम्र का क्या पता ? जाने कब चली जाओगी !! जैसे पापाजी अचानक गये थे, आपके नाम का खाता तो खुलवाकर गये थे, अब इन्होंने खुद पैसे ले लिये तो पैसे तो घर में ही है, आपके पास रहे या इनके पास,कम से कम रूपये पैसे तो ठिकाने पर रहेंगे, एक ही घर में तो रहेंगे, कोई बड़ा फर्क तो नहीं पड़ गया। नीरज चुप था पर तनु लगातार बोलती जा रही थी।

 

तनु बहुत फर्क पड़ता है, सुहाग जाने पर स्त्री टूट जाती है, उतनी ही दूसरों पर निर्भर रहने से टूट जाती है, तुमने मेरा स्वाभिमान मुझसे छीन लिया है, अब मैं पैसे -पैसे की मोहताज हो गई हूं, साथ ही मुझे बार-बार तुम लोगों से पैसे मांगने पड़ेंगे, मगर मैं ऐसा नहीं होने दूंगी, तुम्हें मेरे पैसे वापस देने ही होंगे ।

तो क्या आप हमें कोर्ट कचहरी के चक्कर लगवायेगी?

अपने ही बेटे बहू को जेल भेजेगी, तनु चिल्लाकर बोली।

काश!! मैं ऐसा कर पाती,पर मैं नहीं कर पाऊंगी, क्योंकि मैं एक मां हूं, बच्चे मां के साथ बुरा कर सकते हैं, पर एक मां कभी अपने बच्चों के साथ में बुरा नहीं कर सकती है। ये कहकर सरला जी अपने कमरे में चली गई और उन्होंने कमरे का दरवाजा बंद कर लिया, उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वो अब क्या करें और क्या नहीं करें?? तभी उनके दिमाग में एक विचार आया, उन्होंने अपनी अलमारी खंगाली तो उन्हें घर के पेपर मिल गएं, और उन्होंने चुपके से घर बेचने और खरीदने वाले दलाल को फोन कर दिया।




सात दिन घर में शांति रही, नीरज अपनी मां से नजर मिला नहीं पा रहा था।  एक दिन शाम को घर की घंटी बजती है, सामने दलाल और साथ में एक परिवार था, उन्होंने घर को अच्छे से देख लिया, ये कौन लोग हैं? और घर के अंदर क्यों आ गये ? नीरज गुस्से से बोला।

बेटा, ये हमारा घर खरीदने आये है, अस्सी लाख में तो बिक ही जायेगा, सरला जी बोली।

हम ये घर नहीं बेच रहे हैं, आप बाहर चले जाइये, नीरज ने तेज आवाज में कहा।

तभी सरला जी बोली, तू घर बेचने वाला कौन होता है? ये घर मेरे नाम पर है और मैं ये घर बेचना चाहती हूं, मुझे रूपयों की सख्त जरूरत है, अब तेरे पापा की भी कोई पेंशन नहीं आती है, और मेरे खाते में भी एक रूपया भी नहीं है तो कुछ तो मुझे अपना इंतजाम करना होगा, तुम अपने परिवार को लेकर किराये के घर में रहने चले जाओं, मैं अस्सी लाख में अपने रहने और खाने -पीने का कहीं तो इंतजाम कर ही लूंगी, मैंने तेरे मामा से बात की है, उनके गांव में सस्ते घर मिल जायेंगे और बाकी का पैसा मेरे खाते में रहेगा।

सरला जी के तेवर देखकर नीरज और तनु के पैरों से जमीन सरक गई अब किराये का घर लेने कहां पर जायेंगे? इतना बड़ा घर किराए पर लेना आसान भी नहीं होगा, दोनों ही सोच में पड़ गए। 

आप कल आइये सरला जी ने उन्हें जाने को कहा, पर घर अच्छे से देखकर जाइये, ऊपर -नीचे से, अंदर- बाहर से बहुत बड़ा है।

सबके चले जाने के बाद नीरज और तनु ने सरला जी से माफी मांगी, मम्मी हमसे बहुत बड़ी ग़लती हो गई है,आप हमें माफ कर दो, पर इस तरह से बेघर मत करो। सरला जी भी ये नाटक ही कर रही थी, उन्होंने दोनों को माफ कर दिया और नीरज ने पुनः दस लाख रूपए उनके खाते में जमा करवा दिए। अब सरला जी पुनः आत्मसम्मान से जीने लगी।

 

पाठकों, जीवन में अपने ही बेटे -बहू से मिले धोखे माता-पिता को तोड़ देते हैं इसीलिए उन पर निर्भर रहने की जगह अपने खाते में हमेशा रूपये रखने चाहिए और बिना पढ़े तहकीकात किये बिना कहीं भी हस्ताक्षर नहीं करने चाहिए, आजकल के जमाने में अपने खून पर भी भरोसा नहीं कर सकते हैं।

धन्यवाद

लेखिका

अर्चना खंडेलवाल

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