“पिया ,मोसे छल किए जाए” – सुधा जैन

 मैं एक नारी सब कुछ हारी  पर जीवन से ना हारी, सुनाती हूं अपने जीवन की दास्तान ….नाम नहीं लिखती ….कुछ भी कह सकते हो …।सलोनी… हां प्यारा सा नाम मेरा …अपने मम्मी पापा की लाडली बिटिया …मेरे बाद मेरी छोटी सी एक बहना और दो प्यारे से भाई…. मेरी मम्मी बहुत सहज ,सरल, प्यार से भरी हुई एक आदर्श शिक्षिका…. मेरे पापा जिंदगी की जद्दोजहद में खुद को ढूंढते हुए ऊर्जा से भरे हुए  ….

मेरी मम्मी के ऊपर ही घर का सारा भार ….

बहुत प्यार से मेरी परवरिश हुई पढ़ने में बहुत अच्छी नहीं …औसत छात्रा दिखने में सुंदर, गोरी, ऊंचाई कम …मेरा ग्रेजुएशन हो गया ।मम्मी पापा को मेरी शादी की चिंता हुई… और मेरे परिवार  जैसे मध्यम वर्गीय परिवार में मेरी शादी हो गई। मेरे पति की छोटी सी दुकान.. मुझे प्यार करने वाले सास ससुर… मुझे याद नहीं की मेरी सास ने मुझे कभी कोई  व्यंग किया हो.. जो भी समझाया प्यार से समझाया। मैं ,मेरे पति , 2 साल छोटे मेरे देवर ….कम उम्र में हो गई मेरी शादी… जिंदगी को देखती रही… समझती रही ..और जल्दी जल्दी-जल्दी दो नन्हे नन्हे बेटों ने मेरी जिंदगी को खुशियों से भर दिया ।बहुत खुशी खुशी चल रही थी मेरी जिंदगी… ना ज्यादा आशाएं थी… ना महत्वाकांक्षाएं .. सब कुछ ठीक.. सुबह से शाम कब हो जाती… पता ही नहीं चलता ..दिन भर घर का काम करती… खाना बनाना.. बर्तन मांजना, घर की साफ सफाई, बच्चों की देखरेख ,शाम को पति को थोड़ा समय देती और नींद में खो जाती… सुबह होती.. वही काम…

 मायके जाती तो मम्मी पूछती.. “कुछ चाहिए”

 मैं कहती” नहीं मम्मी सब कुछ है, कुछ नहीं चाहिए”

 सब कुछ अच्छा चल रहा था.. जिस दिन मेरे छोटे बेटे का जन्मदिन था.. मैंने आसपास के कुछ बच्चों को बुलाया.. घर पर ही गुलाब जामुन ,नमकीन बनाया सभी को खिलाया.. घर का कामकाज भी बहुत था ..थक गई.. शाम को जब पतिदेव मेरे कमरे में आए.. उन्होंने मुझसे कुछ कहना चाहा.. मैंने सरलता पूर्वक कहा” मैं आज बहुत थक गई हूं तुम्हें जो भी कहना हो कल कहना” और मैं सो गई ..थक गई थी.. नींद जल्दी आ गई.. आधी रात को जब मेरी नींद खुली तो मैंने ठंडे-ठंडे पैर को अपने ऊपर महसूस किया… आंख खोल कर देखती हूं ..तो मेरे पति पंखे पर लटके हुए हैं.. मेरी ही साड़ी है मेरी तो चीख निकल गई। मैं दौड़ी दौड़ी अपनी सास ससुर के कमरे में गई ..उनको बुलाया ..उन्होंने देखा.. सभी और कोहराम मच गया ।मेरे देवर भी  हक्के बक्के से अपने पापा मम्मी को संभाल रहे थे। पुलिस को सूचना दी। पोस्टमार्टम हुआ.. मुझसे पूछताछ भी  हुई..” क्या हुआ था ?क्या नहीं ?कुछ लिख कर गए क्या ?मैंने ईमानदारी से बता दिया… “कुछ भी नहीं हुआ.. कुछ लिख कर भी नहीं गए.. कोई झगड़ा भी नहीं हुआ… मुझे नहीं पता क्या हुआ?

 मेरी मां ने मेरे माथे की बिंदिया को हटाने नहीं दिया… कहा “बिटिया ,इसमें तुम्हारी क्या गलती है?




 मेरी सास ने मेरे सिर पर हाथ फेरा और मैं अपने ससुराल में ही रह गई…

 इनके निधन को 3 साल हो गए.. मेरी आंखों के आंसू सूख चुके थे… घर में आर्थिक रूप से कमी थी.. मैं टिफिन बनाने लगी… साड़ी में फाल लगाने लगी.. घर में जो कर सकती थी …वह करने लगी।

 मेरे देवर भी उसी दुकान को संभालने लगे.. जब उनकी शादी की बात हुई …तब उन्होंने अपने मम्मी पापा से कहा कि ” मेरे लिए लड़की मत देखो मैं भाभी से ही शादी करना चाहता हूं” मेरे सास ससुर ने बड़े प्यार से उन्हें समझाया कि “यह जीवन भर का सवाल है, सोच समझ कर बताना” मुझसे भी पूछा” तुम्हारी क्या मर्जी है “?

मैं खुद से पूछने लगी” क्या करूं? अगर मैं देवर से शादी कर लेती हूं तो फिर इस घर में ही रहूंगी… बच्चों को दादा दादी का प्यार मिलता रहेगा.. और सब कुछ ठीक हो जाएगा”

 मैंने हां कहा.. बच्चों से पूछा “काकू अगर पापा बन जाएंगे तो कैसा लगेगा?”

 बच्चे खुश हो गए.. मेरे मम्मी पापा के सिर से तो बहुत बड़ा बोझ उतर गया ..और एक सादे से समारोह में हम दोनों की शादी हो गई। मैंने कभी भी उन्हें पति की नजर से देखा नहीं था.. लेकिन मैंने शादी की  इसका मतलब “मैंने उन्हें स्वीकार किया “मैं उन्हें अपना प्यार देना चाहती थी ।पति के रूप में उनका जतन करना चाहती थी। हमारी शादी को सभी और से एक आदर्शवादी शादी माना गया। पेपर में फोटो भी आए मेरे देवर की तारीफ में बहुत कुछ लिखा गया। सभी को बहुत खुशी भी हुई.. और सचमुच बात खुशी की भी थी।

 मेरे संघर्षों का दौर फिर शुरू हुआ… मेरे देवर ने मुझे कभी भी पत्नी के रूप में स्वीकार नहीं किया.. मैंने कभी कोशिश भी की तो उन्होंने कहा कि”  मैंने तुम्हें भाभी के रूप में ही देखा.. पत्नी के रूप में स्वीकार नहीं कर पाऊंगा”




 मैंने बोला “फिर आपने शादी क्यों की ?इससे तो अच्छा होता कि हमारी जिंदगी की राहें अलग हो जाती ..मैं भी अपनी जिंदगी में कैसे भी खुशियां ढूंढ लेती”  किसी और से शादी कर लेती.. और तुम भी अपनी जिंदगी में खुशियां ढूंढ लेते”

 सभी और हमारे रिश्ते की खुशियां मनाई जा रही थी और हम अंदर ही अंदर टूट रहे थे ।मेरे सास ससुर ,मेरे माता-पिता मेरे बच्चे सब निश्चिंत हो गए ।बच्चे उन्हें “पापा, पापा “कहने लगे बाहरी रूप से तोहम दोनों अपना सारा कर्तव्य निभा रहे थे.. पर अंदर ही अंदर टूट रहे थे।

 मेरी दूसरी शादी को 3 साल हो गए ।दुनिया की नजरों में सब कुछ ठीक चल रहा था। कभी-कभी मैं सोचती ..आदर्शवादी बनना कितना बुरा होता है.. मेरे देवर ने एक आदर्श के चक्कर में खुद की जिंदगी भी बर्बाद कर ली ..और मुझे भी संकट में डाल दिया। नारी के जीवन की कहानी बहुत ही कठिन होती है… कहानी ही नहीं …असल जिंदगी तो और कठिन होती है। जिंदगी अपनी रफ्तार पर चल रही थी ।कोरोना ने अपने पैर पसार लिए …मेरे घर पर भी आर्थिक संकट का बहुत बड़ा दौर आ गया ।कुछ भी करके गुजारा मुश्किल से हो रहा था.. और इसी बीच में मेरे पापा मुझे छोड़ कर चले गए ।मेरी मम्मी  और हम सब पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा ।पापा के जाने से मुझे ऐसा लगा कि मैं भीड़ में भी अकेली हूं। मेरे पापा के निधन के पहले त्यौहार सक्रांति करने के बाद करने के बाद मैं अपने ससुराल आई। मैंने अपने सास ससुर जी को अपने दिल की बात कही कि मेरे देवर ने मुझसे शादी क्यों की? जब वे मुझे पत्नी के रूप में स्वीकार ही नहीं करते?




 मेरे सास ससुर इस बात को सुनते ही रह गए …उन्होंने मेरे देवर की तरफ देखा..  वे कुछ बोले नहीं… मैं टीवी वाले कमरे में ही सो गई… और वह कमरे में चले गए। सुबह 4:00 बजे मेरे ससुर जी ने देखा ..मैं बाहर सोई हूं..  उन्होंने देखा” कमरा बंद था.. रात को जो बात हम सबके बीच में हुई थी उस बात से वे डरे हुए थे… सभी को इकट्ठा किया… दरवाजे को तोड़ा तो देखा ..उसी जगह पर मेरी ही साड़ी में मेरे देवर लटके हुए थे… मेरे ससुर जी बेहोश हो गए ….मेरी सास का रो रो कर बुरा हाल था.. पुलिस आई.. पोस्टमार्टम  हुआ… पूछताछ हुई… मैंने जो सच था.. वही कहा.. मुझे कुछ भी नहीं पता? मेरी मम्मी कहने लगी” हे ईश्वर इतना दुख कैसे सहन करूं मेरी बिटिया पर तो दुखों का पहाड़ टूट गया” पर मैंने अपनी मम्मी को समझाया” मम्मी मैं सब कुछ हारी हूं… पर जीवन से नहीं हारी हूं” मेरी सास ने मेरे मां के गले लग कर कहा” मैं सलोनी के लिए क्या कहूं ?मेरे दोनों बेटों ने तो मेरी कोख ही लजवा दी.. मैं तुम्हें क्या जवाब दूं ?सलोनी कहती है.. जिन्हें जो भी कहना हो.. कहे… सभी के मन में कई बातें आती होगी… एक नहीं दो दो बार वही घटनाक्रम दोहराया गया… कुछ ना कुछ बात तो होगी… मै झगड़ा करती होऊंगी… कुछ अनबन होगी… मेरे जीवन में कोई तीसरा होगा …या उनके जीवन में कोई दूसरी होगी… बहुत सारे प्रश्न है..? बहुत सारे उत्तर …मेरे पास किसी के जवाब नहीं है …मेरे बच्चे मुझे कहते हैं” मम्मी आप मत रोवों, हम आपके साथ हैं ” छोटे-छोटे बच्चे दुनिया की हकीकत क्या जाने? इतना सब होने के बाद भी मेरी उम्र अभी 35 की भी नहीं हुई… जिंदगी पूरी बाकी है.. हां शादी पर से मेरा भरोसा उठ गया है… पर जिंदगी से मेरा भरोसा खत्म नहीं हुआ …इन दिनों एक सीरियल आ रहा है..” पिया मोसे छल किए जाए “और मैं अपनी आंखों में आंसू डुबोकर कहती हूं “मेरे दोनों पिया मोसे छल किए जाए…..”

#भरोसा 

सुधा जैन 

मौलिक कहानी

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