बेशर्म दुल्हन – डॉ. पारुल अग्रवाल

घर पर पुताई का काम शुरू होना था। तन्वी को लगा यही मौका है कि लगे हाथ अलमारियों और पुराने संदूक की भी सफाई कर दी जाए तो पुराना कबाड़ बाहर किया जा सकता है। पर जैसे ही उसने पुराना सामान निकालना शुरू किया वैसे ही एक तरफ सुंदर से बैग में रखी उसकी शादी की फोटो एल्बम उसके सामने आ गई। फोटो एल्बम को देखकर वो अपनेआप को रोक नहीं पाई, सारा काम वाम छोड़कर लगी एक एक तस्वीर को निहारने। हर तस्वीर से जुड़ा एक एक मंजर उसकी आखों के सामने घूमने लगा।

वैसे तो इन सब में जिंदगी के 15 साल निकल गए थे पर उसको लग रहा था जैसे कल की ही तो बात थी,जब वो इस घर में दुल्हन बनकर आई थी। कितनी मासूम लग रही थी वो सभी तस्वीर में, दुनियादारी से बिल्कुल अनजान। तस्वीरों को पलटते देखते, अब सबसे भावुक क्षण विदा का भी आ गया। सबके चेहरे पर एक मायूसी थी, पर दुनिया की रीत थी निभानी भी थी। पर यहां एक बात अनोखी थी सभी शादी में हम दुल्हन को विदा के समय रोते बिलखते देखते हैं पर यहां तन्वी बिल्कुल खामोश थी।

ऐसा नहीं था कि वो अपने घर और मम्मी पापा को छोड़ते हुए उदास नहीं थी पर वो शुरू से ही थोड़ा अलग स्वभाव की थी, उसको आसानी से रोना नहीं आता था। बचपन से ही उसका स्वभाव था कि अगर उसको कुछ लगता भी था तो अकेले में भले ही वो रो ले पर दुनिया के सामने वो अपनी भावनाएं नहीं व्यक्त कर पाती थी

उस दिन भी यही हुआ,फिर एक तो वैसे भी वो पढ़ाई और नौकरी की वजह से सात-आठ साल से घर से बाहर थी और दूसरा उसकी ससुराल और मायका एक ही शहर में ही थे।  यही सब कारण की वजह से वो और लड़कियों की तरह से ना तो विदाई के समय रोई और ना ही सबसे गले मिली। हालांकि उसकी ननद ने भी उसके कान में धीरे से आकर कहा कि भाभी थोड़ा सा दिखावे के लिए ही आंसू बहा दो, पर उसे नहीं पता था कि उसका विदाई के समय ना रोना उसको बेशर्म दुल्हन का खिताब दिला देगा। वो तो दिल की बहुत साफ लड़की थी।



जिसे मर्यादा और संस्कारों में तो रहना आता था पर झूठ-मूठ का दिखावा करना नहीं आता था। खैर विदा होकर वो ससुराल पहुंच गई। ससुराल में पहुंचने पर जब द्वारचार की रस्म में घर की औरतें आरती के लिए बाहर आई तब घर की एक बड़बोली चाची सास ने ताना से मारते हुए बोला कि भई तन्वी का मेकअप तो बिल्कुल तरोताज़ा है,उसकी इसी बात पर दूसरी चाची सास भी कहां पीछे रहने वाली थी

उन्होंने भी नहले पर दहला मारते हुए कहा कि मेकअप तो तब खराब होता ना जब आसूं आते। उनकी ऐसी बातें सुनकर वहां खड़ी ससुराल पक्ष की बाकी औरतें भी व्यंगात्मक तरीके से ठहाके लगाने लगी। तन्वी को ऐसे स्वागत की उम्मीद नहीं थी। उसे नहीं पता था कि शादी के बाद अपना घर छोड़कर दूसरे घर आने वाली लड़की को बहुत सारी कसौटी पर परखा जाता है जिसमें से विदाई के समय जबरदस्ती रोना भी बहुत जरूरी है नहीं तो उसे इस बात के लिए भी तिरस्कार मिल सकता है।

आने वाले काफी समय तक उसका विदाई के समय ना रोना सबके बीच चर्चा का विषय रहा। उसने अपने कानो से अपनी सास और ननद को भी कहते सुना कि एक हम थे जिनकी अपनी अपनी विदाई के समय रो रोकर बुरा हाल था,एक ये है, पता नहीं आगे और कौन कौन से रंग ढंग देखने को मिलेंगे।



ऐसे ही जब यही वाली शादी की एल्बम तैयार होकर आई तब भी उसकी सास ने उसको सुनाते हुए कहा कि दुल्हन तो शर्माते हुए ही अच्छी लगती है, ऐसे हंसती हुई दुल्हन को लोग बेशर्म का नाम देते हैं। ऐसी बातें तन्वी के दिल को भेद जाती।वो तो ससुराल के सभी सदस्य के साथ जुड़ना चाहती थी पर इस तरह की नुक्ताचीनी से कहीं ना कहीं वो एक आवरण में सिमट गई।  हालांकि धीरे-धीरे उसका अच्छा व्यवहार उसके ससुराल वालों की समझ में आ गया,उसके रिश्तें भी अपनी ससुराल के साथ बहुत अच्छे हो गए पर उसे उन लोगों के साथ घुलने-मिलने में काफी समय लगा।आज भी कहीं ना कहीं उसके दिल में इस तरह के तिरस्कार की खरोंच कहीं ना कहीं बाकी है।

दोस्तों, हालांकि ये बात बहुत छोटी थी पर कई बार ये छोटी बातें ही बहुत बड़ा नासूर बनकर रिश्तें खत्म कर देती है। पता नहीं क्यों, हम दूसरे घर से आने वाली लड़की जो की जीवन के 24-25 साल एक अलग माहौल में बीता कर आती है उससे पहले दिन से ही ससुराल के अनुसार ढलने की उम्मीद करते हैं। उसके एक-एक व्यवहार का अवलोकन इतनी बारीकी से करते हैं। ऐसी बातें बोलते हैं जो दिल को ठेस पहुंचाती हैं।

किसी भी रिश्ते की बुनियाद अगर मजबूत करनी है तो चाहे वो दूसरे घर से आई लड़की हो या ससुराल पक्ष के लोग हो सबको एक दूसरे को थोड़ा समय देना होगा तभी जिंदगी की गाड़ी सुचारू रूप से चल सकेगी। वैसे तो अब समय भी काफ़ी बदल गया है,पर आज भी कई जगह पुरानी सोच कायम है।विदाई के समय रोने, न रोने से लड़की के संस्कार की पहचान नहीं होती बल्कि आगे वो घर के अन्य सदस्यों के साथ किस तरह का व्यवहार रखती है,उससे होती है।

आपको मेरी कहानी कैसी लगी? अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें। 

#तिरस्कार 

डॉ. पारुल अग्रवाल,

नोएडा

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