बस्ता – गुरविन्दर टूटेजा

रवि अपने बस्तें में किताबे डाल रहा था पर किताबे कही ना कही से वापस बाहर आ रही थी….ये देख क्लास मे सभी उसकी हँसी उड़ाने लगे तो उसने जैसे-तैसे बस्ता संभाला और घर की तरफ निकल गया…!!!!

पर घर जाकर उसने चुपचाप बस्ता ले जाकर एक कोने में रखने लगा तो कला ने देख लिया…अरे रवि तेरा बस्ता तो बिल्कुल ही फट गया है…!!!!!

रवि बोला….कोई बात नही माँ अभी और चल जायेगा…!!!!

कला काम पर जा रही थी तो उसने मन में सोचा कि आज कही ना कही से तो उधार लेकर रवि को बस्ता दिला ही दूँगी…

पहले जहाँ गयी तो वहाँ उसने कहा कि मैडम दौ सौ रू. उधार चाहिये तो वो बोली कि अभी कैसे अभी तो महीना चालू हुआ है…इतने में उसकी बेटी आई और बोली….क्या मम्मा मेरा पार्सल आया है…हैडबैग….जल्दी से पाँच हजार रु. दे दो…!!!!

कला माँ-बेटी का मुँह देखती रह गयी…!!!!


दूसरी जगह माँगे…तो वो बोली तुमने पहले भी एडवाँस लिये थे तुम जल्दी देती भी नही हो…इतने में उनके पतिदेव बोले आज तैयार कहना आज बालगृह जाना है ना और हाँ मैंने पचास हजार रू. का चैक भी तैयार कर लिया है वहाँ डोनेट करने के लिये….कला को देखते हुये बोली तुम अभी यही खड़ी हो जल्दी से काम करों…!!!!

कला का मन खराब हो गया सोच रही थी कि क्या करे तभी उसे एक कबाड़ीवाला दिखा जो उसके घर के पास ही रहता था उसके सामान में एक बस्ता भी रखा था तो उसने जो रवि के बस्ते से बहुत अच्छी हालत में था तो उसने कहा कि भैया ये बस्ता आप मुझे दे दो जब पैसे होगे तो मैं आपको दे दूँगी…तो कबाडीवाला बोला…क्या भाभी आप ऐसे ही रख लो एक बस्ते से मैं क्या धनवान बन जाऊँगा क्या…??

कला ने बस्ता लिया और घर की तरफ बढ़ गयी जब रवि ने बस्ते को देखा तो उसकी खुशी का ठिकाना नही रहा व उसने उसमें अपनी किताबें भी जमा ली…!!!

कला बेटे को खुश देख सोच रही थी कि…पैसेवाला बड़ा नही होता बड़ा तो खुशी देने वाला होता है…!!

गुरविन्दर टूटेजा

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