*बेनजीर – बूढ़ी माई – शैलेश सिंह “शैल,, : Moral Stories in Hindi

माँ बहुत भूख लगी  है  खाना है, मैं घर मे घुसते ही माँ  को बोला ।

   शाम के पांच बजे जब मैं खेलकूद कर आया तो माँ इंतजार ही कर रही थी हाथ मे डंडा लेकर ,”  हां आओ खाना तो मिलेगा ही साथ मे बोनस भी,, और डंडा लेकर मेरे पीछे – पीछे और मैं माँ को परेशान करता हुआ आगे- आगे ,,, जब थकहार कर  एक जगह बैठ जाता और फिर अम्मा से बोलता ,,  ” अम्मा अब दो चार मार ही दो,, नही तो रात को नींद नही आएगी,,पर अम्मा मारती नही थी,, बस समझाती थीं,, बेटा ज्यादा इधर उधर मत जाया करो।  पढ़ाई में ध्यान दो।।  देखो तो जरा हाथ पैर कैसे गंदे हो गए है,, जाओ अच्छे से धुल कर आओ।

    अम्मा माई आई है,,,,  मैं जोर से चिल्लाता हुआ नल पर चला गया,, हाथ पैर धुलने के बाद मैं अंदर भागा और अम्मा से बोला  ” अम्मा अम्मा –  माई आ गई खाना बनाओ,, जल्दी।।

अरे हां बाबा,, माई को बोलो थोड़ा बैठे,, और बस थोड़ी देर इंतजार के बाद खाना बन जायेगा।।, जब खाना बन कर तैयार हो जाता  तो अम्मा माई के लिए खाना लेकर आती,, और सबसे पहले हाथ पैर धुलवाकर अच्छे से सूखे कपड़े से पोछती और फिर खाना खिलाती,, खाना खाने के बाद माई का बिस्तर लगता और मैं बिना माई से कहानी सुने उसे सोने नही देता। कभी कभी  माई  को तंग भी करता  , माई के एकमात्र झोले को हमेशा खींचता और कहता माई आखिर झोले में कौन सा खज़ाना है,, मुझे देकर जाना।।

       मैं छोटा था,, मैने कभी भी  अम्मा से सवाल नही किया कि माई कहाँ से आती है,क्या उसका कोई अपना नही,, उसका खुद का घर नही।।  हमे तो जब भी माई आती अच्छा लगता और कहानियां सुनने को मिलता। माई ने सोमवार का दिन तय किया था मेरे घर आने का,, बाकी के छः दिन वो कहाँ रहती

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मैने कभी सवाल नही किया,,। माई बड़े चाव से कहानियां सुनाती और सोते सोते आशिर्वाद देती,, बेटा तू पढ़ लिख कर बड़ा साहब बनना ,,, कलेट्टर बनना,, ।। मैं भी खुश और माई भी खुश। एक अलग ही लगाव था मेरा और माई का।।

       एक दिन  मैं घर के बाहर नल पर गया और फिर मस्ती करने लग गया,। नल के पास अमरूद के पेड़ पर चढ़ गया और पेड़ पर ही बैठ कर अमरूद खाने लगा ।  छह बजे चुके थे पर अभी तक माई नही आई। मेरी नजर अमरूद के पेड़ पर से ही मेरे घर के द्वार पर थी, , आज माई आने वाली थी,, मैं झट से पेड़ से नीचे उतरा और अंदर गया,, तो अम्मा आग बबूला हो गई,, अभी तक हाथ पैर नही धुला,,, रुक अभी बताती हु,,, हर समय मस्ती।।। 

   मैं फिर बाहर गया और अच्छे से हाथ पैर धुल के आया,, तौलिए से पोछने के बाद ,, मैं अम्मा से बोला,,, अम्मा ”  

हाँ बोलो,, अब क्या है ?

अम्मा ”  आज माई नही आई,,,

कौन माई ,??

अम्मा वही जो हर सोमवार को आती है अपने घर ।।,,, 

कही रह गयी होगी”  अम्मा मुझे प्यार से बोली,, तुम खाना खाओ,, ,, माई कहीं रह गयी होगी,, किसी और के घर,, 

हां अम्मा ,, पुनः मैं बोला ,  पर ऐसा पहली बार हुआ है।।।

तो ?? क्या हुआ,, खाना खाओ और पढ़ाई करने बैठ जाओ,,

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   मैं खाना खाकर  लालटेन के उजाले में पढ़ने बैठ गया,, पर रह-रह कर माई के बारे में सोच रहा था।  माई  पहली बार मेरे घर आई थी जब मैं पैदा हुआ था ।  ऐसा मेरी अम्मा बताती हैं,, दादी ने मरने से पहले माई का खूब सेवा सत्कार किया था,, और मरते मरते अम्मा बापू को बोलकर गई कि इस बहन का, मतलब माई का खूब ख्याल रखना, और तब से अम्मा  माइ का ख्याल रखती हैं। माई ने वादा किया था कि प्रत्येक सोमवार की शाम को वो आएगी और सुबह चली जायेगी,,।। इस तरह से माई का मेरे घर पर आना शुरू हुआ था।

      सेवा सत्कार का सिलसिला शुरू हुआ था,, माई बस रोटी के दो चार निवाले हीं खाती थी,, पर आशिर्वाद भर भर के देती थी। आज माई का आशिर्वाद नही मिला तो दिल  में अजीब हलचल थी।। आज साप्ताहिक कहानियां कौन सुनाएगा।  किसी तरह से नींद आई,, 

  सुबह हुआ,, मैं स्कूल गया,, वहाँ पर भी मन नही लगा,, फिर शाम को घर आते ही,, अम्मा से पूछा,,

अम्मा ! माई आई  थी क्या,,??

और अम्मा ने कोई  जवाब नही दिया !! 

मैं फिर उदास हो गया।।

और स्कूल का बैग एक तरफ रखकर  सीढ़ियों पर बैठ गया,, और सोचने लगा,, आखिर माई क्यों नही आई।। कहाँ होगी माई,,, ।। मैं मायूस था,, क्या खो गया था मेरा?

इस तरह से एक महीने निकल गए,, पर माई का कुछ पता नही चला। मैं उदास रहता और प्रत्येक सोमवार की शाम को  अमरूद की पेड़ पर चढ़ कर माई का इंतजार करता, पर माई नही आई।। 

     एक शाम जब मैं खाना खा रहा था तो बापू ने धीरे से अम्मा से कहा,, माई अब इस दुनिया में नही रही।।

क्या ?? मैने सुन लिया था,, और चौक कर पूछा

क्या हुआ माई को बापू,, 

बेटा माई अब नही आएगी,, वो अब इस दुनिया मे नही रही।।

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   नही,, ऐसे कैसे,, मैं रोने लगा,, 

और अम्मा चुप कराने लगी,, 

अम्मा ये गलत है  ,,  ऐसे कैसे माई बिना बताए जा सकती है,, माई,, ओ माई,, मैं रो रहा था ,, और अम्मा के आंखों में भी आंसू थे।।

अम्मा माई को देखना है,, बापू झूठ बोल रहे हो।। अब मुझे कहानी कौन सुनाएगा,, अब मैं रोटियॉँ किसे खिलाऊंगा,, हु हुउ उ उ… बापू ने आगे जो बताया वो दिल दहला देने वाला था,, माई की गठरी को चोरों ने छीन लिया था,, उन्हें लगा गठरी में कुछ होगा ,, छीना झपटी में माई को चोट लगी थी और माई स्वर्ग सिधार गई।।

       आठ वर्ष का बालक कितना सोच सकता था,, उस रात भी ठीक से खाना नही खाया था,, और नींद भी ढंग से नही आई,,,, महीनों तक माई की याद आयी,, फिर धीरे धीरे याद धुंधली पड़ने लगी,।।  आज भी कभी कभी माई की याद आती है। माई ने मेरे लिए अनमोल कहानियाँ छोड़ गई थी,, सच्चे, अच्छे और  शिक्षाप्रद कहानियां,,,,।

 

   शैलेश सिंह “शैल,,

गोरखपुर उ.प्र.

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