Moral Stories in Hindi :
… बहू विद्या ने भी हाथ हिला कर मायूस चेहरा बना कर बताया, “नहीं ।”
तब तक श्यामा देवी जी अपने हाथों में पूजा की थाली सबके सामने लाकर आरती लेने के लिए कहने लगीं। साथ ही पूछ भी लिया,” सुबह से क्या खुसर -पुसर चल रही है ? हुँ।”
…” कुछ नहीं मम्मी जी! बस ऐसे ही बातें कर रहे थे। कल वैलेंटाइन डे है न तो सोच रहे थे , कहीं बाहर चल कर मौज-मस्ती की जाए और कुछ अच्छा सा खाएं।”
…” अरे ! ऐसे कहो न ! मुझे बताओ, क्या खाना है। मैं बना दूंगी । पाव-भाजी , चाउमीन,पास्ता तो घर पर ही बना सकते हैं। “
“मम्मी ! बहू के होते हुए आफ रसोई में काम करेंगी , अच्छा लगेगा क्या ? ” बेटे बलराम ने कहा।
“ओए बल्लू ! मेरे लिए बहू -बेटी दोनों एक समान हैं। कांक्षी और तुम्हारे के लिए भी तो मैं ही काम करती हूँ। बहू तुम मेरी बेटी की तरह हो। उन्होंने विद्या की ओर देखकर कहा।”
…” मुझे तो डोसा खाना है और बटर स्कॉच आइसक्रीम भी।”
..” ठीक है! कल चलते हैं, बाहर ही होगा अपना लंच। करते हैं थोड़ी सी मनमानी और मस्ती।” मम्मी ने कहा
..” वैसे आज क्या बन रहा है ? “कांक्षी ने पूछा
…” पूड़ियाँ, आलू की सब्जी और रायता।” बहू विद्या ने बताया
. .” वैसे ही क्या कम रायता फैलाया है जो अब खाने में भी वही।” बलराम ने अपने कमरे से बाहर निकलते हुए कहा । कंघी से अपने बालों को मुर्गे की कलगी की तरह कुछ ऊपर की ओर उठाया। ऐसा ही करते रहने के लिए हेयर ड्रेसर ने कहा था। यह जिम्मेदारी उन्हें हर एक या दो घंटे बाद उठानी पड़ रही थी वरन् हेयर तो फैल कर बैठने लगते चाहे जब।
***************
विद्या और कांक्षी एक दूसरे की ओर आंखों ही आंखों में देखने लगती हैं। विद्या की हंसी छूट जाती है बालों को देखकर।
मीरा परिहारविद्या अपने पति के कमरे में प्रस्थान करती हैं। जहाँ उनके आदरणीय पति बलराम जी लेटे हुए ही फोन पर यूट्यूब चैनल चलाकर कुछ देख रहे हैं।”
..” हेलो ! सुनिए जी! “
…” हुँ ! चाय बन गयी क्या ? “
…” हाँ जी ! वह तो बन गयी है,पर एक मुश्किल है। “
….” कैसी मुश्किल ?”
….” मुझसे चिमटा टूट गया है। वह खरीद कर लाना है आपको। “
…” क्या जानेमन सुबह-सुबह चिमटा तोड़ दिया। अब दिल मत तोड़ दीजियेगा। बड़ा ही नाज़ुक है। क्या तुम दो मिनट बिना तोड़ – फोड़ किए पास में नहीं बैठ सकती हो ? “
…” मेरा कलेजा मुंह को आ रहा है और आपको पास बैठने के ख्वाब आ रहे हैं। “
.. “बलराम ने विद्या का हाथ पकड़ना चाहा,मगर पल्लू का छोर ही पकड़ में आ सका। अरे ! इसमें क्या बांध रखा है ? बिल्कुल पुराने जमाने की आदतें हैं तुम्हारी ।”
…” विद्या दांतों से अपनी जीभ दबाते हुए, खोल कर देखिए। क्या बांधा है ? “
..” बलराम ने उत्सुकता से पल्लू की गांठ खोली तो उसमें हाजमोला की गोलियां निकलीं।” ये किसलिए ?
जी मिचलाता है तो लेनी पड़ती है। “
…” वैसे किस लिए याद किया है हमें ?
..” एक मुश्किल है , श..!” विद्या ने अपने मुंह पर उंगली रखते हुए कहा।
….” कैसी मुश्किल ?”
….” मुझसे चिमटा टूट गया है। वह खरीद कर लाना है आपको। “
” क्या ? ये औरतों वाले काम हम कैसे कर सकते हैं ?
….” औरतें घर में रहती हैं,मर्द ही तो बाहर का काम करते हैं। घर में घुसे रहना अच्छा है क्या ? बाहर जाएंगे तो चार लोगों से मिलेंगे-जुलेंगे। अच्छा लगेगा।”
….” अच्छा तो अब हम आपको ठलुआ नजर आ रहे हैं। हमने एम.एस.सी किया है। वह तो पिता जी ने रुपए नहीं दिए। वरना हम भी एमबीबीएस कर लिए होते और आज ..”
…” जी बिल्कुल! आज किसी मेडिकल काॅलेज में होते। कोई बात नहीं रास्ते और भी हैं। आजकल तो जो सेलेक्ट नहीं होते ,वे कोचिंग चला लेते हैं। बहुत कमाई है उसमें। कितनी कोचिंग क्लास चलाने वाले जो इस समय शहर में हैं, उनमें से अधिकांश वही हैं , जिनका सेलेक्शन नहीं हुआ। “
…” हाँ यह बात तो है, डाक्टर नहीं बने तो क्या हुआ। डाक्टर बनाने वाले ही बन गये।”
…” तब क्या ख्याल है आपका ? आपको भी ऐसा ही कुछ कर लेना चाहिए।”
…” कोचिंग क्लास क्या ऐसे ही चल जाती हैं। उसके लिए भी पूँजी चाहिए। जो मुझे किसी से मिलने वाली नहीं है जानेमन !”
..” चलिए चिमटा ही ला दीजिए। इसकी पूंजी हम लगा देते हैं। वरना रोटी नहीं सेंक पाऊँगी मैं। “
…” अच्छा है न! आज पूड़ी खाने को मिलेगी इसी बहाने। गाना भी गाएंगे, ” चल सन्यासी मंदिर में,तेरा चिमटा ..”
…” सन्यासी,चिमटा , मंदिर शब्द मद्धम-मद्धम श्यामा जी भी सुन पा रही थीं। लेकिन पूरी बातें उनकी समझ से भी बाहर थीं। उन्होंने वहीं से बैठे हुए ही कहा ,सुबह- सुबह यह चिमटा कौन बजा रहा है ? खाली चिमटा बजाना शुभ शगुन नहीं होता भागवानो!”
…” मम्मी जी! आप पूजा कर रही हैं ? अब कोई वार्तालाप नहीं होगा। कहते हुए बहू विद्या वापस लौट आती है। “
…बहन कांक्षी रसोई के दरवाजे पर ही खड़ी थी। कपों में चाय डाली जा चुकी थी और ब्रेड पर मक्खन लगाकर प्लेट में रख दिया था। उसने अपनी भाभी की ओर इशारे से पूछा, “बात बनी ?”
… बहू विद्या ने भी हाथ हिला कर मायूस चेहरा बना कर बताया, “नहीं ।”
तब तक श्यामा देवी जी अपने हाथों में पूजा की थाली सबके सामने लाकर आरती लेने के लिए कहने लगीं। साथ ही पूछ भी लिया,” सुबह से क्या खुसर -पुसर चल रही है ? हुँ।”
…” कुछ नहीं मम्मी जी! बस ऐसे ही बातें कर रहे थे। कल वैलेंटाइन डे है न तो सोच रहे थे , कहीं बाहर चल कर मौज-मस्ती की जाए और कुछ अच्छा सा खाएं।”
…” अरे ! ऐसे कहो न ! मुझे बताओ, क्या खाना है। मैं बना दूंगी । पाव-भाजी , चाउमीन,पास्ता तो घर पर ही बना सकते हैं। “
“मम्मी ! बहू के होते हुए आफ रसोई में काम करेंगी , अच्छा लगेगा क्या ? ” बेटे बलराम ने कहा।
“ओए बल्लू ! मेरे लिए बहू -बेटी दोनों एक समान हैं। कांक्षी और तुम्हारे के लिए भी तो मैं ही काम करती हूँ। बहू तुम मेरी बेटी की तरह हो। उन्होंने विद्या की ओर देखकर कहा।”
…” मुझे तो डोसा खाना है और बटर स्कॉच आइसक्रीम भी।”
..” ठीक है! कल चलते हैं, बाहर ही होगा अपना लंच। करते हैं थोड़ी सी मनमानी और मस्ती।” मम्मी ने कहा
..” वैसे आज क्या बन रहा है ? “कांक्षी ने पूछा
…” पूड़ियाँ, आलू की सब्जी और रायता।” बहू विद्या ने बताया
. .” वैसे ही क्या कम रायता फैलाया है जो अब खाने में भी वही।” बलराम ने अपने कमरे से बाहर निकलते हुए कहा । कंघी से अपने बालों को मुर्गे की कलगी की तरह कुछ ऊपर की ओर उठाया। ऐसा ही करते रहने के लिए हेयर ड्रेसर ने कहा था। यह जिम्मेदारी उन्हें हर एक या दो घंटे बाद उठानी पड़ रही थी वरन् हेयर तो फैल कर बैठने लगते चाहे जब।
***************
विद्या और कांक्षी एक दूसरे की ओर आंखों ही आंखों में देखने लगती हैं। विद्या की हंसी छूट जाती है बालों को देखकर।
मीरा परिहार
Lagta hai kisi ne pahli pahli bar kahani post ki hai koi baat nhi nxt tym or acche se likhiyega
आपने क्या लिखा है शायद आपने खुद ही पढ़ के नहीं देखा, वरना ऐसी बेतुकी कहानी आप कभी भी पोस्ट न करतीं
इस कहानी का सिर पैर कुछ समझ नही आया
Wahiyat
H kya y story post krne se pehle khud pdh liya kro