बहू का तिरस्कार जब-तब !क्यों भई क्यों? – कुमुद मोहन 

 

मीरा जी बेटे के लिए अमीर बाप की बेटी रीना को  शुरू से ही  दबाकर रखना चाहती थीं कि कहीं पैसे के गुरूर में आकर  वह उनके और बेटे विकास के ऊपर हावी न हो जाए और बेटा उसके और ससुराल वालों कब्जे में न हो जाए! बहू को ताने मारने और उसका तिरस्कार करने का कोई मौका हाथ से ना जाने देती!

“बहूजी!बिजली के पैसे लगते हैं!ये तेरे पिता जी का घर नहीं है जहाँ अनाप-शनाप पैसा भरा है,मेरे छोरे की खून पसीने की कमाई है,बत्ती बुझाने में तेरे हाथ ना दुख जाऐंगे”?

नई नवेली बहू रीना की सास मीरा चिल्लाईं। गल्ती से रीना बाथरूम की लाइट बुझाना भूल गई थी जहाँ सिर्फ पंद्रह वाट का बल्ब लगा था।

ये कोई नई बात नहीं रोज का किस्सा था,कभी नल खुला रह जाता,तो अम्मा जी जरा से बहते पानी को सीधे रीना के पापा के घर ले जातीं।

सब्ज़ी मे नमक कम हो या खीर या हलवे में चीनी ज्यादा!दाल के छौंक में जरा सा घी ज्यादा पड़ जाए तब तो मीरा जी सारा आगा-पीछा भूल रीना की मां को कटघरे में खड़ा करके दम लेतीं कि उसने अपनी बेटी को कुछ नहीं सिखाया।

सब्जी में घी डालने लगती तो सुना-सुना कर कि क्या घी का कनस्तर मायके से लाई थी जो कड़छी भर-भर लुटा रही है हर समय बड़बड़ाती!

चाय में जरा सा दूध ज्यादा पड़ जाए तो अम्मा जी कहे बिना बाज ना आतीं “तेरे पिता जी के घर की तरह यहाँ भैंस ना बंधी है मोल का दूध आवै,अपने पिताजी नै कहियो एक कटिया यहाँ भी भिजवा दैं कि उनकी छोरी भगौना भर-भर दूध पी सकै”




अम्मा जी अपने बेटे के लिए अपने से बड़े घर की बेटी ले तो आईं पर उन्हें अपना सिंहासन डोलता नजर आता कहीं नई बहूरिया उनपर और उनके छोरे पर कब्जा ना कर ले और कहीं उनके छोरे की आंखें ससुराल की दौलत और रूतबे के आगे चौंधियां ना जाऐं,इसलिए वे रीना के हर काम में नुक्स निकालतीं खासकर जब विकास घर में होता।

रीना की छोटी छोटी गल्तियों को वे बढ़ा-चढ़ा कर पेश करना उनकी आदत बन गई।

विकास के पिता भी अपनी पत्नि के क्लेश करने की आदत से चुप ही रहते वे रीना की तरफदारी नहीं कर पाते।

रीना के माता-पिता ने उसे सब्र-जिम्मेवारी और बर्दाश्त का पाठ पढ़ाया था।

 

रीना उठते-बैठते अम्मा जी के ताने सुनती पर कभी अपने घर इसका जिक्र न करती ये सोचकर कि इससे उसके माता-पिता को दुख होगा।

 

अम्मा जी को उसका अपने मां-बाप से फोन करना भी नहीं सुहाता वे कभी देख लेतीं कि रीना मां से बात कर रही है तो वे फौरन बाणों का नश्तर चुभोतीं “अपनी अम्मा को कह दीजो,इतना ही शौक है बेटी से बात करने का तो हर महीने मोबाइल रिचार्ज करा दिया करें हमारे पास इतना फालतू पैसा ना है जो बिना बात को बर्बाद करैं।”

हर वक्त बात-बात में रीना के माता-पिता को बीच में लाना रीना को बिल्कुल अच्छा नहीं लगता,एक आध बार उसने विकास से जिक्र किया  पर विकास ने यह कहकर कि धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा उसे चुप करा दिया।




    शादी को कुछ ही दिन हुए थे इसलिए रीना घर में अच्छे कपड़े पहन सजी संवरी रहती अम्मा जी उसपर भी टोकतीं”घर में ही तो रहना है क्यों इतना पौडर-लिपीसटिक बर्बाद करो हो कौन देख रहा है”अगली बार मैके ते ही ले आइयो”यहां पैसों का पेड़ ना लगा है इन सब चोचलों के लिए “!

रोज-रोज के तानो में अपने मां-बाप को लाने से सुन-सुनकर एक दिन रीना ने दबे शब्दों मे अम्मा जी को कह ही दिया”अगर आपको बहू के आने पर खर्चे की इतनी ही मुश्किल थी तो अपने बेटे की शादी ना करतीं,आपको जो कुछ कहना है मेरे लिए कहें हर वक्त मेरे मां-बाप को बीच में न लाया करें।अपने मां-बाप का तिरस्कार और उनके लिए गलत बात मैं बर्दाश्त नहीं करूंगी”

रीना का इतना कहना था कि अम्मा जी ने मुँह पर पल्ला डालकर हूं हूं करके मगर मच्छी आंसू बहाने शुरू कर दिये!

विकास के घर आने पर अम्मा जी ने मनगढंत जाने कितने दोष रीना पर लगाकर कहा”ये कल की आई छोकरी ने मुझे जवाब दिया,मैने आजतक तेरे बाबू की ना सुनी तो क्या मैं इसकी सुनूंगी,अब इस घर में या तो यह रहेगी या मैं?

उस दिन हिम्मत करके रीना के ससुर ने भी उसका पक्ष लिया !उन्होंने मीरा जी को कह दिया “बहुत बस हुआ अब और नहीं !रोज-रोज की चखचख से अच्छा है बहू को मायके भेज दें!तुम घर पर एकछत्र राज करना!

     विकास को जब अपना संबंध टूटता नज़र आया तो  पहली बार उसने भी रीना की जगह अपनी मां को समझाया कि” बहुत दिन से दिखाई दे रहा है आप शुरू से ही रीना को उसके घर और मां-बाप को लेकर ताने देती रहती हैं !वह चुप रहती है !

रीमा के मां-बाप जब सामान भेजते हैं तब तो आप पूरे मुहल्ले में फक्र से सर ऊंचा करके उनकी दरियादिली के बखान करती नहीं थकती और पीठ पीछे उन्ही की बेटी का हर वक्त तिरस्कार करती रहती हैं!आज आपने मुझे मुँह खोलने पर मजबूर कर दिया इसलिए कहता हूं अपने मां-बाप का अपमान कोई बर्दाश्त नहीं करता कल को अगर आप लोगों के लिए कोई ऐसी बातें करे तो क्या मैं सह लूंगा,नहीं ना” तो अगर आप घर  की चैन शांति चाहती हैं तो प्लीज ये रोज-रोज का नाटक बंद कर दें।

 

दोस्तों

कुछ परिवारों में सासें बहुओं के सामने उनके उनके माता-पिता  को लेकर ताने सुनाते हुए तिरस्कृत करती हैं जो बिल्कुल गलत है।ऐसे लोग अपनी इज्ज़त खुद ही कम कराते हैं।जो लड़की अपने घर का ऐशो-आराम छोड़कर आपके घर आई है उन्ही सब चीज़ों को लेकर उसे ताने देना कहां तक जायज़ है।

आप सहमत हों तो कृपया लाइक-कमेंट अवश्य दें।मेरे बाकी ब्लाग्स भी जरूर पढ़ें ।धन्यवाद

कुमुद मोहन 

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