स्नेह का बंधन – नेमिचन्द गहलोत : Moral Stories in Hindi

घर के मुख्य दरवाजे पर गाड़ी की आवाज सुनकर साक्षी की छोटी भतीजी रतन ने भागकर मैन गेट खोला तो खुशी से झूम उठी ” लाडू आई … लाडू आई ।”  उसने उसे अपनी बुआ से लेकर अपने सीने से लगा लिया । दो वर्ष की बच्ची भी रतन से स्नेह पूर्वक लिपट  गयी । … Read more

अपनत्व तो अनमोल है – नेमीचन्द गहलोत : Moral Stories in Hindi

 निमन्त्रण पत्रों के वितरण का कार्य चल रहा था । परमानन्द ने सुमित को कहा ” ध्यान रखना, कुटुबं, परिवार और रिश्तेदारों में से किसी को कार्ड देना भूल मत जाना ।”                   सुमित की माँ सुलक्षणा अलमारी खोलते हुए बोली “हाँ, बाद में कोई यह शिकायत नहीं करें कि हमें याद नहीं किया । “ … Read more

ननद – नेमिचन्द गहलोत : Moral Stories in Hindi

श्रावण मास में युवतियां खेजड़े के वृक्ष की मजबूत डाल पर मोटे रस्से से हींड मांडकर बाग में झूला झूल रही थीं । राजस्थान के एक बड़े घराने की बहू सुप्यार अपनी ननद परीकंवर को झूले दे रही थी ।          उसने जोर से कहा “पेड़ की पत्तियाँ छू कर बताओ परी! तब जानूँ तुम जवान … Read more

एक फैसला आत्मसम्मान के लिए – नेमीचन्द गहलोत : Moral Stories in Hindi

विजय कान्त के दोनों बेटों का अच्छा कारोबार था । हों भी क्यों नहीं, इंसान को आधी सफलता तो उनके कुशल व्यवहार व हंसमुख स्वभाव से ही मिल जाती है ।          लोकेश के दिल्ली में स्विफ्ट कारों की एजेंसी थी और धीरज  सूरत में साड़ियों का होलसेल व्यापार करता था ।            विजय कान्त व उनकी … Read more

माँ मेरी पत्नी की जगह तुम्हारी बेटी होती तो …. – नेमीचन्द गहलोत : Moral Stories in Hindi

“पाना बाई….. ओ पाना बाई…. घर हो क्या?” “हाँ कमला बहन…. आओ… तुम्हारी ही बाट देख रही थी ..। तुम्हारी तो बहू घर का सारा काम संभाल लेती है । मुझे तो सारा काम करना पड़ता है… । ” कमला बोली “घर का कामकाज मेरे बायें हाथ का खेल है । काम  की कोई बात … Read more

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