ॐ इग्नोराय नमः – डॉ पारुल अग्रवाल

आज अल्पना अपने तीन दिन के मोटिवेशनल सेशन के बाद घर लौटी थी। आज वो काफी खुश थी क्योंकि एक व्यस्तम शेड्यूल के बाद अब परिवार के साथ समय बिताने का सोचा था। इतनी थकान के बाद उसे नींद भी अच्छी आई।सुबह जब वो काफी के मग के साथ बालकनी में आई, तो आज के समाचारपत्र में अल्पना की उत्साहवर्धन बातों का जिक्र था। उसने कल के सेशन में ॐ इग्नोराय नमः और त्याग का मंत्र सभी को दिया था। समाचार पत्र में अपने विषय में पढ़ते समय अल्पना यादों के उन झरोखों में चली गई, जिसने उसके व्यक्तित्व को पूरी तरह बदल दिया था और जिंदगी का सबसे बड़ा सबक दिया था।

 अब उसे अपनी पिछली जिंदगी का कुछ समय याद आने लगा। आज भले ही वो अपने भाषण से और कार्यों से दुनिया का उत्साहवर्धन करती है, पर एक समय था जब वो खुद ही बहुत बड़े तनाव से जूझ रही थी। सारे रिश्ते नाते उसे बेमानी लगने लगे थे। ये सोचते-सोचते अल्पना पहुंच जाती है अपनी यादों की पुरानी गलियों में,बात शुरू होती है,अल्पना के शादी के बाद से, शादी के बाद से या ये कहना चाहिए कि अगले दिन से ही ससुराल में रिश्तेदारों से घर के काम के लिए सलाहें और ताने मिलने लगे थे।

असल में अल्पना शुरू से ही हॉस्टल में रहकर पढ़ी थी और नौकरी करती थी। अधिकतर लोगो को लगता था कि उसकी सोच सिर्फ पढ़ाई और नौकरी तक ही सीमित है पर घर के काम और दुनियादारी में वो फिसड्डी है। नए घर में ऐसी शुरुआत पर उसका दिल तो दुखा था,पर उसने नया घर और नए लोग समझ कर बातों को ज्यादा तूल नहीं दिया था।

 अब थोड़े दिन बाद वो अपनी और अपने पति की नौकरी वाली जगह आ गई थी पर फोन पर भी उसकी सास और ननंद द्वारा उसकी कक्षाएं चलती रहती थी, खैर दिन बीत रहे थे। एक दिन उसे पता चला कि वो मां बनने वाली है। उसकी तबीयत बहुत खराब हो गई। उसे अब अपनी ससुराल में आकर रहना पड़ा, इस अवस्था में भी उसे अक्सर ये सुनने को मिल जाता कि जो लड़की घर के काम नहीं करती हैं उनके संतान होने के समय काफी दिक्कत आती है, जबकि वो अपने हिसाब से सारा दिन काम में लगी रहती।इस हालत में उसे एक अपनेपन की जरूरत होती पर वो उसे कही नहीं मिलता।



 अपने मायके में भी उसको कोई भावनात्मक सहारा नहीं था क्योंकि उसके मम्मी-पापा का मानना था कि बेटी की शादी कर दी तो अब उसके ससुराल में ज्यादा दखल नहीं देना चाहिए। पति अपनी नौकरी की वजह से दूसरे शहर में थे। उसने थोड़ा हिम्मत रखी कि थोड़े दिन की बात है, ये वक्त भी निकल जायेगा। एक दिन खूबसूरत संतान उसकी गोदी में आ गई। 

अब बच्ची के एक महीने की होने पर वो अपने नौकरी वाले शहर में आ गई। नौकरी उसे भी ज्वाइन करनी थी क्योंकि उस समय पति और उसकी,दोनों की नौकरी घर चलाने के लिए जरुरी थी। बच्ची को संभालने वाला कोई नहीं। उस समय तक बहुत लंबी मातृत्व छुट्टी का आदेश पारित नहीं हुआ था।किसी तरह 24 घंटे की काम वाली की व्यवस्था कर सब फिर से शुरू किया।

 जिंदगी अभी भी आसान नहीं थी। जब भी वो घर के किसी कार्यक्रम में शामिल होने के लिए जाती तब अपने लिए रिश्तेदारों में अपने लिए खूब खुसर-फुसर और तानें सुनती थी। कोई-कोई तो मुंह पर ही कह देता कि पहले बच्चा पालों, नौकरी तो फिर कर लेना, ऐसा क्या पैसे के पीछे भागना।वो ऐसी बातें सुनती और दिल ही दिल में कसमसाकर रह जाती, उसे लगता कि ऐसे लोगों को खूब सुनाए और बोले कि उसके घर के काम करने और बच्ची को संभालने वे लोग नहीं आते, पर फिर वो अपने संस्कारों के कारण चुप हो जाती।

बेटी की परवरिश, घर के काम, लोगों की ऐसी प्रतिक्रिया और घर पर किसी का भी भावनात्मक सहारा ना होना उसे कहीं ना कहीं तोड़ रहा था। रही- सही कसर तब पूरी हो गई जब लोगों ने उसके बढ़ते वजन के लिए उसको टोकना शुरू कर दिया। इतने तनाव में उसने अपनी तरफ ध्यान देना ही बंद कर दिया था। उसने डरते-डरते अपना भार लिया तो वो हैरान रह गई पिछले 6 महीनों में उससे 20 kg वजन बढ़ा लिया था। ये देखकर उसकी तो दुनिया ही हिल गई कहां,वो अपना इतनी जागरूक और अपना ध्यान रखने वाली लड़की,आज किस हालत में आ गई। ये सब देखकर आज उसका ऑफिस जाने का मन नहीं किया, उसने ऑफिस से दो दिन की छुट्टी ली। आज उसने अपने आपको आईने में अच्छे से देखा, उसने देखा कितना मुरझा गया है उसका चेहरा, जहां हर समय रौनक होती थी आज तनाव ही तनाव नज़र आ रहा है।



बेटी भी 2 साल की हो रही थी, वो भी बार-बार बीमार पड़ती थी। अब उसने अपने पति से इस बारे में बात की और अपना मेडिकल चेकअप करवाया जिससे थकान और वजन बढ़ने की असल वजह पता लग सके। उसने जांच करवाई, उसका थायराइड और बीपी बहुत बढ़ा हुआ आया। डॉक्टर ने जब उसकी सारी रिपोर्ट्स चेक की और उसे कहा,सबसे पहले तो तनाव कम करना होगा, बातों को इग्नोर करना होगा, उन लोगों का त्याग करना होगा जो उसके आत्मसम्मान को चोट पहुंचाते हैं। उसे अगर कोई बात बुरी लगे तो उसका विरोध जताना होगा, मन में नहीं रखना होगा। एक सुबह छोटी सी गोली थायराइड की खानी होगी। अपना लाइफ स्टाइल थोड़ा बदलना होगा। अल्पना अब बहुत कुछ सोच चुकी थी। उसने घर आकर निर्णय लिया कि वो पुरानी वाली अल्पना को वापस लाएगी जो अपनेआप में ही मस्त रहती थी। वो अपने इस तनाव में बेटी को भी वो समय और बचपन नहीं दे पा रही थी जिसकी उसे जरूरत है। उसने पति से विचार-विमर्श किया ,उन्होंने भी कहा की अब इतनी सेविंग तो दोनों की है कि वो नौकरी से कुछ समय ब्रेक ले सकती है। उसने कुछ समय के लिए नौकरी से बिना सैलरी छुट्टी ली। अपनी दिनचर्या बनाई, योगा क्लासेज लेना शुरू किया। उसने निर्णय लिया की वो ऐसे सारे रिश्तेदारों का जो उसे नीचा दिखाने की कोशिश करते आए हैं,उनकी बातों को दिल से लगाने का त्याग करेगी। साथ-साथ उसने अपने आप से वादा किया कि वो जो भी जंक फूड और तेलीय खान-पान है जो उसे बहुत अच्छा लगता है उसका भी त्याग करेगी। बस यही सब सोचकर उसका मन पुलकित हो गया। उसने अपने आप से ये भी कहा कि जितना वजन और तनाव बढ़ना था, बढ़ गया पर अब कल से ही ये सब एकदम कम नहीं होगा तो बढ़ेगा भी नहीं।

अब उसने थोड़ा अपने पहनावे और रहन-सहन में थोड़ा बदलाव किया। थोड़े दिन बाद उसने फिर आईने में देखा और अपने मन में कहा कि अब वो इस आईने में दिखने वाले चेहरे को कोई दुख नहीं देगी। अब जीवन में उसके दो ही सिद्धांत रहेंगे, एक तो ॐ इग्नोराय नमः और साथ-साथ त्याग उन रिश्तों और खाने का जो उसको नुकसान पहुंचाते हैं। अल्पना ने सकारात्मक शुरुआत की,एक समय सारणी बनाई। घर पर रहते रहते ही कई ऑनलाइन काउंसलिंग कोर्सेस किए। उसको लगा उसकी तरह और भी लोग होंगे जिनको थोड़ा उत्साहवर्धन की जरूरत होगी, तो वो उनकी मदद करेगी।

धीरे-धीरे वक्त बदला, बेटी बड़ी हुई, उसने मोटिवेशनल स्पीकर की तरह कार्य करना शुरू किया। अब अल्पना का अपना एक मुकाम है जहां सब उसको तारीफ की निगाह से देखते हैं। जिसके पीछे उसका इतने वर्षो की तपस्या,संघर्ष और त्याग है।

दोस्तों, हो सकता है आपके विचार थोड़ा भिन्न हों पर मेरा भी मानना यही है कि जिंदगी के सबसे कारगर मंत्रा है ॐ इग्नोराय नमः। जरुरी नहीं त्याग और बलिदान हमेशा दूसरों के लिए ही किए जाएं। खुद को खुश रखना भी हमारी पहली जिम्मेदारी है। हम खुद से खुश होंगे तभी अपने परिवार का भी ख़्याल रख पाएंगे। तो क्यों ना जो बातें और रिश्तेँ हम लोगों को दुखी करते हों पहले उनका ही त्याग किया जाए।।

#त्याग

डॉ पारुल अग्रवाल,

नोएडा

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