अतीत का दर्द – मुकेश पटेल

मां तो बचपन में ही गुजर  गई थी पिता का देहांत पिछले साल कोरोना महामारी में हो गया था।  आज 1 साल बाद गर्मी की छुट्टियों में शिल्पा अपने मायके आ रही थी।  भाई संतोष बहन को लेने के लिए स्टेशन पहुंच चुका था।  शिल्पा घर के अंदर प्रवेश करते ही सामने अपने मम्मी पापा की तस्वीर देख कर एक पल के लिए वही ठिठक  गई। तभी  शिल्पा की भाभी निहारिका बोल उठी, “दीदी इसी महीने पापा के बरसी पर आपके भैया ने यह फोटो फ्रेम करके लगवाया है। आइए बैठिए  सोफे पर आपके लिए पानी लाती हूं और  सोनू पिंकी तुम लोग बताओ क्या खाओगे। 

थोड़ी देर बाद शिल्पा अपना सामान लेकर अपने पापा के कमरे में चली गई।  कमरे के अंदर जाते ही ऐसा लगा वह उसके पापा का कमरा नहीं है बल्कि किसी अपरिचित का कमरा है।  1 साल में इस कमरे का रंग रूप बिल्कुल ही बदल गया है। पापा की पुरानी बेड की जगह पर नया दीवान पलंग आ गया है।  जहां पर पापा कुर्सी टेबल लगाकर अखबार पढ़ा करते थे।  वहां पर  उसकी भतीजी मोना की कुर्सी टेबल आ गई है अब उसकी भतीजी इसी कमरे में रहती है और पढ़ाई करती है। शिल्पा की भाभी बोली, “दीदी आपको यह कमरा कैसा लग रहा है बाबूजी के जाने के बाद हमने यह कमरा आप की भतीजी मोना को दे दिया है और इसे मोना के अनुसार ही डेकोरेट करवा दिया है सारी चीजें हमने नई  कर दी है टेबल से लेकर पलंग तक आपको पसंद आ रहा है ना। आपके भाई को तो इन सब का कुछ आईडिया ही नहीं है मैं और आप की भतीजी मोना ने मिलकर इस कमरे को सजाया है। 



शिल्पा को उस कमरे में जाकर एक अलग सा एहसास होने लगा वह कुछ देर के लिए कमरे में रखी बेड पर बैठ गई उसे वह कमरा अपना सा लग रहा था।  कई दिनों से उसका मन उदास था लेकिन यहां आकर वह खुशियों से भर गया।  वह सोचने लगी इसी कमरे में पहले माँ ने अंतिम सांस ली फिर बाबू जी ने।  उसे याद है बाबूजी अपनी आखिरी क्षणों में संतोष  को बुलाकर शिल्पा का हाथ  देकर कहा था , “बेटा अब मेरे जाने का समय आ गया है अब तू अपनी बहन के लिए भाई भी है मां भी है और पिता भी।  भाई से एक दूसरे के सुख दुख में हमेशा साथ निभाने का वचन लिया था। वह सोच रही थी कि शायद पुराने जमाने का पलंग भतीजी मोना को पसंद नहीं आया होगा इसीलिए कबाड़ी वाले को बेचकर अपनी पसंद का पलंग ले लिया है। तभी उसको याद आया दरवाजे के साइड में पापा की अलमारी हुआ करती थी जिसमें हर तरह की साहित्य और उनके कपड़े रखे होते थे।  लेकिन यह क्या अब तो वह अलमारी भी नहीं है उसकी जगह पर मोना की किताबों की नई अलमारी आ गई है। 

शिल्पा को याद आ रहा था कि पापा कि वह अलमारी नहीं जिसमे  उसकी मां की यादें बंद थी।  उसके पापा और मम्मी जब कॉलेज में पढ़ा करते थे और एक दूसरे के द्वारा भेजे गए कई सारे खत  पापा अभी तक संभाल कर रखे थे।  पापा को जब भी मां की याद आती पापा उसको निकालकर पढ़ा करते थे।  बल्कि कई बार हमें भी पढ़ाया करते थे।  मम्मी ने शादी से पहले पापा को जितनी भी चीजें गिफ्ट करी हुई थी पापा ने अभी तक उस अलमारी में संभाल कर रखा था। पापा हमेशा कॉलेज लेट लतीफ जाया करते थे।  मम्मी ने पापा को एक एचएमटी की घड़ी गिफ्ट करी थी ताकि पापा समय से कॉलेज जा सके।   वह घड़ी बैटरी की जगह चाबी से चलती थी जिसे पापा रोजाना चाबी देना नहीं भूलते थे। 

हमारे घर में किसी की हिम्मत नहीं थी कि पापा के अलमारी को छू सके। 

शिल्पा यह सब सोची रही थी कि तभी उसका भाई संतोष आकर कमरे में कुर्सी पर बैठ गया और अपनी दीदी से बोला, “दीदी जब पापा जिंदा थे तो आप हर 2 महीने में उनकी खबर पूछने के बहाने एक चक्कर लगा ही लेती थी लेकिन पापा के गुजर जाने के पूरे 1 साल बाद आप यहां आई हैं।” 



शिल्पा ने अपने भाई से कहा, “भाई तब की बात और थी पापा थे तो मन में एक चिंता लगी रहती थी अगर मम्मी होती तो इतनी चिंता नहीं होती। पापा को जब से हार्ट अटैक आया था हमेशा मन में एक डर सा लगा रहता था कि अगली बार पापा मिलेंगे या नहीं इसीलिए बार-बार जब भी मन करता पापा को देखने आ जाती थी फिर तुम्हारे जीजा जी का ट्रांसफर भी दूसरे शहर में हो गया है इससे भी घर की पूरी जिम्मेदारी मेरे ऊपर ही आ गई है पहले जीजाजी थे तो बाहर की टेंशन मुझे नहीं थी सिर्फ घर के कामों की टेंशन होती थी।  अब तो पूरा घर मुझे ही देखना पड़ता है चाहे अंदर हो या बाहर, जीजाजी तुम्हारे बस संडे के संडे आते हैं और वह भी आकर पूरे दिन सोते हैं कहते हैं कि एक ही दिन तो मिलता है आराम करने के लिए।” 

“दीदी याद है पापा ने आखिरी वक्त हम दोनों से क्या कहा था कि आप कभी भी अपने भाई को भाई मत समझना बल्कि आज के बाद भाई तो है ही साथ में मां और पिताजी भी है।  आपको तो सिर्फ अपने भाई की याद रक्षाबंधन के दिन आती है संतोष ने शिल्पा से शिकायत भरे लहजे में कहा। 

 शिल्पा ने अपने भाई को गले लगाते हुए कहा, “नहीं रे तू तो मेरी जान है कैसी बातें कर रहा है तू।  तुम्हारे सिवा इस दुनिया में मेरा है ही कौन जिसे मैं अपना कह सकूं।  तुझे याद है बचपन में तू भले मेरे से उम्र में छोटा था लेकिन मैं हर बात तुमसे शेयर करती थी तू मेरा भाई तो था ही मेरा सबसे अच्छा दोस्त भी था। तू भी शादीशुदा है तेरे ऊपर भी घर की जिम्मेवारी है तू अपने घर गृहस्थी  में सुखी है यही जानकर मैं भी खुश हो लेती हूं।  बार-बार मायके आना अच्छा नहीं लगता है नहीं तो तुम्हारी बीवी मालती क्या सोचेगी कि दीदी जब देखो मायके ही आए रहती हैं।  यह कहते हुए शिल्पा के चेहरे के भाव बदल गए।” 

संतोष ने अपनी दीदी  शिल्पा  से कहा,  “दीदी अगर मन में कोई बात है तो कहो आपके चेहरे से ऐसा लग रहा है कि आप बाहर से कुछ दिखने की कोशिश कर रही हैं लेकिन अंदर से कोई दर्द आपको टिश  रहा है।”



 शिल्पा ने अपने भाई से कहा, “संतोष दरवाजे के पीछे जो पापा की अलमारी रखी हुई थी वह कहां है।” 

 भाई संतोष ने जवाब दिया, “अरे दीदी आप की भतीजी मोना की किताबों की अलमारी रखने के लिए जगह नहीं थी ना  और वैसे भी वह पुरानी हो चुकी थी तो मैंने कबाड़ी वाले को बेच दिया।”

जब पापा जिंदा थे तो लगता था यह घर भी  उसके पापा का घर  है लेकिन पापा के जाते ही एक पल में  ये सारे रिश्ते बदल गए एक पल मे  पापा के घर से भाई का घर हो गया। शिल्पा को इस बात का दुख हो रहा था कि भाई संतोष ने एक बार भी उसके मम्मी और पापा से जुड़ी यादों का सौदा करने से पहले नहीं सोचा। कम से कम मम्मी-पापा की निशानी को तो रहने दूँ।  मोना के कमरे में ना सही किसी दूसरे कमरे में ही रख देता।  पापा के जाते ही भाई ने उसे पराया कर दिया कम से कम मुझसे ही एक बार पूछ लेता मैं ही अपने साथ पापा के उस यादों की अलमारी को अपने साथ ले आती। 

 शिल्पा ने अपने भाई से कहा तुमने  पापा की आखिरी निशानी नहीं रखी?  उसे क्यों बेच दिया? पापा को कितनी प्यारी थी उनकी अलमारी मुझसे एक बार कहा होता कहते कहते शिल्पा की आंखों से आंसू टपक पड़े थे।” 

 भाई ने कहा, “दीदी सच में आप बहुत भावुक हैं अपने आप को थोड़ा सा प्रैक्टिकल बनाइए।” 

शिल्पा की आवाज में थोड़ी कड़क थी उसने अपने भाई से कहा, “भाई सवाल प्रैक्टिकल होने का नहीं है कम से कम पापा  की आखिरी निशानी को तो इस घर में रहने देते।  तुमको  पता भी है उस अलमारी में कितनी चीजें रखी हुई थी पापा की यादें तो थी और उस अलमारी में मां की यादें भी रखी हुई थी। 

उसी समय शिल्पा की भाभी आई और बोली, “दीदी जब घर से पुरानी चीजें जाएंगे तभी तो नया सामान आएगा।  यह तो समय के साथ होता रहता है परिवर्तन तो संसार का नियम है। सासू मां ने भी तो कितनी सारी दादी सास की चीजें निकाल कर बेच दी थी।” 

शिल्पा  ने कहा, “भाभी मैं यह नहीं कह रही हूं कि कबाड़े को घर में संभाल कर रखी है लेकिन कम से कम अलमारी तो आप लोगों को रखना चाहिए था अभी पापा के देहांत हुए सही से 1 साल भी नहीं हुए और आपने उनसे जुड़ी हर चीज इस घर से निकाल दिया है।” 



शिल्पा की भाभी ने कहा, “दीदी मैं आपकी भावना को समझती हूं हमने भले उस अलमारी को बेच दिया है लेकिन अलमारी के अंदर जितना भी सामान था वह हमने संभाल के रखा हुआ है आइए आपको दिखाती हूँ।” 

शिल्पा की भाभी शिल्पा को अपने कमरे में ले गई और एक छोटा सा बक्सा  निकाल कर शिल्पा को पकड़ा दिया। 

“यह लीजिए दीदी इसी  में उस अलमारी में रखी हुई ससुर जी और सासू मां की सारी यादें रखी हुई है।”

 उस बक्से को हाथ में लेते हुए शिल्पा को ऐसा लगा जैसे करोड़ों का खजाना मिल गया हो।  उसे अपने हाथों में लेकर अपने बाबूजी के कमरे में चली गई। 

उस बक्से को  हाथ में पकड़ कर शिल्पा की आंखें नम हो गई उसको ऐसा लगा जैसे उसके पिता ने उसको स्पर्श कर दिया हो। कमरे में जाकर धीरे से बक्से को खोला और एक पुराना सा अपने मां का ब्लैक एंड वाइट फोटो और एक पुराना सा पत्र लेकर पढ़ने  लगी। 

यह वही पत्र था जिसको पहली बार शिल्पा के पापा ने उसकी मां के लिए लिखा था। शिल्पा ने उस घड़ी को चाबी दिया जो 1 साल से बंद थी जब पापा  जिंदा थे तो उस घड़ी को रोजाना चाबी दिया करते थे लेकिन अब उस घड़ी में कोई चाबी देने वाला नहीं था बाबूजी के जाने के साथ ही या घड़ी भी मर चुकी थी ।  शिल्पा के चाबी देने के साथ ही वह घड़ी फिर से जिंदा हो गई। 

 शिल्पा ने अपने भाई से कहा भाई तुम्हारी इजाजत हो तो क्या यह घड़ी और मां का फोटो अपने साथ ले जा सकती हूँ।  शिल्पा की भाभी ने कहा, “हां दीदी जो जो चीज आपको ले जाना है इस बक्से से ले जा सकती हैं।” 

 शिल्पा तो सोच कर आई थी कि पूरे एक महीना अपने मायके में बिताऊंगी लेकिन 1 सप्ताह में ही ऐसा लगने लगा था कि यह मायका उसका मायका नहीं है अब उसको मायका पराया लगने लगा था जबकि भाई और भाभी ने प्यार में कोई कमी नहीं रखी थी। उसे अब उस एहसास का आभास नहीं हो रहा था। पहले आती थी तो जो मर्जी करती बाबूजी की पसंद की चीजें बनाकर उनको खिलाती।  लेकिन अब तो किचन में जाने से भी डर लगता था। 

 1 सप्ताह के अंदर ही शिल्पा का मन अपने मायके से भर गया वह अपने भाई से  टिकट बनवा कर अपने  पिताजी के यादों को साथ लेकर अपने ससुराल चली गई।

लेखक : मुकेश कुमार

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