अपने तो अपने होते हैं

यह कहानी एक ऐसे बेटे की है उसके माँ बाप तो नहीं थे लेकिन जो थे वो माँ बाप से भी बढ़ के थे उनके खुद के बेटो ने उन्हे वृद्धाश्रम पहुचा दिया लेकिन इसने उन्हे मान और सम्मान दिया तो आइये पूरी कहानी पढ़ते हैं। इस कहानी को सुनने के बाद अगर आपके आंखो से आँसू बह रहे होंगे तो बह जाने दीजियेगा ।

कबीर बहुत परेशान था वह अपने घर कई दिनों से फोन लगा रहा था लेकिन हर बार उसके पालक माता-पिता का फोन स्विच ऑफ ही आ रहा था उसने अपने मुंहबोले भाइयों के पास भी कई बार फोन लगाया लेकिन रिंग तो जाता था लेकिन कोई भी कबीर का फोन नहीं उठाता था। कबीर काफी परेशान हो गया था और अंदर से डर ही गया था आखिर बात क्या है कोई मेरा फोन क्यों नहीं उठा रहा है और माँ बाबूजी  का फोन तो पहले कभी स्विच ऑफ नहीं आता था अब तो चार-पांच दिन हो गए अभी तक स्विच ऑफ ही क्यों आ रहा है. अंत में थक हारकर उसने एक गांव के ही किसी जानकार के पास फोन लगाया और उसने अपने माँ बाबूजी से बात करने के लिए कहा. 

 उस आदमी ने कबीर को बताया कि कुछ दिन पहले ही उनके मुंह बोले भाई गांव आए थे और घर  और जमीन का बंटवारा कर कर सारा कुछ बेच कर यहां से चले गए और अपने मम्मी पापा को भी अपने साथ लेते गए.  कबीर यह खबर सुनकर परेशान हो गया कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि घर और जमीन को बेचना पड़ा। सब लोग तो अच्छा खासा  पैसा कमाते थे। माँ बाबूजी से भी बात नहीं हो पा रही है. कबीर को अब कोई भी काम करने में मन नहीं लगता था वैसे तो कबीर अमेरिका में सॉफ्टवेयर इंजीनियर था लेकिन उसका दिमाग तो इंडिया में ही था वह अपने माँ बाबूजी से मिलना चाहता था।  उसने अगले दिन ही अपनी पत्नी से कहा मैं इंडिया जा रहा हूं वहां पर भाइयों ने आपस में बंटवारा कर घर और जमीन सब कुछ बेच दिया। माँ बाबूजी को भी पता नहीं अपने साथ रखें भी हैं या नहीं। मेरा मन कह रहा है कि वहां पर कुछ भी ठीक नहीं है. कबीर की पत्नी ने कहा ठीक है तुम इंडिया चले जाओ और हो सके तो मम्मी पापा को भी यही लेकर आओ. 



कबीर  जब इंडिया पहुंचा तो सोचा पहले गांव जाए फिर सोचा गांव जाने से कोई फायदा तो है नहीं क्योंकि गांव में तो अब कोई रहता नहीं है।  दिल्ली से उसने सीधे अपने मुंह बोले भाइयों के घर मुरादाबाद पहुंचा। मुरादाबाद पहुंचते ही अपने मुंह बोले भाइयों से पूछा तुम लोगों को अपनी जमीन जायदाद  बेचने की क्या जरूरत पड़ी। अच्छा खासा कमाते थे पुरखों की जमीन बेचना जरूरी था. 

कबीर के मुंह बोले भाई ने कहा देखो कबीर  तुम हमारे पर्सनल मामलों में दखल ना ही दो तो अच्छा है.  अब हमें गांव तो जाना होता नहीं है इसलिए हमने सोचा कि दोनों भाइयों में जमीन का बंटवारा कर जमीन बेचकर शहर में  जमीन खरीद लेंगे। असल में बात यह था कि कबीर उनका अपना सगा भाई नहीं था। कबीर अनाथ था इसी घर में पला बढ़ा था.  

कबीर को अपने   मुंहबोले भाइयों के घर पहुंचे आधा घंटा से भी ज्यादा हो गया था लेकिन उसके माँ बाबूजी दिखाई नहीं दे रहे थे उसने सोचा दूसरे भाइ के यहां होंगे। थोड़ी देर के बाद दूसरे भाई जो वहीं थोड़ी दूर पर रहता था उनके यहां गया वहां भी जब माँ बाबूजी नहीं दिखाई दिए तो उसने पूछा, “माँ बाबूजी कहां है?” कबीर के दूसरे भाई ने जवाब दिया, “मम्मी पापा दिल्ली के वृद्ध आश्रम में रहते हैं तुम्हें मिलना है तो वहां पर जा सकते हो यह पता है और यह रहा वहां का फोन नंबर तुम जाकर मिल सकते हो.”

 कबीर ने उस नंबर पर बात किया और पूछा क्या वहां पर मिस्टर रामदयाल और उनकी पत्नी शकुंतला देवी रहती हैं उधर से जवाब आया कि यह दोनों यहीं पर रहते हैं.  अभी एक महीना पहले ही तो इनके बेटे ने यहां पर एडमिट करवा कर गए हैं. 

 कबीर एक पल में ही वहां से निकलकर दिल्ली के लिए कार किराया पर लिया  और दिल्ली के लिए निकल पड़ा। 

कार अपनी रफ्तार में दिल्ली के लिए दौड़ रही थी पीछे सीट पर कबीर बैठा हुआ था और वह अपने बचपन के दिनों में खो गया. 



गांव में हिंदू-मुस्लिम का दंगा हुआ पड़ा था कुछ दिन पहले तक जो गांव हिंदू मुस्लिम भाईचारे के लिए पूरे देश में जाना जाता था।  सभी हिंदू, मुसलमानो के त्योहारों में भाग लेते थे और मुसलमान, हिंदू के त्यौहार में। कोई भी त्यौहार आता था कभी भी पता नहीं चलता था इस त्यौहार को मनाने वाले लोग कौन से हिंदू हैं और कौन से मुसलमान।  लेकिन गांव में एक छोटी सी अफवाह फैलने के कारण हिंदू मुस्लिम एक दूसरे के दुश्मन हो गए कई सारे हिंदू और मुसलमान मारे गए उसमें ही कबीर के मां-बाप को भी हिंदुओं ने मार दिया था. 

 कबीर की मां ने पीछे के दरवाजे से कबीर  को भगा दिया। कबीर भागते हुए हिंदुओं के एरिया में आ गया और रात में एक घर के चारदीवारी के अंदर प्रवेश कर गया और वहीं पर कुछ देर के बाद सो गया. 

सुबह होते ही रामदयाल जी ने जब दरवाजा खोला तो घर के बरामदे में  एक छोटा सा 8 साल का प्यारा सा बच्चा सोया हुआ था। रामदयाल जी ने बच्चे को जगाया और पूछा बच्चे तुम कौन हो ? तुम्हारा क्या नाम है  और तुम यहां कैसे?

 बच्चे ने डरते हुए बताया मेरा नाम अब्दुल है और मेरे अब्बा  और अम्मी को कल रात कुछ लोगों ने तलवार से काट दिया है मैं डर के मारे भाग कर यहां आ गया हूं प्लीज अंकल मुझे बचा लीजिए, नहीं तो वो लोग  मुझे भी मार डालेंगे। 

 तभी रामदयाल जी की पत्नी शकुंतला देवी आई और बोली अरे यह बच्चा कौन है और कहां से आया.  रामदयाल जी जानते थे कि उनकी पत्नी शकुंतला मुसलमानों से बहुत नफरत करती थी और जब शकुंतला देवी को यह पता चलेगा यह लड़का मुसलमान है 1 मिनट भी उसको यहां टिकने नहीं देगी।  रामदयाल जी ने तुरंत ही कहा अरे इसका नाम तो कबीर है यह रास्ता भटक कर आ गया है यह बचपन से अनाथ है. 



शकुंतला देवी ने कहा ठीक है फिर इसे 10-20  रूपये देकर यहां से रफा दफा करो. रामदयाल जी ने कहा यह बेचारा इतना छोटा है कहां जाएगा मैं तो यह सोच रहा हूं कि हमारे घर पर ही रह जाएगा।  छोटा-मोटा काम कर लिया करेगा उसके बदले हम इसे खाना खिला दिया करेंगे, कबीर सही कह रहा हूं ना. बच्चे ने डरते डरते हां में सर हिलाया। 

 शकुंतला देवी ने कहा मैंने कोई अनाथालय नहीं खोल रखा है जो भी यहां पर आएगा और हम अपने घर में जगह दे देंगे। 

 रामदयाल जी ने जब प्यार से समझाया तो  शकुंतला देवी उस बच्चे को अपने घर में रखने के लिए तैयार हो गई. 

 रामदयाल जी गांव के ही पोस्ट ऑफिस में पोस्ट मास्टर की नौकरी करते थे. कुछ दिन के बाद से  जब पोस्ट ऑफिस के लिए जाते तो उस बच्चे को भी अपने साथ ही पोस्ट ऑफिस लिए जाते थे और उनके छोटे-मोटे काम पोस्ट ऑफिस में कर दिया करता था.  वह अपने साथ इसलिए ले जाते थे ताकि शकुंतला देवी बच्चे के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करेगी और पता नहीं इसे कब भगा दे इसलिए वह अपने साथ ही रखते  थे. धीरे धीरे कबीर और रामदयाल जी के बीच एक अटूट रिश्ता हो गया रामदयाल जी ने कबीर को अपने बेटे जैसा मानने लगे कबीर को भी रामदयाल जी पिता के जैसे लगते थे और वह उनको बाबूजी और शकुंतला देवी को माता जी कहता था. 

 रामदयाल जी ने कबीर को कह रखा था देखो भाई तुम्हें उस घर में रहना है तो शकुंतला देवी के हां में हां मिलाना होगा।  उसके आगे तो मेरी भी नहीं चलती है और कैसे भी करके तुम अपनी पढ़ाई धीरे धीरे पूरी करो क्योंकि बाद में यही काम आने वाला है यह तो मैं तुझे वादा देता हूं जब तक मैं जिंदा हूं तुम्हें कोई दिक्कत नहीं होगा लेकिन मेरे मरने के बाद क्या। 

 रामदयाल  जी के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने के लिए टीचर आते थे तो रामदयाल जी किसी न किसी बहाने कबीर को भी वही भेज दिया करते थे ताकि वहां पर कुछ सुन कर पढ़ सकें। 



 कुछ दिनों के बाद रामदयाल जी का ट्रांसफर वहां से 50 किलोमीटर दूर मुरादाबाद शहर में हो गया और फिर क्या था रामदयाल जी ने कबीर को भी अपने साथ मुरादाबाद लेकर आ गए. 

 यहां पर बाकायदा कबीर को रामदयाल जी स्कूल भेजने लगे और एक ट्यूशन टीचर भी रख दिया क्योंकि यहां पर कोई देखने वाला नहीं था और नहीं रामदयाल जी को बोलने वाला। 

रामदयाल जी ने पोस्ट ऑफिस में कबीर के नाम से एक बचत खाता भी खोल दिया था इसमें हर महीने कबीर के नाम से ₹500 जमा कर देते थे ताकि उसके आने वाले जिंदगी में काम आए. 

 ऐसा करते करते वक्त बीतता  गया कबीर अब 15 साल का हो चुका था. 

कबीर रामदयाल जी का पूरी तरह से देखभाल करता था क्योंकि अब रामदयाल जी  बूढ़े हो चले थे एक साल में ही रिटायर होने वाले थे.कबीर जब भी उनके साथ गांव  आता. घर का सारा काम करता। शकुंतला देवी कबीर को कभी भी एक नौकर से ज्यादा नहीं समझा।  जबकि रामदयाल जी कबीर को भी अपने बेटा ही मानते थे. 

12वीं करने के बाद कबीर ने  इंजीनियरिंग की एग्जाम दिया और आईआईटी क्वालीफाई कर लिया रामदयाल जी ने कबीर के नाम पर एजुकेशन लोन दिलवा दिया और वह अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद एक एमएनसी कंपनी में उसका सिलेक्शन हो गया और वह अमेरिका चला गया. 

कबीर वहीं पर अपने ऑफिस के ही साथ काम करने वाली एक लड़की के साथ प्रेम विवाह कर लिया। 

 इधर रामदयाल जी के सगे लड़के भी सरकारी नौकरी में हो गए.  रामदयाल जी अब रिटायर हो हो कर गांव में ही अपनी पत्नी शकुंतला देवी के साथ जीवन बिताने लगे.  साल में एक बार कबीर अपने परिवार के साथ गांव आना नहीं भूलता था. आज कबीर इतने बड़े पोस्ट पर था लेकिन अभी भी शकुंतला देवी कबीर को नौकर ही समझती थी जब भी वह घर आता उसे घर के सारे काम करवाती थी और कबीर हंस-हंसकर सारे काम कर दिया करता था. 



 कबीर जानता था शकुंतला देवी बहुत प्यार नहीं करती हैं तो नफरत भी नहीं करती हैं अगर वह उससे नफरत करती तो आज इतने साल बाद भी अपने घर में आने की इजाजत नहीं देती  कबीर को तो शकुंतला देवी के नफरत में भी प्यार नजर आता था. 

अचानक से ड्राइवर ने ब्रेक लगाया और बोला बाबूजी वृद्धाश्रम आ गया. उसने कार वाले को किराया दिया और सीधे वृद्धाश्रम के अंदर गया और काउंटर पर बैठी लड़की से रामदयाल जी और शकुंतला जी के बारे में पूछा और बोला कि उनसे जाकर बोलिए कि उनका बेटा कबीर आया है. 

 थोड़ी देर  के बाद काउंटर पर बैठी लड़की ने रामदयाल जी और शकुंतला देवी को अंदर से बाहर लेकर आई कबीर उनको देखते ही उनके पैरों में गिर गया और दोनों को गले लगा कर रोने लगा. 

शकुंतला देवी भी कबीर के साथ लिपटकर रोने लगी।  कबीर ने कहा, “माँ बाबूजी अब चिंता मत करो अब तुम लोग यहां नहीं रहोगे बल्कि मेरे साथ अमेरिका चलोगे।  शकुंतला देवी ने अपने पति की ओर देखा तो कबीर ने कहा, “मां बाबूजी की तरफ देखने की जरूरत नहीं है मैं तो बहुत दिनों से आप लोगों को अमेरिका चलने के लिए कह रहा था बाबूजी तो सिर्फ आपकी वजह से नहीं आ रहे थे कि शकुंतला तुमको पसंद नहीं करती है तो फिर वह अमेरिका कैसे जाएगी।

  शकुंतला देवी ने कहा कबीर बेटा तुमने यह साबित कर दिया जरूरी नहीं सिर्फ खून के  रिश्ते ही अपने होते हैं उनके सगे बेटे ने जिसे मैंने 9 महीने कोख में रखकर पाला आज उन्होंने मुझे  वृद्धाश्रम का रास्ता दिखा दिया और तुमने जिसे मैंने पूरे जीवन कभी भी मैंने तुमसे प्यार से बात नहीं की लेकिन फिर भी तुम कभी भी मुझसे नाराज नहीं हुए मेरी हर बात तुमने मानी है. 

 अगले दिन ही कबीर शकुंतला देवी और राम दयाल जी को लेकर अमेरिका चला गया. 

 

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