मनीष आज मानसिक रूप से बेहद परेशान था,आत्मविश्लेषण करने में परेशानी तो होती ही है।आज स्कूल से आते ही उसके बेटे बबलू ने पूछा पापा ये ताऊ जी क्या होते हैं,किन्हें ताऊ जी कहते हैं? इस अजीब से प्रश्न को सुनकर मनीष ने सोचा कि स्कूल में किसी बच्चे ने अपने ताऊ जी का जिक्र किया होगा तभी ये पूछ रहा है, फिरभी मनीष ने बबलू की जिज्ञासा शांत करने के उद्देश्य से कहा बेटा पापा के बड़े भाई को ताऊ जी कहते हैं।सुनकर बबलू बोला तो आज अन्नू के पापा स्कूल में मुझसे ये क्यो कह रहे थे कि मैं तुम्हारा ताऊ हूँ?
ओह तो मनोज भैय्या आज स्कूल में अपने बेटे के पास आये होंगे और उन्हें पता लग गया होगा कि बबलू मेरा बेटा है, तभी उन्होंने कहा होगा कि बबलू मैं तुम्हारा ताऊ लगता हूँ।उन्होंने गलत तो कहा नही था।पर इस घटना से मनीष के मन मस्तिष्क में अतीत तैर गया।अतीत चाहे अच्छा हो या बुरा,वह तकलीफ ही देता है।मनीष जिस अतीत को पास फटकने भी नही देना चाह रहा था वह अनायास ही एक अट्टहास के साथ उसका मुंह चिड़ा रहा था।
सेठ फकीर चंद जी एवम उनकी पत्नी यशोदा के दो बेटे थे मनोज और मनीष।फकीर चंद के छोटे भाई शिव शंकर और उनकी पत्नी शकुंतला भी साथ ही एक बड़े मकान में रहते थे।
शिव शंकर जी के कोई संतान नही थी।शिव शंकर और शकुंतला,मनोज और मनीष को ही अपनी औलाद मानते थे।दो भाइयों का परिवार एक साथ संयुक्त रुप से रह रहा था। शकुंतला तो मनोज और मनीष को एक प्रकार से माँ की भांति ही पाल रही थी।अपनी पूरी ममता वह उन दोनों पर ही लुटा रही थी।दोनो बच्चे भी उसे छोटी माँ कह कर ही पुकारने लगे थे।अपनी औलाद नही है,ये ख्याल शकुंतला और शिवशंकर के मन मे कभी आया ही नही।
समय के साथ मनोज और मनीष बड़े हो गये।अब भी दोनो शकुंतला को छोटी माँ ही पुकारते थे।मनोज और मनीष की शादियां हो गयी।एक वर्ष के अंदर ही मनोज को पुत्र प्राप्ति हो गयी जिसे सब अन्नू ही कहने लगे,अन्नू के पैदा होने के बाद मनीष भी पिता बन गया,उसके पुत्र को सब प्यार से बबलू नाम से पुकारने लगे।
मनोज अपने पिता और चाचा के साथ व्यापार में ही लग गया,जबकि मनीष का जॉब शहर में लग गया तो मनीष अपनी पत्नी सुधा और बेटे बबलू के साथ शहर चला गया।त्यौहार आदि पर मनीष घर आ जाता था।इस बीच शिवशंकर जी लकवाग्रस्त हो गये।उनका इलाज कराया जाने लगा।फकीर चंद जी अपने छोटे भाई शिवशंकर को बेहद प्यार करते थे
,सो वे बड़े होते हुए भी पूरी तरह अपने भाई की तीमारदारी में जुट गये।इलाज में काफी पैसा खर्च होने लगा।सहयोग की अपेक्षा स्वाभाविक रूप से मनीष से भी हुई।मनीष ने कन्नी काटनी शुरू कर दी और धीरे धीरे घर आना कम करते हुए बंद ही कर दिया।
उधर शिवशंकर जी का स्वर्गवास हो गया।इत्तफाक से मनीष उस समय कंपनी के प्रोजेक्ट पर अमेरिका गया हुआ था,सो वह अपने चाचा के अन्तिम संस्कार में भी सम्मलित होने से बच गया।मनोज और मनीष के बच्चे स्कूल जाने लगे थे।स्कूल में होस्टल व्यवस्था थी,संयोगवश मनोज ने अपने बेटे अन्नू का दाखिला उसी विद्यालय में करा दिया जहां मनीष का बेटा बबलू भी पढ़ता था।
दोनो एक सेक्शन में ही थे,अन्तर यह था अन्नू होस्टल में रहता था जबकि बबलू अपने घर से ही आता जाता था,स्कूल की ओर से लोकल बच्चो के लिये बस व्यवस्था थी।चूंकि मनीष का संपर्क अपने घर व भाई आदि से नही रह गया था सो अन्नू और बबलू को यह पता ही नही था कि वे दोनो भाई हैं।इतना अवश्य हो गया कि अन्नू और बबलू दोनो दोस्त बन गये।
एक दिन जब मनोज अपने बेटे अन्नू से मिलने होस्टल आये तब अन्नू ने उनसे बबलू से मिलवाया।बातचीत से मनोज ने समझ लिया कि बबलू और कोई नही उसका भतीजा यानि मनीष का बेटा है।तभी मनोज ने बबलू को प्यार करते हुए कहा था कि वह उसका ताऊ है।बबलू ताऊ रिश्ते से ही अनभिज्ञ था,इसी कारण उसने अपने पापा से पूछा था, ये ताऊ जी क्या होते हैं।
बबलू के इसी प्रश्न ने मनीष के मन मे खलबली मचा दी थी।उसे ग्लानि भी महसूस हो रही थी कि उसके शहर में रहते हुए भी उसके सगे भाई का बेटा होस्टल में रह रहा है।मनीष सोच रहा था कि वह कितना दूर निकल आया है, अपने पिता समान चाचा की बीमारी में होने वाले खर्च से बचने के लिये उसने परिवार से ही इस कदर दूरी बना ली। सोचते सोचते रात बीत गयी।
सुबह बबलू को उसकी स्कूल बस में बिठाकर,इसी उहा पोह में मनीष घर के समीप ही स्थित एक प्रोविजन स्टोर से घर के लिये सामान लेने भी चला गया,वापसी में वह अपने को सामने से आते स्कूटर से नही बचा पाया।स्कूटर से टक्कर होते ही मनीष सड़क पर गिरकर बेहोश हो गया,उसके सिर में चोट आयी थी और हाथ में भी फ्रैक्चर हो गया था।
मनीष की पत्नी सुधा बदहवास सी दौड़ी चली आयी और लोगो की मदद से मनीष को हॉस्पिटल ने दाखिल कराया।उसके सामने अब परेशानी थी कि स्कूल गये बबलू को स्कूल से वापस बुलाने की और बाद में भी उसे संभालने की।बबलू को हॉस्पिटल में तो रखा नही जा सकता था तो घर पर ही उसे कौन रखेगा।आज के समय मे संबंध भी तो मात्र
औपचारिक रह गये हैं, मित्र,मिलने वाले बस सहानुभूति जताने ही तो आते हैं, वैसे भी उनके पास भी समय कहाँ होता है।सुधा का धैर्य जवाब देता जा रहा था,उसे भी लग रहा था,यदि आज वे अपने परिवार से जुड़े होते तो क्या वह ऐसे निसहाय बैठी रह सकती थी,किसे दोष दे,दूरी तो उन्होंने खुद बनाई थी।
सोचते सोचते, कोई समाधान न मिल पाने की हताशा में सुधा की आंखों से बेबसी के आंसू बहने लगे।तभी पीछे से आवाज आयी, अरे सुधा तुम? क्या हुआ है,तुम रो क्यों रही हो,बात क्या है? पलट कर देखा तो उसके जेठ मनोज और उसकी जेठानी कुसुम खड़े थे।उन्हें देख सुधा दौड़कर अपनी जेठानी से चिपट कर रो पड़ी।मनोज और कुसुम
ने सुधा को धीरज बधाया और सब बात पूछी।वे बोले सुधा तू चिंता मत कर हम है ना,सब ठीक हो जायेगा।मनीष को कुछ नही होगा,उसका बेहतर से बेहतर इलाज हम करायेंगे, बबलू को कुसुम संभाल लेगी,तू बस मनीष का ध्यान रख।ये तो अच्छा हुआ कि आज मैं अन्नू से मिलवाने और मेडिकल चेक अप कराने के लिये कुसुम को भी साथ ले आया था।
अवाक सी सुधा उनके मुख को देखती रह गयी,इनसे उन्होंने मुँह मोड़ा था,जिन्होंने एक क्षण में ही उस अकेली और उसके घायल पति को परिवार दे दिया।
सुधा एक बार फिर जोर से रो पड़ी,कुसुम से चिपट कर।अबकि बार वह अपने या अपने पति के लिये नही रोयी थी,अबकि बार उसकी रुलाई थी कि उन्होंने ही इस घर को तोड़ा था,उसके प्रायश्चित के लिये।
मनीष एक सप्ताह में हॉस्पिटल से वापस आ गया था,इस बीच सुधा की जेठानी कुसुम ने मनीष का घर संभाल लिया था,अन्नू को भी वे फिलहाल होस्टल से ले आये थे,कुसुम अन्नू और बबलू दोनो को स्कूल भेज रही थी,अब अन्नू व बबलू समझ चुके थे कि वे भाई हैं।मनीष के पूर्ण स्वस्थ होने पर कुसुम वापस जाने लगी तो सुधा कुसुम से चिपट कर रोते रोते बोली जीजी मैं मूर्ख कभी परिवार के महत्व को समझ ही नही पायी,हमे माफ कर देना जीजी।एक अहसान कर दो जीजी बस एक बात मान लो हमारी?कुसुम ने भी प्यार से सुधा चुप कराते हुए कहा, बता ना,क्या बात है, क्यो नही मानेगे तुम्हारी बात?
जीजी अब अन्नू होस्टल में नही हमारे पास रहेगा।
कुसुम ने आगे बढ़ सुधा को गले लगा लिया।मनीष बिस्तर पर बैठा उनके वार्तालाप को सुन आकाश की ओर देख रहा था, शायद ईश्वर को धन्यवाद देने को,आखिर आज परिवार का मिलन जो हो गया था।
बालेश्वर गुप्ता, नोयडा
मौलिक एवं अप्रकाशित
#संयुक्त परिवार