अपना किया हुआ लौट कर आता है मां- सिन्नी पान्डेय : Moral Stories in Hindi

ये कहानी है सोना की जो एक कुलीन ब्राम्हण परिवार की इकलौती बहू है और शादी को 8 साल हो चुके हैं,एक बेटे की मां है पर आज भी वो एक नवविवाहिता की भांति हर दिन अपने को साबित करने और अपना अस्तित्व तलाशने में जुट जाती है।

आइये आपका परिचय कराते हैं सोना के पतिदेव मलय जो अपनी पत्नी से प्रेम तो करते हैं पर अपनी माँ के सामने भीगी बिल्ली बने रहते हैं।तो ऐसे में यह भी ज़रूरी है कि सासू जी की भी शख्शियत से जानपहचान हो जाये तो….. सोना की सास का नाम है सुलक्षणा हालांकि स्वभाव और व्यक्तित्व नाम के एकदम विपरीत है। सुलक्षणा जी के साथ सत्यन जी के विवाह को 35 वर्ष हो चुके हैं और तबसे वो एकछत्र राज्य कर रही हैं।

परिवार में एक सदस्य और है जिसका नाम है शुचि जो सुलक्षणा जी को अपनी जान से भी ज़्यादा प्रिय है और ये उनकी बेटी है जो मलय से 2 साल ही छोटी है पर ज़िम्मेदारियों से बचने के लिए 7 साल से शादी टालती आ रही है।

अब अगर सोना की ज़िंदगी की झलक देखनी हो तो यूँ समझें कि सुबह उठकर नाश्ता बनाने से लेकर दोपहर का खाना तैयार करने के बीच मे बच्चे को खिलाने पिलाने और  नहलाने से लेकर और भी कई छुटपुट काम निकल ही आते थे और उसकी मदद के लिए कोई भी नहीं।

सुलक्षणा जी अपनी तौहीन समझती थीं बहू का हाथ बटाने में और अपनी बेटी को उन्होंने कुछ भी नहीं सिखाया था। कभी कभी तो भीषण गर्मी में किचन में अकेले काम करते हुए सोना को चक्कर आने लगते थे पर सुलक्षणा जी को तरस नहीं आता था कि ज़रा सा हाथ लगवा लें या फिर शुचि से बोल दें कुछ मदद करने को।

जब वो सबको ख़िलापिला कर किचन समेट कर खाली होती थी और कमरे में पहुँच कर बेटे को सुला ही पाती थी तब तक शुचि आ जाती थीं बुलाने,”भाभी हम लोगों को खाना खाए हुए तो बहुत देर हो गयी अब फिर से भूख लग रही है कुछ दे दो खाने को।”

सुनकर सोना झल्ला जाती थी पर क्या कर सकती थी मन मसोस कर रह जाती कि आखिर यहाँ उसका है ही कौन? जो उसके मन की बात को समझता कि कभी कभी उसका भी मन होता है कि वो कुछ न करे, कि कभी उसको भी कुछ बना बनाया खाने को मिल जाये पर शादी के बाद ऐसा कभी ही हुआ होगा सिवाय उसके जब वो बीमारी की वजह से बिस्तर पर न लेट गयी हो।और अगर सोना की बीमारी में कभी शुचि किचन में कुछ बनाने चली जाए तो पीछे से सुलक्षणा जी तुरंत पहुंच जाती थीं ये कहते हुए कि,”बहुत गर्मी है,तुम अकेले परेशान हो जाओगी।”

ये सुनकर सोना को अंदर से पीड़ा होती थी कि वो तो सबको अपना समझ कर सबकी ज़िम्मेदारी उठाती है लेकिन उसके लिए सोचने वाला कोई नहीं है, पर वो चुप रह जाती थी क्योंकि मलय अपनी मां के सामने खुद ही चुप रहते थे।

यही सब झेलते हुए 10 साल हो गए और शुचि की उम्र 30 के पार पहुंच चुकी थी। सत्यन जी बहुत सख्ती से ज़िद पर अड़ गए तब जाकर कहीं शुचि शादी के लिए तैयार हुई और एक अच्छा परिवार देखकर शादी कर दी गयी।

मायके में दिन भर आराम करने की आदत थी शुचि को और सब कुछ बना बनाया मिल जाता था तो ससुराल में एक एक दिन काटना उसके लिए मुश्किल था।कुछ दिन तो नई बहू की खातिरदारी हुई और कुछ दिन मायके आने जाने में बीत गए पर जब इसके बाद शुचि पर ज़िम्मेदारी आयी तो उसके हाथ पैर फूल गए।शुचि की सास ने सोना को शादी के वक़्त और बाद में घर आने पर काम करते देखा था कि कैसे वो अकेले सारी ज़िम्मेदारियाँ बखूबी निभा रही थी और यही अपेक्षा उन्हें शुचि से भी थी।

शुचि जब अकेले किचन में पसीना बहाती और उसको एक साथ कई काम बता दिए जाते तो उसका गुस्से से दिमाग फटने लगता था और इसीके चलते अपने पति से भी उसकी अनबन रहने लगी थी और जब इसकी भनक सुलक्षणा जी को लगी तो उन्होंने अपने घर मे इसकी चर्चा की और बोलीं,”उसकी सास को सोचना चाहिए कि घर मे बहू आयी है नौकरानी नहीं जो उसपे सारा काम अकेले छोड़ दिया गया। वो बेचारी गर्मी में अकेले परेशान हो जाती है इतना काम करते करते।कोई हाथ लगाने वाला नही है।”

ये बात सुनकर सोना की आंख से आँसू ढुलक गए और उसके कानों में अचानक मलय की आवाज़ आयी जो अपनी माँ से कह रहे थे,”माँ,विचारों में इतना विरोधाभास अच्छा नही होता और अगर आप आज तक अपनी बहू के लिए सही थीं और सोना के साथ सही व्यवहार कर रही थीं तो शुचि की सास भी अपनी बहू के लिए सही हैं तो फिर आपका परेशान होना बेकार है और अगर अपनी बेटी की शादी के बाद आप आज ये मान रही हैं कि बहू के साथ ऐसा व्यवहार नहीं होना चाहिए

उसको घर की नौकरानी समझ लेना उचित नही तो 10 सालों से सोना के साथ क्या इस घर मे सही व्यवहार हुआ है?उस समय आपके दिल मे ये बात क्यों नही आई जब सोना अकेले सबके लिए गर्मी सर्दी बरसात हर मौसम में अकेले जूझती रही।शुचि की शादी को तो अभी 6 महीने ही हुए हैं और अभी 1 महीने ही गर्मी में अकेले काम किया है

उसने,पर सोना ने तो ऐसी कितनी गर्मियों के मौसम हमारे परिवार की सेवा करते हुए काट दिए और आज तक अपनी पीड़ा आपके सामने आने नहीं दी। इसको क्या कहेंगी आप? बहू और बेटी में जो लोग इतना फर्क करते हैं उनके सामने उनका किया लौटकर आता है क्योंकि आपके घर की बहू किसी की तो बेटी है न….।”

मलय की बात सुनकर सुलक्षणाजी निरुत्तर रह गईं।उनके मानस पटल पर बीते सालों के चलचित्र घूमने लगे और वो सोना के सामने खुद को अपराधी मान कर ये सोचने लगीं कि मेरा किया हुआ मेरी बेटी के सामने लौटकर आ गया अब इसका प्रायश्चित भी मुझको ही करना होगा।अब कुछ अच्छा करूँगी जिससे अच्छा ही लौटकर आये…..।

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धन्यवाद।।।।

-सिन्नी पान्डेय

#ये क्या अनर्थ कर दिया

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