सुमन चार भाई – बहनों में सबसे बड़ी थी। पिता जी कम उम्र में जिम्मेदारियों का बोझ उसके कंधे पर डाल कर दूसरी दुनिया बसा लिए थे। उनकी सहकर्मी थी रंजना जिसके प्रेम जाल में फंस कर मां और बच्चों को छोड़कर दूसरे शहर जा कर विवाह कर लिया था। मां बहुत टूट गई थी… सारी जिम्मेदारी सुमन के कंधों पर आ गई थी।
पढ़ाई पूरी होते ही नौकरी करने लगी थी और घर को अच्छी तरह संभाल लिया था।भाई – बहनों को खूब पढ़ाया लिखाया और एक – एक कर के सब की शादी भी निपटा दिया था। किसी को सुमन की खुशियों से लेना-देना नहीं था यहां तक की मां को भी। सोने की अंडा देने वाली मुर्गी को हांथ से क्यों जाने दें तो बस बेचारी बन कर मां भी अपना काम निकलवाना सीख गई थी।
सुमन के दिल में भी अरमान थे कि वो भी शादी करके अपनी दुनिया बसाए…पर किससे कहती अपने दिल का हाल।सब भाई – बहन अपनी दुनिया में मस्त थे।अब तो भाइयों के बच्चे भी हो गए थे, जिनके शौक पूरे करने के लिए बुआ हुआ करती थी। सुमन पूरा घर खर्च चलाती थी फिर भी उसके साथ किसी का व्यवहार अच्छा नहीं था सिर्फ एक नौकरानी जैसा…
दीदी ये काम कर दीजिए वो कर दीजिए यही चलता था। यहां तक कि उसके कानों में ये भी बात आती थी कि दीदी बूढ़ी हो जाएगी तो कौन करेगा इनकी देखभाल।एक तो सास हैं दूसरी ये भी हमारे ऊपर बोझ बन गई है।
पचपन साल की हो गई थी सुमन,कई बार लगता की घर छोड़कर चली जाए पर लगता कि अच्छा हो या बुरा कम से कम सिर छुपाने के लिए छत तो है और ये हमारा ही तो परिवार है कहां जाऊं इनको छोड़कर।
एक दिन सुमन की सहेली रमा ने उससे कहा,”सुमन तू बुरा ना माने तो एक बात कहूं… तुझे भी अपना घर बसाने के बारे में सोचना चाहिए… आखिर कब तक अपना समय और पैसा इन पर बर्बाद करेगी। मुझसे तेरा हाल छिपा नहीं है। किसी को तेरी परवाह नहीं है।” “इस उम्र में कौन मुझसे शादी करेगा?” सुमन उदास मन से बोली।सुन मेरी जान पहचान में एक विधुर(रंजीत बाबू)व्यक्ति हैं….
बेचारे बीवी के चले जाने के बाद अकेले पड़ गए हैं और बच्चे भी चाहते हैं कि उनका विवाह हो जाए क्योंकि जीवन साथी के बिना जीवन काटना बहुत मुश्किल होता है और इस उम्र में कोई तो अपना हो जिससे अपना दुख – सुख इंसान बांटे। बहुत ही उच्च पद पर हैं बहुत ही सज्जन पुरुष हैं। मैंने उनकी बेटी से तुम्हारे बारे में जिक्र किया था वो तुझसे मिलना चाहती है। मैंने तो हां कर दिया है और मेरी मान तो तू एक बार जरूर मिल यार।”
“पागल हो गई है क्या रमा? मेरे घरवालों को क्या कहूंगी और सबकी क्या प्रतिक्रिया होगी इस बारे में जानकर ” सुमन गुस्से में बोली। ” कौन से घर वाले,जिनको सिर्फ तेरे पैसे से मतलब है…
सचमुच में बता कौन तुमसे प्यार करता है? रमा कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थी। किसी को कुछ भी बोलने की जरूरत नहीं है और हां अगर तूने कहा तो कोई भी नहीं चाहेगा कि तुम ये शादी करो। अभी तो ठीक है…तेरा हांथ – पैर चल रहा है और तुम कमा रही हो…सोचो आने वाले वक्त के बारे में… कोई है तुम्हारे लिए यहां तक की तुम्हारी मां ने भी कभी नहीं सोचा तुम्हारे बारे में।”
सुमन जानती थी कि रमा ही एक ऐसी इंसान है उसके जिंदगी में जिसने हमेशा उसका साथ निभाया है और वो रंजीत बाबू की बिटिया से मिलने को तैयार हो गई।
रंजीत बाबू की बिटिया ने बड़े सम्मान से उसको बिठाया और बातचीत की। सुमन को बहुत अच्छा लगा उससे मिलने के बाद।सुमन को भी लगा कि सचमुच में उसका भी कोई अपना कहने वाला परिवार होगा और उसका अपना घर भी।जहां उसको सम्मान मिलेगा, जिंदगी से हारी सुमन को भी सपनों को पूरा होने की आस जाग गई थी और उसने हां कर दिया था।
रमा ने चुपचाप कोर्ट मैरिज करवा दिया था।वो और उसके पति गवाह या कहें घरवाले बन कर शामिल हुए थे। शादी के बाद उसने रमाकांत से थोड़ा वक्त मांगा की वो अपने घर वालों को मिलकर सब बताना चाहती है ,उन्होंने हां कर दिया।
जब वो घर पहुंचीं तो मांग में सिंदूर और गले में मंगलसूत्र देख कर सभी आश्चर्यचकित रह गए… ये क्या है दीदी? कोई नाटक में भाग ले रही हो क्या?” भाई – भाभी ने मजाक उड़ाते हुए कहा।” ये सच्चाई है… मैंने शादी कर ली है और मैं अपना कुछ जरूरी सामान लेने आई हूं”
सुमन अपने कमरे से कुछ जरूरी पेपर और कपड़े अटैची में रखते हुए बोल रही थी। शादी!” आपको शर्म नहीं आई…इस उम्र में व्याह रचा लिया? और किसी से पूछने की भी जरूरत नहीं पड़ी आपको?” स्नेहा और शुभम बौखला कर चिल्ला रहे थे।
” मैं किसी से क्यों पूछती? जब मैं बड़ी हो कर इस घर की ज़िम्मेदारी उठा रही थी तो तुम सबको कभी मेरी खुशियों के बारे में ख्याल आया था क्या? सब को पढ़ाया लिखाया और शादी किया तब शुभम तुमको नहीं लगा की मेरी भी शादी होनी चाहिए? तुम तो अपनी जिंदगी में खूब खुश हो… चलो ये भूल जाओ…
क्या तुमने कभी आकर मेरे पास बैठ कर मेरा हालचाल भी लिया है… तुम्हें एक तारीख को मिलने वाली तनख्वाह से सिर्फ मतलब था। तुम लोग घूमने – टहलने जाते तो मैं आया का काम करती। तुम्हारे बच्चों की देखभाल और खाना बनाना खिलाना मेरी ही जिम्मेदारी थी ना।तब तुम कहां थे? आज सुमन ने वर्षो से दिल में दफन गुबार को उड़ेल दिया था और सब हैरान थे कि दीदी कब से इतना बोलने लगी।
सुमन ने अपना सामान लिया और मां के कमरे लगी पिताजी की तस्वीर के सामने खड़ी हो कर बोली कि ” आपने भी अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लिया था लेकिन मैंने सब निभाया अब मैं अपनी नई दुनिया बसाने जा रही हूं। मां का पैर छूकर निकल गई। रंजीत बाबू के घर में उसका बहुत शानदार स्वागत हुआ और बच्चों से भी बहुत सम्मान मिला।
उसने रंजीत बाबू के बच्चों को गले लगाते हुए कहा कि आज मेरा परिवार पूरा हो गया। मैं तुम्हारी मां का स्थान तो नहीं ले सकती पर तुमसे वादा करती हूं कि तुम सब को मां की कमी कभी नहीं खलने दूंगी।
रंजीत बाबू बहुत ही समझदार इंसान थे। उनकी निगाह में स्त्रियों के लिए बहुत सम्मान था। सुमन को जीवन साथी ही नहीं बल्कि एक मित्र मिल गया था जो बहुत ही ख्याल रखता था। सुमन को भी सम्मान की छत और अपनेपन का एहसास अब जाकर मिला था।अधूरा परिवार अब एक हो चुका था।अब सुमन को अपना घर मिल गया था,जहां उसको खुल कर जिंदगी जीने का एहसास हुआ था।
प्रतिमा श्रीवास्तव
नोएडा यूपी