अपना अपना अधिकार – लतिका श्रीवास्तव : Short Moral Stories in Hindi

Short Moral Stories in Hindi : राघव जी मंदिर की सीढ़ी चढ़ते चढ़ते हांफने लग गए तो थोड़ी देर के लिए बैठ गए

बस हो गई हिम्मत खत्म अरे क्यों इतनी कठिन मनौती मान लेते हो जब पूरी करनी इतनी कठिन हो सुनंदा ने भी साथ में ही बैठते हुए टोक दिया था

अरी बावरी ये तो भोले नाथ है जो इतने में ही भक्त की मन की मुराद पूरी कर दी वर्ना तो उनके लिए भी मैने कठिन काम ही सौंपा था मेरे बेटे की इत्ती बड़ी नौकरी लग गई .. मुझ साधारण किसान का बेटा बैंक का मैनेजर बना दिया सब महादेव जी की कृपा से ही संभव हुआ है जब मेरे महादेव मेरी इत्ती बड़ी मुराद पूर्ण कर दिए तो फिर ये सीढ़ी चढ़ना क्या कठिन है चुटकियों में पूरी कर लूंगा

अत्यधिक उत्साह और आनंद से राघव जी ने कहा तो सुनंदा भी प्रमुदित हो गई सही बात है भगवान ने हमारी मन की साध पूरी कर दी इनका जितना भी आभार करूं कम है ये मनौती तो अभी पूरी हो जायेगी चलिए उठिए फिर।

हर्षित मानसिकता से व्यक्ति किसी भी भारी काम को हल्का बना सकता है।

दोनों ने तेजी से मंदिर की शेष सीढियां पूरी की ..एक बोरी आम चढ़ाने की मनौती भी पूरी की मंदिर समिति ने आम की व्यवस्था कर दी थी जितने भी भिक्षा मांगने वाले मंदिर परिसर में बैठे थे सबको पूरा आम वितरित करना और बदले में इन सबकी अनमोल दुआओं का खजाना मिलना वास्तव में अद्भुत एहसास है ….राघव जी पत्नी संग प्रसाद बांटते यही सोच रहे थे मैं अब नियमित यहां आकर इनके लिए कुछ करता रहूंगा विचार उठ रहा था उनके मन में।

तभी से वो अक्सर उस मंदिर में जाने लगे थे और जरूरत की वस्तुएं भी बांटने लगे थे।

ये पापा मां को  खैरात बांटने का बड़ा शौक चढ़ा रहता है इतना इतना उन निकम्मे आलसी भिखारियों को बांटने के बजाय बचत करना चाहिए तो बुढ़ापे में काम आए…बहू शालू की बात सुनकर बेटे वैभव ने क्या जवाब दिया ये तो राघव जी  नहीं सुन पाए थे लेकिन बहू की इस बात ने उन्हें आने वाले बुढ़ापे के लिए सतर्क जरूर कर दिया था।

इसीलिए जब वैभव ने नौकरी और शादी के बाद शहर चलकर रहने के लिए आग्रह किया तो वो बेटे के प्रेम पूर्ण आग्रह को स्वीकार करते हुए सुनंदा के साथ शहर आ गए थे लेकिन रोज सुनंदा से वापिस गांव चलने की बात करते रहते थे हालांकि हर बार सुनंदा डपट देती थी कैसी बातें कर रहे हैं आप भी मैं तो अपने बेटा बहू के पास आई हूं ये कोई पराए हैं क्या!! पूरा अधिकार है हमारा इनके साथ रहने का और अपनी सेवा करवाने का आपको गांव की याद आती है तो आप अकेले ही जाइए मैं तो यहीं रहूंगी क्यों बेटा..!! तो वैभव भी साथ में हंस देता था हां पापा मां सही कह रही हैं अब यही आपका घर है ये गांव आंव जाने की बात आप भूल जाइए बहुत रह लिए गांव मे …अब यहीं आराम से रहिएl

लेकिन बहू चुप ही रहती थी जिस तरफ सरल हृदया सुनंदा का कभी ध्यान  नहीं जाता था। चुप्पी भी बड़े मजे की चीज होती है “हमने तो कुछ कहा ही नहीं पर सब कुछ जाहिर भी कर दिया!!”है ना अद्भुत!!

एक दिन सुनंदा किचन में चाय बनाने गई तो उसे दूध कहीं नहीं मिला शालू से पूछने उसके कमरे की तरफ गई तो वो फोन पर किसी से बात कर रही थी सुनंदा वापिस लौटने ही वाली थी कि शालू की बात से उसके पैर थम से गए.. हां मां आज से दूध बंद कर दिया मैंने घड़ी घड़ी चाय चाय…. ये लोग तो यहीं डट गए हैं गांव जाने का तो नाम ही नहीं लेते मैंने तो सोचा था दो चार महीने रह कर चले जायेंगे छह महीने से ज्यादा हो गए हैं…भूल ही गए हैं कि इनका घर यहां नहीं वहां गांव में है इतना क्या अधिकार है

इनका यहां पर ..सारी दिक्कत हो रही हैं मुझे मेरा कमरा इन लोगों को दे दिया था मैंने ये सोच कर कि वैभव के मां पापा हैं यहां आए हैं कोई कष्ट ना हो आराम से रह लें कुछ दिनों बाद तो चले ही जायेंगे लेकिन कुछ ज्यादा ही अच्छा लगने लग गया है लगता है …मैं क्या करूं मां तुम्हीं बताओ मेरी किटी पार्टी की सहेलियां यहां नहीं आ पातीं हैं उन्हें स्वंतंत्रता नहीं महसूस होती इन लोगों की उपस्थिति में… मैं भी बेरोक टोक आना जाना नहीं कर पाती हूं ऐसा लगता रहता है ये दोनों मुझ पर ही नजर रखे रहते हैं..बताओ अपने ही घर में मैं अधिकार पूर्वक नहीं रह पाती…!

सुनंदा से आगे सुना नहीं गया उनके पैरों तले जमीन खिसक गई थी..वैभव के मां पापा..!!मेरी बहू कह रही है ये!!क्या इसके कुछ नहीं लगते हैं हम!! आंखें छलक आई उसकी।

मेरा बेटा मेरा कोख जाया बेटा जिसके जन्म की जिसकी नौकरी की हम दोनों ने मनौतियां मानी मंदिर की सीढ़ियां लांघीं हमेशा उसके सुख और आनंदित जीवन की प्रार्थना की….उसके जीवन में हम दोनों रोड़ा बन गए हैं!!हमारे यहां रहने से मेरी बहू को मेरे दुलारे बेटे की पत्नी कितनी दुखी है कितने कष्ट में है इस तरफ हमारा कभी ध्यान ही नहीं गया!! हमने तो अपने आपको अलग माना ही नहीं पर बहू ने कभी अपनाया नहीं अरे ये तो घर है कोई समस्या है भी तो आपस में  बता दो सुलझा लो हम तो अपनी समस्या बता देते हैं.. मेरा बेटा है मेरी बहू है मेरा पूरा अधिकार यहां है अब यहां मेरा अधिकार नहीं रहेगा तो और कहां रहेगा..!

क्या हमारा यहां रहना ठीक है!!लेकिन यहां से जाना वैभव को तो खराब लगेगा कितना खुश रहता है मेरे हाथ का खाना खाकर बातें कर के ..कितना दुखी हो जायेगा अचानक मेरे जाने की बात सुन कर !मैं उसको शालू की कोई बात बता नहीं सकती वो और दुखी हो जायेगा शालू से सवाल जवाब करने लगेगा लड़ाई होगी मेरे ही घर में मेरी ही आंखों के सामने मेरे बेटा बहू में मेरे कारण लड़ाई होगी!! नहीं नहीं ईश्वर ऐसा नहीं होने दूंगी..!

अरे सुनंदा चाय कहां है अभी तक नहीं बनी….पति की आवाज ने उनकी विचारधारा भंग कर दी ।सही कहते रहते हैं ये भी कि गांव चलना है सच में मेरा अधिकार तो उसी घर पर है अचानक सुनंदा का गला भर आया।

सुनिए ज्यादा चाय आपको नुकसान करती है इसीलिए मैंने नहीं बनाई अब तो भोजन का समय हो गया है सीधे खाना खा लीजिए सुनंदा ने बड़ी मुश्किल से अपनेआपको संभालते हुए कहा तो राघव उसीकी बात करने की टोन से समझ गए कुछ गंभीर बात हो गई है।

क्या बात है सुनंदा मुझे बताओ उनके पूछते ही सुनंदा भरभरा कर रो पड़ी चलिए जी हम लोग गांव चलते हैं मुझे गांव के घर की याद आ रही है बहुत दिन हो गए यहां… हमारा घर कितना गन्दा हो गया होगा इतने दिनों में उसका कोई रख रखाव भी नहीं हुआ होगा चलिए मैं आज ही अभी ही तैयारी कर लेती हूं कह कर सुनंदा और ज्यादा बिना बोले समान समेटने लग गई थी और राघव जी जैसे सुनंदा के बिना कुछ बताए भी उसके दिल का दुख समझ गए थे और बिना कुछ बोले सामान व्यवस्थित करने में उसका सहयोग करने लगे थे।

शाम को वैभव के आने तक दोनो ने तैयारी कर ली थी।वैभव हक्का बक्का रह गया मां की जाने की तैयारी देख कर।ये क्या मां आपने तो मुझसे पूछा तक नहीं कहा तक नहीं और अचानक जाने की तैयारी भी कर ली क्यों मां शालू ने कुछ कहा है क्या कोई बात आप लोगों को बुरी लगी क्या!!वैभव को तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि मां मुझसे दूर जाने की सोच सकती हैं।

अरे नहीं बेटा क्या क्या सोचता है तू भी शालू मेरी बहू तो सबसे अच्छी है इतना ख्याल रखती है हम दोनों का दिन भर किसी चीज की कमी नहीं रहने देती है खुद परेशान हो जाती है हम लोगों के कारण वो तो आज अचानक गांव के घर की बहुत याद आ गई इतने दिन यहां बीत गए पता ही नहीं चला ।हम लोग तो थोड़े दिनों के लिए ही आए थे हमेशा थोड़ी ही यहां रहना है…राघव जी ने बात संभालते हुए कहा और सुनंदा की तरफ देखते हुए बोले इसे तो मैं ही जबदस्ती ले जा रहा हूं इसके बिना मेरा काम कैसे चलेगा अकेला तो मैं जा नही सकता…वहां सब दुरस्त करके फिर आ जाएंगे यहां जब भी मन करेगा।

आज बिना कहे ही  शालू तुरंत सबके लिए बढ़िया चाय बना कर ले आई थी हां हां पापा और क्या ये भी घर ही है आप लोगों का पर वहां गांव में भी तो देखना तो पड़ेगा ही जरूरी है वहां जाकर देखना …!

शालू की बात पर सुनंदा जी तो कुछ नहीं कह पाईं लेकिन वैभव जैसे सब समझ गया था।

मां इतनी जल्दी अपने अधिकार को त्याग दिया आपने मेरे इस घर पर नौकरी पर सुविधाओ पर पहला हक आपका ही है आपने जन्म ही नहीं दिया होता तो मेरा तो अस्तित्व ही नहीं होता…..

हां बेटा तू ठीक कह रहा है ईश्वर का बहुत आशीर्वाद है हम पर ….लेकिन अब कौन सा अधिकार बेटा ….संतान प्राप्ति का इतना बड़ा अधिकार हमें मिला फिर उसका पालन पोषण अपने तरीके से अपनी इच्छा मुताबिक करने का पूरा अधिकार हमें मिला और हमने पूरी स्वतंत्रता और अधिकार से इसका उपभोग किया… वो तेरे पैदा होने की खुशी घुटने चलने की खुशी पहली बार मां पापा बोलना खड़े होना दौड़ना अपनी बाते कहना पहली बार रोते हुए स्कूल जाना हर कक्षा में तेरे रिजल्ट की आतुर प्रतीक्षा कॉलेज में प्रवेश तेरी नौकरी तेरी शादी …..अनगिनत सुनहरे खुशी के यादगार पल हमे हमेशा  अपने अधिकारों की ही स्मृति सजीव करवाते हैं।

अब तो कर्तव्य पालन का समय आया है हम लोगों के लिए जिन अधिकारों का पूर्ण उपयोग करते हुए तुझे काबिल बनाया अब तेरी आगे की जिंदगी इसी तरह खुशहाल और संपन्न बनी रहे इसका ख्याल रखना ही अब हम दोनों का परम कर्तव्य है …यहां आकर मन को पूरी तसल्ली हो गई अब हमें हमारा कर्तव्य करने दे जब अधिकारों का उपभोग किया है तो कर्तव्य भी निभाने है….राघव जी ने बहुत शांत और संयत लहजे में अपनी बात कह दी

वाह पापा आपने अपने अधिकारों का उपभोग तो अपनी मर्जी से कर लिया मुझे पढ़ाया लिखाया नौकरी लगवाई काबिल बनाया ये सब आपके अधिकार थे जो ईश्वर ने आपको दिए थे ठीक है तो फिर मेरे अधिकारों का पालन भी मुझे अपनी मर्जी से करने दीजिए..

पापा की प्रश्नवाचक निगाहों को देख कर वो फिर बोल उठा हां पापा जैसे ईश्वर ने संतान प्राप्ति और उसके लालन पालन का पूरा अधिकार आपको दिया है वैसे ही मुझे भी ईश्वर ने ईश्वर द्वारा प्राप्त अपने मां पापा का ख्याल करने प्यार करने का पूरा अधिकार प्रदान किया है ..अभी तक मैने हमेशा आप लोगो की  हर बात बिना अनाकानी किए मानी है अपना कर्तव्य समझकर ….आज आप लोग मुझसे अपने इस अधिकार का अपनी इच्छा मुताबिक उपयोग करने की स्वतंत्रता क्यों छीन रहे हैं आप लोग भी अब मुझे अपने इस अधिकार का उपभोग और उपयोग करने दीजिए…पापा की तरह ही बहुत शांत और संयत लहजे में कहते हुए उसने फिर कहा

पापा मैंने ये कब कहा गांव का घर घर नहीं है उसकी देख भाल नहीं होनी चाहिए लेकिन अकेले आप लोगों का ही घर क्या वो मेरा भी तो है  मैं भी साथ में चलूगा रख रखाव मैं भी करवाऊंगा साथ में अकेले आप लोग कैसे करेंगे ऑफिस से छुट्टी ले लेता हूं दस दिनों की ….कल चलते हैं सब लोग शालू का मन नहीं हो तो यहीं रुक सकती है मैं मां पापा के साथ वहां की साफ सफाई करवा कर वापिस साथ में लेता आऊंगा वैभव ने दृढ़ता से कहा और बाहर चला गया।

लाजवाब हो गए थे मां पापा..!!अधिकार और कर्तव्य की जो परिभाषा वो अपने बेटे को समझा रहे थे उनके बेटे ने उसकी सरल व्याख्या उन्हीं को समझा दी थी।।

राघव और सुनंदा आज फिर से उसी गांव के मंदिर में मिठाई और कपड़े बांटते हुए ईश्वर का आभार और उन गरीबों की दुआ इसीलिए ले रहे थे कि ईश्वर ने जिस बेटे का अधिकार उन्हें दिया है उसकी जिंदगी खुशहाल और सुखी रहे।

स्वरचित

लतिका श्रीवास्तव

#अधिकार

 

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