अपना अपना अधिकार ( भाग 2) – लतिका श्रीवास्तव : Short Moral Stories in Hindi

Short Moral Stories in Hindi : इनका यहां पर ..सारी दिक्कत हो रही हैं मुझे मेरा कमरा इन लोगों को दे दिया था मैंने ये सोच कर कि वैभव के मां पापा हैं यहां आए हैं कोई कष्ट ना हो आराम से रह लें कुछ दिनों बाद तो चले ही जायेंगे लेकिन कुछ ज्यादा ही अच्छा लगने लग गया है लगता है …मैं क्या करूं मां तुम्हीं बताओ मेरी किटी पार्टी की सहेलियां यहां नहीं आ पातीं हैं उन्हें स्वंतंत्रता नहीं महसूस होती इन लोगों की उपस्थिति में… मैं भी बेरोक टोक आना जाना नहीं कर पाती हूं ऐसा लगता रहता है ये दोनों मुझ पर ही नजर रखे रहते हैं..बताओ अपने ही घर में मैं अधिकार पूर्वक नहीं रह पाती…!

सुनंदा से आगे सुना नहीं गया उनके पैरों तले जमीन खिसक गई थी..वैभव के मां पापा..!!मेरी बहू कह रही है ये!!क्या इसके कुछ नहीं लगते हैं हम!! आंखें छलक आई उसकी।

मेरा बेटा मेरा कोख जाया बेटा जिसके जन्म की जिसकी नौकरी की हम दोनों ने मनौतियां मानी मंदिर की सीढ़ियां लांघीं हमेशा उसके सुख और आनंदित जीवन की प्रार्थना की….उसके जीवन में हम दोनों रोड़ा बन गए हैं!!हमारे यहां रहने से मेरी बहू को मेरे दुलारे बेटे की पत्नी कितनी दुखी है कितने कष्ट में है इस तरफ हमारा कभी ध्यान ही नहीं गया!! हमने तो अपने आपको अलग माना ही नहीं पर बहू ने कभी अपनाया नहीं अरे ये तो घर है कोई समस्या है भी तो आपस में  बता दो सुलझा लो हम तो अपनी समस्या बता देते हैं.. मेरा बेटा है मेरी बहू है मेरा पूरा अधिकार यहां है अब यहां मेरा अधिकार नहीं रहेगा तो और कहां रहेगा..!

क्या हमारा यहां रहना ठीक है!!लेकिन यहां से जाना वैभव को तो खराब लगेगा कितना खुश रहता है मेरे हाथ का खाना खाकर बातें कर के ..कितना दुखी हो जायेगा अचानक मेरे जाने की बात सुन कर !मैं उसको शालू की कोई बात बता नहीं सकती वो और दुखी हो जायेगा शालू से सवाल जवाब करने लगेगा लड़ाई होगी मेरे ही घर में मेरी ही आंखों के सामने मेरे बेटा बहू में मेरे कारण लड़ाई होगी!! नहीं नहीं ईश्वर ऐसा नहीं होने दूंगी..!

अरे सुनंदा चाय कहां है अभी तक नहीं बनी….पति की आवाज ने उनकी विचारधारा भंग कर दी ।सही कहते रहते हैं ये भी कि गांव चलना है सच में मेरा अधिकार तो उसी घर पर है अचानक सुनंदा का गला भर आया।

सुनिए ज्यादा चाय आपको नुकसान करती है इसीलिए मैंने नहीं बनाई अब तो भोजन का समय हो गया है सीधे खाना खा लीजिए सुनंदा ने बड़ी मुश्किल से अपनेआपको संभालते हुए कहा तो राघव उसीकी बात करने की टोन से समझ गए कुछ गंभीर बात हो गई है।

क्या बात है सुनंदा मुझे बताओ उनके पूछते ही सुनंदा भरभरा कर रो पड़ी चलिए जी हम लोग गांव चलते हैं मुझे गांव के घर की याद आ रही है बहुत दिन हो गए यहां… हमारा घर कितना गन्दा हो गया होगा इतने दिनों में उसका कोई रख रखाव भी नहीं हुआ होगा चलिए मैं आज ही अभी ही तैयारी कर लेती हूं कह कर सुनंदा और ज्यादा बिना बोले समान समेटने लग गई थी और राघव जी जैसे सुनंदा के बिना कुछ बताए भी उसके दिल का दुख समझ गए थे और बिना कुछ बोले सामान व्यवस्थित करने में उसका सहयोग करने लगे थे।

शाम को वैभव के आने तक दोनो ने तैयारी कर ली थी।वैभव हक्का बक्का रह गया मां की जाने की तैयारी देख कर।ये क्या मां आपने तो मुझसे पूछा तक नहीं कहा तक नहीं और अचानक जाने की तैयारी भी कर ली क्यों मां शालू ने कुछ कहा है क्या कोई बात आप लोगों को बुरी लगी क्या!!वैभव को तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि मां मुझसे दूर जाने की सोच सकती हैं।

अरे नहीं बेटा क्या क्या सोचता है तू भी शालू मेरी बहू तो सबसे अच्छी है इतना ख्याल रखती है हम दोनों का दिन भर किसी चीज की कमी नहीं रहने देती है खुद परेशान हो जाती है हम लोगों के कारण वो तो आज अचानक गांव के घर की बहुत याद आ गई इतने दिन यहां बीत गए पता ही नहीं चला ।हम लोग तो थोड़े दिनों के लिए ही आए थे हमेशा थोड़ी ही यहां रहना है…राघव जी ने बात संभालते हुए कहा और सुनंदा की तरफ देखते हुए बोले इसे तो मैं ही जबदस्ती ले जा रहा हूं इसके बिना मेरा काम कैसे चलेगा अकेला तो मैं जा नही सकता…वहां सब दुरस्त करके फिर आ जाएंगे यहां जब भी मन करेगा।

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अपना अपना अधिकार ( भाग 3)

अपना अपना अधिकार ( भाग 3) – लतिका श्रीवास्तव : Short Moral Stories in Hindi

अपना अपना अधिकार ( भाग 1) – लतिका श्रीवास्तव : Short Moral Stories in Hindi

स्वरचित

लतिका श्रीवास्तव

#अधिकार

 

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