अनसुने बोल –   त्रिलोचना कौर

कल से काम वाली बाई दो दिन की छुट्टी बोल कर गई थी सुबह-सुबह तो कई काम होते है यह सोचकर सविता रात को बर्तन साफ करने लगी।अभी बर्तन धो ही रही थी कि रसोई की ट्यूब लाइट आँख झप-झपकाकर बन्द हो गई। अनमने मन से कैन्डिल जलाकर बर्तन धोये लेकिन स्टैंड पर लगाने का मन नही हुआ सोचा सुबह उठकर सेट कर दूंगी जैसे- तैसे रसोई साफ कर मोमबत्ती बुझाकर रसोई से निकलने वाली थी कि उन्हें लगा कोई फुसफुसा कर बाते कर रहा हो अंधेरे में इधर-उधर नजर दौड़ाने के बाद उन्हें लगा कि बर्तनों के टोकरे से आवाजें आ रही थी वह ध्यान से सुनने लगी।

               स्टील की प्लेटे कह रही थी “बहुत दिनों बाद हम सब एक साथ है वर्ना स्टैंड मे अलग-अलग खाने मे फिट कर दिये जाते है न किसी से बातचीत हो पाती है न हँसी-ठिठोली, देखो न आज मै फिर कितनी जोर से गिर कर पिचक गई ..तीस साल हो गये मुझे इस घर में,घिस पिट चुकी हूँ अब चेहरे पर चमक भी खत्म हो गई लेकिन घर के मालिक की आँखे हमारी ऐसी खराब हालत को देखने की कितनी अभ्यस्त हो चुकी है कि मजाल एक बार हम सबको ध्यान से देख ले।

अरे!मुझे देखो तुमसे पाँच साल पहले से हूँ इस चौके में..मेरा तल्ला टेढ़ा-मेढ़ा हो  चुका है कोई मेहमान आता है तो छुपता फिरता हूँ” गिलास ने कहा।बूढ़ी कटोरी बोली “सीधे-सादे लोगो की कोई सुनवाई नही होती धर-पटक जैसे हम बार- बार सिंक मे पटक कर रखी जाती है और इन नखरीले काँच के कप को देखो प्यार से सहला-सहला कर धोये जाते है।




लेकिन फिर भी टूट-रुठ जाते है। बूढ़ा जग भी हो-हो कर हँसने लगा” मुझे देखो तुम सब मेरे बाद आये हो मैने बहुत कुछ बदला देखा इस घर में। घर के बड़े बूढ़े ऊपर चले गये नयी पीढी विदेश चली गई लेकिन हम सब वही के वही,लेकिन मै अभी भी कितना मजबूत और शानदार दिखता हूँ न….पुरानी चम्मचें खो जाने के कारण अभी कुछ दिन पहले आई नई चम्मचें टोकरे से लटकी झूलते हुए बोली ” मुझे तो ऐसा लग रहा है कि मै बर्तनों के वृद्धाश्रम मे आ गई हूँ “अन्य सभी चम्मचें मुस्करा कर हिलने लगी। 

अल्मोनियम की कनकटी बहरी कड़्हैया को भी कुछ कुछ बात समझ आने लगी वह भी बोल उठी “मेरे तो दोनो कान कब से गायब है,तुम लोग क्या कह रहे हो जरा जोर से बोल कर बात करो”। बिना हैंडिल चाय वाला फ्राइपैन भी कह उठा “अरे जब मैं आया था चाँदी जैसा चमकता था अब तो मेरी हालत पान गुटका खाने वाले काले दाँत जैसी हो गई है।थाली ने अपने गूमड़ को सहलाते हुए कहा “इन लोगो को सोचना चाहिए,लेकिन हमारा होगा क्या”

            बूढ़े जग ने हँसते हुए कहा” तुम्हे तो मन्दिर के बाहर बैठे भिखारी को दे देना चाहिए जो हाथ मे लेकर खाना खाते है।जो काम करने वाली आती है वह तो इनकी प्रजा है उनको दे दे। जितने मे दो नई साड़ियाँ आती है उतने मे तो इनका टोकरा नये बर्तन से भर जायेगा।  अहा! कितना अच्छा लगेगा इनको नये चमचमाते गिलास प्लेट, कटोरी मे खाना खाना और चमचमाते बर्तन स्टैंड मे सजे होगे तो रसोई भी खुश हो जायेगी,सबने सर्वसम्मति से हामी भरी।

         अचानक ट्यूब लाइट फफ फफाकर जल गई आवाजें ख़ामोश हो गई। सविता जी जो बर्तनो से इतनी भावात्मक रुप से जुड़ी थी। आज पहली बार अलग नजरिए से बर्तनों की ओर देखा और हैरान थी कि सचमुच टेढ़े-मेढ़े,घिसे-पिटे पुराने बर्तन होने का अहसास ही नहीं हुआ।

                  चमचमाते नये बर्तनों को रसोई मे सजाने की इच्छा लेकर बड़े प्यार से पुराने बर्तनों के ऊपर हाथ फिराकर मन ही मन उनको विदाई दे चुकी थी ।

          त्रिलोचना कौर

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