अंतिम दर्शन – पूनम अरोड़ा

अशोक जी के घर में आज जश्न  का माहौल  था। खुशी और गर्व  के आधिक्य  से उनके मन का कोना कोना चहक रहा था घर का कोना कोना  महक रहा था ।बात ही ऐसी थी बेटे का अमेरिका  की एक बहुत   प्रतिष्ठित  और नामी कंपनी  में  चयन कर लिया गया था और वो भी बहुत  अच्छे  पैकेज पर ।उसके जाने के विछोह से उदास तो थे माता पिता  आखिर  इकलौती  संतान था  रितिक लेकिन उसके सुनहरे भविष्य  और ऊँचाईयों  पर पहुँचने की सम्भावनाओं  ने उनकी उदासी को भी धूमिल  कर दिया था।दोस्त,रिश्तेदार , पडोसी सब उन से रश्क कर रहे थे और वे गर्व से फूले नही समा रहे थे । दोस्त यार छेड़ते कि बेटा वहाँ  जा रहा है तो अब तो  कुछ समय बाद तुम लोगों  को भी वही बुला लेगा फिर तो हम पुराने दोस्तों  को कहाँ  याद करोगे।

आखिर  जाने का समय आ ही गया ।अशोक जी ने बेटे की विदाई सेलीब्रेट  करने के लिए  एक शानदार  भव्य फेयरवेल  पार्टी का आयोजन किया और सभी सम्बन्धियों रिश्तेदारों  को  आमंत्रित  कर बहुत धूमधाम  से सेलीब्रेट  किया ।

अगले दिन सुबह  बहुत भारी मन, रुंधे गले ,और आँसुओं  के आवेग के साथ बेटे को ढेरो आशीषों और सौगातों के साथ विदा किया

वहाँ पहुँच कर  रितिक रोज वहाँ  की चकाचोंध,  खूबसूरती ,आधुनिक रहन सहन और खुले विचारों  की प्रशंसा  करते नही धकता था।उसे एहसास भी नही  हुआ कि कब वो अपनी संस्कृति  की  जड़ों को भूलकर इनका ही हिस्सा बनता जा रहा था ।

अपने माता पिता को रोज फोन करने का उसका अंतराल बढता जा रहा था ।

“लव यू ” “मिस यू “की जगह अब “कल बात करता हूँ”   “मीटिंग  मे हूँ” जैसे वाक्यों में  स्थानांतरित  हो गई  थी ।

वीडियों  काॅलिंग अब वाॅइस रिकार्डिंग  मे  तबदील हो गई  थी ।

हर वार त्योहारों  पर पैरैन्टस उसे आने के  लिए  आग्रह  मनुहार  करते लेकिन  वो कोई न कोई साॅलिड रीज़न तैयार  रखता न “आ पाने के लिए” ।

एक दिन रितिक के दोस्त  ने अशोक जी को फेसबुक पर रितिक की वहीं  की एक लडकी से शादी की पिक्स दिखाते हुए उन्हें शुभकामनाएं  दी तो अशोक  जी को ह्रदय में  हार्ट अटैक जैसी  तीव्र वेदना  का एहसास हुआ , आँखों  के आगे अँधेरा छा गया।

घर आकर रितिक की माँ  को जब बताया तो उन्हें संभालना और भी मुश्किल  हो गया ।बेटे की शादी की खबर दूसरो से पता चल रही है क्या यह है “हमारी परवरिश  की परिणिति” क्या यह है हमारे “प्यार की  अनंत गहराइयों  की  इति “।




रोज टूटते थे रोज बिखरते थे

फिर रोज उठते थे रोज संभलते थे

लेकिन  एक दिन आया कि  अशोक जी नही उठे ।सोते सोते नींद  मे ही चल बसे ।

बेटे ने जब यह दुखद समाचार सुना तो  पिता के “अंतिम  दर्शन”  के लिए  पहली फ्लाइट से आ गया। सारे कर्म  विधि विधान  से किये ।

पिता की तेरहवीं  पर वहाँ के सबसे लोकप्रिय  और मंहगे भजन गायक को बुलवाकर श्रद्धांजलि  समारोह आयोजित  किया ।

विभिन्न प्रकार के व्यंजनों,  मिष्ठानो से युक्त “शाही भोज” की व्यवस्था कर सभी सम्बधियों

रिश्तेदारों  को बुलाया।

सभी  ये सब देखकर अभिभूत,हतप्रभ  हो रहे थे और आपस में  एक दूसरे से कह रहे धे कि धन्य थे अशोक जी जिन्होंने ” ऐसे बेटे को जन्म  दिया”।

 स्वरचित—-पूनम अरोड़ा

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