अनोखा वादा – प्रीती सक्सेना

 

      मकान बनवाते समय हमने,,, ऊपर की मंजिल में,, तीन कमरे,, पढ़ने वाले बच्चों को किराए से देने के हिसाब से बनवाए थे,,, सुरक्षा और,, आमदनी दोनों के ही हिसाब से,, तीनो कमरों में तीन बच्चे थे जो कोचिंग के लिए आए हुए थे।

    मेरे बाजू वाले मकान में  साधारण स्थिती वाला परिवार था,,, मुश्किल से,, परिवार की गुजर बसर होती थी,,, शुक्र है,,, दादा ने मकान अच्छा बनवा लिया था,,,, ये बहुत बड़ा सहारा था उन्हें।

       उनकी बड़ी बेटी स्कूल में थी,,, थोडा बहुत सिलाई का काम किया करती थी,,, मैं भी कभी कभी उसकी,,, सहायता ले लिया करती थी,,, अच्छा रिश्ता बन गया था,, हमारे परिवारों के बीच।

     एक दिन,, मैने अचार बनाया,, मानू को आवाज़ लगाई,, वो आई तो मैंने उसे अचार का डब्बा दिया और मां को देने को कहा,,, मानू,,, सांवली सलोनी,,प्यारी सी लड़की थी,,, सबसे सुन्दर,, उसकी बोलती आंखे थी,,, डब्बा देकर मैं अंदर चली गई,,, पलटकर देखा तो मानू ऊपर की मंजिल की तरफ़ देखकर कुछ इशारा,,, कर रही थी,,, मुझे चिंता हो गई,,, छोटी उमर के बच्चे,,, कहीं गलत कदम न उठा लें,,, लड़के तो कोचिंग के बाद अपने शहर वापस चलें जायेंगे,,, ये बच्ची,,, कहीं दिल लगाकर धोखा न खाए,,, मन ही मन,, उसे समझाने का निर्णय लिया मैने।

      दूसरे दिन,,, वो मुझे डब्बा वापस करने आई,,, मैंने उसे अपने पास बैठा लिया और,,, प्यार से पूछा,,,, पहले तो वो मुझे गौर से देखती रही,,, शायद बोलने से पहले भरोसा, करना चाहती थी,,, फिर धीरे से बोली,,, आंटी,, आयुष ने मुझे एक पर्चा दिया था,,, जिसमें,, लिखा था,,, वो, मुझे प्यार करता है,, और,, कुछ बन जाने के बाद,, शादी करने की बात लिखी थी ,,,, मैंने उसे समझाया,,, अभी बचपना है,,, तुम दोनों का,,, वो बहुत रईस परिवार से है बेटा,,, आर्थिक स्तर में बहुत अन्तर है,,, अभी अपनी पढाई पर ध्यान दो,,, बाकी बातों पर ध्यान मत दो,,, वो मासूमियत से सिर हिलाकर चली गईं,,,, सच कहूं,,, तो बहुत प्यार आया उन बच्चों पर,,, मेरी आंखे भर आईं।



      आयुष,,, अपने शहर वापस जा रहा था,,, मैं देख रही थी,,, वो बार बार मानू के घर की तरफ़,,, बैचेनी से देखें जा रहा था,,,, दरवाज़ा बंद था,,, आख़िर में हारकर,,, मुझे उसने एक लिफाफा दिया,,, मानू को देने के लिए कहा,,, बोला,, आंटी,,, मैं घर, पहुंचकर आपसे बात करूंगा,, पैर छूकर चला गया वो,,, मैने मानू के घर की तरफ़ देखा,,,, छत पर, मानू का दुपट्टा दिख गया, मुझे,,,, मेरी बातों को मानकर वो बच्ची,,, आयुष के सामने नहीं आई,,, इस बार आंसुओ को रोकना,,, बहुत मुश्किल हो गया मेरे लिए।

       समय देखकर,, मैने,,, लिफाफा,, मानू को दिया,,, पढ़कर बोली,, आंटी,,, इन्तजार करने के लिए कहा है मुझे,,, और फीकी सी मुस्कुराहट के साथ चली गई।

 

    मानू,,, बीएड,, करने के बाद,, एक स्कूल में नौकरी कर रही थी,,, उसकी बड़ी बहन का ब्याह हो चुका था,,, भाई भी नौकरी कर रहा था,,,परिवार,, बदहाली से बाहर निकल चुका था ।

     आयुष,,, बहुत बड़ी कंपनी में,, इंजीनियर,, बन गया  था,,, हमेशा मुझसे मानू के समाचार लेता रहता था,,, एक दिन अचानक,,, बड़ी सी गाड़ी मेरे घर के सामने रुकी,,, मैने देखा,,, आयुष,, उसके, मम्मी पापा,, बहन,,, ढेर सारे,, तोहफों,, मिठाई के टोकरों के साथ,,, मुस्कुराते खड़े हैं,,, मैं स्तब्ध खड़ी,,, आंखो में आंसू भरे खड़ी,,, उन्हें देखती रही,,, आयुष मेरे पास आया,,, आंखो में आंखे डालकर,,, बोला, आंटी,, वादा निभाने आया हूं,,, कहा था न,,, चलिए,,, सबसे पहले आप चलेंगी हमारे साथ,,,, मैने धीरे से ऊपर देखा,,, मानू,,, छुपी खड़ी,,, मुस्कुरा रही है,,,, इतने सालों बाद,,, उस बच्ची के चेहरे पर,, मुस्कुराहट देखकर,, आत्मा को अनजानी सी शांती मिली।

   बस फिर क्या,,, सगाई हुई,, कुछ दिनों बाद ही,, आयुष,, मानू को अपनी दुल्हनियां बनाकर अपने साथ ले गया,,, वाकई जो वादा किया,,, वो निभा भी गया,,,, ईश्वर हमेशा खुश रखे उन दोनों बच्चों को

प्रीती सक्सेना

इंदौर

 

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