अंजान बेटा – माता प्रसाद दुबे

सुबह के आठ बज रहे थे,प्रसिद्ध तीर्थ स्थान हरिद्वार के रेलवे स्टेशन पर ट्रेन के पहुंचते ही यात्रियों की भीड़ स्टेशन से बाहर निकलने लगी। प्रकाश अपनी ऑटो रिक्शा स्टार्ट करके सवारी के आने का इंतजार कर रहा था। सामने एक बुजुर्ग महिला के साथ कुली उसका सामान लेकर आ रहा था।

“आइए माता जी!कहा जाना है आपको?”प्रकाश उस बुजुर्ग महिला का अभिनंदन करते हुए बोला।”शांती कुंज जाना है बेटा?”वह बुजुर्ग महिला हांफते हुए बोली।”आइए बैठिए माता जी?”प्रकाश उस बुजुर्ग महिला को सहारा देकर आटो में बैठाते हुए बोला। कुली से बुजुर्ग महिला का सामान आटो में रखवाकर प्रकाश की आटो रिक्शा शांती कुंज की ओर रवाना हो गई।

गाड़ी चलाते हुए प्रकाश शीशे में पीछे बैठी बुजुर्ग महिला को देखकर परेशान होने लगा।उस बुजुर्ग महिला की तबीयत ठीक नहीं लग रही थी। उसे पसीना आ रहा था।वह थकान से चूर बार-बार अपनी आंखें बंद कर रही थी।”क्या हुआ माता जी!आपकी तबियत ठीक नहीं लगती?”प्रकाश परेशान होता हुआ बोला।”बेटा! मुझे चक्कर आ रहा है?”वह बुजुर्ग महिला कांपते हुए बोली।”आप परेशान न हो माता जी?”प्रकाश अपनी आटो रोकते हुए बोला। प्रकाश उतरकर पानी की बोतल लेकर बुजुर्ग महिला को पानी पिलाने लगा। मगर तब तक वह बुजुर्ग महिला बेहोश हो चुकी थी। प्रकाश उस बुजुर्ग महिला के मुंह पर पानी की छींटे मारने लगा.. मगर उस बुजुर्ग महिला को होश नहीं आया वह अचेत हो चुकी थी।

प्रकाश का दिल जोरों से धड़कने लगा घबराहट उसके चेहरे पर साफ नजर आ रही थी। नजदीक कोई अस्पताल भी नहीं था। तभी उसे पास में रहने वाले डाक्टर साहब का ख्याल आया..जो घर पर ही अपना क्लीनिक चलाते थे। प्रकाश उन्हें अच्छी तरह से जानता था।वह बिना देर किए अपनी आटो स्टार्ट करके क्लीनिक की ओर चल पड़ा।



क्लीनिक बंद था..प्रकाश आटो रिक्शा क्लीनिक के बाहर खड़ी कर दिया।”डाक्टर साहब जल्दी आइए?” कहते हुए वह बार-बार डोर बेल बजाने लगा।”कौन है भाई क्या हुआ?”डाक्टर साहब का घरेलू नौकर दरवाजा खोलते हुए बोला।”भैया डाक्टर साहब को जल्दी बुलाओ इमरजेंसी है?”प्रकाश नौकर से आटो रिक्शा की ओर इशारा करते हुए बोला। नौकर घर के अंदर चला गया.. प्रकाश को ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा डाक्टर साहब बिना देर किए उसके सामने खड़े थे।”अरे प्रकाश! क्या हुआ कौन है आटो में?”डाक्टर साहब प्रकाश को घबराया हुआ देखकर बोले।”डाक्टर साहब!यह सब मैं आपको बाद में बताऊंगा..पहले आप माता जी को देखिए?”प्रकाश नौकर के साथ बुजुर्ग महिला को उठाकर क्लीनिक के अंदर लाते हुए बोला। डाक्टर साहब उस बुजुर्ग महिला को देख रहे थे। नौकर को कुछ निर्देश देते हुए उन्होंने बुजुर्ग महिला का इलाज शुरू कर दिया।

कुछ देर बाद डाक्टर साहब प्रकाश के पास आकर बोले।

“अरे प्रकाश चिंता की कोई बात नही है.. एक घंटे बाद माता जी नार्मल हो जाएंगी?” डाक्टर साहब की बात सुनकर प्रकाश ने ईश्वर का धन्यवाद करते हुए राहत की सांस ली।”प्रकाश यह माता जी कौन है तुम्हारी? डाक्टर ने प्रकाश से पूछा। प्रकाश ने पूरी कहानी डाक्टर साहब को बताई जिसे सुनकर डाक्टर साहब भी चिंतित नजर आने लगे।”सुनो प्रकाश! माता जी को दो तीन दिन बिल्कुल आराम की जरूरत है..इनका ब्लड प्रेशर बहुत कम हो गया था..शाम तक इन्हें आराम करने दो..उसके बाद इनके घर के लोगों को बुलवा लो?”कहकर डाक्टर साहब घर के अंदर चले गए। डाक्टर साहब की बात सुनकर प्रकाश चिन्तित होने लगा, उसे उस बुजुर्ग महिला के बारे में कोई जानकारी नहीं थी..वह करे भी तो क्या करें..उसे समझ में नहीं आ रहा था।वह उस बुजुर्ग महिला को ऐसी हालत में छोड़ भी नहीं सकता था। सुबह की पहली सवारी वह बुजुर्ग महिला ही थी। डाक्टर साहब की फीस और इलाज के पैसे के बारे में सोचकर प्रकाश काफी परेशान था। मगर उसके मन-मस्तिष्क में उस बुजुर्ग महिला का चेहरा घूम रहा था। जो उसकी दिवंगत मां के ही जैसी प्रतीत हो रही थी। उसने अपने फायदे नुकसान की बात अपने मस्तिष्क से निकालकर उस बुजुर्ग महिला की हर सम्भव मदद करने का फैसला कर लिया था।

 



शाम के पांच रहें थे। उस बुजुर्ग महिला को होश आ चुका था। वह खुद को स्वस्थ महसूस कर रही थी।”माता जी कैसी हैं आप?”प्रकाश उस बुजुर्ग महिला से बोला।”ठीक हूं बेटा?” कहते हुए उस बुजुर्ग महिला की आंखों से आंसू टपकने लगें। “माता जी आप रोइये नहीं..अपने घर का पता बता दें.. जिससे आप के घर से कोई आपके पास आ जाए..आपकी हालत अभी पूरी तरह ठीक नहीं है?”प्रकाश उस बुजुर्ग महिला से विनम्रता से बोला। अपने घर के लोगों की बात प्रकाश के मुंह से सुनकर वह बुजुर्ग महिला गहरे अंधकार में डूब गई। “क्या हुआ माता जी! प्रकाश हैरान होते हुए बोला।”कुछ नहीं बेटा! मेरा बैग मेरे पास लाओ?”वह प्रकाश से बोली।वह बुजुर्ग महिला बैंग खोलकर पांच हजार रुपए प्रकाश के हाथ में पकड़ाते हुए बोली।”बेटा यह पैसा डाक्टर साहब को दे दो..यदि कम है तो उनसे पूछ लो मैं उन्हें चेक में साइन करके दे दूंगी?”वह बुजुर्ग महिला प्रकाश से बोली।”अरे माता जी और पैसे की जरूरत नहीं है..आप ईश्वर का धन्यवाद दीजिए जो आप को सही समय पर सहारा देकर प्रकाश ने आपको यहां पहुंचाया है..थोड़ी देर हो जाती तो आपका जीवन बचाना मुश्किल हो जाता?”डाक्टर साहब बुजुर्ग महिला को दिलासा देते हुए बोले।

“भगवान तुम्हें लम्बी उम्र दें बेटा! तुम हमेशा खुश रहो..जो तुमने एक अंजान बुजुर्ग महिला का सहारा बनकर उसे जीवन दान दिया है?”वह बुजुर्ग महिला प्रकाश को दुलारते हुए बोली।”अरे माता जी!यह तो मेरा फर्ज था..आप भी मेरी मां जैसी है..और मां की देखभाल करना बेटे का फर्ज होता है?”प्रकाश भावुक होते हुए बोला। प्रकाश की बात सुनकर उस बुजुर्ग महिला की आंखें नम हो गई।”काश मेरा बेटा! तूम्हारी तरह होता?”कहकर वह बुजुर्ग महिला खामोश हो गई।

“माता जी क्या हुआ आप बेटे का नाम सुनते ही परेशान क्यूं हो गई?”प्रकाश चिंतित होते हुए बोला।”क्या बताऊं बेटा! लम्बी कहानी है. हमारे पास सब कुछ होकर भी कुछ नहीं है..नहीं तो मैं अकेले ही क्यूं आती..इसमें हमारा ही दोष है, पाश्चात्य शिक्षा संस्कृति तो हमारे बेटे के पास है..मगर अध्यात्मिक शिक्षा संस्कृति का अभाव है..जिसके लिए मेरे दिवंगत पति ही दोषी है.. जिन्होंने उसे नशे और खुली जिंदगी जीने का आदी बना दिया..मेरे बेटे बहू के लिए तो धर्म कर्म अध्यात्म यह सब बेकार की बातें हैं..उन्हें तो बस पार्टियां करना मौज उड़ाने में ही दिलचस्पी रहती है..बूढी मां का सहारा बनना उसकी देखभाल करना तो शायद उन्हें आता ही नहीं?”कहते हुए वह बुजुर्ग महिला रोने लगी।”माता जी!आप रोइये नहीं..एक दो दिन आप यही आराम करिए तब तक मैं आपकी देखभाल करूंगा..जब आप पूरी तरह ठीक हो जाएंगी तो मैं आपको शाती कुंज पहुंचा दूंगा?”प्रकाश उस बुजुर्ग महिला को दिलासा देते हुए बोला। ठीक है बेटा! इस मोबाइल में अपना नम्बर सेव कर दो बेटा! तुम्हारा जितना नुकसान हुआ है..और जो भी खर्च हुआ है..मैं शांती कुंज पहुंचकर उसके दो गुना तुम्हें दे दूंगी बेटा! परेशान मत होना?”वह बुजुर्ग महिला बैग से मोबाइल निकालकर प्रकाश की ओर बढ़ाते हुए बोली।”कैसी बात करती है आप माता जी! मुझे पैसे का लालच नहीं है बस आप स्वस्थ हो दीर्घायु हो..बस मैं यही चाहता हूं और कुछ नहीं?”प्रकाश उस बुजुर्ग महिला से हाथ जोड़कर बोला।



लगभग एक महीना बीत चुका था। प्रकाश हरिद्वार रेलवे स्टेशन पर सवारी का इंतजार कर रहा था।तभी उसके मोबाइल पर उस बुजुर्ग महिला की काल आने लगी।”हैलो हा माता जी!बस एक घंटे में पहुंचता हूं?” उस बुजुर्ग महिला ने प्रकाश को शांती कुंज में बुलाया था।वापस जाने के लिए रेलवे स्टेशन छोड़ने के लिए।

प्रकाश उस बुजुर्ग महिला को शांती कुंज से लेकर रेलवे स्टेशन पहुंच चुका था।”माता जी चलिए मैं आपको स्टेशन के अंदर तक छोड़ आता हूं?”रहने दो बेटा!अब मैं ठीक हूं..और जिसे तेरे जैसे बेटे का सहारा मिलेगा वह मां भला कैसे परेशान हो सकती है..अब जब भी मैं आउंगी तो मुझे सहारा देने के लिए मेरा बेटा मौजूद है..और यह लो बेटा! इसे रख लो?” वह बुजुर्ग महिला एक कागज का लिफाफा प्रकाश के हाथ में पकड़ाते हुए बोली। वह कागज का लिफाफा रूपयों से भरा हुआ था। “अरे यह क्या माता जी!यह तो बहुत ज्यादा है.. इसे आप रख लीजिए?”प्रकाश वह कागज का लिफाफा बुजुर्ग महिला की ओर बढ़ाते हुए बोला।”क्या मैं तुम्हारी मां जैसी नहीं हूं..क्या तुम नहीं चाहते कि तुम्हारी मां दुबारा फिर तुम्हारे पास आए?वह बुजुर्ग महिला प्रकाश को आदेश देते हुए बोली।”नहीं माता जी ऐसी कोई बात नहीं है?”प्रकाश संकुचित होते हुए बोला।”बेटा! एक मां अपने बेटे को कुछ देती है.. तो उसे बेटे को ग्रहण कर लेना चाहिए..सवाल नहीं करना चाहिए?”वह बुजुर्ग महिला प्रकाश को आदेश देते हुए बोली।”जी माता जी! प्रकाश वह लिफाफा हाथ में लेकर उस बुजुर्ग महिला को रेलवे स्टेशन के अंदर जाते हुए देखकर इस तरहभावुक हो रहा था कि जैसे उसकी खुद की मां उससे दूर जा रही थी।

माता प्रसाद दुबे

मौलिक स्वरचित लखनऊ

 

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