ऐसा बेटा सबको मिले – सुषमा यादव

मेरा एक छात्र है, संदीप,जब वो मेरी कक्षा में अध्ययनरत था, बहुत ही आज्ञाकारी, नम्र और वफादार बच्चा था,हम सभी शिक्षक उसे बहुत पसंद करते थे, पता नहीं क्यों वो मुझे बहुत मानता था, हमेशा सबसे कहता,यादव मैडम मेरी आदर्श मैडम हैं।

कभी कभी वो घर भी आता, मेरे कुछ जरूरी काम निपटा जाता, मुझे भी उसके प्रति बहुत अपनापन महसूस होने लगा था,

ये और भी ज्यादा बढ़ गया,जब मेरे सेवानिवृत्त होने के बाद भी उसका आना जाना बराबर लगा रहता, हमेशा कहता,मैम,आप बिल्कुल भी परेशान ना होना, कुछ भी काम हो, बेझिझक मुझे फोन कर दीजिएगा। 

संदीप ने बारहवीं कक्षा प्रथम श्रेणी में पास किया,वह गांव का है।,गरीब परिवार से है,आठ,नौ किलोमीटर की दूरी से स्कूल आता था

उसके घर में  तीन भाई, एक बहन, उसके माता पिता और दादा जी हैं। कुछ खेती भी है,जिसकी देखभाल उसके पिता करते हैं।

उसके दोनों भाई कहीं ना कहीं कोई काम करते थे, जिससे सबका जीवन आराम से कट रहा था। 

कुछ सालों में दोनों भाईयों की एक साथ शादी हो गई, बहुएं आईं,सब खुश,घर भर गया था।

संदीप ने आई टी आई ज्वाइन किया, मैं भी खुश,चलो, कहीं काम धंधे से लग जाएगा,

इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा में बैठने का उसका बहुत मन था, परंतु भाईयों ने कहा, उसमें बहुत पैसा लगेगा, हम नहीं दे सकते।




विवश होकर उसने आइ टी आई ज्वाइन कर लिया।

उसमें भी मुझसे फीस मांगने एक दिन आया,मैम, मैं जल्दी ही वापस कर दूंगा, मैंने उसे फीस के पैसे दिए, एक मोबाइल दिया, किताबों के लिए भी पैसे दिए, जितना मुझसे मदद हो सकता था, मैंने किया,

एक दिन वो आया, खुश होते हुए बोला,मैम,मेरा कोर्स पूरा हो गया, मुझे बाहर एक शहर में अच्छी नौकरी मिल गई है, मैं एक दो महीने में चला जाऊंगा, मैं भी बहुत खुश हुई, बहुत सारा आशीर्वाद दिया। उसके बाद मैं दिल्ली चली गई। हमारा संपर्क टूट गया था।

एक साल बाद वापस आई तो मैंने उसे फोन किया, संदीप कैसे हो,काम कैसे चल रहा है। कभी घर आते हो।

उसने बड़े दुखी आवाज में कहा, कहा,, कहां मैम मैं तो जा ही नहीं पाया, मैं तो अब गांव में ही रहता हूं।

मैंने आश्चर्य से कहा, क्यों नहीं गये तुम, तुमने तो अपना भविष्य ख़राब कर दिया। उसने कहा, मैम,कल आपके घर आकर सब बताता हूं।

दूसरे दिन वो आया, आंखों में आसूं भर कर बोला, मैम, जब मैं सब तैयारी में व्यस्त था,उसी समय मेरे दोनों भाईयों ने अपना अलग बसेरा कर लिया,घर में ही एक, एक कमरे लेकर अपनी अपनी पत्नी के साथ रहने लगे। 

उस समय पिता जी बहुत बीमार थे,हम सबने बहुत समझाया,पर नहीं माने।




ना तो एक भी पैसा देते हैं और ना ही खेतों में कोई काम करते हैं।

फसल पक कर तैयार थी, कोई काटने वाला नहीं था।

मां, पिता जी का रोकर बुरा हाल हो रहा था, बोले,बेटा, तुम भी जा रहे हो,जाओ,हम किसी तरह सब व्यवस्था कर लेंगे, मैं रात भर सोचता रहा, सुबह मैं खेत काटने मां और बहन को लेकर चला गया, मैंने कह दिया,अब मैं आप सबको इस हाल में छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगा, ।

मैम,अभी भी मेरे भाई एक पैसा नहीं देते हैं,पर खाने के लिए पूरा अनाज पापा से ले लेते हैं, लड़ झगड़ कर।

मैं सब तरह की सब्जियां लगाता हूं, सुबह उठकर तोड़ता हूं, और सब्जी मंडी में जाकर बेच आता हूं, खूब आमदनी हो रही है, 

खेती भी करता हूं,अब तो मजदूर भी लगा लिया है, पानी,खाद की व्यवस्था करके भरपूर फसल उगा रहा हूं,अब मैं कहीं नहीं जाऊंगा,

अकेले पिता जी कैसे सब संभालते,बहिन की शादी भी करना है।अब तो मैं बचत करके हर महीने एक निश्चित रकम बैंक में जमा करता हूं,ताकि उसकी शादी में कोई रुकावट न आए।

और मैम मैंने एक सेकंड हैंड मोटरसाइकिल भी खरीद लिया है, दो कमरे भी बनवा लिया है।




ये तो बहुत अच्छी बात है,बेटा,पर तुमने इतना मेहनत किया, इतनी पढ़ाई की और इतनी बढ़िया नौकरी तुम्हें मिली थी,उसका क्या, मैंने कहा।

क्या करता मैम,आप ही बताइए, मेरी सबसे ज़रूरत मेरे परिवार वालों को है, मुझे उन्होंने कितनी परेशानी सहते हुए पढ़ाया,मेरा भी तो उनके प्रति कुछ फ़र्ज़ है,ना।

जरूरी नहीं है कि हम खूब पढ़ लिखकर अपने मां बाप को असहाय स्थिति में छोड़कर बाहर ठाठ से अपनी जिंदगी बिताएं।

ये मुमकिन नहीं है कि मैं सबको लेकर अपने साथ रखूं, यहां अपनी खेती बाड़ी, घर द्वार छोड़ कर ये सब जाएंगे नहीं,

मैं तो अभी अठारह साल का ही हूं, यहीं गांव में ही सब करते हुए कुछ काम देख लूंगा, पर इन्हें छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगा।

इतनी कम उम्र में उसकी ऐसी आदर्शवादी सोच सुनकर मुझे उन बेटों पर बड़ा आश्चर्य हुआ, जो अन्यत्र जाकर अपने माता पिता को भूल जाते हैं, अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लेते हैं।

क्या वो कभी बुजुर्ग नहीं होंगे, एक दिन उनकी करनी उनके सामने आयेगी जब उनके बच्चे भी उनके साथ ऐसा ही निष्ठुर व्यवहार करेंगे।

आज संदीप ने सब संभाल कर अपने माता पिता को बड़ा सहारा दिया, कहते हैं कि बच्चों को अच्छे संस्कार नहीं दिये जाते, उनके परवरिश में कमी हो जाती है, संदीप के मां बाप ने क्या संदीप को ही अच्छे संस्कार और परवरिश दिए, अपने उन दोनों नालायक बेटों को नहीं, 

मुझे अपने उस प्यारे शिष्य पर बहुत गर्व है,दिल से दुआ हजार निकली, मेरी दी गई शिक्षा का उसने मान रखा,




बस दिल से यही निकलता है,

,,बेटा हो तो ऐसा हो,,

,,काश,इस बेटे से वो आर्थिक संपन्न धनाढ्य बेटे कुछ सबक ले सकते, अपने माता पिता की मजबूरी को समझ कर उनका अकेलापन दूर करते, अपने बुजुर्गों का सम्मान करते उनका आशीर्वाद लेते,सबकी जिंदगी खुशहाल हो जाती। सबके होंठों पर मुस्कराहट आ जाती।।

करके देखिए, बुजुर्गों की दुआ बहुत लगती है 

,, आप सबकी इस बेटे के प्रति क्या प्रतिक्रिया है, जरूर लिखने की कृपा करें,, धन्यवाद आभार आपका 

#औलाद

सुषमा यादव, प्रतापगढ़ उ प्र

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

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