काबिल औलाद – नंदिनी

एक ऐसा शहर जहाँ पड़ोसी सब दुख सुख की बातें एक दूसरे से बतियाते हैं ,कुछ अच्छा बना तो प्लेट पहले ही निकाल दी जाती है।

ऐसे शहर में दो पड़ोसी परिवार ,अच्छे से घुले मिले आपस में । मनोहर सुशीला के एक बेटा था ओर दूसरी बार में 2 बेटे जुड़वा हुए ,अनन्त मोहिनी के परिवार में एक बेटी आकांक्षा , सबकी आपस में अच्छी दोस्ती थी ।

आकांक्षा थोड़ी बड़ी हुई तो बाकी के रिश्तेदारों की तरह मनोहर भी अनन्त से कहता कब आ रहा है दूसरा मेहमान, इस बात पर अनन्त कहता हमने शुरु से यही सोचा था ,बेटा हो या बेटी एक ही बच्चा रहेगा, केंसी बातें कर रहे हो अनन्त भला बुढ़ापे का तो सोचो बेटी शादी होकर चली जायेगी क्या करोगे तुम दोनों बुढ़ापे में, अरे मनोहर भाई भविष्य की ज्यादा सोचेंगे न, तो वर्तमान में जी नहीं पाएंगे ।

ओर अगर बुढ़ापे का सुख भगवान ने लिखा है तो बेटा क्या बेटी भी सुख दे देगी।

समय व्यतीत होता रहा और अनन्त की पत्नी साक्षी को भी किसी भी मौके पर यह सुनने मिल ही जाता बेटा तो होना ही चाहिए था , मुस्कुरकर बोलती अरे ऐसे कोन से राजेरजवाड़े हैं जो बेटे को देने हैं और बेटी भी तो मेरी है उसे भी अपने माँ बाप की संपत्ति पर उतना ही हक है । क्या बेटी को अपना सब कुछ नहीं दे सकते।




कुछ समय पश्चात मनोहर के 2 बेटे बड़े शहर गए पड़ने । मंझले की नोकरी विदेश में लग गई पहले 1 -2 साल का बोल कर गया था ,वहीं की लड़की से शादी भी कर ली  ,मां बाप क्या करें समाज में भी रहना है एक महीने बाद बड़े बेटे की शादी पक्की कर दी और उसी समय मंझले बेटे के आने पर, दोनों बेटों का रिसेप्सन साथ दे दिया ।

2 दिन ओर रूक कर मंझले बेटे बहु विदेश चले गए । 

मनोहर की पत्नी सुशीला बड़ी तेज मिजाज की थी बड़ी बहू में मीन मेख निकालना  चालू रहता  ।

इधर आकांक्षा ने इंजीनियरिंग        की परीक्षा पास कर ली  और आगे की पढ़ाई के लिए बड़े शहर चली गई हॉस्टल में।

मनोहर के छोटे बेटे की भी नोकरी लग गई थी बैंक की ही एक लड़की पसन्द आ गई ओर परिवार की रजामंदी से  शादी करके वह शहर में किराए के घर में रहने लगा।

बड़े बेटे का तबादला भी शहर में हो गया  और वो यहां का घर किराए से देकर सबके साथ शहर चला गया ।कुछ दिन बढ़िया चला पर शहर का किराया बड़ा लग रहा था बच्चों की फीस सब हो नहीं पा रहा था उसने मनोहर से कहा बाऊजी क्यों न हम वो मकान बेंच दे ओर कुछ प्लाट भी हैं वो भी ओर यहां खरीद लें घर नही तो आगे जाके ओर महंगे हो जाएंगे ओर किराए में पैसा यूहीं जाता रहेगा , में थोड़ा लोन ले लूंगा,




मनोहर को बात जम गई और  बेच कर 4 हिस्से करके जो रुपये मिले थोड़ा लोन लेकर  बड़े बेटे ने घर ले लिया। मनोहर ने अपने हिस्से के रुपये बैंक में डाल दिये । इधर सास बहू की अनबन चालू थी, बड़ी बहू ने अपने पति से कहा छोटे भैया भी तो लें जाएं कुछ समय के लिए, पैसे तो पूरे लिए अपने हिस्से के उन्होंने , हमे अभी घूमने जाना ही है  इस बहाने भेज दो ।

भाई से बात करके मनोहर ओर सुशीला को छोटे बेटे के घर छोड़ आये । घूम कर भी आ गए बड़े बेटे बहु ओर बुलाने का नाम नही आखिर मनोहर ने ही फोन किया लेने आ जाओ ,अभी थोड़े दिन ओर रह लो आता हूँ फिर बोलकर फोन कट कर दिया, इधर दोनों जॉब करते थे तो बहु मिताली को जम नही रहा था , ओर ऊपर से सुशीला की टोकाटाकी से परेशान हो गई थी , उसने साफ कह दिया में मैके चली जाऊँगी वहीं से ऑफिस भी हो जाएगा में नहीं रह सकती यहाँ ,दिनभर ऑफिस मे पचो यहाँ आकर फरमाइशें पूरी करो ऊपर से बातें भी सुनो ।

एक दिन खुद ही छोटा बेटा  दोनों को बड़े बेटे के घर छोड़ने चला गया ।

इधर आकांक्षा की पढ़ाई पूरी होकर जॉब लग गई और उसी के साथ पड़ने वाले लड़के ने उसे शादी के लिए प्रोपोज कर दिया था ,मन ही मन वह भी उसे पसन्द करती थी । लेकिन उसने कहा में अकेली संतान हूँ और में ही अपने माँ पापा का बेटा भी कभी भी में अपने फर्ज से पीछे नही रहूंगी बस में यही चाहती हूं तुमसे तो मुझे कोई ऐतराज नहीं,अरे मोहित ने कहा तुम्हारे मम्मी पापा अब से मेरे भी हैं।




दोनों परिवार मिले और शादी की तारीख पक्की हो गई।

जल्द ही शादी आ गई मनोहर का परिवार भी सपरिवार आया सब बड़ा खुश थे बहुत दिनों बाद मिलकर । मनोहर ने कहा भी अब तुम भी यहीं घर ले लो ,रिटायरमेंट में दिन ही किंतने हैं।  

इधर सुशीला ओर बड़ी बहू का घर में रोज का क्लेश होता ,उसने भी हाथ खड़े कर दिए बोली एक बेटा विदेश जाके बैठ गया उसे कोई मतलब नहीं ,एक जॉब का बहाना लेके अलग हो गये  बची में,आखिर उन लोगों ने भी पूरे रुपये लिए हैं , हम ही क्यों रखें पूरे समय  ,इधर मनोहर  ने कमरे से आती आवाजें सुन लीं थी बड़ा दुखी हो गया था मन , दूसरे दिन बेटे से कहा ऐसा कर जो रुपये बैंक में डलवाये थे और एक प्लाट जो बचा कर रखा था उसे बेंच कर एक छोटा फ्लेट ले दे कहीं आसपास तू भी अच्छे से रह सुशीला तो मानने से रही समझा समझा के थक गया हूँ। 

बेटे ने वही किया वो भी  रोज के झगड़े से परेशान हो गया था । और कुछ दिनों में मनोहर ओर सुशीला फ्लेट में चले गए जरुरत का सब सामान बेटे ने सेट कर दिया था।

इधर मोहित ने आकांक्षा के जन्मदिन पर एक कागज देते हुए कहा ये लो तुम्हारा गिफ्ट ,ये क्या अचम्भित होकर पूछती है ।

प्लॉट लिया है तुम्हारे नाम से ,तीन फ्लोर का नक्शा पास होकर घर बनेगा हमारा, जिसके एक फ्लोर पर मेरे मम्मी पापा एक पर तुम्हारे मम्मी पापा ओर एक पर हम ,हमेशा आसपास ओर करीब अगले साल पापा का रिटायरमेंट भी हेना जब तक कम्प्लीट भी हो जाएगा घर , बोलो केंसा लगा गिफ्ट आकांक्षा के पास तो शब्द ही नही थे कहने के लिए वो बस खुशी के आंसू पोंछते हुए मोहित के गले लग गई ।




कुछ सम्यपश्चात  घर भी पूरा हो गया और मायके में रिटायरमेंट पार्टी में मोहित ने ये खुशखबरी  दी कि अब से हमारे साथ ही रहैंगे आप , मोहित के पापा भी बोले चलिए समधी जी बुढापा अच्छे से कटेगा साथ में  ।

पहले तो अनन्त नानुकुर करता है पर मोहित के सामने उसकी नहीं चलती। 

ग्रहप्रवेश की पूजा में मनोहर ओर सुशीला को भी बुलाया , मनोहर बहुत खुश हुआ देख कर ओर जब अनन्त को पता चला दोनों अकेले रह रहे हैं दो बेटे शहर में होते हुए बड़ा दुखी हुआ, मनोहर ने कहा तुमने सही कहा था याद है मुझे सुख के लिए औलाद का बेटा या बेटी होना जरूरी नहीं औलाद का काबिल होना  जरूरी है खुशकिस्मत हो तुम जो ऐसे बेटी दामाद पाये हैं  ……..

नंदिनी

स्वरचित

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