ये देखो नितिन, हर्षल गुप्ता भी तो तेरे साथ पढता था न, उसे भी बैंक में जॉब लग गया है, उसके माँ बाप का भी सीना गर्व से किंतना चौड़ा हुआ होगा सोचो.. नितिन की माँ सुंगधा ने कहा।
तुझे पता है, विभा भी सिविल सर्विसेज के लिए सिलेक्ट हो गई है, तू कुछ बनेगा या यूँ ही मेरी तरह किराना की दुकान में जिंदगी खपायेगा, अब जले पर नमक छिड़कने की बारी नितिन के पिता यानी मुकुल शर्मा की थी।
मुकुल शर्मा की बनारस पुश्तैनी “परचून “की दुकान थी, जिसे उन्होंने थोड़ा बढ़ाकर “प्रोविजन स्टोर्स” बनाकर दैनिक उपभोग की सभी वस्तुएं बेचने लगे थे। वह चाहते थे कि उनका “इकलौता” बेटा नितिन पढ लिख कर किसी सरकारी या अच्छी कम्पनी में नौकरी करनें लगें तो वह अपनी दुकान बेंचकर बेटे के साथ बाकी की जिंदगी सुकून से गुजारेंगे। उन्होंने नितिन को अपनी हैसियत के मुताबिक पढ़ाया- लिखाया प्रतियोगी परीक्षाओं में भाग दिलाया, मग़र “सफलता की लकीर” तो शायद नितिन के हाथ में थी ही नहीं, तभी तो पूरे मनोयोग से तैयारी करके भी वह ज़रा से अंकों से पीछे रह जाता था, और दुनियां की नज़र में “असफल” कहलाता था।
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रोज रोज के उलाहने सुनकर नितिन इतना थक चुका था, कि उसे लगता कि वह या किसी ट्रेन के नीचे कटकर मर जाये या तो फाँसी लगाकर आत्महत्या कर ले।
अब तो नितिन के साथ पढ़ चुके मित्रों के विवाह भी होने लग गये थे, जब भी कोई मित्र अपने विवाह निमंत्रण पत्रिका लेकर नितिन के घर आता, नितिन के माता-पिता उनके जाते ही फिर नितिन को ताने मारना शुरू कर देते।
नितिन दिनभर अपने पिता के प्रोविज़न स्टोर्स को इतनीं कुशलता से चलाया करता था कि उसके पिता की तुलना में अभी अधिक आय होने लगी थी, ग्राहक नितिन की सादगी और ईमानदारी के कायल हो चुके थे, वह ग्राहक वाटसअप पर ही अपनी लिस्ट ऑर्डर कर देतें, जिसे नितिन अपनी दुकान में काम करने वाले लडको के माध्यम से घर तक पहुंचा देता, और फोन से ही ऑनलाइन पेमेंट ले लिया करता। इस तरह उसका व्यवसाय और आय दोनों ही शिखर पर पहुंच चुके थे, इसके बावजूद भी, नितिन के माता-पिता नितिन पर गर्व नहीं करते थे, उन्हें तो नितिन को उसके ही मित्रों की ही तरह बड़ा अधिकारी और नौकरी पेशा बनाना था ताकि वह लोग अन्य पलकों की तरह नितिन पर “अभिमान” कर सकें।
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सावन के सोमवार शुरू हो गये थे, वाराणसी में काशी विश्वनाथ दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या अचानक बढ़ चुकी थी, नितिन भी तड़के चार बजे उठकर दशाश्वमेध घाट पर स्नान एवम गंगा आरती के बाद भोलेनाथ के दर्शन के बाद अपना प्रोविज़न स्टोर्स का काम करता था।
उस सोमवार जब नितिन दशाश्वमेध घाट पर स्नान कर रहा था, उसने देखा कि अचानक एक नाव गंगा नदी के बीचोंबीच क्षमता से अधिक लोगो को भरने की वजह से डूबने लगी है..
नितिन और वहाँ उपस्थित मल्लाह तुरंत ही उनके बचाव के लिए पहुंचे.. नितिन ने अपने जान की परवाह किये बिना दो लोगों को साथ में किनारे तक सुरक्षित ले आया, मग़र तीसरे शक़्स को बचाने जाते समय शायद अधिक थकान की वजह से वह उस शक़्स को किनारे तक नहीं ला सका और गंगा के अथाह जल में सदा के लिए समा गया।नितिन के माता पिता का तो रो रोकर बुरा हाल था, नितिन की बहादुरी को जब न्यूज़ चैनल ने दिखाया तो, नितीन का शव मिलने से पहले ही मुख्यमंत्री ने उसके बहादुरी के सम्मान में स्वयं ही उसकी शव यात्रा में शामिल होने की घोषणा कर् दी, मुख्यमंत्री ने नितिन के माता पिता को कहा कि नितिन जैसा बहादुर बेटा होना कितने अभिमान की बात है, साथ ही उन्होंने नितिन की बहादुरी के लिए एक पुरस्कार देने की घोषणा की.. नितिन के माता पिता के पास उस दिन मुख्यमंत्री, मंत्री, विधायक, कलेक्टर, पुलिस अधिकारी सहित वह सभी लोग थे जिनके उनके घर आने से उन्हें “अभिमान” होना चाहिये था.. मग़र वह शख्स ही नहीं था, जिसके जीवित होने तक उन्हें कभी उस पर “अभिमान ” नहीं था।
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कहानी का सार यह हैं कि, हमें सदा जो हमारे पास है उसके लिये अभिमान करना चाहिए, वरना कई बार हम बेहतर पाने की कोशिश में वह भी गंवा देतें हैं, जो कभी हमारे पास हुआ करता था।
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स्वलिखित
अविनाश स आठल्ये
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