बनारस के अस्सी घाट के समीप एक छोटे-से गांव में रामा नाम की वृद्ध महिला अपने इकलौते बेटे वंश के साथ रहती थी। जब वंश महज़ दो साल का था, तभी उसके पिता की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई। तभी से रामा ने जीवन का हर बोझ अकेले उठाया।
वह कभी घाट पर फूल बेचती, तो कभी लोगों के घरों में झाड़ू-पोंछा और बर्तन साफ करने का काम करती। जैसे-तैसे वह वंश को गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ाती रही। वंश पढ़ाई में तेज था। रामा को उम्मीद थी कि उसका बेटा पढ़-लिखकर एक दिन उसे सारे दुखों से मुक्त कर देगा।
जब वंश ने इंटरमीडिएट अच्छे अंकों से पास किया, तो रामा ने कर्ज लेकर उसे इलाहाबाद भेजा ताकि वह आगे की पढ़ाई कर सके। खुद दो वक्त की रोटी भी मुश्किल से जुटा पाती, पर वंश की पढ़ाई में कोई कमी नहीं आने दी।
पढ़ाई पूरी करने के बाद वंश नौकरी की तलाश में दिल्ली चला गया। जाते समय उसने मां से वादा किया, “जैसे ही नौकरी लगेगी, मैं आपको शहर ले जाऊंगा।”
मगर महीनों बीत गए। न कोई चिट्ठी, न फोन, न खबर। गांव वाले कहने लगे — “तुम्हारा बेटा अब नहीं लौटेगा, वह शहर की चकाचौंध में तुम्हें भूल गया है।” लेकिन रामा का विश्वास अडिग था। वह रोज मंदिर जाती, दिया जलाती और भगवान से प्रार्थना करती — “बस, वंश को ठीक-ठाक नौकरी मिल जाए, फिर सब ठीक हो जाएगा।”
कई महीने बीतने के बाद भी मकान का किराया नहीं दिया गया, तो मकान मालिक सेठ गुंडों के साथ आया और रामा का सामान बाहर फेंकवा दिया। वंश के पिता की तस्वीर तक जमानत में रख ली।
अपमानित रामा मंदिर की सीढ़ियों पर बैठकर फूट-फूटकर रोने लगी। वह भगवान से कहने लगी —
“अब तो पड़ जाएगी न तुम्हारे कलेजे में ठंडक?”
रात में गांव में खबर फैली — सेठ की हवेली में आग लग गई। सबकुछ जलकर राख हो गया। लोग कहने लगे — “यह रामा की बद्दुआ का असर है।”
उधर, दिल्ली में वंश को अचानक मां की याद आई। उसे अपने किए पर पछतावा हुआ और वह तुरंत गांव लौट आया। मंदिर की सीढ़ियों पर बैठी रामा को देखकर वह रो पड़ा।
“मां…” बस इतना कहा, और रामा दौड़कर उससे लिपट गई।
“मैं कहती थी ना, मेरा वंश मुझे लेने जरूर आएगा।”
वंश ने सबका कर्ज चुकाया। सेठ से सामान वापस लिया। सेठ रोते हुए माफी मांगने लगा।
रामा ने कहा —
“कभी किसी बेबस का तिरस्कार मत करना। ऊपरवाला सब देखता है।”
कुछ ही दिन बाद, वंश अपनी मां को साथ लेकर शहर चला गया।
मंदिर की ओर मुड़कर रामा ने भगवान से मुस्कराकर कहा —
“अब तो पड़ गई कलेजे को ठंडक।”
विनोद कुमार सिंह,
बदायूं UP 24