अब समझौता नहीं! – डाॅ संजु झा : Moral stories in hindi

दूसरी बार दुल्हन   के लिबास में सजी मोनिका मन-ही-मन सोच रही है-“मैं अपनी शारीरिक और मानसिक  भावनाओं को कुंठित  कर क्यों समझौता करती?मेरे भी दिल में भावनाओं के ज्वार उठते हैं,उन्हें मैं क्यों दबाती?”

नवीन से दूसरी शादी के बाद मोनिका  पति का इंतजार करती हुई  पहली धोखे से हुई  शादी के ख्यालों में गुम हो जाती है।उस समय भी वह दुल्हन के सुर्ख जोड़ों में खुबसूरत  लग रही थी।प्रत्येक  लड़की की भाँति मोनिका भी अपनी शादी को अविस्मरणीय बना लेना चाहती थी।

अपने सारे अरमान पूरे कर लेना चाहती थी।उसे मोगरे और रजनीगंधा के पुष्प और उसकी सुगंध बहुत  प्यारी लगती थी,इस कारण उसकी शादी में चारों  तरफ इन फूलों की खुशबू तैर रही थी। इनकी खुशबुओं से मोनिका के तन-बदन  भी मदहोश होकर भविष्य के सुन्दर सपने बुन रहे थे।

शादी में आईं उसकी सहेलियाँ उसे सुहागरात के किस्से सुनाकर उसे छेड़ रहीं थीं और वह भी अन्दर-ही-अन्दर खुश होते हुए ऊपर से बनावटी गुस्सा दिखा रही थी। पहली शादी संपन्न होने पर मोनिका मन में इन्द्रधनुषी सपने लिए  हुए  ससुराल पहुँची।

ससुराल में उसकी खूब आवभगत हुई। रस्मों-रिवाजों का दौर समाप्त होने  के बाद  मोनिका आज की तरह ही कमरे में पति का इंतजार कर रही थी।सुहागरात  के बारे में सखियों के मजाक उसके दिल की धड़कनों को बढ़ा रहे थे।पति -मिलन की कल्पना से उसके दिल की धड़कनें तेज हो रहीं थीं।

उसका दिल उछल-उछलकर बेकाबू होता जा रहा था।उसी समय उसके पहले पति रुपेश का कमरे में आगमन  होता है।मोनिका शर्म और घबड़ाहट के कारण खुद में सिमटने लगती है,तभी कमरे की रोशनी बंद करते हुए  रुपेश कहता है-” डार्लिंग!बहुत  थक गया हूँ और रात भी काफी हो गई है।सो जाओ।”

मोनिका के मन में सुहागरात के ढ़ेर सारे सपने,इन्द्रधनुषी रातों के ख्वाब पति के ठंढ़े व्यवहार से एकाएक ताश के पत्तों के महल की भाँति भरभराकर गिर पड़े।सुहागरात का हसीं ख्वाब धरा का धरा ही रह गया।उसकी आँखों के कोर भीगने लगें।

थकी और निराश होकर  निद्रादेवी  की गोद में समा गई। अगले दिन ससुराल में मोनिका के जीवन का नया सवेरा था।सवेरे-सवेरे भगवान अंशुमाली  ने स्वर्णिम प्राची से  बड़ी उदारता से स्वर्ण भरकर धरती पर उड़ेल दिया था।

सुबह की सुनहली धरती के समान मोनिका भी अपनी जिन्दगी के सुनहले सपनों के साथ सास शीला देवी के पास पहुँचकर उन्हें प्रणाम करती है।

मोनिका को आशीर्वाद देते हुए सास अपने पास बिठा लेती हैं और उसे  सावित्री-सत्यवान की कथा सुनाते हुए कहती हैं -” बहू!औरत का जीवन फूलों की सेज न होकर  काँटों का ताज है।उसे पग-पग पर समझौते करने होते हैं।औरत का पति जैसा भी होता है,वह उसका परमेश्वर होता है।”




सास के प्रवचन से उकताकर मोनिका अपने कमरे में आ जाती है।घर में आए हुए मेहमान उसे दिनभर घेरे रहते हैं।दिन में एकाध बार रुपेश उसके कमरे में आता है और उसपर उचटती निगाहें डालकर निकल जाता है।

रुपेश का   सर्द व्यवहार  देखकर मोनिका को ख्याल आता है कि कहीं रुपेश शादी से नाराज  तो नहीं है!क्योंकि दोनों की अरेन्ज मैरिज थी।

शादी के दो दिन बाद मोनिका पगफेरे के लिए  मायके आ गई। मायके में भाभियाँ,सहेलियाँ उससे चुहल करतीं रहीं।उनकी बातों से मोनिका अन्दर-ही-अन्दर घुटन महसूस कर रही थी और ऊपर से खुश होने का दिखावा कर रही थी।

रुपेश उसे लेने उसके मायके आ गया।मोनिका के माता-पिता रूपेश के व्यवहार से काफी खुश थे।रुपेश जैसा आकर्षक दामाद पाकर खुद को धन्य महसूस कर रहे थे।रुपेश के साथ वापस लौटते हुए  मोनिका ने पूछा -” क्यों न हम कुछ दिनों के लिए बाहर हनीमून पर चलें?”

रुपेश-” नहीं!अभी नहीं!अभी घर में बहुत सारे लोग हैं।”रुपेश का जबाव सुनकर मोनिका खामोश हो गई। अब रोज रात को मुँह फेरकर  पति का सो जाना,मोनिका को बेचैन कर रहा था।वह अपने दिल का हाल किसे सुनाएं,उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था! सास तो बस उसे पति -भक्ति का पुराण सुनाया करती थी।

आखिरकार एक रात मोनिका के सब्र  ने जबाव दे   दिया।उसने खुद पहल करते हुए अपनी नर्म हथेलियों से पति की पीठ सहलाने की कोशिश की,परन्तु  रुपेश एक ही झटके से उसका हाथ हटाकर उठ बैठा।

मोनिका रुपेश के इस अप्रत्याशित व्यवहार से हतप्रभ हो उठी।वह मन-ही-मन सोचने लगी -“यह कैसा मर्द है?इस उम्र में तो हल्की छुअन से भी शरीर के रोम-रोम झंकृत होकर गुनगुना उठते हैं।तन-मन दोनों बेकाबू हो उठते हैं,परन्तु यह तो पाषाण-सा भावविहीन प्रतीत होता है!”

अपना संयम बरकरार रखते हुए  मोनिका रुपेश का हाथ अपने हाथों में लेकर पूछती है-“रुपेश!क्या बात है?कोई  परेशानी है तो बताओ।हमारी शादी तो जबरदस्ती नहीं हुई है?

तुम मुझसे शारीरिक सम्बन्ध बनाने से क्यों डरते हो?और कोई  बात है,तो हम डाॅक्टर से मिलेंगे।आजकल  तो हर समस्या का समाधान है।”

रुपेश मोनिका की बातों को सुनकर खुद को गुनाहगार महसूस करता है।आँखों में आँसू भरकर  बेबस स्वरों में कहता है-“मोनिका!मुझे माफ कर दो।मैं तो शादी करना ही नहीं चाहता था।

माता-पिता के दबाव में आकर मैंने शादी की।मैं कभी शारीरिक सम्बन्ध नहीं बना सकता हूँ,क्योंकि मैं नपुंसक (हिजड़ा) हूँ।

नपुंसक  शब्द सुनते ही मोनिका के तन-बदन में आग लग जाती है।उसे ऐसा महसूस  होता है,मानो रुपेश के शब्दों ने उसके कानों में गर्म-गर्म पिघला हुआ शीशा डाल दिया हो।रुपेश असलियत बताकर कमरे से निकल चुका था।

मोनिका खुद को लुटी-पिटी महसूस कर रही थी।उसे विश्वास  नहीं हो रहा था कि उसके साथ इतना बड़ा धोखा हुआ है।वह रात उसके लिए  पहाड़ समान प्रतीत हो रही थी।उसके जीवन के सारे रंग बेरंग हो चुके थे।

रात के अंधेरे में तकिए में सिर छुपाकर आंसू बहाती रही।रह-रहकर रात भर करवटें बदलती रही।उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था कि उसकी जिन्दगी की भयावह काली रात और लम्बी हो गई है।बेचैनी में वह उठकर खिड़की के पास  उठकर खड़ी हो जाती है और खड़ी होकर आसमान  देखने लगती है।

आसमान के टूटे तारों की भाँति उसके भी जीवन के सारे सपने खंड-खंड  टूटकर धरती पर बिखर चुके थे।अकस्मात् उसे एक भोर का तारा अपनी चमक बिखेरते  हुए  जगमगाता  दिख रहा था।

जगमगाते हुए  तारे को देखकर उसने अपने मन में निर्णय  लिया कि वह अपनी जिन्दगी को समझौता रुपी काली अमावस नहीं बनने देगी।वह भी भोर के तारों की भाँति अपनी आशाओं,इच्छाओं और सपनों के साथ जिऐगी।




कभी-कभी मनुष्य  जिन्दगी के दोराहे पर खड़ा होकर कोई  निर्णय  नहीं ले पाता है,परन्तु एक छोटी-सी बात भी उसका मार्गदर्शन कर सकती है।

मन पर छाई धुंध मिट जाती है और आगे का रास्ता साफ नजर आ जाता है।उस दिन भोर के तारों ने उसका मार्गदर्शन कर दिया था।

अगले दिन सुबह-सुबह  तैयार  होकर  मोनिका  बैग लेकर नीचे उतरती है।मोनिका को इस रुप में देखकर सास शीला देवी सारा माजरा समझ जाती हैं।

सास मोनिका को प्यार से समझाते हुए कहती हैं -” देखो बहू!जो हुआ, उसे भूल जाओ। औरत के लिए पति ही सबकुछ होता है।एक बच्चे को गोद ले लेना।इस तरह पति और ससुराल को छोड़कर  मत जाओ। “

मोनिका  ने अबतक अपने जो जज्बात  जज्ब कर रखी थी,सास की बात सुनते ही घायल शेरनी की भाँति बिफरते हुए कहा-“केवल रुपेश ही नहीं आप सब मेरे अपराधी हो।

आपलोग इस गफलत में कभी मत रहना कि मैं शादी के नाम पर समझौता कर इस रिश्ते को ढ़ोऊँगी।मेरे भी कुछ अरमान  हैं,मेरी भी कुछ शारीरिक जरूरतें हैं।मैं केवल नाम के पति के सहारे जिन्दगी नहीं काट सकती।

मैं इक्कीसवीं सदी की नारी हूँ।मैं अपने सपने,अपनी शारीरिक  जरुरतों के साथ समझौता नहीं कर सकती हूँ।मैं आपलोगों की करतूतों को कोर्ट  में ले जाऊँगी।”

सास शीला देवी ने एक बार फिर से मोनिका को समझाते हुए कहा-“बहू!रुक जाओ। समाज में तुम्हारी और मेरी क्या इज्जत  रह जाएगी?”

मोनिका -” जिस समाज में आपलोग जैसे धूर्त  और कपटी रहते हों,उसकी मुझे परवाह नहीं।मैं समाज  और लोक-लाज के भय से  समझौता करनेवाली लड़की नहीं हूँ।

“कहकर मोनिका ने एक ही झटके से अपने गले का मंगलसूत्र  निकालकर  पति रुपेश के हाथों में पकड़ाते हुए मायके विदा हो गई। 

मायके पहुँचकर  मोनिका ने स्पष्ट शब्दों में अपने माता-पिता से कहा-“हमारे साथ बहुत बड़ा विश्वासघात हुआ है।

रुपेश नपुंसक है,वो मेरी जिस्मानी जरूरतें पूरी नहीं कर सकता है।अब मैं उसके साथ रहकर अपनी जिन्दगी बर्बाद नहीं कर सकती हूँ।”

मोनिका के माता-पिता दामाद का  क्रूर सच जानकर अवाक् रह जाते हैं।उन्हें बेटी की मनःस्थिति का बखूबी एहसास  होता है।

उसके पिता उसके सिर सहलाते हुए कहते हैं -” बेटा!मैं तुम्हें लोक-लाज के भय से समझौता करने बिल्कुल भी नहीं कहूँगा।तुम्हें समाज में छिपे ऐसे धोखेबाजों से  जरुर मुक्ति  दिलवाऊँगा।”

मोनिका पिता का आश्वासन पाकर पिता के गले से लिपटकर फूट-फूटकर रोने लगती है,मानो उसकी आँखों में आँसुओं का सैलाब उसके संजोए हुए  सपनों को बहा रहा हो।




अगले दिन  रूपेश के माता-पिता सुलह करने उसके मायके आते हैं।रूपेश की माँ मोनिका के पिता से कहती है-” समधी जी!अब तो शादी हो ही गई है,तो मोनिका एक बच्चे को गोद ले लेगी।सब ठीक हो जाएगा।रुपेश मेरा इकलौता बेटा है।सारी संपत्ति मोनिका की ही होगी।”

यह सुनकर मोनिका के पिता क्रोध से भड़कने हुए  कहते हैं-“समधन जी!हमने भलमानुष समझकर  अपनी बिटिया आपको सौंपी।आप ने तो छल करके मेरी बिटिया की जिन्दगी बर्बाद कर दी।हमें क्या पता था कि आपलोग इतने शातिर हैं!

नपुंसक (हिजड़ा) होना ईश्वर की देन है,परन्तु इस बात को छल से छुपाकर उसकी शादी करना बहुत बड़ा गुनाह है।आप सब मेरी बेटी के गुनाहगार हैं।इस गुनाह की सजा आपको कोर्ट में जरुर मिलेगी।”

मोनिका के परिवार की तरफ से कोर्ट में तलाक का केस दायर कर दिया गया।तलाक का केस चलने लगा।रुपेश के घरवाले बीच-बीच में सुलह करने के दबाव बनाते रहें,परन्तु मोनिका के परिवारवाले अपने निर्णय पर अडिग थे।

इस बीच मोनिका ने अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखी।पढ़ाई के दौरान  ही उसके पुराने दोस्त  नवीन से भेंट  होने लगी।शादी से पहले दोनों एक-दूसरे को पसन्द करते थे,परन्तु बात इश्के-इजहार तक नहीं पहुँची थी।

कोर्ट में केस के दौरान  नवीन मोनिका के आहत दिल पर मलहम लगाने की कोशिश करता।दोनों एक-दूसरे का का साथ पाकर खुशी महसूस करने लगें।नवीन हमेशा मोनिका की जिन्दगी के  कमजोर  पलों मजबूत संबल के रुप में उसके साथ खड़ा रहता।

मोनिका भी नवीन से बेइंतिहा प्यार करने लगी।तलाक का केस चलता रहा,इस बीच दोनों की पढ़ाई  खत्म हो गई और नौकरी भी लग गई। 

अंततः केस का फैसला मोनिका के पक्ष में ही आ गया।अब मोनिका नवीन से शादी करने के लिए आजाद थी,परन्तु नवीन के घरवाले एक तलाकशुदा को अपने घर की बहू बनाने को तैयार  नहीं थे।

आखिरकार  उन दोनों के सच्चे प्यार  के आगे नवीन के परिवारवालों को झुकना ही पड़ाऔर आज नवीन के साथ मोनिका की दूसरी शादी हो गई। 

 नवीन कमरे में आता है और मोनिका को ख्यालों में गुम देखकर  उसे प्यार भरा स्पर्श करता है।नवीन के स्पर्श से मोनिका का तन-बदन खिल उठता है और वह नवीन की आगोश में सिमट जाती है।

दोनों मधुर-मिलन की वर्षा में भींगने लगते हैं।नवीन का निश्चछल प्यार पाकर मोनिका की अतृप्त  मानसिक  और शारीरिक इच्छा तृप्त हो गई। दोनों आज खुशहाल  जिन्दगी बिता रहे हैं।दोनों की एक प्यारी-सी बिटिया भी है।

सचमुच   अब नारी के लिए जिन्दगी केवल समझौता का नाम नहीं रह गई है।

यह कहानी बिल्कुल  सच्ची  है।कहानी का रुप देने के लिए   इसमें कल्पना का पुट दिया गया है और पात्रों के नाम बदल  दिए  गए हैं।

#समझौता

समाप्त। 

लेखिका-डाॅ संजु झा।

1 thought on “अब समझौता नहीं! – डाॅ संजु झा : Moral stories in hindi”

  1. बहुत ही अच्छी कहानी है पर आपकी कहानियां चोरी हो रही है यूट्यूब पे Shivansh स्टोरी, Hindi khaniyon ka khazana चॅनेल पर मैंने आपकी बहुत सी कहानियां पढ़ी है सोचा आपको बात दूँ |

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