दिव्या… यह मेरे मित्र हैं दिल्ली से आए हैं आज ही इन्होंने मेरी कंपनी में ज्वाइन कर है अब जब तक इनके मकान की समस्या का हल नहीं निकल जाता तब तक यह तीन-चार दिन हमारे साथ ही रहेंगे तो फटाफट से खाना बना दो ताकि उसके बाद हम दोनों अच्छे से मकान की तलाश में निकले!
हां हां …क्यों नहीं आप बैठिए अभी खाना बनाती हूं! तीन दिन हो गए दिव्या के पति सोहन और उसके मित्र राकेश को मकान देखते हुए किंतु उन्हें कोई मकान समझ नहीं आ रहा था वैसे भी बेंगलुरु जैसी बड़ी सोसाइटी में फ्लैट मिलना इतना आसान भी कहां था और वह लोग चाहते थे कि उनके फ्लैट भी ऑफिस के पास ही हो ताकि ऑफिस आने-जाने में ज्यादा समय खराब ना हो!
एक दिन सोहन ने अपनी पत्नी से कहा… दिव्या.. ऑफिस की भागा दौड़ी के चक्कर में तीन-चार दिन से सादा खाना ही खा पा रहे हैं आज रविवार है तो खाने में कुछ अच्छा सा बना दो, ऐसा करो दम आलू पूरी बूंदी का रायता तुम बना देना और गुलाब जामुन में बाजार से ले आऊंगा! आज दिव्या का मूड कुछ उखड़ा हुआ था उसने गुस्से में सोहन से कहा…
हां और कुछ फरमाइश रह गई हो तो वह भी बता दो यह कोई घर थोड़ी है धर्मशाला है तुम्हारा तो कोई ना कोई यहां लगा ही रहता है और फिर बस तुम आदेश पर आदेश छोड़कर जाते हो यह बना लेना वह बना लेना! अभी कुछ दिनों पहले तुम्हारे ताऊ जी की बेटी की यहां नौकरी लगी वह 15 दिन में यहां से गई है उससे पहले भी कोई ना कोई तुम्हारे घर में से लगा ही रहता है,
मुझे तो यह समझ में नहीं आती तुमने मुझसे शादी क्या इनकी जरूरत पूरी करने के लिए की है तंग आ गई हूं मैं तुमसे, तुम्हारे घर वालों से! दिव्या इतना कह रही थी कि इतने में सोहन के दोस्त ने यह सब सुन लिया किंतु वह चुपचाप वहां से चला गया, जैसे तैसे उस समय उसने खाना खा लिया किंतु शाम के खाने पर वह नहीं आया!
दिव्या ने सोहन से पूछा… क्या हुआ आज आपके दोस्त नहीं आए तब सोहन ने कहा… नहीं.. ना तो वह आया और ना ही आएगा, जब तक उसको मकान नहीं मिलेगा उसने होटल में कमरा ले लिया! वैसे भी कल परसों में एक अच्छा सा मकान उसने फाइनल कर ही लिया परसों उसकी फैमिली भी आ जाएगी
फिर उसे किसी पर आश्रित नहीं रहना पड़ेगा तुम आराम से रह पाओगी! सोहन की बातों में कटाक्ष था जिसे दिव्या समझ गई तब दिव्या बोली नहीं मेरा ऐसा मतलब कुछ भी नहीं था यार कभी-कभी मैं परेशान हो जाती हूं इसलिए कई बार मुंह से ऐसा निकल जाता है! हां तो ठीक है ना…अब तो पड़ जाएगी ना तुम्हारी कलेजे में ठंडक!
आज के बाद मैं अपने सभी मिलने वाले रिश्तेदारों घर वालों से कह दूंगा कि यहां रहने की और खाने की कोई व्यवस्था नहीं है जो तुम अपना समझ कर चले आते हो अब खुश…! और ऐसा कहकर सोहन गुस्से में वहां से चला गया और दिव्या उसका मुंह ताकती ही रह गई अब दिव्या के अफसोस करने से कुछ नहीं हो सकता था!
जिनके मन को ठेस पहुंचाने की वह तो पहुंच चुकी है अब दिव्या के पछताने से कुछ नहीं हो सकता था! म्यान से निकली तलवार और जवान से निकली बोली कभी वापस नहीं आ सकती!
हेमलता गुप्ता स्वरचित
कहानी वाक्य प्रतियोगिता..… #अब तो पड़ जाएगी ना तुम्हारे कलेजे में ठंडक”