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कुंडली – संजय मृदुल

गणेशी को अस्पताल में आज आठ दिन हो गए। सब परेशान है क्या होगा। डॉक्टर भी कुछ साफ-साफ नही बता रहे हैं।

सब रिश्तेदार मुकुल को कोस रहे हैं कि उसके कारण गणेशी का ये हाल हुआ है। क्या जरूरत थी उसे अपनी पसन्द से शादी करने की, वो भी दूसरी जाति की लड़की। परिवार की तो नाक ही कट गई समाज में।

इधर बहू घर आई और थोड़ी देर में गणेशी का ब्लड प्रेशर बढ़ गया। गहरा सदमा लगा था उन्हें।

सारा जीवन नियम से पूजा पाठ करने वाली, व्रत रखने वाली गणेशी का बेटा दूसरी जाति की लड़की से शादी कर लेगा ये वो सोच भी नही पा रही थी। जिस घर में हर काम चौघड़िया देखकर किये जाते, मुहूर्त देखकर यात्रा की जाती, बड़े बेटे नकुल के रिश्ते के लिए जाने कितनी अच्छी से अच्छी लड़कियां केवल इसलिए ठुकरा दी कि उनकी कुंडली नही मिलती थी वहां उस घर में ऐसी लड़की बहू बनकर आ गयी जिसका आगा पीछा कुछ न पता था उन्हें। कितना बड़ा अपशकुन हुआ ये। माना कि मुकुल जरा अलग है सब से, वो ये सब परम्पराएं नही मानता पर इसका मतलब ये तो नही कि वो इतना बड़ा कदम उठा ले।

मुकुल को सब ने अस्पताल आने से भी मना कर दिया। उसे ये तो मालूम था कि उसके इस तरह शादी करने से बवाल तो मचेगा पर स्थिति इतनी गम्भीर हो जाएगी ये नही मालूम था।

उसने बचपन से मां को बहुत ज्यादा धार्मिक देखा था, ज्यादा समय पूजा पाठ में लगे रहना, पिताजी के चले जाने के बाद और ज्यादा बढ़ गया था ये। बिजनेस तो संयुक्त था इसलिए ज्यादा परेशानी नही थी, नकुल बड़ा हुआ तो उसने भी काम सम्हाल लिया था।

जब नकुल की शादी की उम्र हुई तो उसने देखा किस तरह हर लड़की की कुंडली माँ इतनी बार दिखवाती। कोई कमी न निकल जाए कोई ग्रह दोष न हो, किसी प्रकार की दिक्कत तो नही है। जहां कोई भी कमी पंडित जी बताते वो कुंडली वापस कर देती। इसी के चलते नकुल तीस पार कर चुका था। जब एक लड़की की कुंडली मिली तो माँ ने न लड़की के बारे में ज्यादा पता किया  न ही परिवार की खोजबीन की बस चट मंगनी पट ब्याह।




भाभी बस कुछ माह छोटी थी नकुल से।

बड़ी उम्र में शादी हो तो जल्दी सामंजस्य नही बन पाता। एक तो गणेशी स्वभाव से तेज। ऊपर से बहू भी जरा खुले स्वभाव की। न पूजा पाठ में दिलचस्पी न रीति रिवाज भाते उनको।

नकुल प्रयास करता दोनो के बीच पुल बनाने का पर असफल हो जाता।

इस बीच मुकुल को मुम्बई में नौकरी मिल गयी और वो चला गया। वहां उसीकी कम्पनी में नेहा मिली जो उसी के शहर की थी दोनो में दोस्ती हुई और फिर प्यार।

इधर घर में आये दिन बवंडर उठा रहता। नकुल के बस में न पत्नी आ रही थी न ही माँ।

दोनो के बीच रस्साकशी में फंसा नकुल कुछ कर पाता कि पत्नी ने समान लिया और मायके चली गयी और वहां से तलाक के कागज भेज दिए।

गणेशी भी जिद पर आ गयी।नकुल ठहरा मां का सच्चा बेटा, फिर उसकी भी बन तो रही नही थी पत्नी से तो उसने भी तय कर लिया रिश्ता खत्म किया जाए।

आपसी सहमति से सब निपटाया गया।

मुकुल अक्सर सोचता कि क्यों भाई ने कोशिश नही की स्थिति को सम्हालने की, क्यों भाभी को समझाने के लिए नही गया? क्यों माँ के आंचल से बाहर निकलकर नही सोचा। मां ने भी तो इतना ठोक बजाकर रिश्ता किया था। तीस गुण मिले थे दोनो की कुंडली में, फिर क्यों मतभेद हो गए। मां ने भी क्यों समय के साथ बदलना स्वीकार नही किया। थोड़ा खुद बदलती तो शायद भाभी भी खुद को ढालती परिवार के हिसाब से। पर माँ की ज़िद, उनका अहम नकुल के रिश्ते को ले डूबा।

शायद इसीलिये मुकुल ने तय किया कि इन सब चक्करों में नही पड़ेगा वो। भले जो परिणाम हो। वैसे भी उसे बाहर ही रहना है। माँ भाई से दूर, जहां अपने रिश्ते अपने तरीके से निभाने हैं उसे।

नकुल से सब कुछ कह चुका है वो। नकुल भी समझता है पर बड़ा बेटा होने की जिम्मेदारी और परिवार के नियमो से बाहर न जा सकने की उसकी विवशता उसे बांधे हुए है।

उसने मुकुल से कहा। माँ जल्दी ठीक हो जायेगी फिर मना लेंगे हम उन्हें। तू चिंता न कर। माँ है कितना नाराज होएगी। तुझसे प्यार भी ज्यादा है न उन्हें। इसीलिये सदमा लगा है। नेहा अच्छी लड़की है वो और उसका परिवार भी कितना कुछ कर रहा है जब से मां अस्पताल में है। सब ठीक हो जाएगा देखना। तुमने अच्छा किया है जो अपनी पसन्द से शादी की, कोई कुछ भी कहे। तू भी मां की कुंडली वाले फेर में रह जाता तो शायद मेरे जैसा ही हाल हो जाता। शादी कुंडली से नही आपसी सामजंस्य से चलती है ये काश हम मां को समझा पाएं।

©संजय मृदुल

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