पढ़ाई में अव्वल रहने वाला अनन्य घर मोहल्ले स्कूल रिश्तेदारी हर जगह सबकी आंखों का तारा था। माता पिता अपने बेटे में अपना सुनहरा भविष्य देख कर निहाल हो जाते थे।स्कूल के शिक्षक ऐसे मेधावी छात्र में भावी उच्च प्रशासनिक अधिकारी की छवि देख गर्वित हो जाते थे।हर जगह अनन्य का डंका बजता था।
किस्मत की बलिहारी कहें या कर्मों का प्रभाव!! इतने मेधावी होने के बावजूद अनन्य किसी प्रतियोगिता में सफल नहीं हो पाया।बचपन से ऊंचे ख्वाब पालता उसका मन छोटे मोटे कार्य करने में अपनी बेइज्जती महसूस करता।उम्र बढ़ने के साथ उसकी निराशा तब और ज्यादा बढ़ने लगी
जब धीरे धीरे उसे देख कर उसके परिचितों ने उससे #मुंह मोड़ना शुरू कर दिया।उसकी सहायता या हिम्मत बढ़ाने के बजाय मोहल्ले में भी हर कोई उससे कन्नी काटने को यत्नशील हो गया।रिश्तेदार भी अब उसे निखट्टू और निठल्ला बाप की कमाई पर पलने वाला के ताने मारने लगे ।हिम्मत टूट गई उसकी।अब वह सबसे मुंह बचाता घर के भीतर छिपा रहता ।
मां से अपने पुत्र की स्थिति देखी नहीं जा रही थी।
बेटा क्या अब खुद को कुछ बनाने के लिए तू सबका मोहताज हो गया है।तुझमें अटूट प्रतिभा बचपन से है किसी से पूछने की जरूरत नहीं है।कोई भी काम कर बेटा नौकरी नहीं ना सही दुकान खोल व्यापार कर कोई काम छोटा नहीं होता । लोगों को ताने मारने दे …मां कह रही थी।
हां बेटा ये नहीं और कहीं और सही.. ये ले मकान के कागजात गिरवी रख के धन इकठ्ठा कर बढ़िया बिजनेस की शुरुआत कर तेरी प्रतिभा तुझे बहुत आगे ले जाएगी.. पिताजी ने भी उसके कंधों पर हाथ रखते हुए कहा तो अचानक नैराश्य के सागर में गोता लगाता अनन्य का आत्मबल बढ़ गया।
बिजनेस उसके लिए नया क्षेत्र था लेकिन अपनी सूझ बूझ और योग्यता से धीरे धीरे वह एक एक सीढ़ी चढ़ता गया बढ़ता गया.. आज शहर के सफलतम बिजनेसमैन में उसकी गिनती हो रही थी।जो लोग कल उसे देख मुंह मोड़ लेते थे आज उससे मिलने के लिए समय मांग रहे थे।
लतिका श्रीवास्तव
मुंह मोड़ना#मुहावरा आधारित लघुकथा