आत्मा – अंजू अग्रवाल ‘लखनवी’

वो बिलख-बिलख कर  रोते हुए अपने माता-पिता को देख रही थी। वो उससे लिपट लिपट कर रो रहे थे।

“लेकिन.. वो किससे लिपट रहे हैं…!

मैं तो यहां खड़ी हूँ…!

ये मेरा शरीर खून से लथपथ क्यों है…!

और…ये नाखूनों के निशान कैसे हैं…!

मेरा एक गाल भी आधा गायब है…!

उफ्फ.. तो फिर मुझे दर्द क्यों नहीं हो रहा है…!

अरे…!

ओह…!

तो क्या मैं मर चुकी हूँ…!

आत्मा मात्र…!”

अब उसके रोंगटे खड़े हो गए।

बीता दिन चलचित्र की तरह उसकी आंखों के सामने नाचने लगा।

“हाँ! वो पाँच थे…! स्कूल से लौट रही थी वो दोपहर में…!

आज कुछ ज्यादा ही सन्नाटा था! ऐसा लगता था, कि सूर्य देव के रौद्र रूप को देखकर सब अपने-अपने घर में कूलर, ए सी में सिमट गए थे। गली के कुत्ते तक किनारों की नाली के पानी के पास जान बचाने जा बैठे थे।

वो पसीने से लथपथ जल्दी-जल्दी घर लौट रही थी। आज उसकी सहेली स्कूल नहीं आई थी, इसीलिए अकेला लौटना पड़ रहा था। वरना तो बातें करते-करते रास्ते का पता ही नहीं चलता था।




पर…पता नहीं कब एक पतली गली से निकल कर उन पांचों ने उसे गली में खींच लिया। उसने चिल्लाने की कोशिश की लेकिन एक मर्दाना हाथ उसके मुंह को इस तरह दबाए था कि आवाज निकालना  तो दूर सांस लेना भी भारी था। फिर भी उसने हिम्मत करके उसके हाथ पर जैसे-कैसे अपने दांत गड़ा दिए थे और उसके हाथ की पकड़ ढीली होते ही जोर-जोर से मदद के लिए चिल्लाई थी।

लेकिन गर्मी की दोपहर के गहरे सन्नाटे में भला कौन सुनता..

और फिर….!!! उफ्फ…!!!

उसने पास जाकर अपने रोते हुए माता-पिता के कंधे पर हाथ रखकर उन्हें ढांढस बंधाना चाहा लेकिन ये क्या…!

वो तो उसकी उपस्थिति से अनजान वैसे ही बिलख रहे थे। मां जरूर हल्का सा चौंकी थी, शायद उसकी महक उन तक पहुंच गई हो लेकिन यह पक्का था कि कोई उसे नहीं देख पा रहा था….।

इसका मतलब…!!!

इसका मतलब…!!

वो सचमुच मर चुकी थी।

ओह.. एक पल को तो वो दुखी हुई, लेकिन दूसरे ही पल उसके चेहरे पर एक सुकून पसर गया।

इसका मतलब… अब कोई अपने गंदे हाथ उसे  नहीं लगा सकता…!

उसके शरीर को यहां-वहां नहीं छू सकता…!

तभी उसकी नजर उन पांचों पर पड़ी।

उफ!!




शोकपूर्ण मुद्रा बनाए वो उसकी शव यात्रा मे सम्मिलित थे ताकि किसी को उन पर संदेह ना हो।

भय और उससे भी ज्यादा क्रोध के अतिरेक से पुनः उसकी रूह कांप उठी।

तभी उसके कानों मे मृत्यु के देवता का स्वर गूंजा- ” तीन दिनों तक ही तुम अपने परिजनों के आसपास रह सकती हो फिर तुम्हे प्रेत लोक मे जाना होगा।”

उसने पुनः अपने मृत शरीर की ओर देखा।

शरीर जलने मे अभी समय था।

“यही मौका है।”

उसके मस्तिष्क में एक वीभत्स विचार कौंधा।

उसने अनुनय पूर्ण दृष्टि से नजर उठाकर मृत्यु के देवता की ओर देखा।

उसकी मनःस्थिति से वो भिज्ञ वो उसी की ओर देख रहे थे। अपनी कठोरता के लिए विख्यात मृत्यु के देवता की आँखे भी नम थीं।

सहमति का संकेत पाते ही तत्काल उसने अपनी आत्मा को अपने शरीर मे प्रवेशित कर दिया और अट्टहास करती उठ खड़ी हुई।

अचानक मृत शरीर को इस तरह अट्टहास करते देख उपस्थित सभी घबरा गए और भाग खड़े हुए।

वो पांचो जब तक कुछ समझ पाते उसने रस्सी का घेरा उनके चारों ओर पूरी ताकत से कस दिया। कुछ ही देर मे उन सबके मृत शरीर वहाँ पड़े थे और उसका भी।

अब उसकी आँख नम थी।

स्वरचित

अंजू अग्रवाल ‘लखनवी’

 

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