ताली हमेशा दोनों हाथों से बजती है । – सविता गोयल  

“दीदी,आपने मोनू को बहुत सिर चढ़ा रखा है आजकाल। बड़ा बदतमीज हो गया है। मेरा इतना मंहगा कप सेट जमीन पर पटक दिया। ” रूपाली ने तैश में आकर अपनी जेठानी सरिता से कहा।

” अरे, छोटी, अब बच्चा है गलती हो गई होगी, फिर इसने कौन सा जान बूझकर गिराया होगा.. गलती से गिर गया होगा!” सरिता बोली।

” नहीं दीदी, इतना बड़ा हो गया है लेकिन इसे जरा भी तमीज नहीं…।”

आज रूपाली ने कुछ ज्यादा हीं जोर से बोला जिससे सरिता का भी पारा चढ़ गया और वो भी तेज स्वर में बोल पड़ी ” बस कर छोटी, और जो तेरा नन्नू हर रोज मेरा नुकसान करता रहता है उसका क्या??  मैं तो कभी शिकायत नहीं करती।  उसे मेरे पास छोड़कर ना जाने कितने- कितने घंटे तुम मियां बीवी घूमते रहते हो।”

” ओह दीदी, इतना ही बोझ लगता था मेरा बच्चा तो साफ साफ कह ही देती….। ऊपर से तो बड़ी माँ होने का दावा करती हैं और मन में कुछ और हीं है आपके।”

” बस कर छोटी, बहुत बोल रही है तूं आज… मैं तो मन से ही उसे अपना मानती हूँ लेकिन तूं ही मेरे बच्चों के साथ भेदभाव करती है  …।”

” रहने दो दीदी, बच्चा बदमाशी करे तो शिकायत भी ना करो…”

”  ठीक है छोटी, मेरा बच्चा बदमाश हीं सही।”

मोनू का हाथ पकड़कर खींचते हुए सरिता बोली, ” खबरदार जो आज के बाद इसके कमरे तक गया तो। टांगें तोड़ दूंगी तेरी….. चल अंदर चलकर पढ़ाई कर।”




अंदर से रूपाली का डेढ़ साल का नन्नू झगड़े की आवाज सुनकर रोने लगा और चलते चलते बाहर आ गया । रूपाली झट से उसे गोद में उठाते हुए बोली, ” तू भी चल अंदर। देख लिया तेरी बड़ी माँ को कितना एहसास दिखा रही है, जैसे इनके बिना मेरा बच्चा पलता हीं नहीं।”

एक- दूसरे के तानों से आहत दोनों ने आज खूब बहस की। गुस्से में जो नहीं कहना चाहती थीं वो भी मुंह से निकल रहा था।

”  आज के बाद मुझे आपसे कोई मतलब नहीं। “

आखिर में दोनों ने एक दूसरे के मुंह के सामने अपना अपना दरवाजा बंद कर लिया।  पूरा दिन गुजरने को आ गया लेकिन दोनों ने एक- दूसरे की शक्ल भी नहीं देखी। लेकिन बच्चे कहाँ इतनी देर दूर रह सकते हैं।नन्नू अपनी बड़ी माँ की रट लगाए था वहीं मोनू भी नन्नू के साथ खेलने को मचल रहा था।

परेशान रूपाली ने अपने छोटे से बच्चे पर झुंझलाहट में एक धौल जमा दिया।बाद में उसे खुद बुरा लगा तो रोने बैठ गई। कुछ ना सूझा तो अपनी बड़ी बहन के पास फोन मिला लिया

” हैलो दीदी…. , सुबकते सुबकते रूपाली बोली ।

दीदी समझ गई कि जरूर कोई बात है। रूपाली से पूछा तो उसने अपनी सारी भड़ास अपनी बहन के आगे निकाल दी ।

” देखा दीदी, इंसान ऊपर से कुछ दिखता है और अंदर से कुछ…”




” हां रूपाली ये तो है। लेकिन ये बात तुमपे भी तो लागू होती है।”

” वो कैसे दीदी ??”  रूपाली हैरानी से बोली ।

” और नहीं तो क्या? ये तो सच है ना कि नन्नू ज्यादातर तेरी जेठानी के पास हीं रहता था। तू तो खुद भी कहती थी कि नन्नू बहुत शैतान हो गया है, मुझसे तो संभलता हीं नहीं ….लेकिन तेरी जेठानी ने आज तक कभी तुझसे शिकायत की?? नहीं ना । फिर एक बार यदि उनके बेटे ने कुछ शैतानी कर दी तो तुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ। बहन ताली हमेशा दोनों हाथों से बजती है।  उनकी एक बार कही बात तुझे इतनी बुरी लग गई कि तूने उनकी आज तक की सारी अच्छाई भुला दी।”

बहन की बात सुनकर रूपाली की नजरें झुक गईं । उसी वक्त रूपाली ने नन्नू को गोद में उठाया और सरिता के दरवाजे पर दस्तक दी।

” बोझिल मन से सरिता ने भी दरवाजा खोला। रूपाली को खड़ा देख मुंह फेरते हुए बोली ,” अब और कुछ कहना बाकी रह गया है क्या ?”

” हां दीदी , मुझे माफ कर दो ।” फफकते हुए रूपाली बोली ।

” चल बड़ी आई माफी मांगने वाली।  सुबह तो बड़े तैश में कहा था कि मुझे आपसे कोई मतलब नहीं ।”

” दीदी , मानती हूं मैंने कुछ ज्यादा ही कह दिया। लेकिन छोटों की थोड़ी बहुत गलती तो माफ हो हीं सकती है ना । वैसे भी एक दिन के झगडे में इतने सालों का प्यार तो नहीं मिट सकता ना।”

सरिता ने रूपाली को अपने गले लगा लिया और उसकी गोद से नन्नू को ले लिया। ” देख तो सुबह से बिचारा रोए जा रहा है ।”

थोड़ी देर बाद ही दोनों देवरानी जेठानी बैठ कर चाय पी रही थीं और दोनों बच्चे खेल रहे थे ।

सच में जिस तरह एक कड़वी बात सौ मीठी बातों पर भारी पड़ जाती है वैसे ही एक माफी सौ गलतियों पर भी भारी पड़ती है । बस एक पहल करने की आवश्यकता है ।

सविता गोयल  

 

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