मेरी जिन्दगी की डायरी का दर्दीला पन्ना – डा. मधु आंधीवाल

         

      एक ऐसा अपार दर्द मैं दिल में समेटे हुये हूँ । बहुत लम्बा समय गुजर गया मेरी पूरी जिम्मेदारी भी लगभग पूरी चुकी हैं पर जब तक हम जिन्दा रहते हैं मां बाप को भूलना बहुत मुश्किल होता है। बच्चों के सामने भी वह दर्द नहीं दिखाया जाता बस अकेले में आंसू बहा लेते हैं।

        1970  ता. 26 नवम्बर सुबह के 8 बजे पतिदेव कालिज जाने को तैयार वह डिग्री कालिज में लेक्चरार

 थे । मै उस समय एम.ए कर रही थी । जल्दी जल्दी काम करके कालिज जाने की तैयारी में थी उसी समय किसी ने दरवाजा खटकाया जाकर खोला तो मायेके से एक पड़ोस का लड़का था । मेरा मायका भी शहर में है। मैने पूछा तुम कैसे आये हो बोला दीदी घर चलो ताई यानि मेरी मां की तबियत बहुत खराब है। मै तुरन्त इनके साथ घर के लिये निकली वहाँ जाकर देखा सड़क से ही बहुत भीड़ थी । मुझे देख कर सबने रास्ता दिया पर कोई बोला नहीं । जब घर पहुँची तो मां बिलकुल मूर्ति की तरह बैठी थी । कुछ समझ में नहीं आया मै भी उस समय मात्र 19 साल की थी । इतनी देर में मेरा छोटा भाई आकर मेरे से लिपट गया मैने पूछा क्या हुआ है मुझे कोई तो बताओ तब किसी ने कहा की मेरे पिता का मर्डर हो गया है। हमारा बहुत बड़ा खादी का काम था । काम के सिलसिले में पास के कस्बे में जुलाहों की बस्ती थी वहाँ पर वह हफ्ते में एक बार जाते थे पेमेंट करने । सुबह गाड़ी से उतरते ही  जान पहचान के लड़के ने पैसो की वजह से मर्डर कर दिया । ये बहुत बड़ा आघात था ।  मात्र उनकी उम्र 56 साल थी और शरीर पर मैडीकल रिपोर्ट के अनुसार 56 घाव । पूरा परिवार सदमे में था । सब कुछ बिखर गया ।  एक दिन पहले ही तो मुझे रिक्शे में बैठाने आये थे । अपलक मेरे को देख रहे थे क्या वह मेरी उनसे आखिरी मुलाकात थी । आज भी मै उनका इस तरह देखना नहीं भूली । आज मां भी नहीं हैं पर मै सोचती हूँ उस औरत ने अपनी जिन्दगी कैसे काटी होगी पूरा व्यापार संभाला पूरी गृहस्थी संभाली । जब हम नहीं समझ पाते थे उनका दर्द अब जब मै भी उनकी उम्र में हूँ तो सोचती हूँ दोनों में से एक बिछुड़ता है तो कैसे कटता है जीवन ।

स्व रचित 

डा. मधु आंधीवाल

अलीगढ़

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