आशीर्वाद – देवेंद्र कुमार Moral Stories in Hindi

आधी रात बीत गई थी, पर वीरजी को नींद नहीं आ रही थी।अँधेरे कमरे में बैठे-बैठे तबीयत घबराई, तो वीर जी दरवाजा खोलकर बाहर निकल आया।
घर के आगे सड़क पर इधर-उधर चहलकदमी करने लगा। सब तरफ गहरा सन्नाटा था। दूर-दूर तक कोई नहीं था। कुछ देर वहाँ खड़ा रहने के बाद अंदर जाने को मुड़ा तो सामने से कोई आता दिखाई दिया। कोई साधु था। भजन गाता हुआ चला आ रहा था।
वीरजी ठिठक गया। उसने साधु को प्रणाम किया। साधु ने कहा, “क्या चिंता है जो नींद नहीं आई?”
वीरजी चौंक उठा। उसने कहा, “आपने कैसे जाना कि मेरे मन में चिंता है?”
साधु बोला, “भाई, आधी रात के बाद अगर कोई आदमी घर से बाहर टहलता नजर आए तो यही अनुमान होता है। अैर फिर मैं तो रोज इसी समय यहाँ से गुजरता हूँ। आज से पहले तुम्हें कभी नहीं देखा, इसीलिए ऐसा कहा।”
तब तक दूसरी दिशा से एक और आदमी आकर वहाँ रुका। उसने भी साधु को प्रणाम किया। वीर जी ने कहा, “महाराज, आपने ठीक समझा, मेरा इकलौता बेटा परदेस में है। बहुत दिनों से कोई सन्देश नहीं आया है। इसी सोच-विचार में नींद नहीं आई।”
साधु ने कहा, “भैया, चिंता करने से कुछ नहीं होगा। ईश्वर का नाम लिया करो।”
“महाराज, चिंता की नहीं जाती, अपने आप मन में बैठ जाती है।” वीर जी ने कहा, फिर दूसरे आदमी की ओर देखकर बोला, “यह कौन है?”
“यह है जीवन मल्लाह। इसी की नाव पर सवार होकर इस समय नदी पार वाले मंदिर में जाता हूँ।” कहकर साधु मल्लाह के साथ चला गया। सोच में डूबा वीरजी भी घर में चला आया।
1
अगली रात आधी बीत चुकी थी, तभी दरवाजे पर खटखटाहट सुनकर वीर जी की आँख खुल गई। वह हड़बड़ाकर उठा। खिड़की में से देखा पिछली रात वाला साधु बाहर खड़ा है। उसने दरवाजा खोलकर प्रणाम किया।
साधु ने पूछा, “परदेस से बेटा आ गया?”
“नहीं, अभी तक तो नहीं आया।”
साधु बोला, “आज इस समय तुम्हें घर से बाहर नहीं देखा तो यही समझा, शायद तुम्हारा बेटा परदेस से आ गया है, इसीलिए निश्चिंत होकर सो रहे हो।”
वीर जी ने कहा, “अभी कहाँ आया महात्मा जी, लेकिन सोते समय आपकी बात सोच रहा था कि चिंता करने से क्या होगा? फिर पता नहीं कब नींद आ गई।”
साधु मुसकराया, “ठीक किया। ईश्वर पर भरोसा रखो।” तब तक मल्लाह भी वहाँ आकर खड़ा हो गया। वे दोनों एक साथ नदी की ओर बढ़ गए। वीर जी ने दरवाजा बंद कर लिया।
तीसरी रात साधु वीर जी के घर के पास पहुँचा तो उसने देखा वीरजी बाहर ही खड़ा है। वीरजी ने तुरंत साधु के चरण छुए फिर घर की तरफ घूमकर आवाज दी। एक युवक बाहर निकला। उसने भी झुककर साधु के चरण छू लिए।
साधु बोला, “तो आ गया तुम्हारा बेटा।” तभी जीवन मल्लाह भी वहां आ पहुंचा|
“जी महाराज!” वीरजी ने हाथ जोड़कर प्रसन्न स्वर में कहा।
साधु बोला, “जानते हो, तुम्हारा बेटा आज जीवन की नाव से आया है।”
जीवन ने कहा, “हाँ, इन बाबू को मैं अपनी नाव से इस पार लाया था।” वीरजी के लड़के ने भी जीवन को पहचान लिया।
वीरजी ने जीवन से कहा, “वाह भाई, खूब मिले! तुमने तो इनाम पाने का काम किया है। मेरे बिछड़े बेटे को मिला दिया।” फिर घर में जाकर तुरंत बाहर आया, मल्लाह को कुछ नोट देकर कहा, “रख लो यह इनाम है तुम्हारा।” जीवन मना करते हुए बोला, “ कैसा इनाम दे रहे हैं। उतराई तो मैंने बाबू साहब से ले ही ली थी।”
साधु बोला, “जब खुशी से दे रहे हैं तो ले लो।”
2
मल्लाह ने रुपए लेकर वीर जी को नमस्कार किया, साधु के चरण छुए और जिधर से आया था, उधर ही लौट गया।
वीरजी ने कहा, “आज मल्लाह वापस क्यों चला गया? क्या आपको नदी पार नहीं ले जाएगा।”
साधु .ने कहा, “आज कुछ छोटे-छोटे अच्छे काम हुए हैं। तुम्हारे बेटे को आना था, वह इस मल्लाह की नाव में आया। तुम खुश हो गए | मल्लाह का बेटा बीमार है। उसके पास इलाज के लिए पैसे नहीं थे। तुमने उसे रुपए दिए तो उसका काम आसान हो गया। उस बेचारे को कौन रुपए देता।”
“महाराज, आपने भी बहुत किया है।” वीरजी ने श्रद्धापूर्वक कहा।
“मैंने तो बस ईश्वर से प्रार्थना की थी आप सबके लिए।” कहकर साधु हँस दिया और अपनी राह चला गया।
उसके बाद वीरजी ने कई बार आधी रात के बाद साधु की प्रतीक्षा की। जीवन जरूर आता था, पर साधु नहीं दिखाई दिया। एक दिन वीरजी ने उससे पूछा तो जीवन ने कहा-“उस दिन के बाद से साधु बाबा न जाने कहाँ चले गए हैं। हाँ, आपके दिए रुपयों से मैंने बेटे का इलाज करवाया है। अब वह पहले से ठीक है।उस दिन मेरे पास पैसे नहीं थे.
मैं इसी चिंता में था कि बेटे का इलाज कैसे होगा। आपकी मदद ने मेरी चिंता दूर कर दी थी|”
वीरजी ने जीवन के कंधे पर हाथ रख दिया। बोला, “साधु बाबा की कृपा से हम दोनों मिल गए हैं। तुम्हें कभी भी किसी चीज की जरूरत हो तो तुरंत मेरे पास चले आना। मुझे अपना दोस्त समझना।और हाँ यह तो कहो साधु बाबा तुम्हें कैसे मिले?’’
जीवन ने कहा-‘’कुछ दिन पहले मैं रात को घर के बाहर खड़ा था, बच्चे की बीमारी से मन में चिंता थी. तभी यह साधु बाबा आये और मुझसे नदी पार चलने को कहा ,फिर बोले –‘मेरे पास उतराई के लिए पैसे नहीं हैं पर देने के लिये आशीर्वाद है। ” मैं इन्हें नदी पार ले गया| इन्होने मुझे रोज यहीं आपके घर के पास मिलने के लिए कहा।तब से मैं यहीं आ जाता हूँ,.”
वीर जी ने देखा, उसके होंठ फड़क रहे हैं और आँखों में हल्का-सा गीलापन तैर रहा है। वीर जी को भी अपनी आँखों में कुछ-कुछ वैसा ही लगा। जीवन इसके बाद नदी की तरफ चला गया। वीरजी घर में आ गया।
मन में सिर्फ एक ही बात थी, आखिर साधु बाबा कहाँ चले गए? क्या फिर कभी उनके दर्शन होंगे !
 (समाप्त )

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