आजादी का अर्थ – विनोद प्रसाद ‘विप्र’

डिप्टी कलेक्टर के रूप में आज अनुपमा अपने कार्यालय में ध्वजारोहण करने वाली थी। राष्ट्रीय ध्वज फहराने के बाद भाषण में वह क्या कहेगी, यही सोचते-सोचते वह अतीत में चली गई।

काॅलेज की पढ़ाई पूरी हो जाने के बाद वह विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी में जुट गई। अपने महत्त्वाकांक्षी सपनों को पूरा करने के लिए वह जी-जान से प्रयास करने  लगी। पर होनी को कुछ और ही मंजूर था।

परिस्थितियां ऐसी बनी की आनन-फानन में उसे शादी करनी पड़ गई। पति मध्यमवर्गीय सरकारी कर्मचारी थे। ससुराल पहुंच कर वह पारिवारिक समस्याओं में इस कदर उलझ गई कि उसके सारे सपने चूर-चूर हो गए। फिर बच्चे हो गए और वह पूरी तरह सास-ससुर, पति और बच्चों में खो गई। पति की आश्रिता बनकर वह जीवन गुजारने लगी। बेटा पाचवीं और बेटी दूसरी कक्षा में थे।

उनके स्कूल में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अभिभावकों को भी आमंत्रित किया गया था। अनुपमा भी शामिल हुई। ध्वजारोहण के बाद मुख्य अतिथि ने विस्तारपूर्वक आजादी का अर्थ समझाया। उन्होंने कहा कि हमारे वीर स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी कुर्बानी सिर्फ इसलिए नहीं दी कि हम हाथ पर हाथ धरकर आजादी का जश्न मनाते रहें।


हमें आजादी की रक्षा के साथ देश की प्रगति के लिए भी काम करना होगा। दूसरों पर आश्रित रहना भी गुलामी ही है। हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर होकर इस गुलामी को समाप्त करना होगा। अपने सपनों को साकार करना होगा।

बच्चों को लेकर स्कूल से लौटने के बाद अनुपमा के मन में मुख्य अतिथि की बात बार-बार गूँज रही थी- “दूसरों पर आश्रित रहना भी गुलामी ही है” और फिर उसने भी आत्मनिर्भर होने का संकल्प ले लिया। पति को किसी तरह मनाकर उसने अपने सपनों को ऊँची उड़ान देने का मन बना लिया। उसने बक्से में बंद अपनी सारी डिग्रियों को बाहर निकाला।

किताबों का इंतजाम किया और फिर से अपने सपनों को पंख देने में जुट गई। उसका प्रयास सफल रहा और राज्य लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास करने के बाद उसका चयन डिप्टी कलेक्टर पद पर हो गया।

“मैम, सारी तैयारी हो गई है और ध्वजारोहण का समय भी होने वाला है। कृपया समारोह स्थल पर चलें।” निजी सहायक की इन बातों से उसकी तन्द्रा भंग हुई। अतीत से लौटकर वह वर्तमान में आ गई और आजादी का महोत्सव मनाने समारोह स्थल की ओर चल पड़ी।

-विनोद प्रसाद ‘विप्र’

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