आज रिश्तों से ज्यादा पैसों की अहमियत है गई है – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

पापा आप जल्दी स्वस्थ हो जाइये और अपना ध्यान रखिये,ये मैसेज और एक लाख रूपए का चेक देखकर सत्यप्रकाश जी के गालों पर आंसू की बूंदें लुढ़क गई। उठने बैठने में भी असमर्थ हो चुके सत्यप्रकाश जी सोचने लगें ये कैसी बेबसी है ये क्या जिंदगी है। सत्यप्रकाश जी पिछले आठ महीने से ब्लड कैंसर से पीड़ित थे । उन्हें अच्छे इलाज और देखभाल की जरूरत थी। लेकिन उनके पास न इस समय बहुत पैसे थे और न ही कोई देखभाल करने वाला ।

लेटे लेटे वे अपने भूतकाल में खो गए । क्या कुछ नहीं किया उन्होंने अपने बेटे (मोनू) मयंक के लिए सत्यप्रकाश जी का बेटा।जब मोनू आठ साल का था तो पत्नी गंगा की कैंसर से मृत्यु हो गई थी ।कितनी कोशिश की थी पत्नी को बचाने की लेकिन स्कूल की छोटी सी नौकरी में वे ज्यादा पैसे नहीं खर्च कर पाए गंगा के इलाज में ।और फिर पहले कैंसर का इलाज इतना अच्छा होता नहीं था । कैंसर का नाम सुनते ही इंसान वैसे ही मर सा जाता है।अब आठ साल के मयंक को गोद में उठाकर उसके ही भविष्य के सपने देखने लगे थे सत्यप्रकाश जी ने।

सत्यप्रकाश की मां थी बूढ़ी , मां और सत्यप्रकाश जी दोनों मिलकर बेटे की देखरेख करते थे ।अपनी स्कूल की नौकरी से समय निकाल कर कुछ ट्यूशन भी किया करते थे । जिससे मोनू का भविष्य बेहतर हो सके । पत्नी की मौत के बाद सत्यप्रकाश जी चाहते थे कि बेटा डाक्टर बने जिससे वो ऐसे गरीब और मज़लूम लोगों की मदद कर सके जो पैसे के अभाव में इलाज नहीं करा पाते और असमय ही मौत के मुंह में समा जाते हैं।

      ‌।          दिनभर की मेहनत के बाद जब घर आते तो मां और बेटा दोनों दरवाजे पर टकटकी लगाए मिलते थे । तमाम शिकायतों के बाद मां और बेटे दोनों का पिटारा खुल जाता था। पापा आप कहां थे इतनी देर मुझे घुमाने ले चलो मुझे ये खाना है वो खाना है बस लिपट जाता पापा से मयंक । सत्यप्रकाश दिनभर की थकान के बावजूद भी मयंक को कुछ नहीं बोलते बस ऐसे ही सहला फुसला देते । दिनभर के काम के बाद सत्यप्रकाश को खा पीकर आराम करने का मन करता ।

दो कुँवारे हुए एक – संगीता अग्रवाल

लेकिन क्या करें मोनू की भी तो कोई ग़लती  न थी वो किससे कहें मन की बात।और मां  ,मां तो बस एक ही रट लगाती रहती बेटा तू शादी कर ले मोनू के लिए मां ले आ , अभी तेरी उम्र ही क्या है ।और अपने बुढ़ापे का सहारा भी ले आ अकेले कैसे काटेगा ये जीवन।जब मोनू बड़ा हो जाएगा और उसकी भी नई दुनिया बस जाएगी तो बेटा तू बहुत अकेला महसूस करेगा ।अब मुझसे नहीं होता बेटा तेरी घर गृहस्थी और बेटे की देखभाल। लेकिन सत्यप्रकाश मोनू को गोद में बिठा कर बेटे को लाड करते हुए कहते कि मां क्या गारंटी है

कि दूसरी बीबी आकर मेरी देखभाल करेगी । क्या पता वो मोनू को सच्चा प्यार देगी या नहीं । क्यों पीछे पड़ी हो शादी शादी के । अभी तो तुम बहुत जिंदा रहोगी मोनू की शादी नहीं करोगी क्या । देखना मोनू की बहू आएगी तो तेरी खूब सेवा करेगी । चिंता न कर परेशान न हों मैं ठीक हू । इसी तरह रोज चलता रहता था और रोज ही सत्यप्रकाश मां को तसल्ली देते रहते थे ।

         ऐसे ही मां से नोंक-झोंक और मोनू को लाड दुलार दिखाते मोनू बड़ा हो गया । सत्यप्रकाश जी ने मोनू की परवरिश और पढ़ाई लिखाई में कोई कसर न छोड़ी।मोनू भी पढ़ाई-लिखाई में होशियार था खूब मन लगाकर पढ़ता था । सत्यप्रकाश उसे डाक्टर बनाना चाहते थे और खुद मोनू भी यही चाहता था और उसकी इच्छा थी कि हाई स्टडीज के लिए वो विदेश जाए। सत्यप्रकाश जी उसका ये सपना पूरा करने की पूरी कोशिश कर रहे थे।अब वह समय भी आ गया जब मोनू को विदेश भेजना था पढ़ने के लिए ।

कितना कुछ करना पड़ा था सत्यप्रकाश जी को पैसे के इंतजाम के लिए । जीवन भर की जमा पूंजी फंड का पैसा भी निकाल लिया ,लोन लिया कुछ लोगों से लेकर किसी तरह मोनू को भेजा और सख्त हिदायत भी दी कि बेटा बस तुम्हें पढ़ना है और कुछ नहीं बहुत मुश्किल से मैं पैसे का इंतजाम कर पाया हूं । बेटा तुम्हारा सपना पूरा करने को ।और तुम्हें डाक्टर बन कर देखने का जज्बा दिल में पाले हुए तुम्हें भेज रहा हूं ।

जाओ डाक्टर बनकर आना तो मेरा सीना गर्व से ऊंचा हो जाएगा ।और बुढ़ापे का मेरा सहारा बनना बेटा तुम्हीं तो हो और कौन है मेरा । पापा आप चिंता न करो मैं खुब मन लगाकर पढ़ाई करूंगा शिकायत का मौका नहीं दूंगा ।और देखना एक दिन डाक्टर बनकर दिखाऊंगा।।और मोनू चला गया ।

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              सारा पैसा लगाकर मोनू को विदेश भेज दिया सत्यप्रकाश ने ,ये भी न सोचा कि कुछ पैसा अपने लिए भी बचा ले । आखिर रिटायर मेंट के बाद अपने लिए भी तो कुछ पैसा चाहिए ।अपनी देखभाल , बीमारी हारी में भी तो पैसे की जरूरत पड़ सकती है। परन्तु यह भी सत्य है कि कोई भी मां बाप अपनी औलाद के बारे में यह नहीं जानते कि बुढ़ापे में वह उनके साथ कैसा व्यवहार करेगा।या जिस बच्चे के लिए वो अपनी जिंदगी की सब जमा पूंजी लगा देते हैं वो बुढ़ापे में उनका साथ देगा कि नहीं ये कोई नहीं जानता। सत्यप्रकाश जी मोनू को अमेरिका भेजकर बहुत खुश थे कि बेटा डाक्टर बनने जा रहा है।

                अब पढ़ाई पूरी हो गई मोनू कि । इतने साल वहां रहने पर वहां की आबो हवा रास आ गई अब वापस कौन आता है । वहीं अस्पताल में प्रैक्टिस शुरू कर दी और अपने काम में धीरे धीरे इतना व्यस्त हो गया कि याद ही न रहा कि वहां भारत में कोई हमारे डाक्टर बनकर आने का इंतजार कर रहा है । पहले जब तक पैसों की जरूरत थी पापा के पास फोन आता था उसके बाद धीरे-धीरे सिलसिला कम होता गया ।

और अब तो नौकरी कर ली तो व्यस्तता का बहाना हो गया । बहुत कम बात होती पापा से ।और मोनू ने वहां एक और नई दुनिया बसा ली । अक्सर ऐसा ही होता है हम बच्चों को बाहर भेज देते हैं पढ़ने को और सोचते हैं कि बच्चा पढ़-लिख कर भारत आ जाएगा लेकिन ऐसा होता कम ही है। वहां पढ़ने के बाद वही नौकरी करने का मन बना लेते हैं।और वही शादी व्याह भी कर लेते हैं और फिर वही के होकर रह जाते हैं ।

                    मोनू ने भी अपने साथ काम करने वाली मेधा से शादी कर ली और पापा को फोन करके बता दिया ।अब भारत वापस आने का विचार ही छोड़ दिया मोनू ने। धीरे धीरे मोनू यह भूलता जा रहा था कि वहां घर पर पापा अकेले हैं उनको हमारे साथ की देखभाल की जरूरत है । यहां सत्यप्रकाश जी इंतजार ही कर रहे हैं कि बेटा पढ़-लिख कर वापस आएगा फिर मैं उसके साथ रहूंगा । आखिर ले देके एक मोनू ही तो सहारा है उनका ।

मां तो कब का छोड़कर जा चुकी है । सत्यप्रकाश जी को पहला धक्का तो तब लगा जब मोनू ने विवाह की खबर दी । कितने सपने संजोए थे बेटे के व्याह की।।वो सब चकनाचूर हो गए ।अपनी छोटी सी नौकरी में मोनू के पढ़ाई के समय कुछ कर्ज ले रखा था अपनी छोटी सी पेंशन से थोड़ा थोड़ा चुका रहे थे और जो कुछ भी थोड़ा बहुत बच जाता तो उससे अपना खर्च चलाते । बेटा पैसा देना भी भूल गया कि पापा ने दूसरों से उधार भी लिए हैं ।

         लेकिन समय ने आज ऐसा पलटा मारा कि सबकुछ धाराशाई हो गया। कुछ समय से बुखार आ रहा था सत्यप्रकाश जी को ।और धीरे धीरे अस्वस्थता बढ़ती जा रही थी । कमजोरी ने जकड़ लिया था ।चलना फिरना मुश्किल हो रहा था ।उनको अच्छे इलाज की जरूरत थी।आज ब्लड रिपोर्ट हाथ में लेकर वो धम्म से कुर्सी पर गिर पड़े क्योंकि ब्लड रिपोर्ट में ब्लड कैंसर की पुष्टि हुई थी। इसी कैंसर की वजह से वो बहुत साल पहले पत्नी को खो चुके थे और आज उसी बीमारी की चपेट में वो खुद भी थे।बेटे को खबर करी सोचा था खबर पाकर बेटा दौड़ा दौड़ा चला आएगा बेटा पर ऐसा कुछ नहीं हुआं ।

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कुछ पैसों के साथ एक नोट लिख कर बेटे ने भेज दिया । पापा इस समय व्यस्तता बहुत है मैं नहीं आ सकता पैसे भेज रहा हूं इलाज करा लीजिए और अपना ध्यान रखिये आप जल्दी स्वस्थ हैं जाएंगे। सत्यप्रकाश जी के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई । पैसा आज रिश्तों पर भारी पड़ रहा था । सत्यप्रकाश जी सोच रहे थे जिसको अपने बुढ़ापे की लाठी माना था ।अपना सबकुछ लगा दिया बेटे को अमेरिका भेजने में वही बेटा आज कुछ पैसे भेजकर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो गया।

आज के समय की यही हकीकत है । ऐसा एक सत्यप्रकाश जी के साथ ही नहीं हो रहा है आज समय ऐसा आ गया है कि आप बच्चों के लिए कुछ भी कर दीजिए पर वो आपका सहारा बनेंगे ये मत सोचिए ‌‌‌‌‌ऐसा उम्मीद  न कीजिए उम्मीद जब टूटती है तो गहरा आघात देती है।

इसी वजह से आज जगह जगह वृद्धाश्रम खुल रहे हैं बुजुर्ग माता-पिता बच्चों के उपेक्षा का शिकार हो रहे हैं । वहीं सत्यप्रकाश जी के साथ भी हुआं। दर्द की इंतहा से गुजरते हुए आंखें बंद करके सत्यप्रकाश जी बिस्तर पर लेट गए ।और दिल का दर्द आंसू बनकर आंखों के कोरों से बह निकलें।और आंखों से बहता हुआ दरिया कब सूख गया पता न चला और सत्यप्रकाश जी चार निद्रा में सो गए ।

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

5 जून

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