गाँव की गलियों में आज फिर काकी की आवाज़ गूंज रही थी
“हाय राम, मेरी तो तक़दीर ही फूट गई जो ऐसी बहू आई!”
काकी यानी कमला देवी, पक्की देसी, झक्क सफ़ेद धोती और मिर्ची जैसी ज़ुबान वाली। बेटा है राजू, शहर से पढ़-लिखकर लौटा और अपने मन से बहू ले आया सुषमा! पर दिक्कत ये है कि सुषमा बहू कम और CID ज़्यादा लगती है।
काकी की शिकायतें अब डेली एपिसोड बन गई थीं
“ये बहू तो रसोई में कैमरा लगाना चाहती है, कहती है सबको accountability में रहना चाहिए!”
“कल तो कहने लगी, सास को emotional blackmail छोड़ना चाहिए ये new generation है!”
गाँव की औरतें अब मज़े ले रही थीं,
“कमला दीदी, वो बहू नहीं है, अग्निपथ की हिरोइन है!”
कमला गुस्से में बड़बड़ाती, “रामजी की कसम, ऐसी बहू तो दुश्मन को भी ना मिले!”
पर बात सिर्फ़ इतने पर नहीं रुकी। एक रात काकी की तिज़ोरी गायब हो गई। सारा गाँव इकट्ठा हुआ।
कमला चिल्लाईं, “देखा! ये लड़की दिन-भर फ़ोन में घुसी रहती है, ज़रूर उसी ने किया होगा!”
सुषमा शांति से उठी और बोली, “सासु माँ, CCTV फ़ुटेज देख लीजिए।”
सब हक्के-बक्के।
वो अपने साथ एक छोटा कैमरा लेकर आई थी, जिसे उसने बाहर दरवाज़े के ऊपर लगाया था। फ़ुटेज में साफ़ दिखा — पड़ोस का लाला हरिया चुपचाप तिज़ोरी निकाल रहा है!
गाँव में तहलका मच गया। काकी की बोलती बंद। पुलिस आई, हरिया पकड़ाया, और सबसे पहले काकी ही बोलीं
“अरे बहू ने तो जान बचा ली! हमारी बहू तो नागिन नहीं, शेरनी है!”
अगले दिन काकी सबको मिठाई बाँटती रहीं,
“हाय राम, मेरी तो किस्मत जाग गई जो ऐसी बहू आई!”
कहानी का सार:
जो बहू पहले “तक़दीर की गलती” लगी, वही बन गई “घर की रखवाली।” ज़माना बदल रहा है बहुएँ अब सिर झुका कर नहीं, सीना तान कर चलती हैं।
मोरल:
पहली छवि ही आख़िरी सच नहीं होती। कभी-कभी नयी सोच, पुरानी परंपराओं को बेहतर बना देती है।
Regards,
Rajni Kapoor