।। शुभ विवाह ।। – प्रतिक्षा हरिपूरकर : Moral Stories in Hindi

मैडमजी, आज ये फ़ाइलें पूरी करनी हैं, हाथ चलाइए फटाफट, ऐसा कहकर महेश ने मज़ाक किया तो रूपा हँसी, और काम में लग गई। रूपा और महेश एक ही कॉलेज में पढ़े थे, लेकिन उनकी गहरी पहचान उनकी मल्टीनेशनल कंपनी के इंटरव्यू के दौरान हुई थी। महेश सीधा-सादा, मेहनती और बहुत प्यारा लड़का था।

किसी भी बुरी राह पर आँखें न घुमाने वाला महेश मध्यम कद का साँवला, हसमुख और चश्मीश था। उसकी सादी और अच्छी वेशभूषा और आदरयुक्त व्यवहार उसे लड़कियों के बीच काफी प्रसिद्ध और लोकप्रिय बनाता था। इसके विपरीत रूपा गेहुएँ रंग की गोरी, होशियार, महेश की ऊँचाई के बराबर और स्वभाव से जैसी को तैसी, किसी का भी शब्द उधार न रखने वाली और थोड़ी अस्त-व्यस्त थी।

झूठ और गलत व्यवहार करने वाले को सबक सिखा कर ही आगे बढ़ने वाली रूपा अच्छे के साथ अच्छा ही व्यवहार करेगी, इस विचार की थी। अब ऐसे विरोधाभास वाले इन दोनों को एक-दूसरे के स्वभाव से प्यार कैसे ना होता?

भगवान की करनी ही ऐसी थी, इसलिए ५ साल साथ बिताते हुए रूपा महेश के प्यार में पड़ गई, और शायद महेश भी उसके प्यार में था, लेकिन कभी, कभी भी उसने उसे इसका आभास नहीं होने दिया। प्यार या शादी के बारे में पूछना तो बहुत दूर की बात थी…

रूपा मस्तमौला और बेपरवाह थी, इसलिए वह सभी को पसंद आती थी, लेकिन महेश कुछ खास था। वह हर परिस्थिति में, किसी भी स्थिति में उसकी मदद और समर्थन करता था। घर में माँ-बाप से बहुत प्यार करने वाली रूपा के जीवन में महेश का कुछ अलग ही स्थान था। उसे उसका बहुत सहारा महसूस होता था, और उसे भी वह हमेशा अपने आसपास चाहिए होती थी।

बे औलाद होने का दंश…. – विनोद सिन्हा “सुदामा”

कामकाज के स्थान पर ५ साल बिताने के बाद, अपनी-अपनी खास योग्यताओं के दम पर महेश को अच्छी पोस्ट, केबिन और बड़ा ५ अंकों का वेतन मिलने लगा, उसके बाद कभी-कभी गलतियाँ करती हुई,

लेकिन फिर भी स्मार्टनेस दिखाते हुए रूपा को महेश की जूनियर पोस्ट मिली। करियर सेट हो गया, और महेश को अपने ८ साल के भाई और पिता की चिंता मिट गई। इधर रूपा के घर शादी की बात शुरू हो गई, इस पर रूपा खुश होने की बजाय दुखी हो गई, क्योंकि वह महेश के प्यार और शादी के प्रस्ताव का इंतजार कर रही थी…

इधर महेश के मन में प्यार का फूल खिलने के बावजूद वह जानबूझकर उसकी सुगंध से बच रहा था… इसका कारण था उसका ८ साल का भाई… उसने लगभग शादी न करने का ही फैसला कर लिया था,

लेकिन दूसरी तरफ रूपा के लिए उसके मन में जो प्यार था, वह उसे परेशान करता था। उसे अपनी फैमिली की हिस्ट्री और होने वाली पत्नी, भाई का ठीक से ख्याल रखेगी या नहीं, इसकी चिंता सताती थी, और इसीलिए वह शादी के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं था और रूपा से प्यार होते हुए भी उसने उसे कभी इस बारे में नहीं बताया।

एक हफ्ते बाद रूपा ऑफिस में नए ड्रेस और अच्छे ट्रेडिशनल लुक में तैयार होकर आई। प्रसंग कुछ खुशी का लग रहा था, फिर भी उसके चेहरे पर उदासी थी। सभी को मिठाई देकर वह महेश के केबिन के पास आई तो महेश बाहर आकर हँसा। “क्या रूपा, कैसी मिठाई?” पूछने पर उसने जरा तीखे स्वर में जवाब दिया… “मेरी शादी तय होने की मिठाई… लीजिए…

” कहकर बॉक्स थोड़ा पटककर सामने रखा और वहाँ से चली गई। महेश अंदर से रोने लगा, टूट गया… जिस लड़की से उसे सच्चा प्यार था, उससे दूर रहकर वह भी जी नहीं सकता था… दिन भर धीरे-धीरे काम करके आखिर में मन न लगने पर उसने लैपटॉप बंद किया और घर चला गया।

” भगवान का संतुलन ” – गोमती सिंह

घर पर उसके पिता और भाई चिराग दोनों रोज की तरह इंतजार कर रहे थे… शांति से खाना खाकर तीनों सोने चले गए, लेकिन महेश को नींद नहीं आई… २-३ हफ्ते ऐसे ही बीत गए, और एक दिन देर रात नींद आने पर उसके पिता ने उसे देखा, माथे पर हाथ फेरकर मुस्कुराए और कुछ मन में तय करके सो गए।

रूपा के घर शादी की जोरदार तैयारी चल रही थी, लेकिन रूपा उसमें उतनी शामिल नहीं हो रही थी, जितनी होनी चाहिए थी। साड़ियाँ, गहने, मंडप, खाना, रिश्तेदारों की सूची, पत्रिका, सबकी तैयारी हो गई…

लेकिन रूपा अभी भी महेश का इंतजार कर रही थी। शादी की तारीख अगले महीने की ही थी और एक दिन पहले हल्दी, फिर सगाई, शादी, रिसेप्शन, यह सब एक साथ अगले दिन का कार्यक्रम तय था। रिश्तेदार जमा होने लगे थे, पानी की तरह खर्च हो रहा था, सभी खुश थे, दूल्हा अच्छा था, सभी को पसंद था… सिर्फ रूपा को छोड़कर…

रूपा ने ऑफिस में इस्तीफे की कॉपी दी और सभी को पत्रिकाएँ दीं। सभी ने बधाई दी और शादी में आने का आश्वासन दिया। जब सभी उससे मज़ाक कर रहे थे, तो उसका ध्यान महेश के केबिन की ओर था, तभी किसी ने पूछा, “अरे, सर को पत्रिका दी ही नहीं तुमने, जाओ, देकर आओ…” यह कहते ही रूपा केबिन की ओर गई,

लेकिन दरवाजा खोलते ही अंदर जाऊँ या नहीं, सोचकर वापस मुड़ गई… दिन भर केबिन से बाहर न निकला महेश शाम को रूपा के जाने के समय बाहर आया तो रूपा वहाँ नहीं थी। उसने शादी की पार्टी देकर जल्दी छुट्टी ले ली थी और जाते समय पत्रिका और पत्रिका के अंदर एक चिट्ठी छोड़ गई थी…

“प्रिय महेश,

आज मैं तुम्हें सर नहीं कहूँगी… क्योंकि आज मैं तुम्हें अपने जीवन का, अपने दिल का टुकड़ा समझकर बोल रही हूँ। ज्यादा कुछ कहना नहीं है, बस मन में दबी भावनाओं को शब्दों में ढाल रही हूँ।

शादी का सपना तो मैंने तुम्हारे साथ देखा था, लेकिन तुम ही उससे दूर भाग रहे हो, खैर… मैं ज़बरदस्ती नहीं करूँगी, लेकिन मुझे तुमसे बहुत, बहुत प्यार था और है… शादी में आओ या न आओ, क्योंकि एक चुटकी सिंदूर की कीमत तुम क्या जानो महेश बाबू…”

औलाद – कमलेश राणा

लगभग रोते हुए ही महेश घर गया और खाना खाकर पत्र फिर से पढ़ते समय बाबा वहाँ आए। उन्हें देखकर पत्र छिपाने की कोशिश कर रहे महेश को बाबा ने हाथ से ‘रहने दो’ कहकर शांत किया।

बाबा बोले… “महेश, मैं तुमसे कुछ कहने वाला हूँ, बहुत कम, लेकिन बहुत महत्वपूर्ण बात जो मैं आज तुम्हें बता रहा हूँ, उसका तुम्हारे ऊपर कैसा परिणाम होता है, यह तुम्हें खुद तय करना है। केसर, तुम्हारी पहली माँ, जिसने तुम्हें जन्म दिया, मेरे कर्मों से मैंने उसे खो दिया… मैं १८ साल का और वह १७, गलती होने के बाद उसने तुम्हें मेरे हाथों की पालने में छोड़कर खुद कुछ बुरा-भला कर लिया…

तुम्हारे दादा-दादी बहुत समझदार और प्यारे थे, इसलिए उन्होंने मुझे दोष न देकर तुम्हें प्यार से गले लगाया… आगे चिराग की माँ से मेरी शादी हुई, उसने भी बहुत बड़े मन से मुझे और तुम्हें स्वीकार किया… जीवन में कोई कमी नहीं थी, लेकिन मन में तुम्हारी माँ को खोने का जो दर्द था, वह कभी भी और कोई भी नहीं भर सका…

उसके घर जाकर उसे अपना बनाने का मौका हाथ में होते हुए भी मैंने पैर आगे नहीं बढ़ाया और आज मुझे उसका बहुत पछतावा है रे… मैंने अपना पहला प्यार खो दिया… गलती हुई हाथ से, लेकिन वह गलती सुधारनी चाहिए थी … इसीलिए मैं तुम्हें हमेशा ‘यू आर माई फेवरेट मिस्टेक’ कहता रहता हूँ… जवानी में की गई गलती अब इस उम्र में मुझे बहुत परेशान करती है,

मौका होते हुए भी मैंने अपना प्यार नहीं पाया, तुम्हारे पास मौका है, अब इस पर तुम क्या कदम उठाते हो, यह तुम्हारे हाथ में है… गुड नाइट” कहकर बाबा ने आँखें पोंछते हुए महेश के कमरे की लाइट बंद कर दी।

रूपा के मन को चैन नहीं था… हल्दी लगवाते हुए सभी से झूठी हँसी हंसकर वह थक चुकी थी। इस क्षण भी वह महेश का इंतजार कर रही थी। अगले दिन शाम ६ बजे का मुहूर्त था और रूपा दुल्हन बनकर बैठी थी, तभी उसके बाबा वहाँ आए… उसके सिर पर हाथ फेरकर उससे पूछा, “बच्ची… खुश है न तू…” इस पर रूपा ने हाँ में सिर हिलाया और नीचे देखकर आँसू बहाने लगी…

“ससुराल जाते समय सभी लड़कियाँ रोती हैं न,” इस विचार से बाबा ने उसे प्यार से गले लगाया और, “रो मत, नहीं तो मेकअप खराब हो जाएगा,” कहकर मज़ाक करके चले गए… उन्हें कहाँ पता था कि रूपा की आँखों से गिरे हर आँसू पर महेश का नाम था…

जीवनसंगिनी – गीता वाधवानी 

बाहर मंडप और उसमें बैठा दूल्हा सभी इंतजार कर रहे थे, सुंदर हरे किनारे वाली लाल साड़ी पहने, सोलह शृंगार किये हुये , हाथों में चूड़ा और गजरे, गहनों से सजी हुई रूपा, नाम के अनुरूप ही रूपा शोभायमान दिख रही थी। “दुल्हन को बुलाओsss” कहते हुए सभी उसे बाहर लाए, स्टेज की सीढ़ी चढ़ने ही वाली थी कि मूर्ति की तरह रूपा धड़ाम से नीचे गिर पड़ी, और सभी उसकी ओर दौड़े…

रूपा ने आँखें खोली तो वह शहर के बड़े अस्पताल में अतिदक्षता इकाई में थी। आँखों के नीचे काले घेरे लिए निस्तेज चेहरे से उसने ऊपर देखा। दुल्हन का साज उतर चुका था, लेकिन हाथ की मेहंदी अभी भी वैसी ही थी… सात दिन बाद कोमा से बाहर आने पर रूपा की माँ तो फूट-फूटकर रो रही थी, सभी जमा हुए, लेकिन रूपा की नज़र महेश को ढूंढ रही थी…

सभी से मिलकर बात करने के बाद रूपा को आराम करने को कहा गया तो उसकी नज़र कोने में रखी बेंच पर गई… “वह महेश है क्या???” “कैसे हो सकता है, उसने तो इतने दिनों में खबर भी नहीं ली,” ऐसा सोचते ही वह पास आकर बोला… “हाँ मैं ही… महेश ही…” ऐसा कहते ही रूपा रोने लगी… “कहाँ थे इतने दिन… क्यों ऐसा किया… क्यों सताया मुझे, क्या मिला तुम्हें ऐसा करके…” तभी उसने शांति से उसके माथे पर होंठ रखे और वह शांत हो गई…

उसके होने वाले पति को अंदर भेजा तो उसने बताया कि, “यह पागल, तुमसे दिल से प्यार करने वाला महेश तुम्हें लेने के लिए वहाँ आ ही रहा था, लेकिन ट्रैफिक जाम के कारण उसे थोड़ी देर हो गई और उससे पहले ही तुम मंडप में गिर गईं… पगली, थोड़ी देर धीरज रखती तो तुम्हें इतनी तकलीफ भी नहीं होती… पूरे सात दिन कोमा में थी और महेश ने यहाँ से अपनी जगह नहीं बदली…

वह तुमसे बहुत प्यार करता है और मुझे इसमें कोई दिक्कत नहीं है… घर में भी सभी तुम्हारी शादी के लिए राजी हैं… बल्कि अब मैं ही तुम्हारी शादी करवाऊँगा… इस पागल ने भी सिर्फ पानी और चाय पर सात दिन निकाले हैं… अब तुम डाँटो उसे,” कहकर वह हँसते हुए बाहर चला गया।

कोमा से बाहर आने के बाद भी रूपा की तबीयत चिंताजनक थी… उसकी धड़कनें कभी धीमी तो कभी अचानक बढ़ रही थीं… किसी तनाव के कारण रूपा की ऐसी हालत हो गई है… उसके जीने के बारे में अभी कुछ नहीं कह सकते क्योंकि उसकी तबीयत स्थिर नहीं है… “ख्याल रखना होगा,” कहकर डॉक्टर चले गए तो सभी फिर चिंता में पड़ गए…

औलाद – ऋतु गर्ग

माँ, बाबा, महेश और उसका ना होने वाला पति ये सभी उसके आसपास थे, सभी चिंतित… रूपा ने आँखें खोली तो उसे साँस लेने में तकलीफ होने लगी, दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं… तभी सभी ने महेश की ओर देखा… महेश ने आगे आकर हाथ में रखी छोटी डिब्बी खोली, उसमें से चुटकी भर सिंदूर लिया और रूपा का ही डायलॉग उसे बोला… “एक चुटकी सिंदूर की कीमत बहुत बड़ी है रूपा, आज जाकर समझ आया,” कहकर उसने वह सिंदूर उसकी माँग में भर दिया और तभी रूपा के बगल वाली व्हेंटिलेटरकी स्क्रीन पर उसकी दिल की धड़कनें नॉर्मल होने लगीं…

#शुभविवाह

प्रतिक्षा हरिपूरकर

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