
बे औलाद होने का दंश…. – विनोद सिन्हा “सुदामा”
- Betiyan Team
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- on Mar 15, 2023
पूर्वी और राजेश की शादी हुए लगभग सात साल हो गए थे मगर अभी तक कोई औलाद नहीं हुई थी…काफी ईलाज करवाया कई तरह के जाँच करवाए लेकिन कोई फायदा नहीं… पूजा पाठ देवी देवता जाने कितने मंदिरों में अनगिनत देवी देवताओं से मन्नतें मांगते फिरते.., लेकिन नतीजा शून्य ही मिलता… कई उपाय के बाद भी भी बच्चा नहीं हुआ.
सास निर्मला भी कई बार मौका देख पूर्वी को जली कटी सुना देती…नाशपीटी कबसे सूनी कोख लिए बैठी है सालों हुए एक बच्चा तक नहीं जन पाई…जाने कब पोते का मुँह देखूँगी .या फिर देखूंगी भी या नहीं..लगता पोते का मुँह देखे बिना ही दुनिया छोड़ दूँगी….
पूर्वी सब कुछ सुन चुपाचाप कमरे में आँसूं बहाती रहती..आखिर वह कर भी क्या सकती थी..फूटी किस्मत को छोड़ किसी को दोष भी नहीं दे सकती थी..सारा जाँच करवाया..न उसमें कोई खराबी थी और न ही उसके पति में….फिर वो करे तो क्या करे…
कई बार पति पत्नि दोनों ने बच्चा गोद लेने की सोची..लेकिन निर्मला देवी मना कर देती…
नहीं बिल्कुल नहीं.. मुझे मेरे घर का चराग चाहिए.. चाहे जो हो…जब हो..बेटा हो बेटी हो कोई फर्क नहीं..बस तेरी कोख जनी हो..
कहने को तो वह बहू को रोज चार बातें सुना देती
लेकिन जानती थी सब मुकद्दर की बाते हैं…जब तक वह नहीं चाहे कुछ नहीं होता….बाद वो बहू को समझाती भी …माफ कर देना ऊम्र हुई क्या करूँ…..रहा नहीं जाता पोते की चाह मुझे अधीर बना देती है…
पूर्वी सास के सीने लग फफक कर रोने लगती..
सास निर्मला भी भरे मन से पूर्वी को ढाढस देती..चिंता मत कर भगवान के घर देर है अंधेर नहीं..एक न एक दिन तेरी कोख जरूर हरी होगी…
लेकिन पूर्वी अंदर ही अंदर टूटती जा रही थी..अब उससे अपने बाँझ होने का दंश झेला नहीं जा रहा था..उसकी उम्र की आस पड़ोस की औरतों की गोद में बच्चा खेलता देख..उसका मन दर्द से चित्कार उठता…उसकी ममता उसकी आँखों से पीड़ा बन छलकने लगती…उसकी इच्छा होती वह भी बच्चे को लेकर गोद में खेलाए…अपनी छाती गीला करे…लेकिन खुद को असमर्थ पाती..औरतें ताना देने लगती देती.
उसे कुछ समझ नहीं आता कि वह क्या करे..बांझपन का दंश….उससे सहा नहीं जाता था…विवश हो अपनी हाँथों से अपनी कोख को चोट पहुँचाने लगती….
एक दिन पड़ोस वाली चाची ने उसे चुपके से आकर बताया कि दूर शहर से बहुत पहुँचे हुए बाबा आए हुए हैं जिनकी सिद्धी दूर दूर तक फैली हुई है.
अगर उन का आशीर्वाद मिल जाए तो उसकी सूनी गोद भर सकती है..उनके आशीर्वाद से फलिभूत हो कितनी निसंतानों को बच्चा हुआ है…पूर्वी को मानों मन मांगी मुराद मिल गई हो जैसे…
जान कर उसका भी मन हुआ कि वह बाबा के पास जाए….
उसने सारी बात़े अपनी सास निर्मला को बताई..
पूर्वी ने सास से कहा कि माँजी एक चमत्कारी बाबा आए हैं..जिनका आशीर्वाद मिल जाए तो निसंतानों को बच्चा हो सकता है…
सुनते ही निर्मला देवी गुस्से से बिफर उठी…
वह छोटे छोटे शहर की थी लेकिन साधू संत के पाखंडो को भलि भाँति जानती और ऐसे बाबाओं के चोंचलों को अच्छी तरह समझती थी,
उन्होंने बहू को समझया…मुर्ख …ये सब ढोंगियों के चक्कर में भूल से मत पड़ना…इतना भी नहीं जानती बिना पति पत्नि के मिलाप के बच्चा नहीं होता…बच्चा सदा पति पत्नी दोनों के कोशिश से ही संभव है…
लेकिन पूर्वी के मन में बाबा को लेकर.. इक अलग ही धारणा बन गई थी…लेकिन उसे यह नहीं पता था कि ऐसे बाबा कहीं भी आने जाने से पहले ही उस जगह अपने चेले चपाटी को भेज वहाँ उस जगह के लोगो़ की सारी जानकारियां एकत्रित कर लेते हैं..और बाद वहाँ पहुँच पहले से पता सबकी बातें बता..उन्हें अपने जाल में फँसा लेते हैं
पूर्वी के साथ भी यही हुआ…उसका मन नहीं माना
अब इसे पूर्वी के मन का मोह कहें या बच्चे की चाह..पति किसी काम से शहर गया था अतः शाम को वह सास को बिन बताए पड़ोस वाली चाची के साथ वहाँ चली गई जहाँ बाबा और उसके चेले चपाटी डेरा डाले हुए थे..
सकुचाई चुप चाप भीड़ में बैठ बाबा का प्रवचन सुनने लगी..
तभी बाबा की नज़र उस पर पड़ी…
बाबा जी ने पूर्वी को इशारे से अपने पास बुलाया….
पूर्वी ने झुककर बाबा जी को प्रणाम किया..
बाबा जी ने उसके कंधे पर हाँथ रखते हुए कहा..
उठो बेटी मैं..अपनी दिव्य आँखों से तुम्हारी कष्टों को देख रहा हूँ..
चिंता मत करो तुम्हारी मुराद जरूर पूरी होगी…तुम्हारी सूनी कोख जरूर भरेगी..
तुम्हे मातृत्व सुख की अवश्य प्राप्ति होगी…
पूर्वी विस्मृत आँखो से बाबा को देख रही थी..उसकी आँखों में अश्कों की धारा बह रही थी…उसे समझ नहीं आ रहा था कि बाबा जी ने बिना कहे उसका कष्ट कैसे जान लिया..
वह बाबा के पैरों पर गिर पड़ी और कहने लगी, बाबा…आप धन्य हैं..अंतरयामी हैं,मुझ अभागन का दुख दूर करें. मैं निसंतान सालों से बच्चे का मुंह देखने के लिए तड़प रही हूं..इस दुखियारी को अपना आशीर्वाद देकर वर्षों की अभिलाषा पूर्ण करें बाबा…
होगी….. जरूर होगी बेटी ..तेरी अभिलाषा जरूर पूरी होगी तेरी हर मनोकामना पूर्ण होगी…मैं तुम्हारी संतान प्राप्ति हेतु एक यज्ञ करूँगा …जिसमे तुम्हें विधीवत स्नान ध्यान कर आभूषणों से सुसज्जित पीले वस्त्रों में पूजा अर्चना व हवनादि करनी होगी..
पूजा सामाग्रियों में तुम बालसहित पीले वस्त्र में लिपटा एक नारियल गोला…घी,हुमाद..चंदन एवं दो केले लेती आना…
बेटी इसके लिए कल रात्रि वेला अति मंगल है..अतः ध्यान रहे की बिलंब न हो…
ज्ः््् जी बाबा जी…पूर्वी ने एक बार फिर बाबा जी के पैर छुएं… इस बार बाबा जी का हाँथ पूर्वी का पीठ सहला गया…
पूर्वी को थोड़ा अजीब अहसास हुआ लेकिन…औलाद सुख के मोहवश बाबा के इस हरकत को बाबा का आशीर्वाद समझी..सोचा शायद बाबा ने आशीर्वाद स्वरूप हाँथ फेरा हो…
तभी पड़ोस वाली चाची ने झठ पूर्वी को बाबा के पास से उठाते हुए कहा..
जी बाबा मैं इसे लेकर कल आपके पास तय समय पर पहुँच जाऊँगी..
बाबा जी ने इशारों में चाची को देखा….उनकी होठों पर कुटिल मुस्कान थी..
पूर्वी घर पहुँची तो देखा सास बरामदे में चहलकदमी कर रही है..
कहाँ गई थी…..कबसे ढूँढ रही तुमको..
जी््ँजी माँ जी पास वाले मंदिर गई थी…
झूठ मत बोल…मंदिर गई थी या…..
जी मंदिर.. पूर्वी ने सास से झूठ कहा…क्या करती..जानती थी सास एव पति मना करेंगे..ऊपर से चाची ने उन्हें कुछ न बताने की हिदायत भी दे डाली थी…
अच्छा.. चल अंदर..चल..
कल से कहीं जाना हो तो बोल कर जाना मैं तुम्हारे साथ चलूँगी…
पूर्वी के मानों रेंगटे खड़े हो गए..काटो तो खून नहीं..अब वो सास को सच कैसे कहे..कि उसे कल कहाँ जाना..है..
पूर्वी मन महशोश कर रह गई..वह सास की आज्ञा लिए बिना नहीं जा सकती थी…..
रात करवटों में बीती…सुबह से दिनभर बेचैनियों ने पूर्वी को घेरे रखा..जैसे जैसे दिन बीतता जा रहा था पूर्वी व्याकुल होती जा रही थी..हालांकि सास से नज़रे बचा सभी तैयारियों में भी जुटी थी..और.लगभग पूरी कर भी ली थी.उसे पता था सास सवेरे बिस्तर पे सो जाती है..इसलिए उसने पड़ोस वाली चाची को कह रखा था कि सास के सोते ही वह उनके साथ चल चलेगी..
परंतु निर्मला देवी को बाबा रूपी शक ने घेर लिया था..फिर आँखों में नींद कहाँ…उन्होंने सोने का दिखावा किया…
और जब रात पहर बहू घर से निकली तो उसके पीछे हो ली..
रास्ते में उन्हें उनका बेटा भी आता दिख गया जिसे इशारे से पास बुला लिया और सारी बातें बता दी..वो चाहती तो बहू को वहीं रोक भी सकती थी लेकिन निर्मला देवी ने बहू की आँखों पे चढ़ी पट्टी हटाना जरूरी समझा..
पूर्वी इन सबसे अंजान बाबा जी के पास पहुँच चुकी थी..
बाबा जी ने पूर्वी को कुटिया के अंदर जाने को कहा..और कहा कि वह ताँबे के पात्र में रखा पवित्र जल का छिड़काव कर पीले वस्त्र धारण कर ले…मैं तब तक पूजा प्रारंभ करता हूँ…
पूर्वी ने आदर मुद्रा में सर झुकाया और कुटिया में प्रवेश कर गई..जहाँ उसने ताँबे के पात्र में रखे जल को जैसे ही खुद पे छिड़काव किया..उसपे बेहोशी छाने लगी…थोड़े समय बाद देखा बाबा कुटिया का दरवाजा बंद कर अंदर आ गए हैं
पूर्बी को बाबा का चेहरा धूंधला धूँधला दिख रहा था,
उसे महसूस हुआ कि… बाबा उसके पास आकर उसके बालों से खेल रहें हैं हालांकि पूर्वी हल्के होश में थी..अतः विरोध भी कर रही थी…
पाखंडी.. धूर्त…कमिने..
लेकिन बाबा बेशर्मी से हँस रहे थे..
उसने अपना एक हाँथ..पूर्वी के अस्मत की तरफ बढाया,
लेकिन इससे पहले कि पूर्वी के साथ कोई अनहोनी घटती..पीछे आए पति ने जो उसका पीछा करते करते कुटिया तक आ गया था दरवाजे को जोर धक्का दे तोड़ डाला..और बाबा का बाल पकड़ बाहर घसीट ले आया…और लात घुस्से की बरसात करने लगा..
बाबा के सारे चेले चपाटी इधर उधर भागने लगें..
उधर पूर्वी की सास जो अपने साथ हवलदार को भी ले आई थी दौड़ कर कुटिया मे भागी..बहू के चेहरे पर पानी छिड़क होश में लाई…और उसे खूब डाँटने लगी…
नाशपीटी.. करम जली
मना किया था तुझे..फिर भी नहीं मानी.।.
वो तो शुक्र था कि मुझे पहले ही शक हो गया था और मैं सोई नहीं..तेरे पीछे यहाँ आ गई..
पूर्वी डरी सहमी सास के सीने लग रोई जा रही थी…
मुझे माफ कर दें माँ जी..संतान मोहवश मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई..मैंने आपका कहा नहीं माना…
निर्मला जी बहू का दर्द समझती थी…शायद उसकी जगह वह भी होती तो औलाद की चाह में वही करती जो उनकी बहू ने किया…
उन्होंने बहू के माथे पर हाँथ फेरते हुए कहा..
सूनी कोख को लेकर मैं तुम्हें बोलती बिगड़ती हूँ इसका मतलब यह नहीं कि तू कोई गलत कदम उठा ले..
घर चल तेरी अच्छे सै खैर लेती हूँ…
पूर्वी सास के सीने लग गई..
उधर पाखंडी बाबा को हवलदार ने हथकड़ियों में जकड़ लिया था…
घर आकर राजेश ने पत्नि को समझया कि वह शहर में बड़े डाक्टर से मिल कर आया है…जहाँ IVF पद्दति के सहारे..वह माँ बन सकती है और इस पद्धति में उसका ही अंश पूर्वी के कोख में पले एवं बढ़ेगा….
जिसे टेस्ट ट्यूब बेबी कहा जाता है..
मतलब पूर्वी उसके ही बच्चे की माँ बन सकती है..
बहुत बिस्तार से तो नहीं.. लेकिन ईलाज को ले राजेश ने माँ निर्मला देवी को हल्का फुल्का समझया और पूर्वी को लेकर शहर आ गया…सारी प्रक्रियाओं के बाद पूर्वी ने एक सुंदर स्वस्थ्य बच्चे को जन्म दिया…जिसे लाकर पूर्वी ने बड़े प्यार से अपनी सास निर्मला की गोद में डाल दिया..
एक तरफ जहाँ निर्मला देवी पोते का चेहरा देख फूले नहीं समा रही थी…
तो दूसरी तरफ पूर्वी अपनी सास को देख श्रद्धा से मन ही मन नत्मस्तक हो रही थी…साथ ही साथ वह सोच कर काँप भी रही थी कि अगर सास न होती तो आज वह कहीं की नहीं रहती…औलाद की चाह, बे औलाद होने का दंश….उसे..पाखंडियों के हवस का शिकार बना देता…
विनोद सिन्हा “सुदामा”