बदलाव – साहिबा टंडन : Moral Stories in Hindi

खचाखच भरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा जब विनोदिनी के नए कविता संग्रह ‘मृगतृष्णा’ का

लोकार्पण हुआ. सभागार की पहली पंक्ति में बैठे पलाश और ज्योति यह देखकर बेहद खुश हुए. वे विनोदिनी के

भईया भाभी थे. विनोदिनी ने अपनी उपलब्धि का श्रेय उन्हीं को दिया था .

वापिस लौटेते वक्त कार में विनोदिनी के चेहरे पर धूप अठखेलियां कर रही थी. विनोदिनी मुस्कुरा दी क्योंकि

ऐसी ही एक खुशगवार सुबह ने उसके जीवन की अमावस का अंत किया था.

विनोदिनी जिसे घर में वीनू कहा जाता था, प्रारंभ से ही अंतर्मुखी स्वाभाव की थी. बाल्यावस्था में ही वो अपने

माता पिता को खो चुकी थी. अपने भाई पलाश से चंद ज़रूरी बातें और पढ़ाई की किताबें ही उसके जीवन का

अभिन्न हिस्सा थीं.

पलाश के लिए सुझाई जा रही कन्याओं की तस्वीरों में ना जाने ज्योति की तस्वीर देखते ही वीनू को कौन सा

मोह जगा कि उसने वो तस्वीर पलाश के समक्ष कर दी. पलाश मुस्कुरा उठा और कॉलेज समाप्ति के बाद ज्योति

वीनू की भाभी बनकर गृहप्रवेश कर गई थी.

औरत क्या नहीं कर सकती – मीनाक्षी सिंह

ज्योति के निश्चल और भरपूर प्रेम ने वीनू को उसके बेहद करीब कर दिया था.

एक दिन ज्योति छत से कपड़े उतार कर ला रही थी कि अचानक से सीढ़ियों पर से उसका पांव फिसल गया

तब हॉस्पिटल की भागदौड़ से ज्योति के ठीक हो जाने तक वीनू ने पलाश से अधिक सतर्कता दिखाई . पलाश उसे

बहुत कहता कि वह सब संभाल लेगा परन्तु फिर भी वीनू ने ज्योति का साथ पल भर भी नहीं छोड़ा.

एक दिन ज्योति वीनू के कमरे के आगे से गुजरी तो देखा की वो बड़ी तल्लीनता से टेबल पर झुकी कुछ लिख रही

है. ज्योति ने हंसते हुए एकदम से उसकी कॉपी अपने काबू में कर ली और उसमें लिखी पंक्तियां पढ़कर हैरान रह

गई.

‘इतनी सुन्दर कविताएं, कितना ख़ूबसूरत लिखती हो तुम वीनू और आज तक बताया भी नहीं,’ ज्योति

कविताएं पढ़ कर भाव विभोर हो उठी थी.

“बस भाभी, ऐसे ही दो-चार पंक्तियां लिख लेती हूं”

“ये चंद शब्द नहीं वीनू, ऐसा लगाता है जैसे किसी ने अपना दिल खोल कर रख दिया हो, बहुत वक्त से

लिख रही हो क्या..?”

“हां भाभी कविताएं लिखना मुझे स्फूर्ति देता है, मुझमें नए उत्साह का संचार करता है, ऐसा लगता है जैसे कोई

मुझे ही परिभाषित कर रहा है” ज्योति ने जब यह सुना तो उसी वक्त ठान लिया कि वीनू गर लिखना चाहती है

तो वो ज़रूर लिखेगी.

ज्योति के भरपूर साथ और प्रेरणा से वीनू के लिखे चंद पन्ने धीरे धीरे एक पुस्तक में बदल गए तब ज्योति ने

अपनी सहेली के पिताजी से इन कविताओं का जिक्र किया. उनका पब्लिकेशन हाउस था. कविताएं पढ़ने के

बाद, काफी सोच विचार करके उन्होंने उसकी कविताओं की किताब छापने का फैसला किया.

माँ सब देखती हैं – विभा गुप्ता

‘कस्तूरी’ नाम से वीनू का पहला कविता संग्रह प्रकाशित हुआ तब तक वह बी.ए का प्रथम वर्ष भी उत्तीर्ण कर

चुकी थी. पलाश को पता चला तो हंसते हुए ज्योति से बोला, “करले, अभी जितने शौक पूरे करने हैं फिर तो

अपने वैवाहिक जीवन में रम जाएगी तो कहां ये कविता कहानियां”

“ये क्या बात हुई, क्यूं अपना लिखना जारी नहीं रख सकती वो शादी के बाद..?” उसकी बात सुनकर ज्योति

अंदेशों का शिकार हो गई थी.

“गृहस्थी चलाना, रिश्तों को संजो कर रखना, ऐसे में खाली वक्त मिलता कहां है, फिर जैसे जैसे जिम्मेदारियां

बढ़ती जायेंगी वीनू उनमें और व्यस्त होती चली जाएगी, अब खुद को ही देख लो, कुल जमा तीन सदस्य हैं हम

परिवार में फिर भी चक्करघिन्नी की तरह लगी रहती हो तुम. मेरी डायबिटीज़ की वजह से अलग खाना पीना,

वीनू की उम्र और पढ़ाई की वजह से उसका भरपूर ध्यान रखना, उसके साथ साथ तुम भी रातों को जागती रहती

हो, तुम्हें ही कितना खाली वक्त मिल पाता है किस्से कहानियां पढ़ने का, लिखना तो दूर की बात है,खैर छोड़ो,

चलता हूं, ऑफिस को देर हो रही है” पलाश तो ऑफिस चला गया पर अपने पीछे कुछ ऐसे सवाल छोड़ गया जो

ज्योति ने कभी खुद से भी नहीं किए थे.

कॉलेज खत्म होते ही वो भी ‘घर गृहस्थी वाली’ हो गई थी. स्कूल कॉलेज में कितनी गायन प्रतियोगितायें जीती

थीं उसने ना तो इस बारे में उसने कभी पलाश को बताया और ना ही कभी पलाश ने उससे इस तरह की चर्चा

की थी, हां, उसकी आवाज़ बहुत मीठी है ये तारीफ़ वह अक्सर करता आया था.

पलाश ने कभी उस पर किसी प्रकार का कोई अंकुश नहीं लगाया था पर वह काम में व्यस्त रहने वाला इंसान था.

ऑफिस के बाद भी वह हफ़्ते में तीन दिन कोचिंग दिया करता था, और यूं भी ज्योति को गायन में कुछ ख़ास

” अपना अपना स्वार्थ ” – डॉ. सुनील शर्मा

ना कर दिखाने का कोई मलाल भी ना था. कॉलेज के बाद अपने माता पिता की इच्छानुसार विवाह करने को

उसने सहज रूप से स्वीकार किया था और विवाह के बाद तो वह अपनी खुशी से गृहकार्यों में लिप्त हो गई

थी पर आज पलाश ने अंजाने में ही जैसे एक कोने में दबी किताब पर से धूल की परतें झाड़ दीं थीं.

अगले दिन उसने सितार के तारों को छुआ तो लगा जैसे हृदय के तार झंकृत हो उठे हों. गले से सुरीला स्वर

निकला तो अपने कमरे में बैठी वीनू को अपने कानों में शहद घुलता प्रतीत हुआ फिर तो वो गाहे बगाहे उससे

गीत सुनने की इच्छा करती और ज्योति भी कभी उसे निराश नहीं करती.

बी.ए पूर्ण करते ही पलाश के दिमाग में उठते वीनू के विवाह के विचार को ज्योति थाम देना चाहती थी। उसने

अपनी संपूर्ण ताकत बटोर कर पलाश से कहा कि, “विनोदिनी का अर्थ ही हंसमुख लड़की है तो कम से कम उसे

खुशी से अपनी लेखनी की इच्छा पूर्ण करने का एक मौका अवश्य मिलना चाहिए क्यूंकि विवाह पश्चात यदि

उसके जीवनसाथी ने संयम से उसका साथ नहीं दिया तो अंतर्मुखी स्वभाव की ये लड़की चुपचाप चूल्हे की

अग्नि में अपने इस शौक की आहुति दे देगी.”

“एक औरत होकर कैसी बातें कर रही हो, एक लड़की के लिए शादी ब्याह से ज्यादा महत्वपूर्ण और क्या हो

सकता है और तुम्हें ये कविता कहानियां सूझ रहीं हैं..!”

“पर तुम भी तो बिल्कुल एक संकीर्ण पुरुष मानसिकता वाली बात ही कर रहे हो, क्या एक इंसानी जीवन के

सफ़र की आख़िरी मंज़िल शादी ही है ?, नहीं पलाश, विवाह के अबेध और सुहाने बंधन में दो ज़िंदगियों को

अपने पन की महक – ऋतु गुप्ता

एक दूजे का साथ मिलने दो ताकि ये रिश्ता फले फूले ना कि मुरझा जाए . वीनू में लेखन की प्रतिभा है जो मैं

जाया नहीं होने दूंगी क्यूंकि लिखना सिर्फ़ उसका एक शौक भर नहीं बल्कि खुद को आत्मविश्वासी, स्वाभिमानी

और आत्मनिर्भर बनाए रखने का सुखद अहसास भी है और ये अहसास मैं उसमें खत्म नहीं होने दूंगी और

जो व्यक्ति अपने जीवनसाथी की ये भावनाएं समझ सकता है वही वीनू का हाथ थामेगा” ये कहते हुए चाहे ज्योति

की आंखें भर गईं थीं पर चेहरे पर दृढ़ता के गहरे भाव थे.

तभी वीनू ने बाहर से हल्के स्वर में पलाश को पुकारा.

‘भईया’ उसकी आवाज़ सुनकर पलाश ने उसे कमरे में ही बुला लिया.

“भईया, आप जहां मेरा विवाह करवाना चाहते हैं, उससे मुझे कोई आपत्ति नहीं है” विनोदिनी तो इतना

कहकर बाहर निकल गई पर ज्योति की रूलाई फूट पड़ी क्योंकि वो समझ चुकी थी कि ये आवाज़ गले से नहीं

बल्कि निराशा के अंधे कुएं से आई थी.

जाने किस कदर ठंडापन लिए था उसकी बहन का स्वर कि वो उस वक्त उसके आंसू पोंछने की हिम्मत

भी ना जुटा सका. जमी जमी निगाहों से सिर्फ उसे वहां से जाता देखता रहा.

वो रात पलाश के लिए निर्णायक साबित हुई. एक पल को भी उसकी आंखों को पलकों के पर्दे ने नहीं ढांपा.

विचारों की उधेड़बुन उसके दिमाग़ में तेज़ी से पनप रही थी.

“ये किस तरह की सोच पनप चुकी है मेरे भीतर? क्यूं भेड़ चाल का शिकार हो गया मैं भी? जहां

मुझे समाज की पुरानी, दकियानुसी सोच का दायरा तोड़ना है वहां मैं खुद उसके भीतर कैद हो गया…!

ऐसा तो नहीं होना चाहिए, औरतों और मर्दों की बराबरी की बातें सिर्फ किताबी ना बनकर रह जाएं

बल्कि उन्हें साकार करने में मैं पहल क्यूं ना करूं” उस रात के अंधेरे को उसकी सुनहरी सोच वाले सूरज की

किरणों ने तोड़ा था.

“अरे ज्योति, बुलायो तो ज़रा वीनू को, उसकी किताब में लिखी एक कविता की पंक्ति में समझ नहीं पा रहा हूं,

कहो उससे आके मुझे उसका अर्थ बताए” पलाश का स्वर बेहद आनंद देने वाला था.

 पुरानी हवेली – आरती झा आद्या 

“ओह पलाश, क्या तुम सच कह रहे हो” ज्योति की आँखें खुशी से चमक गईं थीं और आवाज़ भर्रा गई थी.

हैरानी ने वो उसकी ओर देखती जा रही थी.

“हां ज्योति, और सिर्फ़ वीनू ही नहीं, तुम भी… तुम्हें कभी वीनू के साथ गाता सुनता था तो तुम दोनों का

मस्ती मज़ाक समझ कर अनदेखा कर देता था. तुम्हें सुरीली आवाज़ का वरदान मिला है, इसे निखारो,

दुनिया के समक्ष पहुंचाओ. ये सब मेरे सामने ही था बस अंजाने में ही या यूं कहूं कि एक संकुचित दायरे के

बाहर मैं देख ही ना पाया तो इसमें कुछ गलत ना होगा. प्रतिभा का विस्तार होगा तो वही सफलता का आधार

 

बनेगा, इसी मूलमंत्र से मुझे अपनी सोच बदलनी होगी और इस बदलाव की आवश्यकता पहले भी थी, आज

भी है भविष्य में भी रहेगी और यही मेरा प्रायश्चित भी होगा.

उस पल के बाद से आशायों की कई किरणें उनके घर आंगन में उतरी थी. अब ज्योति भी संगीत की कक्षाएं

लेती थी. पलाश का साथ ज्योति और वीनू के लिए सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ बन गया था. तीनों का एक ही

सम्मिलित प्रयास होता की जितना हो सके वे दूसरों को जागरूक करें कि वे ख़ुद को जाने, समझे और ख़ुद में

और अपने सामने छिपी प्रतिभाओं को पहचान कर उन्हें विस्तार दें. नज़रिया बदलने से ही परिवर्तन होगा जो

कि निश्चिंत ही मानव जीवन को एक नई दिशा देने में सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण क़दम साबित होगा.

 

नाम – साहिबा टंडन

( मौलिक,स्वरचित )

#प्रायश्चित

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