अनुराग जी का पैर बाथरूम मे गिरने के कारण टूट गया था। जिसके कारण डॉक्टर ने प्लास्टर चढ़ाकर तीस दिनों तक आराम करने को कहा था। यह सुनकर उनकी बेटी उनसे मिलने आने वाली थी। अनुराग जी के दो बेटा और एक बेटी थे। तीनो की शादी उन्होंने करा दिया था। दूसरे बेटे की शादी के कुछ ही दिनों बाद उनकी पत्नी का देहांत हो गया था।
अभी उसकी शादी हुए डेढ़ वर्ष के करीब ही हुआ था और उसके तीन माह के दो जुड़वा बच्चे थे। बड़ी बहू के भी दो बच्चे थे। सास की मृत्यु के बाद दोनों बहूओ ने घर अच्छे से संभाल लिया था।दोनों बहुत ही प्यार से रहती थी। दोनों एकदूसरे को सम्मान और प्यार करती थी। छोटी बहू के बच्चे छोटे और जुड़वा थे तो दो दो बच्चो को संभालना बहुत ही मुश्किल काम था,
इसलिए वह रसोई मे बड़ी बहू की ज्यादा मदद नहीं कर पाती थी, परन्तु वह अपने बच्चो के साथ जेठानी के बच्चो का काम भी कर देती थी। बच्चो को नहलाना, स्कूल यूनिफार्म पहना कर तैयार करना आदि काम वह कर देती थी। बच्चो को खिलाने के वक़्त उन्हें फुसलाकर की जल्दी खा नहीं तो ताकत नहीं होगा तो फिर छोटे भाई बहन कैसे गोद उठाओगे।
बच्चे भी भाई बहन को गोद मे लेकर खाना खाने बैठ जाते थे जिससे बच्चे भाग दौड़ नहीं कर पाते और इसतरह से वह अपने बच्चो का ख्याल रखते हुए जेठानी के बच्चो का भी ख्याल रख लेती।ननद के आने की बात सुनकर बड़ी बहू थोड़ी चिंतित थी। छोटी ने कहा दीदी आप चिंता क्यों कर रही है अनुभा जी आएँगी तो आपको कितना आराम हो जायेगा,
पापा कि देखभाल के लिए तो नर्स है पर उनके पथ्य का खाना बनाना,समय पर देना, आदि आपके कितने काम बढ़ गए है।फिर आए दिन रिश्तेदारो का पापा से मिलने आने का भी सिलसिला जारी है। पापा के ठीक होने तक यह रहेगा भी। फिर उनके स्वागत कि भी जिम्मेदारी आप पर ही है। मै तो बच्चो मे ही परेशान रहती हूँ, आपकी कोई मदद भी नहीं कर पाती।
अनुभा जी आएंगी तो कम से कम पापा का काम तो देख लेंगी फिर तो आपको थोड़ा आराम मिल जाएगा। अब उसे उसकी जेठानी क्या बताए कि अनुभा के आने से काम कम क्या होगा बढ़ ही जाएगा साथ ही घर का माहौल भी खराब होगा। काम तो आदमी कितना भी कर, ले पर घर का माहौल खराब हो तो थोड़ा काम भी भारी लगता है।
छोटी की शादी के कुछ दिनों बाद ही सासु माँ के मरने के कारण और अनुभा के बेटे के बोर्ड मे आने के कारण अनुभा का मायका आना ज्यादा नहीं हो पाया था। माँ थी तो महीना दो महीना पर उसे जरूर ही बुला लेती थी। वे होती तो बच्चे के पढ़ाई की चिंता भी नहीं करती और उसे जरूर बुलाती पर अब उसके पति के मना करने पर पापा ने भी कह दिया था
कि बच्चो की पढ़ाई ज्यादा महत्वपूर्ण है पहले उसे देखो।छोटी अपनी ननद से बस तीन बार ही मिली थी। अपनी शादी मे, माँ के श्राद्ध मे और अपने बच्चो के छठीयार मे। तीनो बार आयोजन था और ज्यादा दिन उसकी ननद का रुकना नहीं हो पाया था इसलिए उसे अपनी ननद का स्वभाव नहीं पता था। वह तो सोच रही थी कि बेटी है तो पिता की सेवा ख़ुशी ख़ुशी करेगी ही पर उसकी ननद घर का कोई काम नहीं करती
है और नहीं तो भाभी के खिलाफ माँ और भाई को भड़काती भी है, इस बात की उसे जानकारी नहीं थी।वह तो ननद के आने से बहुत खुश थी तथा जेठानी के परेशान होने पर उसे आश्चर्य भी हो रहा था। अनुभा घर मे सबसे छोटी थी तो जाहिर है सभी उसे बहुत ही प्यार करते थे जिसके कारण वह बहुत ही जिद्दी थी। पढ़ने मे भी उसका मन नहीं लगता था।
पढ़ने मे मन नहीं लगता है तो कॉलेज मे नाम लिखवाने पर कॉलेज के बहाने कही गलत रास्ते पर नही चली जाय इस डर से अच्छा रिश्ता मिलते ही अनुराग जी ने उसके बारहवीं करते ही उसकी शादी कर दी थी, पर शादी के बाद भी वह ज्यादातर मायके मे ही रहती थी।उसके दोनों बच्चे मायके मे ही हुए थे।
बच्चो को भी माँ संभालती थी। दूसरे बच्चे के वक़्त बड़ी बहू की शादी हो गईं थी तो वह अपने बच्चे को नई बहू के भरोसे पर छोड़ कर घूमने चली जाती थी। सास भी उसी का पक्ष लेते हुए कहती मायके मे ही तो बेटी को ज़रा आराम मिलता है। यहाँ भी बच्चो के लेकर घूमती फिरे तो काहे का माँ भाभी का रहना। भांजे भांजी को करने से पुण्य मिलता है मामा का बढ़ोतरी होता है।
बड़ी बहू को काम करने से कोई आपत्ति नहीं थी।पर अनुभा का कितना भी काम कर दो वह खुश नहीं होती थी तथा हमेशा भाई भाभी मे झगड़ा लगवाने कि कोशिस करती।माँ से भाभी को डांट खिलवाने के चक्कर मे पड़ी रहती। अनुभा का यह स्वभाव बड़ी बहू को अच्छा नहीं लगता था।वह ननद के आने के नाम से ही टेंसन मे हो जाती थी।
पर ननद को मायके आने से रोका भी तो नहीं जा सकता है। यह सोचकर बेचारी चुप थी पर चिंतित बहुत ही ज्यादा थी। उसके ससुर जी को यह बात समझ आ रही थी पर बीमारी मे मिलने आ रही थी, तो बेटी को क्या कह कर आने को मना करते। ननद आई आते ही शुरू हो गईं। पापा का ख्याल ठीक से नहीं रखा जा रहा है। दो दो बहुए है फिर भी सेवा के लिए नर्स रखा गया है।
अब मै आ गईं हूँ तो नर्स की कोई जरूरत नहीं है। मै पापा की सेवा करूंगी। अब तो यह सुनते ही बड़ी बहू का हालत खराब हो गया। उसे तो पता ही था कि नर्स भी हटवा देगी और काम भी नही करेगी तो फिर तो सारा काम उसके उपर ही आ जाएगा।यह सुनकर छोटी बहू को बहुत ही अच्छा लगा उसने सोचा दीदी बेकार ही डर रही थी।
अनुभा कितनी अच्छी है। नर्स कितना भी सेवा करे पर घर के आदमी के जैसा नहीं करेगी।बच्चो की सेवा से माँ बाप जल्दी स्वस्थ्य हो जाते है। मै तो बच्चो से ही परेशान रहती हूँ,नहीं तो पापा की सेवा मै ही करती।पर यह कहकर भाइयो ने बात को संभाला की शादीशुदा बेटी से पापा क्या सेवा करवाएगे। बेटियां तो मायके आराम करने आती है।
कुछ मन करे तो अनुभा पापा के खाने के लिए बना दिया करेगी पर सेवा के लिए तो नर्स को ही रहने देते हैक्योंकि भाइयो को तो उसका स्वभाव पता ही था।अनुभा काम तो नहीं ही करती थी और नहीं तो रोज़ नई नई फरमाइस करके भाभी का काम बढ़ा देती थी। साथ ही उससे दोनों भाभियों का एकसाथ प्यार से रहना देखा नहीं जा रहा था।
वह इसी चिंता मे थी की दोनों मे कैसे झगड़ा करवाए। एक दिन जब छोटी बहू जेठानी के बच्चो को स्कूल के लिए तैयार कर रही थी तो वह उसके पास जा कर बोली तुम इन्हे क्यों तैयार कर रही हो जिसके बच्चे है वह तैयार करे। तुमको पता नहीं है बच्चो को तो तुमसे तैयार करवा लेगी जो किसी को पता भी नही चलेगा और खुद रसोई का काम करेगी ताकि सभी को बता सके कि सारे काम वही करती है।
देखती नहीं हो जब भी कोई रिश्तेदार आता है तो उसकी कितनी बड़ाई करता है,तुम्हारा काम तो किसी को दीखता ही नही है। छोटी बहू को थोड़ा अजीब लगा कि यह ये सब क्या कह रही है उसने सोचा की सारी बाते जेठानी को बताएगी। बच्चो को तैयार करके वह रसोई घर मे गईं तो वहाँ उसकी ननद जेठानी से कह रही थी।
गजब इस घर का व्यवहार बन गया है बड़ी बहू दिनरात रसोई मे झूलसती रहे और छोटी बहू बस सुबह बच्चो को तैयार करदे और उसका काम खत्म। बड़ी बहू हो तुम्हारा तो हक बनता है बैठकर देवरानी पर हुक्म चलाने का पर तुम तो दिनरात रसोई मे ही पिसती रहती हो।छोटी बहू तो नई थी बेचारी ने ननद को कुछ नहीं कहा था पर बड़ी बहू चुप नहीं रही।
उसने कहा अनुभा जहाँ तक देवरानी पर हुक्म चलाने की बात है समय आने पर चला लुंगी। आप चिंता नहीं करे।मेरी देवरानी इतनी अच्छी है कि वह ख़ुशी ख़ुशी मेरा हुक्म मान भी लेगी पर आज जब उसको आराम की जरूरत है तो मै उससे काम ही करा रही हूँ इस बात का मुझे बहुत दुख है। बच्चा होने के वक़्त अगर किसी लड़की को आराम नहीं मिले तो उसका शरीर और मन दोनों ही खराब हो जाता है
पर क्या करू अकेले रसोई और बच्चे दोनों नहीं कर पाती हूँ तो बच्चो का काम उससे करवाना पड़ता है आज यदि माँ होती तो मै अपनी देवरानी को छह माह तक तो पलंग पर बैठाकर जरूर ही रखती।ननद को रसोई मे देखकर और सारी बातो को सुनकर छोटी बहू अपने कमरा मे आ गईं।
शाम को उसने ननद वाली बात जेठानी से कही तो उसने कहा तुम अनुभा की बात एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल दिया करो. उनका काम ही है झगड़ा करवाना। हाँ, लेकिन जबाब मत देना नहीं तो कल तुम्हे बदतमीज बहू का ख़िताब भी दें देगी। जैसे तैसे एक माह बीता इस बीच अनुभा ने दोनों भाभियों मे झगड़ा करवाने की बहुत ही कोशिस की पर दोनों ही बहूए बहुत ही समझदार थी
और उन्होंने अनुभा की बातो पर ध्यान नहीं दिया और इसतरह से घर का माहौल खराब नहीं होने दिया। अनुभव जी का प्लास्टर कट गया।वे धीरे धीरे चलने लगे। फिर एकदिन उन्होंने अपनी बेटी को बुला कर कहा अब मै बिल्कुल ठीक हूँ तो तुम अपने घर जाओ। हाँ, और यह याद रखना मेरी बहूए बहनो की तरह रहती है तो आइंदा उनमे फुट डालने की कोशिस नहीं करना।
यदि ऐसा कर सकती हो तो आगे से आना नहीं तो तुम अपने घर मे ही खुश रहना। तुम क्या सोचती हो कि मै बिस्तर पर हूँ तो कुछ समझता नहीं हूँ कि तुम क्या कर रही हो? तुमने एकबार भी नही सोचा की बहुओं के झगड़ा से घर की शांति भंग होंगी तो मुझे कितनी तकलीफ होगी।पहले जब तुम अपनी माँ से भाभी की शिकायत लगा
कर उसे डांट सुनवाने की कोशिस करती थी तो हम उसे तुम्हारा बचपना समझ कर माफ कर देते थे। सास की डांट से बहू को थोड़ा बुरा तो लगता है पर रिश्ते टूटने के कगार पर नहीं आते लेकिन यदि देवरानी जेठानी मे गलतफहमी हो जाय तो रिश्ते टूट जाते है। इसलिए मै तुम्हारी इस गलती को माफ नहीं कर पाउँगा। तुमने मेरा घर तोड़ने की कोशिस किया है।
अनुभा ने अपने पापा से माफ़ी मांगते हुए कहा आगे से मै ऐसा नहीं करुँगी। आप बस मुझे माफ कर दें और मेरे मायके आने पर रोक नहीं लगाए । ठीक है सही से रहोगी तो तीज त्यौहार पर बुलाने का सोचेंगे। यदि भाइयो ने बुलाया तो आना।पर मेरी दोनों बहूए जो बहनो के सामान रहती है उन्हें वैसे ही रहने देना उनमे फुट डालने की कोशिस नहीं करना।
वाक्य – मेरी दोनों बहूए आपस मे बहन जैसी रहती है.
लतिका पल्लवी