क्या हम तुम्हारे परिवार नहीं..? – रोनिता कुंडू

मम्मी जी..! सोच रही थी, इस गर्मी की छुट्टियों में मायके होकर आऊं… काफी समय हो गया है, अपने परिवार से मिले हुए.. 

 राधा ने अपनी सासू मां कावेरी जी से कहा….

 कावेरी जी:   पर उस वक्त तो अरुणा आएगी… तुम्हें तो पता ही है, पूरे साल में वह एक ही बार आती है…

 राधा:  मम्मी जी…! पर मैं तो साल में एक बार भी नहीं जा पाती…. जिस तरह अरुणा साल में एक बार अपने मायके आती है, मेरा भी तो मन करता है अपने परिवार से मिलने का..??  त्यौहारो में हो या ऐसे ही…. हर वक्त कुछ ना कुछ निकल ही आता है… आखिरी बार भैया के बेटे के नामकरण पर गई थी और अब वह भी 3 साल का हो गया है…

कावेरी जी:   हां तो क्या हुआ..? हर दिन उन लोगों से मिलती तो हो ना वीडियो कॉल पर…. सुनो बहू..! शादी के बाद एक लड़की का असली परिवार उसका ससुराल ही होता है, ना कि मायका… हमने भी यही किया था…

 राधा:  पर मम्मी जी…?




  इससे पहले राधा और कुछ कह पाती कावेरी जी कहती है… क्या बहू, हर वक्त मायका मायका करती रहती हो…? क्या हम तुम्हारे परिवार नहीं…? हमसे तुमको प्यार नहीं…? बेचारी अरुणा कितनी उतावली रहती है, यहां आने के लिए… ज़रा सोचो उसे कैसा लगेगा..? जब उसे पता चलेगा कि वह यहां आएगी और उसकी भाभी ही यहां नहीं हैं…

बेचारी राधा.. अब क्या कहती..? हम इंसानों की भी बड़ी अजीब ही फितरत होती है… बहस करने की बात हो, तो हम अपनी जी जान लगा देते हैं… पर वही जब कोई हमें कुछ प्यार से कुछ कहे, फिर चाह कर भी कुछ कह नहीं पाते…

राधा अपनी सासू मां से तो कुछ कह नहीं पाती…. पर वह इस बारे में अपने पति राघव से बात करने की सोचती है…

 राधा:   सुनिए जी..! इस बार गर्मियों की छुट्टी में, मैं मायके जाने की सोच रही थी… बच्चों की स्कूल की वजह से, पूरे साल में और कभी तो जा नहीं पाती.. तो इसीलिए..?

राघव:   तो चली जाना… इसमें क्या दिक्कत है…?

 राधा:   आपको तो पता ही है… गर्मियों की छुट्टी में अरुणा यहां आती है… इसलिए मम्मी जी ने मना कर दिया… हर साल ही तो अरुणा आती है…. इस साल आप लोग मैनेज कर नहीं सकते क्या..?

राघव राधा की इस बात से हैरान हो जाता है और वह राधा से पूछता है… क्या..? तुमसे मां ने कहा कि अरुणा आ रही है..?

राधा:   हां तो और कौन कहेगा..?

 राघव बड़ी अजीब सी शक्ल बनाकर, कुछ सोचने लगता है..




राधा:   अब आप ऐसे क्या सोच रहे हैं..? कहीं आप भी तो मना नहीं करने वाले..?

 राघव:   तुम तो बस जाने की तैयारी करो… इस बार तुम्हारा मायके जाना पक्का…

 राधा समझ ही नहीं पा रही थी कि वह खुश हो या हैरान..?

अगले दिन… राघव:   मां..! अरुणा इस बार गर्मियों की छुट्टी के लिए आ रही है ना…?

 कावेरी जी:   हां.. कल ही तो कहा मैंने बहू को…

 राघव:  मां…! मैं सोच रहा था कि जब इस बार अरुणा आएगी… हम सहपरिवार किसी ठंडी जगह पर घूमने चलेंगे… क्या कहती हैं आप..?

 कावेरी जी थोड़ी सकपका कर कहती है… हां…. पर मुझे ठंड रास नहीं आती…

राघव:   कुछ नहीं होगा मां..! आप अच्छे से गर्म कपड़े ले लीजिएगा… ओह..! गर्म कपड़े से याद आया…. अरुणा को भी कह दीजिएगा… वह जब यहां आए गर्म कपड़े लेकर ही आए…. रूकिए..! मैं उसे अभी कॉल करता हूं…

 कावेरी जी:   रहने दे बेटा..! मैं उससे कह दूंगी… अभी तो वह घर पर भी नहीं होगी… नानू को खिलाने पार्क ले जाती है ना…

 राघव:   नहीं मां… मुझे उसे खुद बताना है… देखिएगा वह खुशी से उछल पड़ेगी…




फिर राघव अरुणा को कॉल करके फोन स्पीकर पर कर देता है…

 राघव:  हेलो बहना..! क्या कर रही हो..?

 अरुणा:   कुछ नहीं भैया… बस टीवी देख रही थी…

 राघव:  सुन..! एक खुशखबरी है.. जब तू गर्मियों की छुट्टी में इस बार यहां आएगी, तब हम सभी शिमला चलेंगे घूमने…

अरुणा:   यह क्या कह रहे हो भैया…? मैं तो इस छुट्टियों पर आ ही नहीं रही और यह बात मैंने आपको और मां दोनों को ही तो बताई थी… क्योंकि मेरी ननद  सहपरिवार यहां आ रही है… अरुणा यह सब जब कह रही होती है, राघव, कावेरी जी राधा सभी वहां मौजूद थे…

कावेरी जी अपनी चोरी पकड़ी जाते देख अपनी नज़रें नीची कर लेती है… और राघव बात को संभालते हुए अरुणा से कहता है… ओह सॉरी.. सॉरी… यह बात तो हमारे दिमाग से ही निकल गई… फिर वह फोन रख देता है और अपनी मां से कहता है… मां..! राधा ने कभी अपनी जिम्मेदारी को नजरअंदाज नहीं किया…. पर फिर भी आप उसके साथ..? जब वह इस परिवार के लिए इतना सोचती है, तो हमें भी उसके बारे में सोचना चाहिए और जब अरुणा भी नहीं आ रही… फिर भी आप इसे जाने नहीं देना चाहती..? ऐसा क्यों मां..?

 कावेरी जी:   बेटा…! इसमें गलती सिर्फ मेरी ही नहीं, इसकी भी है…. जब भी कोई छुट्टी या त्यौहार आता है… इसे अपने मायके ही जाना होता है… यह नहीं समझती कि मुझे भी इसकी आदत हो गई है…. पूरे दिन बस हम दोनो ही साथ रहते हैं…. हंसते बोलते हैं… तो हमारा दिन कितने अच्छे से निकल जाता है… और जब यह और बच्चे घर पर नहीं होते, यह घर काटने को दौड़ता है…




 मानती हूं… वह उसका परिवार है और उसका भी वहां जाने का मन करता होगा… पर मैं..? मेरा क्या..? क्या मैं इसके परिवार में नहीं आती…? जो बार-बार यह मुझे छोड़कर जाने के लिए कहती है… अपने लिए तो रोक नहीं सकती… इसलिए अरुणा का ही नाम लगाना पड़ा… सोचा था 1 दिन पहले अचानक से अरुणा नहीं आ पाएगी, कह दूंगी… पर मुझे क्या पता था कि अरुणा ने तुझे भी कहा है…?

राघव:  मां…! यह बात तो आप इसे भी कह सकती थी… इतना सब करने की क्या जरूरत थी..? यह बात अगर आज आपकी जो ना पकड़ी जाती, तो राधा की गलतफहमी बढ़ती ही रहती… उसे लगता की, आपको उसकी भावनाओं की कदर नहीं…  मां…!आपको कैसा लगेगा जब अरुणा सालों साल यहां नहीं आ पाएगी…? तब आपको भी लगेगा कि वह नए परिवार को पाते ही, अपने परिवार को भूल गई…

कावेरी जी:  माफ कर दो बहू..! अपने स्वार्थ के आगे, तुम्हारा दुख देख नहीं पाई… अबसे तुम जब जाना चाहो… चली जाना…

 राधा रोते हुए… पता नहीं मम्मी जी… मैंने कौन से ऐसे पुण्य किए थे..? जो सास के रूप में मुझे मां मिल गई… जिस तरह एक मां नहीं चाहती, उसकी बेटी उससे दूर जाए… उसी तरह मेरी यह मां भी नहीं चाहती..

 कावेरी जी:   हां…! सास क्यों नहीं मां बन सकती…? पर क्या करें..? ज़माना ने सास को खामखा बदनाम कर रखा है.. पर अब मुझे भी लगता है,  यह बुढ़िया तो सठिया गई है…. और अब वह तेरी आजादी नहीं थी छिनेगी… क्योंकि वहां भी एक बुढ़िया रहती है, जो अपनी बेटी की राह तकती होगी…

फिर दोनों भावुक होकर गले लग जाते हैं..

 दोस्तों… एक स्त्री को शादी के बाद अपने परिवार से अलग होना पड़ता है और यह कोई आसान काम भी नहीं… पर कभी-कभी वह अपने नए परिवार में ऐसे रम जाती है, कि वहां के लोग उससे बिछड़ना नहीं चाहते…. पर संतुलन तो बनाए रखना पड़ेगा ना…? और हमें एक दूसरे की भावनाओं को भी समझना पड़ेगा…

धन्यवाद 

स्वरचित/मौलिक/अप्रकाशित

रोनिता कुंडू

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