शहर की हलचल से कुछ दूर, एक शांत मोहल्ले में जानकी जी अपने पति अवध नारायण जी और दो जुड़़वां बेटों अमित और नमित के साथ रहती थी। एक बड़ी बेटी शुचिता थी जिसका विवाह हो चुका था।
दोनों भाई न सिर्फ सूरत में एक जैसे थे, बल्कि उनके विचार और व्यवहार भी इतने मिलते-जुलते थे कि लोग उन्हें एक आत्मा के दो शरीर कहते थे। वे कोई भी काम एक दूसरे को छोड़कर नहीं करते थे उन्होंने एक साथ ही शिक्षा भी पाई थी और दोनों की जाब भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में सीनियर रिसर्च की पोस्ट में डायरेक्ट हुई थी ।
दोनों का स्नेह देख लोग कहते इन दोनों में अभी तो बड़ा लगाव है पर जब शादी के बाद इन दोनों की बहुओं में भी इसी तरह का प्रेम हो वरना आजकल घर टूटते देर कितनी लगती है ।
यह बात सुनकर जानकी जी का दिल धड़कने लगता पर यह सोच कर चुप हो जातीं जब जो जैसा होगा वैसा करेंगे दोनों भाइयों की जिद के कारण उन्होंने दोनों के लिए लड़की ढूंढने का निश्चय किया और शादी की तारीख एक ही दिन की तय कर दी। अमित की शादी दीपिका से और नमित की रुचिका से।
शादी के शुरूआती दिन बहुत उत्साह से भरे थे, घर में रौनक थी और जानकी देवी, को लग रहा था कि अब उनके घर में दो बेटियाँ आ गई हैं। लेकिन धीरे-धीरे घर की खुशियों पर एक हल्की सी चटकाव की परछाईं
देख जानकी जी का मन सचेत हो गया था अभी दोनों दुबारा में ही आईं थीं ।
दीपिका जहां शांत स्वभाव, मृदुभाषी और हर काम को समय पर करने वाली थी, वहीं रुचिका पश्चिमी सोच वाली, आत्मकेंद्रित ,एकाकी और शिकायतों में डूबी रहने वाली बहू साबित हो रही थी यही मनमुटाव का कारण भी हो रहा था। बाहरी देखने वाले भी एक नजर में समझ जाते दोनों के स्वभाव कैसे हैं । वे तो दीपिका की समझदारी से घर में शान्ति बनी हुयी थी।
रुचिका को परिवार के काम या परिवार के दायित्व में कोई रुचि नहीं थी । दीपिका दिन भर माँ जानकी के साथ हर काम में हाथ बँटाती,उनके दुख-सुख का ध्यान रखती। वहीं रुचिका का ज़्यादातर समय फोन ,टीवी और सैर-सपाटे में बीतता।
जानकी देवी की परेशानी बढ़ती जा रही थी। एक सास होने के नाते दोनों बहुओं से समान स्नेह रखना चाहती थीं, लेकिन जब एक बहू सहयोग करे और दूसरी टालमटोल, तो यह संतुलन आसान नहीं होता। उन्होंने कई बार समझाने की कोशिश की, पर रुचिका के व्यवहार में कोई फर्क नहीं आया।
एक शाम जानकी देवी ने अमित और नमित को पास बुलाया। उन्होंने शांत स्वर में कहा, “बेटा, परिवार में प्रेम बनाए रखने के लिए कभी-कभी समझदारी से कुछ योजनाएँ बनानी पड़ती हैं। मैं चाहती हूँ कि तुम दोनों अपनी पत्नियों को जीवन का असली अर्थ सिखाओ—साझेदारी और परिवार के सम्मान का।”
दोनों बेटे अपनी माँ के इस मासूम पर गहन प्रस्ताव से सहमत हो गए। उन्हें भी कुछ आहट लगी थी पर जब तक माँ न कुछ कहे तो कैसे पहल करे ? अगले ही दिन से योजना पर अमल शुरू हो गया ।
दीपिका ने अमित के कहने पर एक ऑफिस में नौकरी ज्वॉइन कर ली वह शादी के पहले भी काम करती थी और कछ दिन घर में रहकर सबको समझना चाहती थी। अब घर का सारा काम बँटा हुआ था—जो ऑफिस जाए, वे सुबह का खाना बनाकर जाए, रात का खाना और बाकी दिन का काम दूसरी बहू संभाले।
शुरू में रुचिका को लगा कि यह उसके लिए बहुत अच्छा रहा अपना-अपना। लेकिन दीपिका काम में दक्ष थी, वह समय पर सब सँभाल लेती थी । अभी तक दीपिका ही अमित और नमित का लंच पैक कर देती थी अब नमित का छोड़ देती थी।
रुचिका का आलसीपन अब उसके पति नमित को भी खटकने लगा था । धीरे-धीरे नमित की नाराज़गी बढ़ने लगी । ऑफिस समय पर निकलने में रोज खींचतान होने लगी थी।
तभी एक दिन जानकी देवी सीढ़ियों से गिर गईं। डॉक्टर ने एक महीने का बेडरेस्ट बताया। अब तो जिम्मेदारी और बढ़ गई। दीपिका ने कहा, “मैं तो दिनभर ऑफिस में रहूँगी, माँ की रात में देखभाल कर लूँगी। दिन में रुचिका संभाल लेगी।” यह सुनते ही रुचिका के होश उड़ गए। अब वह न तो काम टाल सकती थी, न बहाना बना सकती थी।
धीरे-धीरे, मजबूरी में ही सही, उसने काम सीखना शुरू किया। दीपिका ने कोई कटाक्ष नहीं किया, उल्टा उसके काम में मदद की। यह सहयोग रुचिका को छू गया। एक दिन उसने दीपिका से कहा, “आप जैसी ननद तो सुनी थी, लेकिन जिठानी होकर आपने जो साथ दिया, वह मैं कभी नहीं भूलूँगी ।
नहीं रुचिका जिंदगी मौज मस्ती के साथ-साथ जिम्मेदारी का भी नाम है जब हम जिम्मेदारी अच्छे से निभाएंगे तभी हम आपस में बैठ के मौज-मस्ती से रह सकेंगे। क्या तुम अपने घर में ऐसे ही पूरा दिन मोबाइल या टीवी देखती रहती थी ।
न भाभी माँ तो पूरा दिन काम कराती और कहती अपने घर में जाकर मौज मस्ती करना। दीपिका सारी कहानी समझ चुकी थी,दोनों हम उम्र की होते हुए भी दीपिका रुचिका से परिपक्व थी।
पर मैंने कभी सोचा ही नहीं रुचिका तुम्हारी कुछ गलतियां नहीं । केवल मेरे और तुम्हारे संस्कारों का फर्क है वैसे तुम स्वभाव की बुरी नहीं ,बहुत भोली हो । परिवार सहयोग से ही चलते हैं देखती नहीं अमित और नमित किस तरह से एक-दूसरे के साथ प्यार से रहते हैं आज से हम दोनों भी क्यों न बहनों की तरह रहें।
अब दोनों एक-दूसरे की जिम्मेदारियाँ बाँटने लगीं। जो पहले प्रतिस्पर्धा थी, वह अब सहयोग बन गया। जानकी देवी अब न केवल चैन की नींद सोने लगी थीं, बल्कि उनकी आँखों में खुशी के आँसू भी झलकने लगे थे।
एक दिन जब कोई रिश्तेदार मिलने आया तो जानकी देवी मुस्कराते हुए बोलीं,
“पहले मेरी दोनों बहुएँ बहू लगती थीं, अब तो बहन जैसी रहती हैं… और मुझे लगता है, यही मेरे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है। पहले मेरे एक बेटी सुचिता थी अब तो दो बेटियां हैं दीपिका और रुचिका।
मेरी बड़ी बेटी दीपिका बहुत ही समझदार है और छोटी बेटी रुचिका भोली और थोड़ी सी नटखट नादान, दिल की मिश्री सी । पर मुझे पता है इसकी बड़ी बहन इसके कान खींच , रुचिका की गाड़ी पटरी से उतरने नहीं देगी”
यह वही घर था जहाँ कभी शिकायतें थीं, अब वहाँ अपनेपन के ठहाके गूंज रहे थे । जहाँ बहसें थीं, अब वहाँ हँसी थी। क्योंकि जब दिल मिलते हैं, तभी घर ,घर लगता है।
स्वरचित और मौलिक
डा०विजय लक्ष्मी
“अनाम अपराजिता”
#मेरी दोनों बहू आपस में बहन जैसी रहती हैं।