निलेश एक प्राइवेट कंपनी में अच्छे पद पर था। सुबह 8 बजे निकलना और रात को 8 बजे लौटना उसका रोज़ का रूटीन था। निलेश के परिवार के पास सुख सुविधा सब कुछ था ।
घर में उसकी पत्नी सुजाता और छह साल का बेटा आयुष उसका इंतज़ार करते थे, लेकिन निलेश के पास वक्त नहीं था — या यूँ कहिए, वो वक्त निकालना भूल गया था।
आयुष रोज़ शाम को दरवाज़े पर खड़ा होता और पूछता,
“पापा, आज आप मेरे साथ कार रेस खेलोगे?”
निलेशथकी हुई मुस्कान के साथ कहता,
“नहीं बेटा, बहुत काम था आज। फिर कभी…”
एक दिन स्कूल में “ड्रीम डे” था। हर बच्चे से कहा गया था कि वह अपने सपनों के बारे में एक ड्रॉइंग बनाए।
आयुष ने जो चित्र बनाया, उसमें वह अपने पापा के साथ पार्क में खेल रहा था। ऊपर लिखा था:
“मेरे पापा हीरो हैं। वो हर रविवार मेरे साथ खेलते हैं – बस यह सपना है अभी, लेकिन एक दिन सच्चा होगा!”
जब सुजाता ने वो ड्रॉइंग निलेश को दिखाई, तो वह चुपचाप बैठा रह गया। आयुष तो सो चुका था, लेकिन निलेश की नींद उस रात उड़ गई। वह दीवार पर लगी आयुष की बचपन की तस्वीरों को देखता रहा — पहली मुस्कान, पहला कदम, पहला शब्द — और हर लम्हे में अपनी हाज़िरी ढूँढता रहा।
वो सोचने लगा कुछ फिर कुछ दिमाग में आया तो मुस्कुरा कर शांत मन से सो गया।
अगले दिन रविवार था, जब आयुष उठा, तो निलेश नाश्ते की टेबल पर बैठा उसका इंतज़ार कर रहा था। हाथ में एक छोटा-सा गिफ्ट पैक था।
आयुष ने पूछा, “पापा, ये क्या है?”
निलेश ने कहा, “तुम्हारे लिए छोटा सा तोहफा।”
आयुष ने खोला, तो उसमें एक नोटबुक थी, जिस पर लिखा था:
“पापा-आयुष टाइम टेबल – हर रविवार सिर्फ हम दोनों का दिन!”
उस दिन पहली बार आयुष ने अपने पापा को बच्चों की तरह खिलखिलाकर हँसते देखा। उन्होंने पार्क में झूले झूले, आइसक्रीम खाई, और एक-दूसरे को ढेर सारी कहानियाँ सुनाईं।
अब हर रविवार को आयुष के कमरे में एक नया पन्ना जुड़ता उनकी हँसी, उनकी मस्ती, और एक नई याद।
सालों बीत गए
आयुष अब 24 साल का हो गया था — एक होशियार और संवेदनशील युवक, जो एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता था। लेकिन उसके लिए हर रविवार अब भी खास होता था, क्योंकि वो दिन आज भी “पापा के नाम” रहता था। लेकिन ऐसा नहीं था कि आयुष को अपनी मां सुजाता से कोई प्यार नहीं था ,वो अब दोनों को लेकर खास रविवार मनाता उस दिन सुजाता को कुछ काम करने नहीं देता था ।आयुष चाय बनाता और तीनों साथ में चाय पीते पीते सारे दिन के कार्यक्रम का प्लान बनाते थे।
एक दिन निलेश की तबीयत थोड़ी खराब हुई। डॉक्टर ने कहा —
“थोड़ा आराम की ज़रूरत है, और मन को हल्का रखने की।”
आयुष ने कुछ नहीं कहा। लेकिन अगले रविवार को आयुष ने घर पर ही निलेश के खास दोस्तों को उन सब की पत्नियां जो सुजाता की सहेलियां थी सबको चुपके से इनवाइट करता हैं ।सुबह मां और पापा को अपनी मामा जी के घर ले जाता हैं घुमाने और मामा मामी को छुप कर सब सरप्राइस पार्टी के बारे मे बताता है तो वो दोनों निलेश और सुजाता को शाम तक रुकने को कहते हैं और आयुष भी कहता हैं ,” पापा मां आज हमारे ऑफिस में एक स्पेशल लंच पार्टी है तो मैं भी घर पर नहीं रहूंगा तो आप दोनों का मन लगे रहेगा और मैं शाम को आप दोनों को लेकर जाऊंगा “।
वो दोनों मान जाते है।
इधर आयुष घर पर पार्टी का इंतजाम करने लगा शाम सात बजे से पार्टी शुरू होगी तो आयुष अपने मामा के पास दोनों के पार्टी लायक कपड़े दे आया था जो उसके मामा ने इमोशनल बातें कर के उनको पहनने को मजबूर करते हैं ।
निलेश और सुजाता ने कपड़े पहने और आयुष का इंतेज़ार करने लगे।आयुष के मामाजी ने उनके सामने आयुष को कॉल किया और बोले,” बेटा मैं दीदी जीजाजी को पहुंचा दूंगा तू ऑफिस से आया है थका हुआ तू आराम कर मैं सात बजे तक आता हूं ओके”।
असल में निलेश को हेवी खाना खाने की मनाही थी तो आयुष की मामी ने लाइट डिनर बना कर निलेश को दिया तो सुजाता ने फिर निलेश को दवा भी दे दी।
अब सात बजे वो दोनों घर के बाहर कार से उतरे तो घर पूरा अंधेरा था सुजाता को अजीब लगा और बोली,” यह आज आयुष ने घर की लाइट्स क्यों नहीं जलाई “?
निलेश भी यही सोच रहा था लेकिन मामाजी मुस्कुरा रहे थे मन ही मन।
तीनों अंदर आए बेल बजाई तो किसीने दरवाजा नहीं खोला सुजाता ने दरवाजे पर थोड़ा हाथ लगाया तो खुल गया दरवाज़ा।
यह सब कुछ सोचते उससे पहले ही ऊपर से फूलों की बारिश होती है और लाइट्स ऑन हो जाती है सब हँसने लगते है निलेश अपने दोस्तों को और सुजाता अपनी सहेलियों को देखकर बिल्कुल आश्चर्य में पड़ गए।
पार्टी में निलेश और सुजाता ने अपने दोस्तों के साथ पुराने दिनों को याद किया बैठकर फिर पुराने गानों पर कपल डांस किया सबने ।आयुष बैठकर सब देख रहा था और खुश हो रहा था तभी उसके पास वाली चेयर पे एक लड़की आकर बैठी आयुष उसकी और देखने लगा और उसे वो लड़की बोहोत पहचानी सी लगी।वो लड़की भी अब आयुष की और देखी फिर अचानक हंसके बोली ,” तुम ही आयुष हो ना !सुजाता आंटी के बेटे”?
आयुष ने हां में सर हिलाया तो वो बोली ,” मुझे नहीं पहचाना क्या”?
आयुष बोला,” दरअसल मुझे आप जानी पहचानी लगी पर याद नहीं कर पाया ,आप ही अपना परिचय दे दीजिए प्लीज “।
“अरे मैं श्रेया रॉय भूल गए ! बचपन में मैं अपनी मम्मी तुम्हारी नीता आंटी के साथ आती थी यहां”।
आयुष को सब याद आने लगा,” अरे तू श्रेया हैं सॉरी बोहोत साल हो गए हैं ना मिले हुए तो याद नहीं आया, अच्छा खाना खाया तुमने”?
श्रेया मुस्कुराते हुए बोली,” नहीं अकेले मन नहीं किया”।
आयुष झट से बोला ,” अगर तुम्हे ऐतराज़ ना हो तो मेरे साथ डिनर कर सकती हो”।
फिर वो दोनों खाना खाते हुए पुराने दिनों की बातें अभी की बातें करने लगे।
पार्टी खत्म हुई तो श्रेया ने आयुष को कहा ,” जरा अपना मोबाइल देना”।
आयुष ने दिया तो श्रेया ने कुछ नंबर डायल किया तो श्रेया का फोन बजने लगा।
श्रेया ने कहा,” यह मेरा नंबर सेव कर लो”।
आयुष बोला,” थैंक्स नंबर देने के लिए मैं मांग नहीं पाता खुद से”।
श्रेया जरा शरमा गई फिर अपनी मम्मी पापा के साथ चली गयी।
अगले एक महीने में श्रेया और आयुष एक दूसरे को प्रपोज कर चुके थे लेकिन घर पर नहीं बोल पाए।
एकदिन सुजाता निलेश से बोली ,”आयुष के लिए मैने एक लड़की पसंद की हैं “।
निलेश बोला,” हमारा बेटा अगर किसी और को चाहता है तो क्या करोगी”?
सुजाता बोली,” मेरा बेटा जिसे भी पसन्द करेगा उसी से शादी करवाऊंगी”।
निलेश बोला,” वैसे तुमने किसे पसन्द किया था “।
सुजाता बोली,” नीता की बेटी श्रेया को “।
इधर आयुष ने आज अपने और श्रेया के रिलेशनशिप के बारे मे मां पापा को बता देने के बारे मे सोच रहा था ।
शाम को आयुष अपने पापा मम्मी के साथ बैठकर चाय पी रहा था तो सुजाता ने कहा,” आयुष तेरे लिए मैने एक लड़की पसंद की हैं”।
आयुष चौंक गया फिर बोला,” मां पापा आप दोनों मेरी जिंदगी का हर फैसला ले सकते हैं ,पर मुझे आपलोगों ने ही सिखाया है कि अपने दिल की बात अपनो से नहीं छुपानी चाहिए इसलिए मैं कह रहा हूं कि मुझे एक लड़की पसंद है अपने जीवनसाथी के रूप में ,आप दोनों भी उसे बोहोत अच्छे से पहचानते है वो श्रेया हैं नीता आंटी की बेटी”।
सुजाता और निलेश एक दूसरे को देखकर फिर आयुष को देखने लगे और जोर से हसने लगे।
आयुष का दिमाग काम करना बंद हो गया उन दोनों की हंसी सुनकर।
निलेश ने फिर हंसी रोक कर कहा,” बेटा तेरी मां ने भी श्रेया को ही पसन्द किया था तेरे लिए”।
आयुष के चेहरे पर अचानक खुशी दिखाई देती हैं और वो भी हंसने लगता हैं ।
अगले दो महीने में आयुष और श्रेया की बहोत ही भव्य रूप से शादी हो जाती हैं।
अभी भी आयुष अपना रविवार पूरे परिवार के साथ ही बिताता है श्रेया भी उन तीनों के साथ घुलमिल गई थी। उन चारों को देख कर लगता था जैसे अगर परिवार हो तो ऐसा हो
।
हम अक्सर बच्चों को देने में लगे रहते हैं, पर जब बच्चे बड़े होकर हमें लौटा देते हैं वही प्यार, तो ज़िंदगी मुकम्मल हो जाती है।
लेखिका : सोमा शर्मा