मैं उस समय सोलह साल का रहा होऊंगा जब पहली बार उसे महावर लगाए,आंगन में खड़े देखा था राधा नाम था उसका,दुबली पतली सी काया लेकिन आंखों में उम्मीदों का सागर ।
मुझ से मुश्किल से दो साल बड़ी थी पहली नजर में मुझे उससे हमदर्दी सी महसूस हुई लेकिन मैंने खुद को उससे दूर रखना ही उचित समझा, आखिर हमारा रिश्ता ही ऐसा था वो मेरे जन्मदाता की तीसरी पत्नी बन कर आई थी जीहां जन्मदाता उस व्यक्ति को पिता नहीं मानता मैं आइये बताता हूं क्यूं..
मेरी मां की मृत्यु मेरे जन्म के कुछ ही समय बाद हो गई थी, लगभग दो साल तक ननिहाल और ददिहाल के बीच में पलता रहा फिर दादी और भूवा के समझाने पर उन्होंने दूसरी शादी कर ली और आ गई मेरी सौतेली मां, उन्हें घर तो ले आए, मेरी मां भी बना दिया लेकिन अधिकार कोई नहीं दिया ,घर में दादी की हुकूमत चलती थी साथ में रहती थी एक विधवा भूवा जो हर वक्त आग में घी डालने का काम किया करती थी, छोटी से छोटी बात पर डांटना तो आम बात थी ,
अपनी मां और बहन की बातों में आ कर अक्सर उसे पीट भी देते थे, सौतेली मां मुझे बहुत प्यार करती थी ,लेकिन उनका प्यार हमेशा कसौटी पर कसा जाता,सब कर के भी वो गुनाहगार ठहरा दी जाती, पर ना जाने कौन सी मिट्टी से बनी थी सब सह कर चुपचाप काम करती रहती , समय के साथ तीन और भाई बहन पैदा हो गये,वो हम चारों को अपने आंचल में छुपा कर रखती, हमें कोई आंच ना आने देती।
रोज रोज की घटनाएं मेरे बाल मन पर गहरा असर छोड़ रही थीं , मेरी जन्मदाता से ना के बराबर बात होती उम्र के साथ साथ मेरी नफरत और उनसे फासला भी बढ़ रहा था, मैं अपनी सौतेली मां को इस नरक से मुक्त कराना चाहता था इसलिए खूब मन लगाकर पढ़ाई करता ताकि कुछ बन जाऊं और उन्हें अपने साथ ले जाऊं पर एक बार फिर विधाता ने अपना खेल दिखाया, जिंदगी के कष्टों ने उन्हें हरा दिया और जब मेरी छोटी बहन अमिता तीन साल की थी वो चिरनिंद्रा में लीन हो गयी और मैं फिर से अनाथ हो गया ।
हमारे परिवार की गिनती रईसों में होती थी और राधा की मां को गरीबी ने समय से पहले ही बूढ़ी और बीमार कर दीया था , जब जन्मदाता से शादी की बात उठी, उन्होंने सोचा लड़की को कम से कम भर पेट खाना,बदन पर कपड़ा और सर पर छत रहेगी इस तरह राधा हमारे घर आ गई, मैं उससे दूर ही रहता था, वो मेरी हम उम्र थी मां बुलाते अजीब लगता था लेकिन रिश्ते में तो मां थी सो नाम से भी नहीं बुला सकता था इसलिए बहुत जरूरी होता तभी बात करता और आप से काम चला लेता, मैंने खुद को पढ़ाई में और व्यस्त कर लिया फलस्वरूप दो साल बाद ही आगे की पढ़ाई के लिए बाहर चला गया, एकबार जो निकला वापस मुड़ कर नहीं देखा,कुछ साल विदेश में रहने के बाद देश वापस लौटा अपना कारोबार शुरू किया।
ससुर भी पिता होते है…. – पूनम भारद्वाज : Moral Stories in Hindi
घर तो वापस नहीं गया लेकिन भाई बहनों से कभी कभी बात करके खोज-खबर ले लेता था, मेरा अब अपना परिवार भी था। मेरे जाने के कुछ साल बाद ही रमा का ब्याह हो गया था ,सुना है राधा ने छोटी उम्र में विवाह का विरोध किया था लेकिन रमा खुद उस नर्क से निकलना चाहती थी सो ब्याह कर लिया, अभी साल भर पहले करन का भी ब्याह हो गया और अमिता अपनी पढ़ाई में व्यस्त थी।
अचानक एक दिन करन ने फोन किया दादा जल्दी आ जाओ पिताजी नहीं रहे, मैं दादी के मरने पर भी नहीं गया था ,लेकिन पत्नी के समझाने पर बच्चों को नानी के पास छोड़ कर हम दोनों चले गए।पूरे पंद्रह साल बाद गांव लौटा था, काफी कुछ बदल गया था,सब काम खत्म किया तभी वकील साहब आये और पता चला सब जायदाद मेरे और करन के नाम है, रमा और अमिता की तो गिनती ही क्या करना जब राधा के नाम भी एक पैसा तक नहीं छोड़ा उस नराधम ने ,सत्रह साल उनके बच्चे पाले,गाली,थप्पड़, जूता ,लात सब सहा वापस सडक पर आने के लिए ?
राधा के पास तो अपना बोलने के लिए कुछ नहीं था ,जो थोड़े से गहने थे वो अमिता की डाक्टरी पढ़ाई में खर्च कर दिये थे, पता चला अमिता की भी शादी तय हो गई थी लेकिन अमिता डाक्टर बनना चाहती थी इसलिए राधा ने करन की मदद से उसे भगा दिया, राधा को बहुत मारा-पीटा गया लेकिन उसने अमिता का पता नहीं बताया और अब वो बिल्कुल खाली हाथ थी, उसकी आंखों में अजीब सा सूनापन था,वो एकदम गुमसुम एक कोने में बैठी थी ।
मालती और मैं उसे अपने साथ ले आए,कुछ समय लगा लेकिन बच्चों के साथ वो घुल-मिल गयी, मैं जब जब उसको देखता उसकी मासूमियत मुझे गहरे तक कचोट जाती लगता मैं उसका गुनाहगार हूं वैसे भी कहते हैं ना माता-पिता के गुनाहों की कीमत बच्चों को चुकानी पड़ती है। दिन इसी तरह बीत रहे थे, राधा बच्चों के अलावा मालती से भी कुछ खुल गई थी मगर मेरे और उसके बीच एक अजीब सी तनावपूर्ण स्थिति रहती,मैं अब भी उससे आंखें नहीं मिला पाता था बात करनी तो बहुत दूर की बात है लेकिन एक फ़ोन ने सब बदल दिया । करन का फोन आया भूवा बहुत बीमार है दादा आपसे मिलना चाहती है, स्वाभाविक रुप से मेरी पहली प्रतिक्रिया ना जाने की थी परन्तु मालती ने समझा कर आखिर मुझे जाने के लिए राजी कर लिया।
भुवा की हालत बहुत गंभीर थी अंतिम सांसें गिन रही थी, मुझे देख कर दोनो हाथ जोड़ दिए, टूटे-फूटे शब्दों में जो कहा वो ये था “तेरे बाबूजी तेरी मां से बहुत प्यार करते थे पांच साल बाद भी बच्चे नहीं हुए तो गांव में बातें बनने लगी लेकिन तेरे बाबूजी दूसरे ब्याह को तैयार नहीं हुए फिर तेरे आने की खबर आई तो लगा सब ठीक हो गया लेकिन तुझे पैदा करने के बाद तेरी मां चल बसी, दादा टूट गया था सबके समझाने से फिर तेरे लिए दूसरी शादी करी, लेकिन मुझे बहुत जलन हो रही थी क्योंकि मैं एक बाल विधवा हूं
10 बरस की उम्र में ब्याह हुआ 12 की उम्र में विधवा हो गई और बापू के घर आकर बैठ गई , जीवन में कभी कोई खुशी नहीं देखी,वह मर्द था इसलिए उसकी शादी की बात हुई लेकिन मैं लड़की थी मेरा किसी ने नहीं सोचा ,बस जलन में भाई का तो कुछ बिगाड़ा नहीं लेकिन तेरी छोटी मां से मैं मन ही मन डाह रखने लगी ,यहां वहां की लाग लगाने लगी ,झूठी सच्ची शिकायतें जाने क्या-क्या वह बेचारी बहुत अच्छी थी किसी से कुछ नहीं कहती ,सब सहन करती रहती पर तुझे बहुत प्यार करती थी , जितना वह सहन करती गई मेरे अंदर कड़वाहट उतनी ही बढ़ती गई,
मुझे उसे तकलीफ में देखकर खुशी होती थी , आखिर उसने हमारे जुल्मों के आगे हिम्मत हार दी। फिर राधा आई लेकिन मेरे छल प्रपंच रुके नहीं मैंने उसे भी बहुत कष्ट दिए हैं ,अब मेरा अंत समय है ,अब मुझे मेरे पाप साफ साफ दिखाई दे रहे हैं, आगे भगवान के घर जाना है ,मुक्ति नहीं मिल रही है शायद अपने कर्मों का प्रायश्चित कर लूं तो मुक्ति मिल जाए बेटा तुमसे यही प्रार्थना है मेरे गुनाह माफी के लायक तो नहीं हैं फिर भी अगर तुम मुझे माफ कर सको तो माफ कर दो ,अपनी छोटी मां की तरफ से ,अपनी राधा मां की तरफ से और हो सके तो राधा को दूसरी नित्या मत बनने देना।
बुआ के अंतिम संस्कार के बाद मै वापस आ गया , सबसे पहले जायदाद का एक हिस्सा करन से बात करके राधा के नाम कर दिया, समय अपनी गति से बीत रहा था लेकिन बुआ के शब्द मेरे कानों में गूंजते रहे , समझ नहीं आ रहा था क्या करना चाहिए जिससे राधा का भविष्य सुरक्षित कर सकूं,इसी बीच एक घटना घटी एक दिन मैं और मालती कहीं से वापस घर आये तो देखा राधा बच्चों को होमवर्क में मदद कर रही थी मुझे आश्चर्य में देखकर मालती ने बताया राधा की ड्राॅइंग बहुत अच्छी है
और वह पेंटिंग्स भी बनाती है,जब मैंने उसकी पेंटिंग्स देखी तो दंग रह गया कला का नायाब तोहफा था राधा के हाथों में, उसने अपने जीवन के सारे दर्द को कूची से कैनवस पर जीवंत कर दिया था ,कुछ मित्रों की मदद से मैंने राधा के चित्रों की प्रदर्शनी लगवाई, बहुत ही बढ़िया प्रतिसाद मिला यहां तक की एक बड़ी गैलरी ने राधा को नियमित रूप से काम दे दिया , राधा और मेरे रिश्ते में भी बहुत सहजता आ रही थी, इन्हीं दिनों में मेरे एक मित्र जिन्होंने पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते शादी नहीं करी थी
का हमारे यहां आना जाना बढ़ गया था, मैं देख रहा था कि वो राधा की तरफ बार बार देखते रहते हैं मानो कुछ कहना चाहते हों, मैं उनको भलीभांति जानता था बहुत भले इंसान हैं, आखिर कुछ दिनों के बाद उन्होंने राधा के साथ शादी का प्रस्ताव रख ही दिया, शुरू में उसने हां नहीं कहा मगर हमारे समझाने और मित्र के बार बार निवेदन पर उसने हां कर दी तो एक सादे समारोह में आज उसकी शादी हो रही है और उसकी आंखों में वापस उम्मीद का एक दिया टिमटिमाते हुए देख कर मुझे असीम शांति का अनुभव हो रहा है।
# हमारा बुरा वक्त हमारे जीवन को नई दिशा दे जाता है।
विनती झुनझुनवाला
ये मेरी नयी स्वरचित रचना है आप सभी रचनात्मक विचार और सहयोग दे कर मेरा हौसला बढायें।धन्यवाद।