पति और बच्चों के जाने के बाद मधु घर समेटने में व्यस्त थी।उसी समय उसके फोन की घंटी बज उठी।उसने जल्दी से आकर हाथ में मोबाइल उठाया और हैलो कहा।उधर से आई आवाज सुनकर उसके चेहरे पर आश्चर्यमिश्रित खुशी छा गई।फोन उसके छोटे भाई की पत्नी नीरजा का था। नीरजा ने कहा -“दीदी!आपके भतीजे की शादी तय हो गई है। लड़कीवाले जयपुर के ही हैं,तो शादी जयपुर से ही होगी।आपको सपरिवार शादी में जरूर आना है!”
क्या कहें,मधु को कुछ जबाव सूझ नहीं रहा था।उसने बस हाॅं!हाॅं!कह दिया।
हतप्रभ गुमसुम -सी मधु अतीत की गलियों का सफर करते हुए पाॅंच साल पीछे चली गई।दो बहनों के बाद उसके छोटे भाई अनिल का जन्म हुआ था।घर भर में अनिल सबकी ऑंखों का तारा था। माता-पिता के अलावे सिन्धु और मधु दोनों बहनें भी अनिल को बहुत प्यार करतीं थीं। अनिल की भी जान दोनों बहनों में बसती थी।
वक्त पंख लगाए तीव्र गति से उड़ रहा था। दोनों बहनों की शादी हो गई,परन्तु भाई -बहन का प्यारा रिश्ता बरकरार रहा। अनिल भी पढ़ -लिखकर सरकारी अधिकारी बन गया। उसकी शादी पढ़ी-लिखी सुन्दर नीरजा से हो गई। नीरजा को अपने रूप का बहुत घमंड था। आरंभ से ही उसे ससुरालवालों से कोई अपनत्व का भाव नहीं था, परन्तु नीरजा जब कभी ससुराल आती ,तो उसके सास-ससुर घर की बहू मानकर सिर पर बिठाए रखते।सिन्धु और मधु भी हमेशा उसे छोटी बहन के समान प्यार करतीं, परन्तु नीरजा किसी की भावनाओं की परवाह नहीं करती। अनिल के सद्व्यवहार की आड़ में नीरजा का उपेक्षित व्यवहार उपेक्षित हो जाता।
समय की गति आगे बढ़ रही थी। अनिल के माता-पिता बूढ़े हो चुके थे।अनिल के पिता भी सरकारी अफसर थे। उम्र के साथ दोनों किसी-न-किसी बीमारी की चपेट में आ चुके थे। अनिल की माॅं की दिली इच्छा थी कि अनिल कुछ दिनों उन्हें अपने पास बड़े शहर में रखकर इलाज करवाऍं।एक-दो बार दबी जुबान में उन्होंने बहू नीरजा से भी कहा था, परन्तु नीरजा ने उनकी बात अनसुनी कर दी थी।एक दिन अनिल की माॅं की मौत अचानक से हो गई।उनकी दिली ख्वाहिश अधूरी ही रह गई।
अनिल की माॅं मौत के बाद उसके पिता अकेले रह गए।वे पत्नी वियोग में टूट चुके थे। उन्हें सॅंभालने की जरूरत थी।माॅं की क्रिया -कर्म समाप्त होने पर बड़ी बहन सिन्धु ने कहा -“अनिल!अब पापा अकेले नहीं रह सकते।मधु के तो बच्चे अभी छोटे हैं। मैं पापा को अपने साथ ले जाने को तैयार हूॅं, परन्तु पापा बेटी के घर जाने से इंकार कर रहें हैं।”
नीरजा उनकी बातों को सुनकर चुपचाप दनदनाते हुए अपने कमरे में चली गई। पत्नी के मिजाज को भाॅंपते हुए अनिल ने कहा -“दीदी!यहाॅं तो पापा के पास देखभाल के लिए दो-तीन नौकर हैं।एक तो हमेशा उनके साथ रहता है। जयपुर में तो भरोसे का आदमी मिलना मुश्किल है। हमलोग बारी-बारी से पापा के पास आते रहेंगे।”
आखिरकार अनिल के पिता अपनी बड़ी -सी हवेली में नौकरों के साथ अकेले रह गए। अपने मन का सुख-दुख वे नौकरों से बाॅंट नहीं सकते थे। अंदर-ही-अंदर घुटते रहते थे। तीनों भाई -बहन बारी-बारी से कुछ दिनों के लिए उनके पास आते, परन्तु बच्चों के जाने के बाद तन्हाई उनसे बर्दाश्त नहीं होती। अपनों की तलाश में उनकी ऑंखें तरसतीं रहतीं।पत्नी की मृत्यु के छः महीने बाद ही उनकी भी मौत हो गई।
पिता की मौत से मधु बहुत अधिक भाव-विह्वल हो उठी। छः महीने में ही माता-पिता का साया सर से उठ जाने के कारण उसे खालीपन का एहसास हो रहा था।उसी समय अपनी साख बचाने हेतु नीरजा महिलाओं से कह रही थी -“मैं तो पापा को अपने पास ही रखना चाहती थी, परन्तु पापा जाना ही नहीं चाह रहे थे।”
नीरजा की झूठी बातें सुनकर मधु का सर्वांग झुलस उठा। उसने आहत स्वर में कहा -“नीरजा! कम-से-कम इस वक्त तो झूठ मत बोलो।माॅं-पापा तुम्हारे पास जाने के लिए तड़पते रहें,पर तुमने एक बार भी उन्हें अपने पास नहीं बुलाया।हाॅं! तुम्हारे माता-पिता अवश्य साल में दो बार तुम्हारे यहाॅं आते रहें।”
नीरजा -” दीदी! मैंने तो उन्हें आने से कभी नहीं रोका था!”
मधु -“तुम जानती हो कि माॅं-पापा बूढ़े हो चुके थे।पापा अपने अहं के कारण बिन बुलाए कहीं नहीं जाते थे। उन्हें एक बार भी जाने के लिए पूछना तुम लोगों का फर्ज था।”
उस दिन के बाद से नीरजा ने मधु से मुॅंह मोड़ लिया।एक-दो बार मधु ने बात करने की कोशिश भी की, परन्तु नीरजा ने उसके फोन नम्बर को ही ब्लाॅक कर दिया। धीरे-धीरे अनिल भी बहनों से दूर होता गया।इतने दिनों बाद नीरजा का फोन पाकर मधु कशमकश में थी।वह कोई निर्णय नहीं ले पा रही थी।उसी समय उसके पति दोपहर के खाने के लिए आते हैं।उसे खामोश देखकर पूछते हैं -“मधु !इतनी खामोशी क्यों है?”
सारी बातें जानकर कहते हैं -“मधु!यह बात सच है कि तुम्हारे रिश्तों में गाॅंठ पड़ चुकी है, परन्तु इस शादी में जाकर उस गाॅंठ को और अधिक कसने से अवश्य रोक सकती हो।आगे तुम्हारी मर्जी!”
सब कुछ भूलते हुए मधु ने अपने पति से कहा -” आरंभ से ही रजनी की मुॅंह मोड़ने की आदत रही है।मूझे उसकी परवाह नहीं! मैं भतीजे की शादी में अवश्य जाऊॅंगी!”
मधु के पति टूटे हुए रिश्तों के मधुर-मिलन की कल्पना से मुस्करा उठे।
समाप्त।
लेखिका -डाॅ संजु झा (स्वरचित)
मुहावरा व कहावतों की लघु-कथा प्रतियोगिता