औलाद के मोह के कारण वो सब कुछ सह गई – वीणा सिंह : Moral Stories in Hindi

उफ्फ सुबह सुबह भाई ने ये बुरी खबर दी… दुर्गा चाची एक महीने से सदर अस्पताल में भर्ती थी… आज सुबह चार बजे उनका देहांत हो गया… मैं दुःखी हो गई… चाय का कप किचेन में रखकर बालकनी में आकर बैठ गई… तभी मां का फोन आया… बिट्टी मन दुःखी मत करो… दुर्गा बहन जी गई मरकर… सदर अस्पताल में बहुत बुरी हालत में थी… वृद्धाश्रम वालों ने वहां भर्ती करा दिया था… दिन दिन भर पेशाब पाखाने पर पड़ी रहती… टीबी भी हो गया था… कोई नर्स जल्दी उनके पास नहीं जाती थी.. दोनों बेटा विदेश में थे… मां फोन रख दी…

मैं अतीत में चली गई.. प्रोफेसर कॉलोनी में हमारी पड़ोसी थी दुर्गा चाची और अशोक चाचा जी… इतिहास के प्रोफेसर थे.. मैं इकलौती बहन थी अपने दोनों भाइयों की और दुर्गा चाची को दो बेटे हों थे राहुल और मेहुल… चाची बड़े मनुहार से मुझे अपने घर ले जाती राखी में और दोनों को राखी बंधवाती… हालांकि दोनों मुझसे बड़े थे पर हम साथ साथ खेलते लड़ाई झगड़े भी होते… दोनों भाई शहर के सबसे अच्छे और महंगे स्कूल में पढ़ते थे…

जहां हमारे पेरेंट्स बहुत सोच समझ कर पैसे खर्च करते वहीं दुर्गा चाची अपने बच्चों की हर मांग पूरी करती.…प्लस टू में जाते हैं राहुल महंगे बाइक की मांग की जिसे दुर्गा चाची ने सहर्ष पूरा किया… अक्सर उस समय बिहार सरकार प्रोफेसर लोगों का वेतन टाईम से नहीं देती थी.. तो पी एफ से लोन लेकर जरूरी खर्च होते थे… पर चाची को कोई अंतर नहीं पड़ता…

वक्त गुजरता गया राहुल इंजीनियरिंग की कोचिंग के लिए कोटा चला गया… मेहुल भी अगले साल कोटा गया.. दो दो बच्चों को बाहर भेजने में चाची चाचा का बजट थोड़ा बिगड़ गया पर बच्चों के लाइफ स्टाइल में कोई अंतर नहीं आया… फर्स्ट एसी से नीचे सफर नहीं करते.. ब्रांडेड कपड़े जूते…

         राहुल का सिलेक्शन इंजीनियरिंग में हो गया.. वो भोपाल चला गया पढ़ने… अगले साल मेहुल भी पुणे चला गया… दोनों की पढ़ाई अच्छे से चल रही थी… चाची अपने खाने पीने दवा डॉक्टर पर कटौती करने लगी थी… कहती बच्चे जब इंजीनियर बन जाएंगे तो खाना पीना और घूमना हीं है… कौन सी बेटी है जो दहेज देकर शादी करनी है… मां कट कर रह जाती.. ऐसे हीं गर्मियों के दिन थे.. ऊपर फ्लोर में रहने वाले प्रोफेसर लोगों की फैमिली छत पर बैठी थी.. बच्चे एक तरफ और बड़े एक तरफ… राहुल और मेहुल भी आए थे.. राहुल का कैंपस सिलेक्शन हो गया था… अंतिम वर्ष था उसका.. मेहुल की पढ़ाई दो वर्ष और था…

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        उस समय एक फॉर्म भरना था सभी प्रोफेसर को की पेंशन लेंगे रिटायरमेंट के बाद या एक मुश्त मोटी रकम… मेरी मां पापा को बोली पेंशन हीं भर दीजिए फॉर्म में… हर महीने एक उम्मीद तो रहेगी… तभी राहुल मेहुल उठकर वहां चले गए… बोले मम्मी पापा आप लोग एकमुश्त पैसे ले लो .. हम दोनों आपकी पेंशन है… मेहुल बोला मै एम बी ए करने विदेश जाऊंगा तो पैसे चाहिए… चाची भी गर्व से बोली मुझे पूरा भरोसा है अपने राम लक्ष्मण पर… राहुल बोला घर बनाने की जरूरत नहीं है आप दोनो हमारे साथ रहोगे… चाची चाचा का सीना गर्व से फुल गया…

         वक्त गुजरता गया.. मेरी शादी हो गई…. राहुल दस साल के अनुबंध पर जर्मनी चला गया… मेहुल कनाडा का ग्रीन कार्ड होल्डर बन गया… चाचा को दो बार दिल का दौरा पड़ चुका था… रिटायरमेंट के बाद फ्लैट भी खाली करना पड़ा.. शहर छोड़ कर जाने का मन बना लिए क्योंकि परिचित बेटों के बारे में पूछते और उनकी पेंशन वाले निर्णय पर मजाक बनाते…दूसरे शहर में एक कमरे का घर लेकर बचे खुचे पैसे से गुजारा कर रहे थे.. दोनो बेटे वहीं शादी भी कर लिए… चाचा चाची से उनका संपर्क बिल्कुल खतम हो गया था… एक रात चाचा सोए तो फिर उठे नहीं..

           मकान का किराया नहीं देने पर बीमार चाची को मकान मालिक वृद्धाश्रम छोड़ आया… सात साल वहां रही पर दोनों बेटों ने कभी कोई खोज खबर नहीं ली .. जब उनकी स्थिति बहुत बिगड़ गई तो सदर अस्पताल में भर्ती करा दिया…. अपनी इस स्थिति की जिम्मेवार शायद वो खुद थे… अपना छोटा घर रहता… हर महीने पेंशन के पैसे आते तो शायद ये दुखद स्थिति नहीं आती… सच #औलाद के मोह के कारण वो सब कुछ सह गई #और जीते जी नरक जैसी जिंदगी जी कर गई…

लेखिका : वीणा सिंह

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