ननद एक बड़ी बहन जैसी…. – अमिता कुचया : Moral Stories in Hindi

सुबह से सब काम करके दीपा किचन में रोटी बना रही होती है ,तभी उसकी ननद प्रिया आकर हूंः करके डराती है ,तब दीपा पीछे मुड़कर देखकर कहती- अरे दीदी आप अचानक हैरानी से !!तब वह उसे कहती- देखा भाभी मैनें डरा दिया ना…तो दीपा कहती- दीदी ना कोई फोन, ना मैसेज ,ऐसे भी डराता है, चलिए कोई बात नहीं ,,आइए आइए बैठिये… हां हां भाभी रुको तो सही अब मैं मां को भी चौकाती हूं। देखना भाभी बहुत मजा आएगा…. 

जैसे ही उनके कमरे में प्रिया जाने को करती है ,तब दरवाजे और परदे खुले होते हैं तो उसकी मां रुकमणी उसे देखकर कहती- अरे प्रिया बेटा आज अचानक आना कैसे हुआ!! 

तब उसका पोपट हो जाता है…. 

तब प्रिया कहती -अरे यार…. मां आप को डरा ही नहीं पाई…. भाभी को हूःकरके डरा ही दिया आपका कमरा अंदर है ,पहले में किचन की ओर ही चली गई। खैर छोडो़… 

 मां लोकल मायका होने का तो यही फायदा है, जब मन करे ,तब यहां आ जाओ। ये आफिस जा रहे थे, मुझे लगा कि कितने दिनों से मैं नहीं मिली हूं। इसलिए आ गयी…. 

 तभी रुकमणी जी को गरमागरम रोटी परोसते हुए दीपा कहती- अरे दीदी आप मां को सरप्राइज देकर चौकाया या नहीं, तो प्रिया कहती- कहां भाभी कमरे के परदे और दरवाजे पहले ही खुले थे।चलो कोई बात नहीं फिर कभी मौका मिलेगा….आपको तो चौका दिया ना… बोलो बोलो …. 

तब दीपा कहती- हां दीदी मैं तो डर ही गयी थी।चलो आप सही समय पर आई हो, गरमागरम रोटी आप भी खा लो, आप तो हमेशा ठंडी ही रोटी अपने घर में खाती होगी।क्यों दीदी मैं लगा लूं आपका खाना? 

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इतना सुनते ही उसका मन भी हो जाता है, तुरंत ही हां कहती – फिर गरमागरम रोटी खाती है।और

अब वह खाना परोसकर दीपा कहती -दीदी आप मां से बातें करो ,मैं अभी किचन समेटकर आती हूं। 

जैसे ही दीपा किचन समेट कर ननद और सास के पास बैठती है, तब प्रिया कहती- भाभी आपका सूट तो बहुत अच्छा लग रहा है। भैया लाए हैं क्या!!तो वह कहती – नहीं दीदी ,मेरे भैया ने दीपावली की दोज में दिया है। आज मैंने पहली बार पहना है। मुझ पर ये कलर खिल रहा है ना…. 

तभी उसकी ननद प्रिया कहती- ये क्या भाभी आपने नया सूट घर में पहन लिया, इस पर कोई दाग वगैरह लग गया तो…. 

आप ऐसा करो मुझे दे दो, मैं आने जाने में पहनूंगी। “

तब हिचकिचाहट भरे स्वर में दीपा कहती- दीदी आप कोई दूसरा सूट ले लो, ये मेरे भैया ने बड़े प्यार से दिया है। अरे भाभी मैं पहनूंगी तो क्या हो जाएगा। कुछ दिनों बाद ये आप मुझसे ले लेना, मेरे पहनने का शौक भी हो जाएगा। मुझे बहुत अच्छा लग रहा है, प्लीज दे दो ना भाभी… 

तब दीपा बोली – दीदी आपके भैया भी एक सूट मेरे लिए लाए हैं, वो आप ले लो। पर ये तो खास है मेरे लिए ,मेरे भैया ये सूट गुजरात से खास मेरे लिए लाए हैं। तभी प्रिया कहती -देखो मां…भाभी मुझे मना कर रही है, कैसे ना नुकूर कर रही है, आप कुछ बोलती क्यों नहीं!! बोलो ना भाभी को दे दें। 

तब रुकमणी जी कहती -अरे प्रिया ये कैसी जिद कर रही है प्रिया क्या तेरे पास कोई कमी है क्या…..तू कोई भी छोटी बच्ची है क्या, तू क्वारी होती तो मैं मान लेती और दीपा से भी कहती पहनने दे दे। पर अब तू शादीशुदा है प्रिया, ये सही नहीं है तू समझ अब…. 

तब प्रिया कहती- मां आपको मेरी जिद समझना है तो यही सही, नहीं तो भैया से बात करुंगी। 

तब बुझे मन से दीपा कहती – ले लो दीदी क्या कर सकती हूं। ठीक है कल मैं धुल कर प्रेस करके तुम्हारे भैया के हाथ भिजवा दूंगी। 

इस तरह अगले दिन सूट देकर उदास होकर बैठ जाती है। तब रुकमणी जी कहती -दीपा तू उदास मत हो, प्रिया की तो आदत हो गयी है ,तेरे हर चीज मांगने की, चाहे तेरा मन हो, या न हो। 

हां ना मां आप खुद सोचों मेरे फेवरेट चीजें ही दीदी को चाहिए होती है। पर मैं ये नहीं चाहती कि छोटी छोटी बातें बड़ी हो जाए। इसलिए चुप हो जाती हूं। और दे देती हूं। 

हां सही बात है….रुकमणी हामी भरते हुए कहती है। 

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कुछ सोचते हुए अब दीपा कहती है मुझे ही कुछ करना 

होगा मां जी…. 

तो रुकमणी जी कहती -ठीक है जैसा तुझे ठीक लगे तू कर…….. 

 

कुछ दिनों बाद

 फिर प्रिया आती है, वह कुछ दिन रहती है, वह आदतानुसार सभी सामान दीपा का पहनती है। हर सामान पर अपना हक समझती है तो एक दिन दीपा को कहीं जाना होता तो वह भी प्रिया की चप्पल पहनकर मार्केट चली जाती है। 

अब क्या था ,,प्रिया अपनी चप्पल कहीं पलंग के नीचे, कहीं सोफे के नीचे झांककर देखती है, कभी चप्पल जूते के स्टैंड पर चप्पल देखती है। 

उसे परेशान होता देख रुकमणी जी पूछती- अरे प्रिया क्या देख रही है? कुछ परेशान लग रही है… 

तो वह कहती- मां मेरी चप्पल नहीं दिख रही है ,मुझे अपनी सहेली के यहाँ जाना है।पता नहीं जाने कहाँ गयी मेरी चप्पल….. उसी समय दीपा घर के अंदर आती है, उसके पैरों पर अपनी चप्पल देख प्रिया कहती -ये क्या भाभी आप मेरी चप्पल पहने हो, मुझसे पूछा भी नहीं ,मुझे पसंद नहीं है कि कोई मेरा सामान पहने। तब रुकमणी जी कहती-” अरे प्रिया कैसी बातें कर रही है ?क्या दीपा तेरे लिए कोई हो गयी। और एक तो तू उसकी हर चीज बिना पूंछे पहनती है, उसका क्या…. 

तो मां मैं अपनी चप्पल भी न देखूं,और भाभी बिना बताये भी पहनी है, उसे आप क्या कुछ नहीं कहोगी। 

तब रुकमणी जी कहती- आज जब तेरे अपने पर बात आई तो तुझे बुरा लग रहा है। अगर तेरी चप्पल नहीं मिल रही थी, तो तू भी हमेशा की तरह भाभी की चप्पल पहनकर चली जाती। 

तो वह कहती -नहीं मां मुझे नहीं पसंद है कि भाभी मेरा सामान पहने। 

इतनी बात सुनकर दीपा बोली- ” ठीक है दीदी मैं तो वैसे भी आपकी कोई चीज पहनती नहीं हूँ। मैंने जानबूझकर पहनकर गयी ताकि आप को भी एहसास हो। किसी की मरजी के बिना कोई चीज लेना कैसा होता है दीदी …ठीक है आप मेरी कोई भी नहीं पहनोगी अच्छा ही होगा। 

क्योंकि कोई रिश्ते बिना तालमेल के तो नहीं चलते । कभी मैंने आपकी कोई बात आपके भैया से नहीं बताई, लेकिन अब मैं जरूर बताऊंगी। जो आपको कहना है वो आप भी कहना। वो तो मैं नहीं चाहती थी कि घर में छोटी छोटी बातें बड़ी बने। आपको मै दीदी- दीदी करते थकती नहीं थी। मैं आपको अपनी बहन का ओहदा देती थी। पर रिश्ते तो दोनों तरफ से ही निभाए जाते हैं। और मैं बेवकूफ जैसे एकतरफा रिश्ते को ही ढो रही हूं।

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अब तो प्रिया का मुंह देखने लायक था। उसकी बोलती बंद…. आज पहली बार भाभी को इतना बोलते सुना था। 

तभी रुकमणी जी कहती-तू अपना हक भैया भाभी तक कब तक जमाएगी। जब तक मैं हूं। तब तक ना…ये अपनी आदतें छोड़ दे। तू ब्याही बरी है, कल के दिन तेरे भाई भाभी न पूछेंगे तब पता चलेगा। अभी तो मेरे कारण तेरे भैया भाभी सब तेरी सुन रहे हैं। कल के दिन क्या होगा। ये भी सोच तेरी भाभी ने बहन की तरह समझा, और तू भी उसे मान दे। 

तब वो कहती -मां आज भाभी की बात सुनकर मुझे लग रहा है, कि दोनों तरफ से आपसी रिश्तों में पहल होनी चाहिए, तभी प्रेम बना रहता है । उसकी आँखों में आंसू भर आए। 

और वह कहने लगी- भाभी आप तो मुझे दीदी से नीचे कभी कुछ बोलती न थी। मैं ही बेवकूफ थी जो अपने आप को भैया की ही बहन मानती थी। वास्तविकता में आपने भी मुझे दीदी माना । भाभी सही कहा गया जब खुद पर बीतती है, तब एहसास होता है। आज मुझे भी एहसास हो रहा है भाभी आप मेरी जिद और गलतियों को माफ कर दो। 

इस तरह उन दोनों की बात सुनकर रुकमणी जी कहती देखा प्रिया तेरी भाभी भी छोटी बहन से कम न है ना…. 

प्रिया की तरफ दीपा देखती तो उसे लगता दीदी को अपने कहे का पछतावा है तभी तो इनकी आंखों में आंसू भर आए। तो आगे बढ़कर उनके पास जाकर कंधे पर हाथ रखकर कहती कोई बात नहीं दीदी…. वो भी उनका हाथ पकड़ कर कहती भाभी आपने हमें माफ़ कर दिया ना… 

उसी समय रुकमणी जी कहती

अब तुम दोनों हमेशा एक दूसरे को मान सम्मान देना। तब दोनों एक साथ चहककर कहती-हां मां हम लोग हमेशा एकदूजे को मानसम्मान देकर रहेगें। और दोनों हंसने लगती है। 

 

स्वरचित मौलिक रचना

अमिता कुचया 

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