बेचैन मन – विनय मोहन सिंह : Moral Stories in Hindi

मनोहर एक छोटे से गांव में अपने माता-पिता के साथ रहता था। उसके पिता की गांव में अपनी छोटी सी परचून की दुकान थी। जिसकी कम आमदनी से घर का खर्च बड़ी कठिनाई से चल रहा था। उसके माता-पिता ने मनोहर की शादी पास के ही गांव में एक साधारण परिवार में की थी। अब परिवार में एक नया सदस्य आने से पहले की अपेक्षा खर्च भी अधिक बढ़ गया था। लेकिन ऐसी कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने धैर्य का साथ नहीं छोड़ा था। 

 अब मनोहर ही अपने पिता की दुकान संभालने लगा था क्योंकि उसके पिता ने बढ़ती उम्र और अस्वस्थता के कारण दुकान पर बैठना कम कर दिया था, अब वह दुकान पर बहुत कम बैठने लगे थे। कुछ वर्ष बाद उसके माता-पिता की मृत्यु हो गई और अब उसके दो बच्चे भी हो चुके थे। एक तो उसकी दुकान से कुछ

अधिक आमदनी होती नहीं थी, ऊपर से दो बच्चों का खर्च बढ़ गया था।अब उसने शहर जाकर कमाने का मन बना लिया था ताकि शहर जाकर अच्छी कमाई कर सके। यही सोच कर वह अपनी पत्नी और बच्चों को साथ लेकर अनजान शहर की ओर निकल पड़ा।

इस अनजान शहर में उसका अपना कोई नहीं था। वह नौकरी की आस में कभी इस फैक्ट्री में तो कभी उसमें दिन भर भटकता रहा किन्तु किसी को भी उस पर तरस नहीं आया और वह थक हार कर एक पेड़ की छाया में बैठ गया और दिन भर की थकावट दूर करने की कोशिश करने लगा। सूर्य को भी उसकी बेबसी पर तरस नहीं आया और वह और भी अधिक तेजी से अपनी किरणों से तपाने लगा।

उधर से एक फैक्टरी के मालिक मिस्टर शाह गुजर रहे थे कि अचानक उनकी नजर धूप में झुलसते इस परिवार पर पड़ी तो वह ठहर गये और उनके पास जाकर इस आग बरसाती ,शरीर को झुलसाती हुई धूप में बैठने का कारण पूछा तो उन्होंने समस्त वृतांत कह सुनाया। मिस्टर शाह ने उन्हें अपनी कार में बिठाया और अपने बंगले पर ले गए। उनके रहने के लिए सर्वेंट क्वार्टर खुलवा दिया गया। श्रीमती मनोरमा शाह ने उनके लिए क्वार्टर में चाय नाश्ता भी भिजवा दिया था।

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मिस्टर शाह ने मनोहर को अपनी फैक्ट्री में अच्छे वेतन पर काम पर रख लिया था। अब मनोहर के पास रहने का ठिकाना मिलने के साथ काम भी मिल गया था। मनोहर की पत्नी गौरी दिन भर अपने बच्चों को खिलाती और शाम को जब मनोहर काम से लौटता तो दोनों पति-पत्नी एक साथ भोजन करते और बातें करते सो जाते।

इस तरह उनके दिन आराम से कट रहे थे कि अचानक कोविड नाम की महामारी ने उस शहर को अपना निशाना बना लिया था। अब सभी फैक्टरी मालिकों ने मजदूरों को निकालना शुरू कर दिया और फैक्टरी बंद करने का फैसला ले लिया। उन्हीं में मिस्टर शाह भी थे। मिस्टर शाह ने मनोहर को उसकी मेहनत का मेहनताना और जाने के लिए कुछ राशि देते हुए कहा कि तुम लोगों की सुरक्षा के लिए ही हम सभी ने यह कदम उठाया है ताकि आप सुरक्षित अपने घरों को लौट जायें। इसके अलावा राह में खाने के लिए कुछ भोजन सामग्री का भी इंतजाम कर दिया था।

मनोहर और उसकी पत्नी अपने दोनों बच्चों के साथ अपने गांव सुरक्षित पहुंच गए थे। अब मनोहर ने अपनी दुकान दोबारा खोल ली थी और पास के कस्बे से लोगों की आवश्यकता का सामान लाकर रख लिया था। दुकान से होने वाली कमाई से ही घर का खर्च चलाने लगे थे।

एक दिन शहर में बिताए गए आराम के दिनों को याद करते हुए उसका मन कुछ बैचेन हो उठा था। उसके मन में उद्विगनता थी। तभी उसने किसी को कहते हुए सुना कि उसके गांव में शहर से कुछ लोग फैक्टरी लगाने की दृष्टि से जमीन तलाशने आये हुए हैं जिससे गांव के स्थानीय बेरोजगार युवाओं को रोजगार मिलेगा

और उनको रोजगार के लिए शहर में जाकर अनावश्यक रूप से सरकारी दफ्तरों में चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे , साथ ही ऐसे लोगों को भी रोजगार का अवसर मिलेगा जिनके पास या तो स्वयं का कोई रोजगार नहीं है या फिर उनके पास जो रोजगार है उससे उनके घर का खर्च मुश्किल से चल पाता है।  वह व्यक्ति यह भी कह रहा था कि ये लोग अभी कुछ दिन और ठहरेंगे, यह सुनकर उसके चेहरे की मुस्कान लौट आई।

दूसरे दिन वह अपने दैनिक कार्यों से निपट कर शहर से आये हुए उन लोगों से मिलने चल दिया ताकि उनसे मिल कर अपनी नौकरी की बात कर सकें। कुछ घंटों में वह उनके पास था। तभी उसकी नजर मिस्टर शाह पर पड़ी जो अपने साथ आए हुए लोगों के साथ चाय पीते हुए बातें कर रहे थे। मिस्टर शाह की मनोहर पर जैसे ही नजर पड़ी तो उसे अपने पास बुला लिया और उसके आने का कारण पूछा। मनोहर ने उनसे हाथ जोड़कर विनती की कि आपकी फैक्टरी के लिए मेरी सेवाओं की जब भी जरूरत हो, मुझे अवश्य याद करना। यही विनती है।

मिस्टर शाह  उसके इस कथन में छुपे हुए मंतव्य को भांप गये थे और उसे विश्वास दिलाते हुए रवाना कर दिया। अब मनोहर को ऐसा लग रहा था कि मानों प्यासे के पास कूंआ उसकी प्यास बुझाने स्वयं चल कर आया हो अथवा किसी तृषित चातक पक्षी के गले में स्वाति वर्षा की बूंदें पड़ गई हों।

आज उसके बैचेन मन पर छाई हुई दुख की बदली छंट गई थी और उसके स्थान पर विजय की चमक थी।

लेखक : विनय मोहन सिंह

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