खोया पीहर लौट आया – रीता मिश्रा तिवारी

टूल पर रखी चाय  ठंडी हो गई और मान्या वालकोनी में चुपचाप उदास बैठी थी।

सामने ही रास्ते के उस पार के एक घर के आंगन में आम से लदा पेड़ था। पेड़ के नीचे चार पांच बच्चे धमा चौकड़ी मचा रहे थे। कोई उचक कर तो कोई गुलेल से कोई डंडा मारकर आम तोड़ने के भरसक प्रयास में कोई पेड़ पर चढ़े जा रहा था।

तभी एक आदमी जिसकी उम्र यही कोई पचास साठ के बीच होगी । उनकी आवाज़ मान्या साफ सुन पा रही थी । वो महाशय बच्चों को आम न तोड़ने के लिए डांट रहे थे। पेड़ पर चढ़े बच्चे को नीचे उतरने को कह रहे थे। शायद बच्चों ने उनसे शर्त लगाई तभी वो उदंडता छोड़ पेड़ से नीचे उतरे।

शायद बच्चों के दादा या नाना होंगे। अब बेचारे महाशय बच्चों के प्रेम में वशीभूत शर्त को अंजाम देने के लिए खुद पेड़ पर चढ़ गए और आम तोड़ कर नीचे गिरा रहे थे।

*इन दृश्यों को देखते देखते मान्या के दिमाग ने चौदह साल पीछे बीते उन खुबसूरत, दर्द भरे लम्हों के पन्ने पलटने लगी।*

“दादा जी! आप हम बच्चों को यूं डांटा मत करिए।आपको पता भी है की बच्चे भगवान होते हैं। उन्हें कुछ भी करने से नहीं रोकना चाहिए। उनकी हर इच्छा पूरी करनी चाहिए। नहीं तो भगवान जी गुस्सा हो जाते हैं। हमें तो कच्ची कैरी खानी है, और हमें खाने से कोई नहीं रोक सकता आप भी नहीं समझे।

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अब आप या तो हमें कच्चे आम तोड़ने दें..नहीं तो स्वयं तोड़ कर दें। हमारी इच्छा की पूर्ति करें ईश्वर आपका भला करेगा।”



मान्या के बोलने के अंदाज से दादाजी के साथ बरामदे में खड़े मम्मी पापा दीदी रोली, रमा और इकलौता भाई चिंटू सब हंसने लगे।

दादाजी__अच्छा मेरी मां अभी आपको आम तोड़ कर देते हैं। मगर एक शर्त है..।

सारे बच्चे एक साथ बोल पड़े ” ऐं$$$$ शर्त कैसी शर्त ? आप हमें शर्त के नाम पर ब्लैकमेल कर न करें दादाजी।

नहीं तो..”

दादाजी__नहीं तो क्या ? क्या करोगे ?

मान्या__पापा से शिकायत कर देंगे ।

पापा__बेटा मान्या पहले सुन तो लो दादाजी की शर्त क्या है।

“बच्चे एक साथ बोले…हां हां ठीक है बताइए दादाजी आपकी शर्त क्या है , पर सोच समझ कर हां…।”



मम्मी__क्या बात है?तुमलोग दादाजी को क्यूं परेशान कर रहे हो। धूप बहुत है चलो सब अंदर। पिताजी चलिए नहीं तो आपकी तबियत खराब हो जायेगी।

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मान्या_ओ पिताजी की चमची रहने दो दादाजी अभी कहीं नहीं जायेंगे। दादाजी जल्दी अपनी शर्त बताइए।

दादाजी__बेटा ! ये आम का जो पेड़ देख रहे हो न इसमें मेरी मां के बड़े बेटे की जान बसती थी । बहुत प्यार से इसकी सेवा सुश्रुषा करती थी। इस पेड़ को वो अपना बेटा ही मानती थी । रोज घंटों इसके साथ बैठती और दुनिया जहान की बातें करती।

“क्या हुआ था उन्हें दादाजी”?

 

“पोलियो से ग्रसित थे वो। बहुत सुंदर होनहार और बुद्धिमान थे। पंद्रहवां जन्मदिन था बहुत धुमधाम से मनाया गया । रात को सोए तो फिर कभी नहीं जगे।”

 

” ओह…फिर दादाजी “?

” मां करीब पागल सी हो गई थी। एक दिन पिताजी मां को आंगन में उग आए इस आम के पौधे को दिखाकर बोले.. लाजवंती हमारा बेटा कहीं नहीं गया है हमारे पास ही तो है। देखो कितना खुश है और झूम रहा है। उसी दिन से मां इस पेड़ को बेटा मानने लगी और धीरे धीरे स्वस्थ होने लगी।”

भींग आए कोरों को पोंछते हुए कहा..

 

“बच्चों ! तो शर्त ये है कि तुमलोग किसी भी मुसीबत, परेशानी या स्वार्थ में आकर इस पेड़ की बुनियाद को कभी चोट मत पहुंचाना ।मतलब कभी काटना बेचना नहीं। “

बच्चे__ठीक है दादाजी हमें शर्त मंजूर है।

दादाजी बच्चों को बहुत सारी कच्ची कैरी तोड़कर दिए।

कहते हैं न समय किसी का मोहताज नहीं हैं। अपनी तीव्रता से अच्छी बुरी यादों को पीछे छोड़ आगे बढ़ता जाता है।

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मान्या एक भाई और तीन बहनों में सबसे छोटी तेज तर्रार सबसे ज्यादा खुबसूरत दादाजी और सबसे छोटी थी तो मम्मी की बहुत दुलारी थी।

वृद्धावस्था ने दादाजी को अपने गिरफ्त में ऐसा जकड़ा की उनकी जान लेकर ही दम लिया।

दोनों बहनें शादी करके ससुराल चली गई और भाई की दुल्हन हमारे घर।

मां को लिवर कैंसर की बीमारी लग गई ।घर अस्त व्यस्त हो गया बहनों की शादी में बहुत रूपए खर्च हो गए थे। पापा के रिटायर्ड के बाद पीएफ फंड भी खतम हो गया था ।अब मां के इलाज के लिए पैसे नहीं थे । पापा को दो चिन्ता अब खाए जा रही थी एक मां का इलाज दूसरी मेरी शादी।

गांव में पुरखों की जमीन भी बिक गई अब सिर्फ़ ये घर बचा था।

पापा ने उसे बेचने का मन बनाया तो हमने और चिंटू ने दादाजी जी बात याद दिलाई और मना कर दिया। मां की हालत बिगड़ती जा रही थी।

एक दिन मां पापा को बुलाकर मेरी शादी के लिए मामाजी के साला का बेटा जो की बेंगलोर में इंजीनियर है इकलौता और बहुत अच्छा संस्कारी है उससे करने की बात कही।

साधारण ढंग से शादी कर मैं ससुराल आ गई। कुछ दिन बाद पापा ने मां के लिए घर बेच दिया फिर भी मां को बचा नहीं सके।

मां के जाने के बाद पापा जैसे हम बहनों को भूल ही गए। न कभी बात करते न ही कभी घर जाने पर खुश होते।

एक दिन तो सीधा सपाट शब्दों में कह ही दिया की हमेशा मुंह उठा यहां आकर मुझे परेशान की जरुरत नहीं है। चिंटू ने जब एतराज़ जताया तो उसे भी अलग रहने को कह दिया। हमारा पीहर जाना छूट गया।

पापा के जाने के बाद आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई थी चिंटू उदास और चिंता में रहता। भाभी से बात कर सारा हाल जान लेती। मैंने भाभी को इनसे (पति)कह कर एक कंपनी में नौकरी लगवा दी। अब दोनों के काम करने से हालत घर की सुधरने लगी।

मान्या की तंद्रा तब भंग हुई काकी (मेड) ने कहा…

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“अरी बिटिया! तुमरी चाय तो ठंडी हुई गई। दरवाजे पर कोई आया है।”

मान्या__कौन है काकी ?

“अब हमे पता नहीं। आप ही के बारे में पूछ रहा है।”

 

नीचे आकर देखी तो अचंभित हो गई ।एक पल को तो आंखों को विश्वास ही नहीं हुआ। लगा कोई सपना देख रही हूं।अपने आंख को कई बार मिचमिचाये,मले काकी से खुद को चिकोटी काटने को कहा।

उधर चिंटू की आंखे पनीली हो गई थी। उसने अपनी बाहें पसार दी रूंधे गले से मान्या मेरी बहन कह दोनों भाई बहन गले मिल फफक पड़े।



“मान्या तेरी भाभी रोली दी को और भूपेंद्र रमा को लाने उसके ससुराल गया है। चल बहुत दिन हो गया मान्या घर इंतजार कर रहा है बहन।”

मान्या की आंखों से गंगा जमुना की अविरल धारा बह रही थी।

गाड़ी जब दरवाजे पर रुकी तो सामने ही पड़ोसन आंटी जो अब बूढ़ी हो गई थी आरती की थाल लिए खड़ी थी।

पीछे से दोनों बहनों की भी टैक्सी आ गई। चिंटू ने कार का दरवाजा खोल बहनों को उतारा और घर के आंगन में लगे आम के पेड़ के नीचे खड़ा हो कहने लगा..

” दादाजी की शर्त मैं भुला नहीं था पर मजबूरी थी मां थी छोड़ नहीं सकते थे। दादाजी की भावनाओं को ठेस पहुंचाई थी पर दिल से बेची नहीं थी।

मैंने कसम खाई थी जब तक अपना घर वापस नहीं ले लेता तुमलोगों से बात नहीं करूंगा। मैंने अंकल को पेड़ की हिफाजत करने की कहानी बता रखी थी और वादा किया था की एक दिन घर वापस लूंगा इसी शर्त पर बेचा गया था बहन।

आज हमारा भी चौदह वर्ष का वनवास खत्म हुआ और हमारा खोया पीहर लौट आया। सब एक साथ भरी आंखों से पेड़ को अंक में भर लिया ।

रीता मिश्रा तिवारी

मौलिक स्वरचित

भागलपुर बिहार

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