एक प्याली चाय’ मन को कितनी संतुष्टि प्रदान करती है ! जब हम थककर चूर हो ,सर्दियों भरे दिन हो ,बारिश का हरियाली मौसम हो और साथ मे कोई मनपसंद स्नैक्स । “बस ऐसा लगता है ,जैसे इससे बड़ा सुख कोई नही” ।
लेकिन मानू को ये सब कहाँ नसीब ,सुबह से शाम कब हो जाती , घर गृहस्थी की उलझनों में पता ही नही चलता था ।
तृतीय वर्ष मे ही थी, की “शिरीष की माताजी ने एक रिश्तेदार के यहां शादी में उसे देखा था” ।”उसके विवाह संगीत में किये गए नृत्य को भी सराहा था” । एवम् “उसके द्वारा किये गए सभी कार्यों का बारीकी से अवलोकन कर रही थी” ।अचानक एक दिन ,माँ और बाबुजी की बात सुनकर आवाक् रह गई ,”शिरीष के घर से उसके लिए रिश्ता आया था” ,उसे समझ नही आ रहा था कि, ये कैसे हो सकता है ,”क्योंकि उनकी ओर शिरीष की आर्थिक स्थिति में जमीन आसमान का अंतर था” ।
शिरीष का परिवार बहुत सम्पन्न था , गाड़ी बंगला, समाज मे प्रतिष्ठा ,घर का व्यवसाय । शिरीष इकलौते बेटे थे ,और दो बहनें ।मानू ने देखा, पिताजी खुश दिख रहे थे ,रिश्ते की बात से ,माँ थोड़ी परेशान थी ,कह रही थी “अभी BA भी कंप्लीट नही हुआ है” मानु का ।उसकी “प्रशासनिक सेवा में जाने की इच्छा थी”।मनस्वी तीन बहनों में सबसे बड़ी थी , छोटी बहने अभी स्कुल में ही थी ।वह भी शादी के पक्ष में नही थी , पर “पैसेवाला घर ,कोई डिमांड नही ओर अच्छा लड़का देखकर पिताजी रिश्ता हाथ से जाने नही देना चाहते थे”।
उन्हें दो छोटी लड़कियों की भी फ़िकर थी , क्योकि उनकी शिक्षक की मध्यम नौकरी में पढ़ाई लिखाई ओर फिर सबकी शादी करना आसान नही था ।मानू के लाख मना करने पर कहने लगे “किस्मत से ऐसा रिश्ता मिला है”।आगे की पढ़ाई का भी मानू ने हवाला दिया , लेकिन उसे समझा दिया की , शादी के बाद पढ़ाई पूरी कर लेना ।”ओर वही हुआ जो पिताजी चाहते थे” ,मानू ससुराल आ गई ।
धीरे धीरे वह भी वहाँ के तौर तरीकों से अवगत होने लगी ।शादी के महीनाएक बीतते ही , सास ने मानु को कह दिया ,बहु ! घर पर सबको नौकरों के हाथ का खाना पसंद नही ।”ससुरजी को भी कम मसाले का खाना पसंद है” ।वही “ननदों ओर शिरीषजी को खाने में रोज नयापन चाहिये” ।साथ रहने पर मानू जान गई थी की,सास ससुर थोड़े पुराने विचारों के ओर परम्पराओ में बंधे हैं ।
शिरीष की भी माँ बाप की ही तरह सोच थी ।ननदों को पूरी आजादी थी ।अपने तौर तरीकों से रहने की ,मानू सुबह को जल्दी से उठ ,नहा धोकर जो रसोईघर में जाती ,सबके उठने तक नाश्ता चाय तैयार करती ,”उसके बाद सबकी फ़रमाइश ओर पसन्द के अनुसार खाना तैयार करना “सबके खाने से निपटने के बाद खाना खाकर जब वह फ्री होती तब तक ससुरजी की दवाइयों का समय हो जाता।
फिर लांड्री वाले का हिसाब किताब ! घर का व्यवसाय होने से घर पर सम्बंधित लोगो का आना जाना लगा रहता ।शाम होते होते ननदें भी स्कूल कॉलेज से आ जाती, तब तक वह रात्रि के खाने की तैयारी में जुट जाती ,यही रूटीन चल रहा था ,”आज मानू ने शिरीष से अपनी पढ़ाई को आगे जारी रखने की बात करने की कोशिश की” ,लेकिन ‘शिरीष ने यह कहकर बात टाल दी’ कि , “घर मे किस चीज की कमी है ! कौन सी नौकरी करनी है” ? मानू कहती रही ,लेकिन शिरीष ने बात आई गई कर दी। वह बहुत उदास थी अपनी डिग्री पूरी नही होने पर ,लेकिन किसे फ़िकर थी , “उसके मन की बात जानने की”।
बड़ी ननद की कॉलेज की पढ़ाई खत्म हो गई थी , एक दो अच्छे घरों में रिश्ते की बात चल रही थी ,आज उसे एक लड़का और कुछ लोग देखने आने वाले थे ।उसने आवभगत की बहुत अच्छी तैयारी की । घर मे बनाए नाश्ते ओर मिठाई वगैरह से सबका स्वागत किया ,”मेहमानों को भी खूब अच्छा लगा ऐसा भावभीना स्वागत” ।
मानू ने अपनी बड़ी ननद निशि को सादगी से तैयार किया था ,जो बहुत अच्छा लग रहा था , लड़का भी प्रशंसित नजरों से निशि को देख रहा था। “मानु भी सभी का बहुत अच्छे से ध्यान रख रही थी” ,”हमें लड़की पसन्द है”। लड़के की माताजी के शब्द सुनकर तो पूरा परिवार खुशी के मारे झूम उठा। “इतना अच्छा परिवार और इकलौता बेटा वह भी’ इंजीनियर”।
मानु की सास ने अपनी बेटी की होने वाली सास से बड़े आदर और स्नेह से पूछा ,”आपने निशि को पसंद कर हाँ कहने का निर्णय ,लिया क्या मैं जान सकती हूं, की आप किस बात से प्रभावित हुई”। निशि की होने वाली सास ने सहजता के साथ बात आगे बढाई “जैसे आपने अपनी बहू को एक नजर में पहचान लिया था” वैसे ही मेने भी यही देखा कि “जिस घर मे मनस्वी जैसी गुणी बहु होगी ,उस घर के सभी सदस्य एक दूसरे से, ऐसे ही प्यार की माला में गूँथे होंगे” आपकी पारखी नजर ने उसे जान लिया था , ऐसे ही “मुझे भी पुरा विश्वास है
,कि निशि भी अपनी भाभी की ही तरह हमारे घर को एक सूत्र में प्यार से बांध कर रखेगी” और रही बात मेरे बेटे की तो , उसकी नजरों से मैं समझ गई थी की ,उसे आपकी बेटी पसंद है। वह मुस्कुरा दी थी।”निशि के दिल में अपनी भाभी के लिए अपार स्नेह और आदर उमड़ रहा था” ।”सही है ,अच्छे गुण और व्यवहार सभी का दिल जीत सकते हैं” ।
उसने भी अपनी भाभी को मन ही मन में अपना आदर्श मान लिया था। मेहमानों को आदर सत्कार कर ,उनके जाने के बाद मानू के ससुर जी ने शिरीष को आदेश दिया ,”मानू की रुकी हुई पढ़ाई को फिर से आगे शुरू करवा दिया जाए । वह नही चाहते थे की उनकी सर्वगुण सम्पन्न बहु मे कोई कमी रहे,उन्हें अपनी गलती का आभास हो गया था। “रसोई के कामों में दोनों बेटियां अपनी भाभी का हाथ बटाएगी”।उन्होंने कहा, मानु की सास के चेहरे पर भी प्रसन्नता मिश्रित संतोष झलक रहा था।
और मानू तो जैसे खुशी से फूली नही समा रही थी ,उसका “अधूरा सपना जो पूरा होने जा रहा था” ।तभी ससुरजी ने कहा ‘मनस्वी बेटा’ *एक प्याली चाय* मिलेगी ! मानू बड़ी खुशी से बोली क्यों नही बाबुजी! अभी लाती हूं ,कहकर वह हर्षातिरेक से रसोई की ओर मुड़ गई ।
किरण केशरे