आज शबनम की शादी की बीसवीं सालगिरह थी। वो काफी उदास थी।क्योंकि उसके पति समीर ऑफिस के काम से अमेरिका गए हुए थे। हालाँकि समीर ने सुबह ही फ़ोन पर शबनम को बधाई दे दी थी। और ये भी कहा था कि वो भी शबनम को मिस कर रहा था। शबनम की अठारह साल की बेटी नैना माँ की उदासी महसूस कर रही थी। वो माँ के पास आ कर बोली, “मम्मी, आज प्लिज़ मुझे अपनी शादी के बारे में फिर से बताओ। पापा आपको कैसे मिले थे?आपकी शादी कैसे हुई थी? शबनम ये सुन कर यादों में खो गई। बोली, “ठीक है बेटा आज मैं तुम्हें फिर से ये क़िस्सा सुनाती हूँ कि कैसे तुम्हारे प्यारे पापा मेरी जिंदगी के हमसफर बने। मेरी शादी से 6 महीने पहले की बात है । मैंने उसी वर्ष एम.ए की परीक्षा first division से पास की थी। भैया -भाभी मुंबई में जॉब कर रहे थे।
मैं मम्मी- पापा के साथ लखनऊ में रहती थीl भैया के बहुत कहने पर पिता जी मुझे अकेले ट्रेन से बॉम्बे भेजने को तैयार हो गए थे। भैया ने मेरे लिए दो तीन रिश्ते देखे थे और वह मुझे उनसे मिलाना चाहते थे। मेरा टिकट हो गया था।यात्रा के दिन पापा ने मुझे ट्रेन में बैठाया, बहुत सारी सावधानियाँ बताईं।ट्रेन चल पड़ी। मेरे साथ कोई बंगाली फैमिली यात्रा कर रही थी।ऐसा लग रहा था कि वो सब किसी शादी से वापिस जा रहे थे।मेरे सामने वाली सीट खाली थी। पता नहीं इस सीट पर कौन आयेगा? मैं घबरा रही थी।झाँसी स्टेशन से एक युवक चढ़ा और मेरे सामने वाली सीट पर सामान रख कर बैठ गया। 26,27 साल का लग रहा था।मैं मैगजीन पढ़ने लगी। तीन चार घंटे गुजरने के बाद युवक बोला ” क्या आप भी बॉम्बे जा रही हैं?” मुझे अजनबियों से बात करना बिल्कुल पसंद नहीं था। “हुं” कह कर चुप हो गई।
लखनऊ से बॉम्बे का सफर काफी लंबा है। मैं सोच रही थी कि कैसे कटेगा इतना लंबा सफर, उसपर से ये युवक। मैं असहज् महसूस कर रही थी ।थोड़ी देर बाद उसने फ्लास्क से 2 कप चाय निकाली और एक कप मेरी ओर बढ़ा दी। ” मैं चाय नहीं पीती ” मैंने उत्तर दिया। हालांकि मैं चाय की शौक़ीन थी पर अजनबी के हाथ से क्यों लेती। ” देखिये मैडम ” सफ़र लंबा है अगर हम लोग कुछ बातें करें तो आसानी से गुज़र जाएगा। ” मैं तुरंत् बोली, “मुझ से अधिक फ्री होने की कोशिश न करिए। ये लीजिए ये मैगजीन पढ़िए। ” वो बेचारा चुप हो गया।और खिड़की से बाहर देखने लगा।फिर वो मुझसे कुछ ना बोला।
ट्रेन अपना सफ़र तय कर रही थी। बॉम्बे आने में 6,7 घंटे रह गए थे. एक स्टेशन पर गाड़ी रुकी। मैंने अपना हैंड बैग सीट पर रखा हुआ था। अचानक एक आदमी आया और मेरा हैंड बैग ले कर ट्रेन से कूदने के लिए भागा। मेरे सह यात्री युवक ने दौड़ कर उसका हाथ पकड़ लिया और मेरा बैग छीन कर मुझे लौटा दिया। मैं अवाक् रह गयी । बैग में मेरे काफ़ी पैसे और कुछ ज़रूरी सामान था। मैंने युवक को धन्यवाद कहा.। मैं मन ही मन शर्मिंदा हो रही थीं। अगले स्टेशन से मैंने 2 लोगों के लिए लंच का ऑर्डर दिया। स्टेशन पर 2 खाने की थाली आई। मैंने एक थाली उस युवक को ऑफर की ।
उसने थोड़ी ना नुकर की. फिर हमने साथ में लंच किया। अब हम थोड़ी थोड़ी बात करने लगे। पर न उसने मेरा नाम पूछा न मैंने उसका। खैर सफर पूरा हुआ। युवक बॉम्बे से पहले थाने में उतर गया। बॉम्बे स्टेशन पर भैया मुझे लेने आये। रास्ते में मैंने भैया को ट्रेन वाली घटना बताई कि कैसे उस युवक ने मेरे बैग को चोर से बचाया। भाभी मेरे आने पर बहुत खुश थी ।बोली, “शबनम, हमने दो तीन रिश्ते देखे हैं तुम्हारे लिए। पर एक लड़का हमें बहुत पसंद है। अच्छी कंपनी में बड़ी पोस्ट पर है। सभ्य परिवार का है। कल वो अपनी बहन के साथ तुमसे मिलने आएगा। तैयार हो जाना”।
भाभी ने मेहमान के आने की काफी तैयारी की थी। समय पर वो लोग आ गए। मैं चाय ले कर ड्राइंग रूम में आई और अपने सामने ट्रेन वाले युवक को देख कर हैरान रह गई। “आप? “वो खड़ा हो गया। ” जी ” मेरे मुँह से निकला।”क्या तुम दोनों एक दूसरे को जानते हो?”भैया ने पूछा। ” भैया यही तो हैं जिन्होंने ट्रेन में मेरी मदद की थी।” ” अच्छा, ये तो अच्छी बात है कि तुम दोनों में पहले से पहचान हो गई है” फिर समीर और मैंने एक दूसरे के लिए हाँ कर दी।और 6 महीने बाद हमारी शादी हो गई। हमने एक दूसरे से वादा किया कि जिस तरह हमने ट्रेन के सफर में एक दूसरे का ख्याल रखा था, एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान किया था।
उसी प्रकार जीवन के इस सफर में भी हम अच्छे हमसफर बनेंगे। सुख- दुख में सदा साथ रहेंगे और प्रेम और सम्मान के साथ अपने विवाहित जीवन को बिताएंगे।और नैना बेटा तुम तो जानती हो कि हम दोनों ने आज तक इस वादे को जी जान से निभाया है और आगे भी निभाने की पूरी कोशिश करेंगे। ” मम्मी आपकी और पापा की शादी की कहानी कितनी सुंदर और सच्ची है। I love you both .” बेटा तुम तो हमारी जान हो” यह का कर शबनम ने नैना को गले से लगा लिया।
लेखिका: महजबीं
# हमसफर
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